Ayurved & Allopathy | आयुर्वेद और एलोपैथी |
Ayurved & Allopathy
महामारी के इस संकट काल में आज एक प्रश्न लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है, और वह प्रश्न यह है की इलाज की आधुनिक चिकित्सा पद्धति “एलोपैथी” जिसे अंग्रेजी में मॉडर्न मेडिकल प्रैक्टिस या एलोपैथी कहा जाता है वह सही है या इलाज के सबसे प्राचीन पद्धति है “आयुर्वेद” सही है।
इस पूरे विषय को लेकर आज आयुर्वेद और एलोपैथी में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है और आज का हमारा लेख भी आयुर्वेद और एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के बारे में है ।
एलोपैथी और आयुर्वेद के बीच यह संघर्ष काफी पुराना है, ऐसा माना जाता है कि भारत में आधुनिक चिकित्सा पद्धति अर्थात एलोपैथी का इस्तेमाल 16वीं सदी से शुरू हुआ था। तब पश्चिमी भारत के तटीय इलाकों पर पुर्तगाल का कब्जा था, और पुर्तगाल से भारत आने वाले जहाजों में व्यापारियों के साथ डॉक्टर भी हुआ करते थे।
पुर्तगाल से आये इन डॉक्टरों के माध्यम से ही भारत में एलोपैथी पद्धति का इस्तेमाल किया गया। हालांकि इलाज की यह पद्धति तब भी काफी सीमित थी हम कह सकते हैं कि सोलवीं सदी तक भारत में इलाज की पश्चिमी पद्धति इस्तेमाल नहीं होती थी। उस समय डॉक्टर भी नहीं होते थे, बल्कि आचार्य, वैद्य, ऋषि और हकीम लोगों का इलाज करते थे। और इलाज के तौर-तरीके भी उस समय काफी अलग थे।
यह वह समय था जब हमारे देश में डॉक्टरों को नहीं बल्कि आचार्य और वैद्यों को भगवान का दर्जा दिया जाता था, जैसे कि आज डॉक्टर को माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उस दौरान भारत में जितनी भी बड़ी बीमारियां फैली उनसे लाखों लोगों की मौत हुई। इन बीमारियों की वजह से ही एलोपैथी चिकित्सा को हमारे देश में प्रवेश मिला और लोगों का भरोसा इस इलाज की पद्धति की ओर बड़ा।
इस तरह से भारत में न सिर्फ इलाज के तौर-तरीके बदले बल्कि शासन का केंद्र भी बदलना शुरू हो गया। यह उस समय की बात है जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था और तभी से आयुर्वेद और एलोपैथी के बीच संघर्ष जारी है।
आज जब भारत के साथ पूरा विश्व कोरोना वायरस जैसी महामारी से संघर्ष कर रहा है और इससे भारत में लाखों मौतें हो चुकी हैं तो फिर आज इलाज की पद्धति को लेकर लोगों के मन में एक धर्म संकट खड़ा हो गया है। इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे आयुर्वेद और एलोपैथी में संघर्ष कितना पुराना है?
Ayurved & Allopathy (आयुर्वेद और एलोपैथी के आकड़े)
भारत में इस समय या वर्तमान में एलोपैथी डॉक्टरों की कुल संख्या लगभग 12 लाख के आसपास है जबकि आयुष चिकित्सकों की संख्या 8 लाख है। जिसमें से ४.५० लाख आयुर्वेद के चिकित्सक, होम्योपैथी के लगभग तीन लाख चिकित्सक, 50,000 लगभग यूनानी चिकित्सक और 2000 के लगभग नेचुरोपैथी चिकित्सक उपलब्ध हैं।
इससे स्पष्ट है कि एलोपैथी के डॉक्टरों के हिसाब से आयुष डॉक्टरों की संख्या काफी कम है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अब लोग एलोपैथी के माध्यम से ही अपना इलाज कराते हैं।
एलोपैथी अर्थात आधुनिक चिकित्सा पद्धति से प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में 20 लाख से अधिक जानें बचाई जाती है।
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एलोपैथी और आयुर्वेद का इतिहास
History of Ayurved & Allopathy
एलोपैथी का इतिहास (History of Allopathy) :-
वर्ष 1810 में जर्मनी के महान होम्योपैथिक चिकित्सक डॉक्टर सैमुअल हनीमैन (Dr.Samuel Hahnemann) ने पहली बार एलोपैथी शब्द का इस्तेमाल किया था।
एलोपैथी (Allopathy) शब्द ग्रीक भाषा के Allos और Pathos शब्दों से मिलकर बना है। Allos का अर्थ है “अलग” Pathos का अर्थ है “बीमारी”।
एलोपैथी शब्द इस्तेमाल हुआ क्योंकि होम्योपैथिक इलाज की पद्धति काफी अलग है क्यों होम्योपैथिक इलाज में बीमारी के कारण को ही बीमारी का निवारण माना जाता है। जबकि एलोपैथी इलाज में इसके बिल्कुल विपरीत होता है।
होम्योपैथिक चिकित्सक डॉक्टर सैमुअल हनीमैन ने एलोपैथी शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया क्योंकि यह पद्धति होम्योपैथिक चिकित्सा से बिल्कुल अलग थी, और विपरीत थी। लेकिन समय के साथ एलोपैथिक शब्द आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को परिभाषित करने के लिए भी इस्तेमाल होने लगा।
आज मॉडर्न मेडिकल साइंस को ही एलोपैथी कहा जाता है। जबकि कई डॉक्टर और वैज्ञानिक इससे सहमति नहीं रखते हैं। बहुत से डॉक्टर ये मानते हैं कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति को एविडेंस बेस्ड मेडिसिन कहा जाना चाहिए। इसके पीछे कारण यह है इस पद्धति में दवाई और इलाज के तरीके को एक लंबी पद्धति से गुजरना पड़ता है। अगर परीक्षण सफल रहता है तभी उस दवाई और इलाज के इस्तेमाल की अनुमति मिलती है और यह पूरी पद्धति वैज्ञानिक शोध पर आधारित है।
इलाज की इस आधुनिक चिकित्सा पद्धति को 2400 वर्ष पुराना माना जाता है 400 ई० पूर्व ग्रीस के एथेंस शहर में रहने वाले हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) को आधुनिक चिकित्सा का जनक कहा जाता है, कहा गया है वह ग्रीस के महान चिकित्सक थे।
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आयुर्वेद का इतिहास (History of Ayurved) :-
इलाज के प्राचीन पद्धति में से एक “आयुर्वेद” की शुरुआत 3000 से 4000 वर्ष पुरानी मानी जाती है।
आयुर्वेद संस्कृत भाषा के दो शब्द “आयुर और वेद” से मिलकर बना है। “आयुर” का अर्थ होता है “जीवन” और “वेद” का अर्थ होता है “विज्ञान”। अर्थात आयुर्वेद “जीवन के विज्ञान” को परिभाषित करता है।
अथर्ववेद में 114 श्लोक ऐसे हैं जो आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज का जिक्र करते हैं। अथर्ववेद में कई प्रमुख बीमारियों के बारे में बताया गया है। जैसे – बुखार, खांसी, पेट दर्द, डायरिया और स्किन की बीमारियां। इन बीमारियों का इलाज कैसे करना क्या है? इस बारे में अथर्ववेद में उल्लेख मिलता है।
ऋग्वेद में भी 67 औषधियों का उल्लेख मिलता है।
यजुर्वेद में 82 औषधियों का उल्लेख किया गया है।
सामवेद में आयुर्वेद से संबंधित कुछ मंत्रों और कुछ रोगों की चिकित्सा का वर्णन किया गया है।
हमारे वेदों में आयुर्वेद का उल्लेख है और यह इलाज की सबसे प्राचीन पद्धति है।
ऐसा कहा जाता है कि एलोपैथिक इलाज में की उत्पत्ति आयुर्वेदिक इलाज पद्धति के 2000 वर्षों के बाद हुई। आयुर्वेद ने हमें कई महत्वपूर्ण ग्रंथ भी दिए हैं।
वेदों में आयुर्वेद का उल्लेख मिला उसे आने वाली सदियों में दो भागों में बांटा गया :-
(1). धनवंतरी संप्रदाय :- इससे संबंधित जानकारी हमें चरक संहिता में प्राप्त होती है। जिसमें विभिन्न बीमारियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। यह प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रंथ चरक ने लिखा था। चरक एक महान महाऋषि एवं आयुर्वेद विचारक के रूप में विख्यात है, और वह कुषाण राज्य के राज वैद्य थे।
(2). आत्रेय संप्रदाय :- इससे संबंधित जानकारी सुश्रुत संहिता में प्राप्त होती है। इसमें 100 अलग-अलग प्रकार की सर्जरी और 650 से ज्यादा दवाइयों का उल्लेख मिलता है। सुश्रुत भी प्राचीन भारत के महान चिकित्सा शास्त्री एवं शल्य चिकित्सक थे। आयुर्वेद के महान ग्रंथ सुश्रुत संहिता के प्रणेता भी थे, और उन्हें शल्य चिकित्सा का जनक भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि उन्होंने ही आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व प्लास्टिक सर्जरी भी की थी।
इसके अलावा भगवान ब्रह्मा ने आयुर्वेद को 8 भागों में बांटा था। इनको उन्होंने तंत्र नाम दिया था। यह सारे भाग अलग-अलग चिकित्सा के उपक्रम को समझाते हैं।
(1). शल्य तंत्र जिसे अंग्रेजी में सर्जरी (Surgery) कहा जाता है।
(2). शालक्य तंत्र जिसे अंग्रेजी में ENT विभाग कहा जाता है।
(3). काय चिकित्सा जिसे जनरल मेडिसिन (General Medicine) कहा जाता है। इसमें बुखार खांसी जुकाम जैसी बीमारी आती है।
(4). भूत विद्या तंत्र इसमें ग्रह दिशा से संबंधित चिकित्सा के बारे में लिखा गया है।
(5). कुमार भृत्यु तंत्र जिसमें बच्चों एवं स्त्री रोग से संबंधित रोग का उल्लेख किया गया है।
(6). आगदक तंत्र इसे अंग्रेजी में टॉक्सिकोलॉजी कहते हैं इसमें जहर के विषय में ज्ञान दिया गया है।
(7). रसायन तंत्र इसमें बुढ़ापे में बल और दीर्घायु बनने के बारे में लिखा गया है।
(8). वाजीकरण तंत्र इसमें शरीर के गुप्त रोग का उल्लेख मिलता है।
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एलोपैथी जहां इलाज की आधुनिक पद्धति है वही आयुर्वेद इलाज की प्राचीन पद्धति में से एक है। लेकिन फिर भी इन दोनों में टकराव की स्थिति बनी हुई है। प्रमुख कारण है कि आयुर्वेद को हमेशा धर्म से जोड़कर देखा गया है।
18 वीं सदी में जब एलोपैथी का भारत में विस्तार हुआ तब अंग्रेज इस पद्धति को रहस्य भरी नजरों से देखते थे। उस समय हमारे देश के जो लोग आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज कराते थे उन्हें अंधविश्वासी कहा जाता था। अंग्रेज़ इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि भारत में एलोपैथी का विस्तार आसान नहीं होगा।
जब भारत में चेचक की बीमारी फैली तब इसका इलाज भी आयुर्वेदिक पद्धति से भारत में होता था लेकिन फिर वर्ष 1796 में चेचक की वैक्सीन विकसित कर ली गई और अंग्रेजों ने इस वैक्सीन का इस्तेमाल भारत में शुरू कर दिया। चेचक के इस टीके से लोगों की जान बची तो एलोपैथी में लोगों का विश्वास बढ़ने लगा।
यही वह समय था जब लोग आयुर्वेद की जड़ी-बूटियों को छोड़कर एलोपैथिक की कड़वी दवाइयों की ओर रुख करने लगे। एलोपैथी चिकित्सा पद्धति से इलाज कराने के लिए अंग्रेजों ने भारत में बड़े स्तर पर अभियान चलाया। कहा जाता है तब आचार्य और वैद्यों ने इसका विरोध किया लेकिन अंग्रेजों ने इस विरोध को दबा दिया।
वर्ष 1785 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, मद्रास और बॉम्बे प्रेसिडेंसी में मेडिकल विभाग का गठन किया। फिर वर्ष 1819 में इन तीनो मेडिकल विभागों को मिलाकर “इंडियन मेडिकल सर्विस” की स्थापना की गई। जिसका उद्देश्य था इलाज के पश्चिमी तौर-तरीकों को भारत में प्रोत्साहित करना और लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ाना।
पश्चिमी भारत के तटीय इलाकों में पुर्तगालियों का लंबे समय से शासन रहा। वर्ष 1860 तक गोवा पुर्तगालियों के अधीन था, उस दौरान वर्ष 1840 में पुर्तगालियों ने गोवा मेडिकल कॉलेज की स्थापना की थी। इससे 5 वर्ष पहले अंग्रेजों ने भी ठीक ऐसा ही एक मेडिकल कॉलेज मद्रास में वर्ष 1835 में बनाया था। इन संस्थानों में लोगों को मॉडर्न मेडिकल साइंस के बारे में पढ़ाया जाता था।
यह उस दौर की बात है जब भारत में बड़े बड़े अस्पताल नहीं होते थे। देश की अधिकतर आबादी गांव में रहने वाली थी और ज्यादा शिक्षित नहीं थी। लोग बाहर से पढ़ कर आए विदेशी डॉक्टरों से ज्यादा वैद्य,हकीम और आचार्य पर ही भरोसा करते थे। लेकिन अंग्रेजों ने भारत में एलोपैथी का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया और लोग डॉक्टरों के पास इलाज के लिए जाने लगे।
190 वर्षों के अंग्रेजों के शासन में इलाज की यह पद्धति भारत में काफी लोकप्रिय हो गई और अंग्रेजों ने इस दौरान भारत के कई प्रमुख शहरों में बड़े-बड़े अस्पताल का निर्माण भी करवाया। इससे पहले अस्पताल नहीं थे और और भारत में डॉक्टर भी नहीं होते थे।
भारत में इससे पहले वैद्य, आचार्य और हकीम होते थे। ऐसा नहीं है कि एलोपैथी को लोगों पर थोप दिया गया। इलाज की इस पद्धति ने कई लोगों की जान बचाई जिस कारण लोगों का इस पर विश्वास बढ़ता गया। वर्ष 1910 के बाद भारत में बच्चे पढ़ने जाते थे तो उनका पहला सपना डॉक्टर बनने का ही होता था। जो आज कल भी कई बच्चों का होता है। हालांकि तब डॉक्टर बनने की पढ़ाई करना आसान नहीं होता था। लेकिन अंग्रेजों ने मेडिकल कॉलेज बनाए और इसका काफी विस्तार किया।
आजादी के बाद भी यह सिलसिला चलता रहा और एलोपैथिक इलाज की पद्धति हर वर्ष लाखों जान बचाने लगी।
एलोपैथी और आयुर्वेद के बारे में कुछ आकड़े
आज पूरे देश में 17000 सरकारी एवं प्राइवेट हॉस्पिटल है जबकि आयुष हॉस्पिटलों की संख्या 3600 ही है जिनमें 2900 आयुर्वेदिक अस्पताल और 300 होम्योपैथिक अस्पताल है।
इन आंकड़ों में एक सच्चाई यह भी है की आज लोग डॉक्टर तो बनना चाहते हैं लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सक नहीं बनना चाहते है।
वर्तमान समय में देश में कुल लगभग 562 मेडिकल कॉलेज है जिसमे एमबीबीएस की लगभग 85000 सीटें है। इसमें 286 सरकारी और 276 प्राइवेट संस्थान है। अगर बात आयुर्वेदिक मेडिकल संस्थानों की करें तो भारत में लगभग 250 आयुर्वेदिक संस्थान है जिनमें 10000 अंडर ग्रेजुएट और 12000 पोस्ट ग्रेजुएट सीट है। इसी से आयुर्वेद और एलोपैथिक के फासले को समझा जा सकता है।
वर्तमान में पूरे विश्व में फार्मास्यूटिकल कंपनियों का सालाना टर्नओवर 1.3 ट्रिलियन डॉलर लगभग 97 लाख करोड़ है। सिर्फ भारत में फार्मास्यूटिकल कंपनियों का सालाना टर्नओवर 21 मिलियन डॉलर अर्थात तीन लाख करोड़ रुपए है।
आयुर्वेद अधिकांश रूप से हमारे देश में ज्यादा लोकप्रिय इसके लिए भी कुछ आंकड़े जो निम्न प्रकार है :
देश में आयुर्वेदिक दवाइयों का सालाना कारोबार 10000 करोड़ रुपए का है जबकि 1000 करोड़ की आयुर्वेदिक दवाइयां निर्यात की जाती है, दूसरे देशों को भेजी जाती है। अगर समस्त आयुर्वेदिक उत्पादों की बात करी जाए पिछले कुछ वर्षों में इस का सालाना कारोबार 30000 करोड़ रूपए था। कुछ वर्षों में इसमें काफी तेजी आई है जब से कोरोनावायरस फैला है।
सर्वविदित है कोरोनावायरस से बचने के लिए लोग काढ़ा पी रहे हैं , हल्दी वाला दूध पी रहे हैं, गिलोय का सेवन कर रहे हैं और अदरक का भी अधिक से अधिक सेवन कर रहे है। असल में इलाज की यह सभी पद्धति आयुर्वेद की है। आयुर्वेद में इन्हीं जड़ी-बूटी से लोगों को ठीक किया जाता है।
एलोपैथी और आयुर्वेद में अंतर (Difference between Ayurved & Allopathy) :-
- आयुर्वेद में इलाज की पद्धति हजारों वर्ष पुरानी है जबकि एलोपैथी का जन्म वर्ष 1810 से माना जाता है।
- आयुर्वेदिक दवाइयों का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता जबकि एलोपैथिक दवाईओं के कुछ ना कुछ साइड इफ़ेक्ट होते ही है।
- आयुर्वेद में इलाज काफी लंबा चलता है जबकि एलोपैथी में कम समय में तुरंत आराम मिलता है।
- आयुर्वेदिक इलाज सस्ता होता है जबकि एलोपैथी में इलाज काफी ख़र्चीला होता है।
- आयुर्वेद में बीमारी की पहचान के लिए उपकरण नहीं होते जबकि एलोपैथी में बहुत से उपकरण उपलब्ध होते है।
Ayurved & Allopathy
एलोपैथी से पूर्व भारत में इलाज की निम्न पद्धतियाँ मौजूद थी :-
- आयुर्वेद
- योग
- सिद्ध चिकित्सा पद्धति
- यूनानी चिकित्सा पद्धति
- होम्योपैथी
- नेचुरोपैथी
इन सभी पद्धतियों को ईस्टर्न मेडिसिन अर्थात पूर्व के देशों से आई इलाज की पद्धति या alternate medicine कहा जाता है।
पिछले 100 वर्षो से एलोपैथी इलाज की पद्धति इलाज की दूसरी पद्धतियों से काफी आगे बढ़ चुकी है।
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