SARAGARHI BATTLE | SARAGARHI WAR IN HINDI | सारागढ़ी का युद्ध |
SARAGARHI BATTLE
भारतवर्ष के लोगों की हमेशा से ही एक ख़ासियत रही हैं कि वह कभी भी अपने शहीदों के बलिदान को भूलता नहीं हैं। इसका कारण है यहाँ के वीरों की गाथाएं, यहाँ के कण-कण में बसी देशभक्ति की भावना और त्याग। भारतवर्ष के महान वीरों, देशभक्तों ने ऐसा युद्ध लड़ा हैं कि वह आज तक भुलाये नहीं भूलता हैं। देश में ऐसे वीर राष्ट्रभक्त हुए है, जिन्होंने दुश्मन के सामने संख्या में कम होने के बावजूद भी कभी भी अपने घुटने नहीं टेके। आज का हमारा लेख है, ऐसी ही एक वीर गाथा के बारे जो कि आपको अपने पूर्वजों के राष्ट्रप्रेम एवं गौरवगाथा से आपके अंदर गर्व की’अनुभूति कराएगी।
इस लेख के माध्यम से हम आपको SARAGARHI WAR IN HINDI , BATTLE OF SARAGARHI IN HINDI , SARAGARHI WAR HISTORY , सारागढ़ी की लड़ाई , SARAGARHI FORT LOCATION , सारागढी़ दिवस (21 वीर पराक्रमियों की वीरगाथा) , SARAGARHI WAR, सारागढ़ी का युद्ध इन सभी चर्चाओं का जवाब देने की कोशिश करेंगे।
सिख धर्म के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने धर्म की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े थे। उन्होंने कहा था एक-एक सिख सवा लाख के बराबर होता है। वर्ष 1704 में पंजाब के चमकौर में एक जंग हुई थी, जिसमें 40 सिखों ने 10 लाख मुगल सिपाहियों का बहादुरी से मुकाबला किया था, जिसका नेतृत्व स्वयं गुरु गोबिंद सिंह जी ने किया था।
कहा जाता है इतिहास खुद को दोहराता है और अगर इतिहास योद्धाओं द्वारा लिखा जाए तो फिर वो खुद को ज़रूर दोहराता है, ऐसा ही कुछ हुआ चमकौर युद्ध के 193 साल बाद अर्थात वर्ष 1897 में, तब सारागढ़ी नाम की जगह पर सिर्फ 21 सिख सिपाहियों ने 10 हजार अफगान आक्रमणकारियों को धूल चटा दी थी।
SARAGARHI BATTLE
SARAGARHI BATTLE | SARAGARHI WAR IN HINDI
सारागढी़ वर्तमान में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में है, जो आजादी से पूर्व भारत का अंग था। वर्ष 1897 में इस इलाके पर कब्जा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सिख रेजीमेंट की 5 कंपनियां यहाँ भेजी थी, लेकिन अफगान आक्रमणकारी लगातार ब्रिटिश सेनाओं को चुनौती दे रहे थे। हमलों से बचने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने यहां 2 किलों का निर्माण भी किया था।
SARAGARHI BATTLE
इनमें से एक किला फोर्ट लोकहार्ट (Fort Lockhart) था, जबकि दूसरे किले का नाम फोर्ट गुलिस्तां (Fort Gulistaan) था। इन दोनों किलों के ठीक बीच में सारागढ़ी था, जहां ब्रिटिश सेना द्वारा हेलिओग्राफिक संचार पोस्ट (Heliographic Communication Post) बनाई गई थी।
हेलिओग्राफ (Heliograph) तकनीकी का इस्तेमाल युद्ध के दौरान किया जाता था। इस तकनीक के जरिए शीशे पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी को दूसरी पोस्ट तक पहुंचाया जाता था। सूर्य की रोशनी के बदलते पैटर्न में संदेश छिपे होते थे, जिन्हें मोर्स कोड (Morse Code) तकनीक की मदद से समझा जाता था।
सारागढ़ी पोस्ट पर हेलियोग्राफ (Heliograph) की जिम्मेदारी गुरमुख सिंह नामक सिपाही की थी। उन्होंने इसी की मदद से जंग का पूरा ब्योरा फोर्ट लोकहार्ट (Fort Lockhart) तक पहुंचाया था।
SARAGARHI BATTLE IN HINDI | HISTORY OF SARAGARHI
इस जंग की शुरुआत 12 सितंबर 1897 को हुई थी, तब सिपाही गुरमुख सिंह ने फोर्ट लोकहार्ट (Fort Lockhart) में मौजूद कर्नल हांगटन को एक संदेश भेजा था। इस संदेश में कहा गया था कि 10 हज़ार अफगान आक्रमणकारियों ने सारागढ़ी पर हमला बोल दिया है। लेकिन ब्रिटिश सेना के आदेश पर कर्नल ने फौरन मदद भेजने से इनकार कर दिया। इसके बाद सारागढ़ी पोस्ट पर मौजूद 21 सिपाहियों ने आखिरी सांस तक लड़ने का फैसला किया। इन वीर सिपाहियों का नेतृत्व हवलदार ईशर सिंह (Ishar Singh) कर रहे थे, जिनका पराक्रम एवं साहस देखकर सभी तैनात 21 सिपाही उन अफगान आक्रमणकारियों को मुँह तोड़ जवाब देने को आमादा थे। SARAGARHI BATTLE
इसी बीच फोर्ट लोकहार्ट (Fort Lockhart) से हेलियोग्राफ की मदद से संदेश आया कि दुश्मनों की संख्या हजारों में हो सकती है, लेकिन ये 21 महायोद्धा घबराए नहीं बल्कि इन्होंने आखिरी सांस तक लड़ने फैसला किया। इस दौरान अफगान आक्रमणकारी पश्तून फौजों के नेता ने इन सिपाहियों को आत्मसमर्पण के लिए कहते रहे, लेकिन इन देशभक्त सिपाहियों को ये बिल्कुल मंजूर नहीं था। SARAGARHI BATTLE
सारागढ़ी की इस जंग ने युद्ध की सारी किताबी परिभाषाओं को पार कर लिया था। सारागढ़ी के मैदान में सिर्फ युद्ध नहीं लड़ा जा रहा था, बल्कि एक इतिहास लिखा जा रहा था। इन 21 योद्धाओं ने 10 घंटे तक चली इस जंग में करीब 600 अफगान दुश्मनों को मार गिराया। इस दौरान सिपाही गुरमुख सिंह हेलियोग्राफ (Heliograph) से कर्नल हांगटन को युद्ध का ब्योरा भेजते रहे। आखिर में उन्होंने खुद भी हथियार उठाने की इजाजत मांगी और इसके बाद 20 दुश्मनों को मार गिराया। गुरमुख सिंह दुश्मनों का काल बन गए थे। उन्हें हराने के लिए अफगान सैनिकों ने पोस्ट में आग लगा दी, कहा जाता है कि वो अंत तक जो बोले सो निहाल की यलगार करते रहे। SARAGARHI BATTLE
एक ऐसा युद्ध जिसकी मिसाल शायद ही दुनिया के किसी और युद्ध के मैदान में मिलती हो। 10 हजार की विशाल सेना के सामने मुट्ठी भर 21 सिख। लेकिन इन वीर सिख सैनिकों ने अफगानी सैनिकों की हालत खराब कर दी। जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल की हुंकार के साथ सिख सैनिक विशाल अफगानी सेना पर टूट पड़े, ईशर सिंह के नेतृत्व में सिख सैनिक पूरी वीरता के साथ लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए, सिग्नलिंग पोस्ट संभाल रहे गुरुमुख सिंह शहीद होने वाले आखिरी सिख सैनिक थे। 21 सिख सैनिकों के शहीद होने के बाद अफगानी सैनिकों ने सारागढ़ी के किले को तबाह कर दिया। इसके बाद वह गुलिस्तान के किले की ओर मुड़े लेकिन सिख सैनिकों से पार पाने में उन्हें इतना वक्त लग गया कि 13-14 सितंबर की रात को मदद के लिए और अंग्रेजी सैनिक आ गए और अफगानी गुलिस्तान के किले को नहीं जीत पाए। 14 सितंबर को जवाबी कार्रवाई करते हुए अंग्रेजों ने सारागढ़ी पर फिर से कब्जा कर लिया। SARAGARHI BATTLE
Honour | सम्मान |
भारत में बहुत कम लोगों को सारागढ़ी के युद्ध की जानकारी है, जबकि ब्रिटेन में वहां की सेना हर साल इस दिन इन 21 सिपाहियों को याद करती है। भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट भी हर साल 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस मनाती है।
युद्ध के बाद कर्नल हौटान ने युद्ध की पूरी कहानी ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सीनियर अफसरों को सुनाई। सारागढ़ी युद्ध में शहीद हुए सभी 21 सैनिकों को ब्रिटिश इंडिया द्वारा ‘इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट’ अवार्ड से सम्मानित किया गया था। यह अवार्ड आज के परमवीर चक्र के समान है। सबसे खास बात तो यह है कि इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब किसी बटालियन के हर सदस्य को युद्ध में वीरता का पुरूस्कार दिया गया था। यह इतिहास में पहला मौका था जब मात्र एक युद्ध के लिए किसी यूनिट के हर सैनिक को वीरता पुरस्कार से नवाजा गया हो। अब भी इस युद्ध के याद में हर साल 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस मनाया जाता है।
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