बंजारा समाज ( BANJARA SAMAJ )- व्यापारिक गतिविधियों से देश को एक सूत्र में बांधने वाला , कला और संस्कृति का प्रसार व संरक्षण करने वाला समाज। 

BANJARA SAMAJ

 

ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) हमेशा से ही एक निर्भीक , जुझारू , बहादुर, व्यापारिक गुणों से सम्पन्न समाज रहा हैं।

बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) एक विस्तृत कला और संस्कृति को ग्रहण करने वाला समाज हैं। बंजारा समाज ने एक स्थान से दूसरे स्थान जाकर व्यापार करने के तरीकों से भारत वर्ष को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया हैं।

आज हम इस लेख में भारतीय सामाजिक विशेषता विविधता में एकता” को समाहित करने वाले और अनेक गुणों को ग्रहण करने वाले बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) के विषय मे विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे।

बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) या बंजारा शब्द अपने आप में एक समृद्ध संस्कृति और जीवन शैली समेटे हुए हैं। बंजारा समाज वर्षो से एक संस्कृति को संरक्षित करके चल रहा हैं। बंजारा समाज का उल्लेख इतिहास में एक व्यापारी समाज के रूप में किया गया हैं। इतिहास में बड़े स्तर पर व्यापारिक गतिविधियों में बंजारा समाज का योगदान रहा हैं। वही बंजारा समाज बहादुरी और निडरता के लिए भी जाना जाता हैं। इतिहास कैसे बाबा लक्खी शाह बंजारा जी के योगदान को भुला सकता हैं। इतिहास में बंजारा समाज का विशेष स्थान रहेगा।

 

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बंजारा शब्द की उत्पत्ति के विषय में धारणाएं / बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ)

 

इतिहासकार इरफ़ान हबीब के अनुसार बंजारा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द वणिक , वणिज , बनिक से हुए हैं। इन शब्दों से ही बनिया शब्द की उत्पत्ति मानी जाती हैं जो एक ऐतिहासिक व्यापारी समाज रहा हैं।

वही कुछ इतिहासकारों का जैसे कि बी जी हलबर ( B. G. Halbar) के अनुसार बंजारा शब्द की उत्पत्ति वनचारा शब्द से हुई हैं।

पूरे भारत में इस समाज को अधिकतर बंजारा शब्द से ही जाना जाता है वही कर्नाटक में बनिजागरु के नाम से पुकारा जाता हैं।

गोर, गोर बंजारा, लमन, लम्बानी, लम्बाडी, सुगली, लाभ, गवरिया, बलदिया, शिक्लिगर, वंजर और गौरिया आदि ये अन्य नाम हैं जिनसे देश मे बंजारा समाज को जाना जाता हैं।
छत्तीसगढ़ में बंजारों को नायक नाम से पुकारा जाता हैं।

 

बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

 

अनेक इतिहास के जानकारों ने बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ)  की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर अपनी अपनी राय दी हैं। सबसे अधिक मान्यता के अनुसार बंजारा समाज का मूल मेवाड़ राजस्थान से माना जाता हैं।

कुछ ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ)  का इतिहास 3000 वर्षो का रहा हैं। जिसमें उन्होंने एक व्यापारी,एक लड़ाकू कौम के रूप में जीवन व्यतीत किया हैं।

बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) की उत्पत्ति के विषय मे अनेक मत प्रचलित हैं। उन मतों के विषय में जानकारी निम्न प्रकार से हैं

1. जिनमें एक मत या कथा के अनुसार बंजारा समाज का संबंध रामायण काल के राजा सुग्रीव से दिखाया गया हैं।

2. एक मत के अनुसार ये एक घुमंतू जाति थी जो मध्य एशिया से घूमती हुई भारत मे प्रवेश कर गयी थी।

3. एक मत के अनुसार बंजारा समाज मुगल काल तक राजस्थान के राजपूत समाज से संबंधित था। परंतु बाद में ये राजस्थान से जंगलों या अन्य स्थानों के लिए प्रवास कर गयी। ये मत भी अत्यधिक प्रचलित हैं। इनके प्रवास के पीछे अनेक कारण बताएं जाते हैं जैसे कि राजस्थान में सूखे की स्तिथि के कारण जानवरों और व्यक्तियों के लिए खाद्यान समस्या।

4. कुछ स्रोतों के अनुसार बंजारा समाज की अधिकतर कला , संस्कृति , परंपराएं मौखिक थी। जिससे प्राचीन काल में बंजारा समाज के इतिहास की कोई ज़्यादा जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती हैं।

5. एक मत के अनुसार छठी सदी में बंजारा समाज का आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण योगदान था। व्यापार के बड़े भाग पर बंजारों का आधिपत्य था।

इस प्रकार हम देखते हैं कि बंजारा समाज के विषय मे अनेक मत प्रचलित हैं। बंजारा समाज के विषय मे इसी प्रकार के अनेक मत और कथाएं प्रचलित हैं।

 

बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) का निवास स्थान

 

कहा जाता है कि बंजारे जब राजस्थान से बाहर निकलकर देश के अन्य भागों में गए। तो वो देश के अलग अलग राज्यों में निवास करने लगे।

प्रचलित मत के अनुसार बंजारे राजस्थान से निकल कर ही भारत के दक्षिण हिस्सों में गए।

बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) देश के अनेक राज्यों में निवास करता हैं। महाराष्ट्र , कर्नाटक , आंध्र प्रदेश , राजस्थान , उत्तर प्रदेश , गुजरात , तथा मध्य प्रदेश में बंजारा समाज की जनसंख्या सर्वाधिक हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य के अनेक जिलों में बंजारा समाज बड़ी संख्या में निवास करता हैं। मुज़्ज़फरनगर , अलीगढ़ , बिजनौर , पीलीभीत , बरेली , इटावा , मथुरा , एटा , मुरादाबाद , आगरा , शाहजहांपुर आदि ये ऐसे राज्य है जिनमें बंजारा समाज बड़ी संख्या में निवास करता हैं।

 

गतिविधियां

 

 व्यापारिक गतिविधियां –

 

बंजारा समाज एक झुझारू , बहादुर और व्यापारिक गुणों से सुसज्जित समाज रहा हैं।

बंजारे अनेक समूहों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते थे। बंजारों के समूह में बड़े स्तर पर घोड़े , बैल , गधे , ऊंट भी होते थे , जो सामान ढोने के काम में लाएं जाते थे। आवागमन के साधन स्थान के अनुसार बदलता रहते थे जैसे जहाँ घोड़े उपयुक्त होते वहाँ घोड़ो का प्रयोग और जहाँ ऊंट उपयुक्त होते वह ऊंटों का उपयोग।

ये व्यापार और सुरक्षा कारणों से समूहों में यात्राएं करते थे। प्रत्येक समूह का नेतृत्व एक मुखिया द्वारा किया जाता था ये मुखिया निर्वाचित होता था मतलब चुना हुआ होता था। समूह के मुखिया को मुक़द्दम , नायक या नाइक नामों के रूप में जाना जाता था।  बंजारों के इस समूह को टांडा नाम से भी पुकारा जाता था। आपने हमारे एक अन्य लेख में पढ़ा ही होगा कि बाबा लक्खीशाह बंजारा के पास कई टांडा थे। और वो देश के शीर्ष अमीर व्यापारियों में स्थान रखते थे।

17 वी शताब्दी में शासन करने वाले मुगल शासक जहाँगीर ने उन्हें एक ऐसा लोगो का समूह बताया है जिनके पास हज़ारों बैल मौजूद हो , जो संख्या में ज्यादा भी हो सकते है।

बंजारे सामान्य और विशिष्ट दोनों तरह की  वस्तुओं का व्यापार करते थे।
बंजारों ने सामान्य तिलहन , गन्ना , अफीम , फल , वन उत्पाद , चिरौंजी , महुआ , तम्बाकू , आदि वस्तुओं का व्यापार किया है।
वही विशिष्ट वस्तुओं में नमक , अनाज , लकड़ी के सामान, मनके आदि वस्तुओं का भी व्यापार करते थे।
बंजारे मवेशियों का भी व्यापार करते थे।

दक्कन के पठार और मध्य प्रांत में नमक के व्यापार पर बंजारों का एकाधिकार था।
बंजारों की वजह से ही दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों तक सामान की पहुँच हो पाती थी।

बंजारे ही एक स्थान से वस्तुएं दूसरे स्थान पर ले जाते थे।

प्रचलित मतों के अनुसार ये ज्ञात होता ही है कि देश के व्यापार के एक बड़े भाग पर बंजारा समाज का आधिपत्य रहा हैं।

वर्तमान में तो बंजारा समाज का एक बड़ा वर्ग एक निश्चित स्थान पर निवास करने लगा हैं। परंतु इतिहास की जानकारी के अनुसार ये समाज सदियों से देश के दूर दराज इलाकों में निडर होकर यात्राएं करता रहा हैं।

इनके लिए कभी किसी साम्राज्य या राज्य की सीमाएं अवरोधक का काम नहीं कर पाई हैं। ये बेधड़क होकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। जिससे  व्यापार के एक बड़े भाग में इनकी हिस्सेदारी भी सुनिश्चित होती हैं।

 

मुगलों के सामाजिक उत्पीड़न के ख़िलाफ़ संघर्ष –

 

बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) के अनेक योद्धाओ ने मुगलो के खिलाफ लड़ाई लड़ी है।  अनेक योद्ध मुगलों के खिलाफ लड़ते हुए बलिदान हुए हैं।

बाबा लक्खीशाह बंजारा ने भारतवर्ष की अनेक तरह से सेवा की थी। उन्ही परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए उनके परिवार ने समाज के उत्पीड़न के खिलाफ़ आवाज उठायी। मुगलो के उत्पीड़न के खिलाफ उनके पुत्रो और पौत्रों ने संघर्ष किया।

बाबा लक्खीशाह बंजारा और इनके भाई , भाई गुरदास , सिख गुरु ( गुरु तेगबहादुर और अन्य गुरुओं )  के करीबी थे।  वही बाबा लक्खी शाह बंजारा के बाद उनके पुत्र , भाई हेमा, भाई नघैया , भाई हरिया और उनकी बेटी बीबी सीतो, दसवें सिख गुरु गोविंद सिंह के सहयोगी थे ।
आनंदपुर में भाई हेमा , भाई नघैया , भाई हरिया मुगलों के खिलाफ़ लड़ते हुए शहीद हुए थे।
उसके बाद आगे चलकर बाबा लक्खीशाह बंजारा के पोते अग्रराज सिंह और फराज सिंह बाबा बंदा सिंह बहादुर के सेना में प्रमुख सेनापति थे। ये दोनों भी मुगलों के खिलाफ़ लड़ते हुए शहीद हो गए थे।

इनके अतिरिक्त भी अनेक योद्धा सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाते हुए और लड़ते हुए शहीद हुए हैं।

बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) का अनेक कुओं , तालाबों , सराय और किलों के निर्माण में सहयोग – 

 

बंजारा समाज (BANJARA SAMAJ) के व्यापारियों जैसे कि लक्खी शाह बंजारा ने  व्यापारिक मार्ग पर प्रत्येक 10 किलोमीटर के दायरे में कुओं और तालाबों का निर्माण कराया था। जिससे आसानी से जानवरो और टांडा के सदस्यों को पानी उपलब्ध हो सकें।
रात को विश्राम करने के लिए जगह जगह सराय ( विश्रामगृहों) का निर्माण भी किया गया था।

7000 एकड़ जमीन में फैला विशाल लोहगढ़ का किला , जिसका निर्माण बाबा बंदा सिंह बहादुर ने कराया था। इस किले के निर्माण में बाबा लक्खी शाह बंजारा ने विशेष योगदान दिया था। लोहगढ़ किले का क्षेत्र वर्तमान में हरियाणा के यमुनानगर जिले और हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में आता हैं।  किले की परिधि लगभग 30 किलोमीटर के आस पास हैं।

लोहगढ़ किले के निर्माण समय में बाबा लक्खी शाह बंजारा ने निर्माण सामग्री , खाद्य सामग्री , हथियारों की सप्लाई जारी रखी थी। बाबा लक्खीशाह बंजारा मुगलों को ज्यादा कर (Tax) देते थे। जिससे मुगलों ने उन्हें कभी संदेह की दृष्टि से नही देखा। दूसरी और बाबा लक्खीशाह बंजारा लगातार अनेक किलों के निर्माण में सहायता देते रहे और हथियारों की सप्लाई जारी रखी।

अनेक साक्ष्यों के अनुसार लोहगढ़ के अलावा भी सिखों ने बाबा लक्खीशाह बंजारा के सहयोग से अनेक किलों का निर्माण किया था।

अंग्रेजो के खिलाफ़ योगदान

अंग्रेजो के समय में बंजारा समाज का योगदान कमतर माना गया है। परंतु अंग्रेजों के समय में बंजारा समाज का योगदान हथियार ले जाने से जासूसी करने तक रहा हैं।

बंजारा समाज ने अंग्रेजो के खिलाफ सूचनाओं के आदान प्रदान में भी योगदान दिया था।
अंग्रेजो ने बंजारा समाज को कमजोर करने के लिए 31 दिसंबर 1859 को नमक विधेयक लाया

क्योंकि बंजारा समाज उस समय नमक का व्यापार बड़े स्तर पर करते थे।  इस कानून के कारण बंजारा समाज को बहुत नुकसान हुआ। जिससे उनकी आर्थिक स्तिथि बहुत कमज़ोर हो गयी।

जिससे बंजारा समाज को नमक व्यापार से हट कर अन्य कार्यो में लगना पड़ा।  बंजारा समाज के लोग उसके बाद चारपाई , कंबल ,गोंद आदि सामान का व्यापार करने लगे।

बंजारा समाज ने नमक कानून का विरोध भी किया। बाद में 1930 में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में बंजारा समाज ने नमक कानून उन्मूलन के लिए बड़े स्तर पर आंदोलन भी किया।

इस प्रकार अंग्रेजो के खिलाफ़ जासूसी करना और उनके खिलाफ हथियार की सप्लाई में बंजारा समाज का योगदान रहा हैं।

 

कला और संस्कृति का प्रसार व संरक्षण करने वाले –

 

वर्तमान में तो बंजारा समाज का एक बड़ा वर्ग एक निश्चित स्थान पर निवास करने लगा हैं। परंतु इतिहास की जानकारी के अनुसार ये समाज सदियों से देश के दूर दराज इलाकों में निडर होकर यात्राएं करता रहा हैं।

इनके लिए कभी किसी साम्राज्य या राज्य की सीमाएं अवरोधक का काम नहीं कर पाई हैं। ये बेधड़क होकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। जिससे  व्यापार के एक बड़े भाग में इनकी हिस्सेदारी भी सुनिश्चित होती हैं।

बंजारों को कला और संस्कृति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने वाला भी कहा जा सकता है। बंजारों ने इतने बड़े देश को व्यापारिक गतिविधियों और आवागमन के व्यवहार से एक सूत्र में बांधने का काम भी किया हैं।

बंजारे अपनी समृद्ध कला और संस्कृति के कारण भी जाने जाते हैं।  बंजारों में नृत्य , संगीत , चित्रकारी , रंगोली आदि बहुत लोकप्रिय हैं।
बंजारे अपनी विशिष्ट पोशाक के लिए भी प्रसिद्ध हैं।
बंजारा पुरूष आमतौर पर पगड़ी बांधते हैं। बंजारे कमीज़ या झब्बा नामक वस्त्र पहनते हैं। बंजारा पुरुषों में धोती पहनना भी आम चलन हैं। बंजारों में हाथ मे कड़ा , कानो में मुरकिया पहनने का भी चलन रहा हैं।

महिलाओं द्वारा भी पोशाक के विविधता देखने को मिलती है। जैसे गले मे दोहड़ा , हाथों में चूड़ा ,नाक में नथ , पैरों में कड़िया , अंगुलियों में बिछिया आदि पहने जाते हैं।
बंजारों की महिलाएं में घाघरा और लहंगा पहनने का आम चलन मौजूद हैं।

बंजारा समाज को भारतीय संस्कृति का संरक्षण करने वाला कहा जाए ,तो कुछ गलत नहीं होगा।
क्योंकि जब भी बंजारा नाम लिया जाता है तो मन मे एक विशिष्ट संस्कृति को सहेजे व्यक्तियों का चित्र ही आता हैं।

 

धर्म और आस्था

 

बंजारा समाज हिन्दू धर्म का एक बड़ा समुदाय हैं। बंजारा समाज अपने धर्म के सभी रीति रिवाजों, परंपराओं का पालन करते हैं।
बंजारा समाज के कुछ वर्गों में कुल देवी की पुजा करने का भी रिवाज़ रहा हैं। छत्तीसगढ़ में बंजारा समाज बंजारा देवी की पूजा करते हैं।
बंजारा समाज गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को भी ग्रहण करते हैं।
जिस प्रकार भारत मे सभी समाजो में स्थान के अनुसार सांस्कृतिक रीति रिवाजों में भिन्नता देखने को मिलती हैं उसी प्रकार ये गुण बंजारा समाज में भी मौजूद हैं।

 

समाज की उपजातियां या विभाग

 

बंजारा समाज को मुख्यतः चार वर्गों में विभाजित किया जाता हैं।
* मथुरिया
* धारियां
* चारण
* लभान

इन सब वर्गों में चारण शब्द का शाब्दिक अर्थ भटकना या कहे कि इधर उधर घूमने से होता हैं।

चारण के पाँच वंशो का उल्लेख किया गया हैं :-

  • पंवार
  •  पूरी
  • राठौर
  • जादौन
  • चौहान

यहाँ विचार करने वाली बात है कि राजपूतों में भी ये वंश आते हैं।
इनके अतिरिक्त बंजारा समाज मे अन्य वर्ग विभाजन भी होता हैं।
बंजारों में बामणिया , लबाना , मारू भाट , गवारिया आदि बंजारों की उपजातियां हैं। बंजारा समाज में बामणिया जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा माना जाता है।

इसके अतिरिक्त भी बंजारा समाज अनेक विशेषताओं को सहेज कर रखे हुए हैं। बंजारा समाज से सम्बंधित जब भी अन्य जानकारी मिलेंगे तो हम इसी लेख में उसे जरूर जोड़ेंगे।

अतः संक्षिप्त रूप से देखे तो बंजारा समाज का योगदान अनेक तरह से रहा हैं। जैसे कि

दुर्गम क्षेत्र में व्यापार को संभव बनाना ।
कुओं , तालाबो , सराय के निर्माण में।
समाज के उत्पीड़न के खिलाफ मुगलों से लड़ते लड़ते शहीद ।
कला और संस्कृति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में।
कला और संस्कृति के संरक्षण में।
भारत को व्यापारिक गतिविधियों के द्वारा एक सूत्र में बांधने का प्रयास।

हमारा मक़सद हैं कि हम भारत के समाज मे एक चेतना और जागरूकता का विकास कर सके। जिससे हमारे देश का समाज अपने पर गर्व महसूस कर सके। और भविष्य में अपने देश के लिए कुछ ऐसा योगदान अवश्य दे सके जिससे समस्त देश गर्व कर सके।

अतः कुछ अच्छा पढ़ने के लिए आपसे निवेदन हैं कि HKT भारत से जुड़े रहे। आप विभिन्न सोशल मीडिया के माध्यम से HKT भारत से जुड़ सकते हैं।

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