महात्मा गाँधी जी के रचनात्मक कार्य क्या थे ? रचनात्मक कार्यो का उद्देश्य व महत्व | Mahatma Gandhi’s Constructive Programs in Hindi
Mahatma Gandhi’s Constructive Programs in Hindi
महात्मा गाँधी के रचनात्मक कार्यकर्म क्या थे ? what is Mahatma Gandhi’s Constructive Programs in Hindi
महात्मा गांधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनों के बीच में रचनात्मक कार्यों की एक परिकल्पना स्थापित की थी। जिसका स्वतंत्रता आंदोलन में विशेष महत्त्व था। महात्मा गांधी के आंदोलन की एक विशेष पद्धति थी। जिसे संघर्ष-विराम-संघर्ष के नाम से जाना जाता है । संघर्ष-विराम-संघर्ष पद्धति में आंदोलन को लंबे वक्त तक नही चलाया जाता था, बल्कि एक समय के लिए आंदोलन को चलाकर बीच में कुछ समय के लिए आंदोलन को स्थगित कर दिया जाता था । और फिर दोबारा आंदोलनकारियों को आंदोलन के लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर विश्राम देकर दुबारा आंदोलन के लिए तैयार किया जाता था। इसी पद्धति को संघर्ष-विराम-संघर्ष की पद्धति कहते हैं।
संघर्ष-विराम-संघर्ष की पद्धति के बीच में जो विराम की अवस्था होती थी। उस समय में महात्मा गांधी द्वारा कुछ ऐसे कार्य किए जाते थे जिनके व्यापक और दूरगामी उद्देश्य होते थे। इन्हीं कार्यों को रचनात्मक कार्य कहा जाता था।
गांधीजी के रचनात्मक कार्य राष्ट्रीय उत्थान की व्यापक योजना से संबंधित थे। महात्मा गांधी जी का रचनात्मक कार्यों की सहायता से एक ऐसी समाज की स्थापना करना था जो अहिंसा और सत्य पर आधारित हो।
महात्मा गांधी जी का मत था कि व्यक्तिगत कर्तव्यों के प्रति हमारी संवेदनहीनता के कारण ही अंग्रेजों का प्रभुत्व हमारे देश में स्थापित हो पाया था। तो महात्मा गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से सामूहिक कर्तव्यों की पूर्ति का एक विकल्प उपलब्ध किया था।
रचनात्मक कार्यक्रम में किए जाने वाले कार्य ( Mahatma Gandhi’s Constructive Programs in Hindi ) –
सांप्रदायिक एकता:
गांधी जी के अनुसार साम्प्रदायिक एकता का तात्पर्य दिलो की अटूट एकता से था, उनके अनुसार साम्प्रदायिक एकता का मतलब केवल राजनीतिक एकता नही होनी चाहिए।
लखनऊ संधि 1916 में मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ समझौता किया था । जिसके माध्यम से साम्प्रदायिक एकता प्राप्त की गई थी। आगे चलकर महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन में भी साम्प्रदायिक एकता प्राप्त करने का प्रयास किया था।
खादी वस्त्र बनाना और खादी के प्रयोग को महत्व :
गांधी जी ने खादी को रचनात्मक कार्यो के माध्यम से बहुत बढ़ावा दिया था। खादी का मुद्दा , गांधी जी के ग्रामस्वराज्य के उद्देश्य में भी सहायक हैं। गांधी जी ने खादी को आत्मनिर्भरता का माध्यम माना था।
गांधी जी ने खादी को राष्ट्रवाद , आर्थिक स्वतंत्रता और समानता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत व उपयोग किया।
शिक्षा:
गाँधी जी ने शिक्षा पर सदैव ही विशेष ध्यान देने का प्रयास किया था। गांधी जी ने नई शिक्षा की एक संकल्पना भी प्रस्तुत की थी। उनके अनुसार सच्ची शिक्षा बच्चो के केवल बौद्विक पक्ष से ही नहीं संबंधित होती बल्कि यह बच्चों के आध्यात्मिक , शारीरिक और बौद्विक पक्ष से संबंधित होनी चाहिए।
गांधी जी के अनुसार सच्ची शिक्षा को बेरोजगारी के ख़िलाफ़ एक तरह की गारंटी या कहे कि बीमा की तरह कार्य करना चाहिए।
महिलाओं का उत्थान:
स्वतंत्रता आंदोलन में गाँधीवादी चरण में महिलाओं की भूमिका का अपना महत्व था। स्वराज के लक्ष्य प्राप्ति में अन्य वर्ग के साथ साथ महिलाओ का सहयोग भी अहम था और उनकी आवश्यकता को नकारा भी नही जा सकता है।
इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए गांधी जी ने रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं के बीच भी अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया।
गांधी जी के इन्ही प्रयासों के कारण स्वतंत्रता आंदोलन के गाँधीवादी दौर में महिलाओं की उपस्थिति स्वागतयोग्य थी।
समाज का एकीकरण स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आवश्यक :
स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आवश्यक शर्तो में से एक थी भारतीय समाज का एकीकरण करना। अगर भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग स्वतंत्रता आंदोलन के लक्ष्य की प्राप्ति की जगह अपने अन्य कारणों से संघर्षो में लिप्त रहता तो स्वतंत्रता प्राप्त करना नामुमकिन सा होता।
गांधी जी ने अपने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से समाज के एकीकरण में भी अहम योगदान दिया।
अस्पृश्यता का उन्मूलन:
गांधी जी ने सदैव कड़े और सीधे शब्दों में अस्पृश्यता की निंदा की थी। उन्होंने इसे एक अभिशाप बताया था और समाज पर एक धब्बा बताया था। गाँधी जी ने ताउम्र अस्पृश्यता के खिलाफ , तथा उसको समाप्त करने का प्रयत्न किया।
1932 का पूना समझौता भी गांधी जी की इसी सोच का प्रतिफल था। अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए ही उन्होंने हरिजन सेवक संघ की स्थापना की।
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