अमीर खुसरो की मुकरियाँ | Amir Khusro ki Mukerian
अमीर खुसरो का वास्तविक नाम अबुल हसन था। इनका समय १३ वी और १४ वी सदी के बीच का है। खुसरो को कड़ी बोली हिंदी के पहले कवी माना जाता हैं। माना जाता है कि इन्होंने लगभग १०० ग्रंथों की रचना की थी। जिनमें से अभी तक सिर्फ २० – २२ ही मिल सके हैं।
Amir Khusro ki Mukerian
खा गया पी गया दे गया बुत्ता ऐ सखि साजन? ना सखि कुत्ता!
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा
ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!
भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा
ऐ सखि साजन? ना सखि तारा!
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत
पाँव का चूमा लेत निपूता
ऐ सखि साजन? ना सखि जूता!
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चांद!
मेरे मन की तपन बुझावे
मन का भारी तन का छोटा
ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा!
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!
ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की
ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी!
है गुणवंत बहुत चटकीलो
राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन? ना सखि तोता!
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा
ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा!
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