5 Life teachings of Swami Vivekanand In Hindi
- लक्ष्य पर सटीक निशाना कैसे लगाएं –
एक बार स्वामी जी विदेश में गए हुए थे। एक दिन भ्रमण के दौरान उन्होंने देखा कि एक पुल पर खड़े कुछ युवक नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बंदूक से निशाना लगा रहे हैं। परंतु किसी भी युवक का एक भी निशाना सही लक्ष्य पर नहीं लग रहा है । यह देख कर स्वामी जी ने एक युवक से बंदूक मांगी और खुद अंडे के छिलकों पर निशाना लगाने लगे।
उन्होंने पहला निशाना लगाया जो कि बिल्कुल सही लगा फिर उसके बाद उन्होंने लगभग 10 निशाने लगाए जो सभी लक्ष्य पर बिल्कुल सटीक लगे। यह देखकर युवक अचंभित रह गए और उन्होंने स्वामी जी से पूछा कि भला आप यह कैसे कर सकते हैं या आप यह कैसे कर लेते हैं। आपके सारे निशाने बिल्कुल सटीक लक्ष्य पर कैसे लगे। इस पर स्वामी विवेकानंद जी बोले जीवन में असंभव कुछ भी नहीं है, तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उस समय उसी एक काम में लगा दो।
अगर तुम किसी चीज पर निशाना लगा रहे हो तो तुम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए तब तुम अपने लक्ष्य से कभी नहीं चूकोगे। 5 Life teachings of Swami Vivekanand In Hindi
2. लक्ष्य के लिए पहले खुद को तैयार करें-
एक बार स्वामी विवेकानंद जी के पास एक युवा आता है और स्वामी जी से निवेदन करता है कि मुझे गीता का ज्ञान प्रदान कीजिए। निवेदन सुनकर स्वामी ने उस युवक से कहा कि पहले आप 6 महीने फुटबॉल खेलो और अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करो।
उसके बाद मेरे पास आना मैं तुम्हें गीता का ज्ञान अवश्य दूंगा । यह सुनकर उस युवक को बहुत आश्चर्य हुआ उसने सोचा कि आखिर गीता के ज्ञान का संबंध फुटबॉल या सेवा करने से कैसे हो सकता है?
यह सुनकर उस युवक को लगा कि कहीं स्वामी जी मुझे टालने के लिए तो ऐसा नहीं कह रहे हैं। उसने अपनी जिज्ञासा स्वामी जी के सामने रखी और कहा कि स्वामी जी गीता एक धार्मिक ग्रंथ है ।
उसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए फुटबॉल खेलना या गरीबों की सेवा करना क्यों आवश्यक हो सकता है ?
इस पर स्वामी जी ने उसे समझाया की गीता वीरों और त्यागियो का महा ग्रंथ है । अतः जो व्यक्ति व्रत और सेवा भाव से भरा नहीं होगा वह गीता की जटिल श्लोकों और कृष्ण अर्जुन संवाद का रहस्य अच्छे से कभी भी नहीं समझ सकता ।
तथा वास्तविक जीवन में उसका निहितार्थ या वास्तविक जीवन में उसका महत्व नहीं समझ सकता । इतना सुनकर युवक को स्वामी जी का आशय समझ में आ गया और उसी समय उसने प्रण किया कि वह गीता को समझने के लिए स्वयं को इसके लिए सुपात्र बनाएगा।
उस युवक ने उसके बाद फुटबॉल और व्यायाम से खुद को शक्तिशाली बनाया और सेवा से जीवन को पवित्र बनाया । फिर 6 महीने गुजर जाने के बाद वह स्वामी जी के पास फिर से जाता है। स्वामी जी ने कहा कि वास्तव में तुम अब गीता को समझने की पात्र हो चुके हो।
उन्होंने उस युवक को बड़े प्रेम से अपने आश्रम में ठहराया और उसे गीता का मर्म समझाया। आगे चलकर भविष्य में गीता से प्रभावित होकर उस युवक ने गीता प्रचार मंडल की स्थापना की और गीता का काव्य रूपांतरण बांग्ला भाषा में भी किया ।
इस युवक का नाम आपने आधुनिक इतिहास की किताबों में बहुत पढ़ा है । इस युवक का नाम है सत्येंद्र बनर्जी।
इन कहानी से हम यह सीख सकते है कि जो काम हम करना चाहते है। उसे करने से पहले खुद को उसके लायक बनाएं। जैसे कि कोई विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करना चाहता है या किसी परीक्षा की तैयारी करना चाहता हैं। उससे पहले उसे खुद पर कुछ काम करना चाहिए।
जैसे कि पढ़ने के लिए एकाग्रता आवश्यक हैं। एकाग्रता के लिए ध्यान का अभ्यास आवश्यक है, ध्यान तभी कर पाओगे जब आप मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होंगे। इसलिए आपको पढ़ने से पहले इन पहलुओं पर काम करना ही होगा। नहीं तो अगर तुम स्थिर मन और एकाग्र नहीं हुए तो घंटो पुस्तक सामने रख कर बैठें रहोगे दिमाग़ में कुछ जाएगा नहीं।
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3 – भय या डर का सामना करो
एक बार स्वामी जी किसी मंदिर की सीढ़ियों से उतर रहे थे । उस दौरान स्वामी जी के हाथों में मंदिर से मिला प्रसाद भी था। यह देखकर वहां पर मौजूद कुछ बंदर स्वामी जी के पीछे भागने लगे । स्वामी जी डर कर आगे-आगे और बंदर पीछे पीछे भाग रहे थे। यह देखकर वहां पर मौजूद एक सन्यासी ने स्वामी जी को कहा कि डरो मत इनका सामना करो।
यह सुनकर स्वामी जी वीरत्व की भावना से पीछे मुड़े और बंदरों की ओर बढ़ने लगे। यह देखकर बंदर उनसे डर कर पीछे हटने लगे ।
जो स्वामी जी ने आमतौर पर अनेक बार बोला है कि हमें अपने डर और भय से भागना नहीं चाहिए । बल्कि उसका सामना करना चाहिए।
इस प्रसंग से हमें यही शिक्षा मिलती हैं।
जब आप डर का सामना करोगे तो आप देखोगे कि वहां पर कोई डर मौजूद था ही नहीं डर सिर्फ आपके मन के अंदर मौजूद था।
इस प्रसंग से हमें यही शिक्षा मिलती हैं।
जब आप डर का सामना करोगे तो आप देखोगे कि वहां पर कोई डर मौजूद था ही नहीं डर सिर्फ आपके मन के अंदर मौजूद था।
यहाँ पर हम देख सकते हैं कि बहुत से लोग अंधेरे से बहुत डरते हैं। स्वामी जी की इस कहानी से शिक्षा लेकर वह ऐसा कर सकते हैं कि एक बार अंधेरे का सामना करके देखें अर्थात एक बार अँधेरे में शामिल होकर देखे। वह देखेंगे कि उनका भय समाप्त हो जाएगा उसी प्रकार बहुत से विद्यार्थी कुछ नया कंसेप्ट पढ़ने से पहले या कुछ जटिल कंसेप्ट पढ़ने से पहले बहुत डरते हैं। 5 Life teachings of Swami Vivekanand In Hindi
जिस कारण वह उसको पढ़ ही नहीं पाते और जिसका उनको आगे चलकर बहुत नुकसान होता हैं। अतः विद्यार्थी कर सकते हैं कि एक बार वह डर का सामना वीरता से करें और उस कंसेप्ट को समझने में थोड़ा समय लगाएं देखेँगे जैसे जैसे वह समय बिताते जाएंगे अगर कंसेप्ट एक बार में नहीं तो दो बार में दो बार में नहीं तो 3 बार में तीन बार में नहीं तो 4 बार में समझ आ जाएगा। जिससे उनका सारा भेद समाप्त हो जाएगा और भविष्य में भी वह उनको फायदा प्रदान करेगा।
4. महिलाओं का सम्मान
एक बार स्वामी जी के पास एक विदेशी महिला आती है और उन्हें कहती है कि आप मुझसे शादी कर लो या मैं आपसे शादी करना चाहती हूं ।
यह सुनकर स्वामी जी उनसे कहते हैं कि मैं तो सन्यासी हूं। आप मुझसे शादी क्यों करना चाहती हो?
विदेशी महिला उत्तर देती है कि मैं आपसे शादी कर के आप के समान ही एक पुत्र चाहती हूं । यह सुनकर स्वामी जी बोले कि आज से आप मेरी मां और मैं आपका पुत्र हुआ।
आपको बिना शादी करे ही मेरे जैसा पुत्र मिल गया है। यह सुनकर विदेशी महिला को अपनी गलती का एहसास होता है कि उन्होंने एक सन्यासी को क्या बोला है और वह स्वामी विवेकानंद जी के चरणों में गिर जाती है।
स्वामीजी कहते थे कि एक सच्चा पुरुष वह है जो हर महिला के लिए अपने अंदर मातृत्व की भावना को जगाएं और महिलाओं का सम्मान करें।
आप देख सकते हैं कि स्वामी जी जटिल प्रश्नों का भी कितनी सहजता और सजगता से बिना किसी उत्तेजना के एक सटीक उत्तर देते थे।
हम दो बातें सीख सकते हैं। एक तो हमको यहां पर एक यह शिक्षा मिलती है कि प्रत्येक महिला का सम्मान करना चाहिए। दूसरा शिक्षा में यह मिलती है कि हमारे सामने किसी भी तरह की जटिल से जटिल परिस्थितियों या कोई जटील प्रश्न क्यों ना मौजूद हो। हमें हमेशा सहजता बनाए रखनी चाहिए और शांति पूर्वक दिमाग का प्रयोग करते हुए ही उत्तर देना चाहिए ना कि उत्साह और उतावलेपन में कोई ऐसा काम कर जाए जिससे हम बाद में पछताए। 5 Life teachings of Swami Vivekanand In Hindi
5. मन, वचन, कर्म से किसी का बुरा नहीं करेंगे-
स्वामी जी जब शिकागो यात्रा पर जा रहे थे तो वह इसकी आज्ञा का आशीर्वाद लेने के लिए अपनी गुरु माता के पास गए उन्होंने गुरु माता से कहा कि मैं शिकागो जा रहा हूं । आपका आशीर्वाद चाहिए इस पर गुरु माता ने कोई उत्तर नहीं दिया।
तब वह रसोई से संबंधित कुछ कार्य कर रही थी। उन्होंने स्वामी जी को कहा कि आप मुझे वह चाकू उठा कर दो।
स्वामी जी ने चाकू उठा कर दिया और गुरु माता ने कहा कि आप अब विदेश जाने के लायक हो ।
मैंने देख लिया है कि आप विदेश जाने लायक हो स्वामी जी कुछ समझ नहीं पाए।
उन्होंने गुरु माता से पूछा कि आपने मेरे चाकू पकड़ाने से क्या देखा ?
गुरु माता ने कहा कि जब आप ने चाकू उठा कर दिया तो चाकू का जो नुकीला भाग हैं वह आपने अपनी तरफ किया और जो चाकू को पकड़ने वाला भाग हैं आपने मेरी तरफ किया।
इससे लगता है कि आप कभी भी मन वचन कर्म से किसी का बुरा नहीं करोगे । आप सभी प्राणियों का सद्भाव चाहने वाले संन्यासी हो।
यहां से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमेशा अपने मन में दूसरे प्राणियों के प्रति सद्भावना बनाए रखें और जितना हो सके यह प्रयास करें कि हमारे मन, वचन, कर्म से किसी को ठेस ना पहुंचे। या हम कोई ऐसी बात ना करें जिससे किसी को तकलीफ या समस्या हो।
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