शिक्षा | Education UPSC Notes In Hindi | UPSC GS 2 – Education
शिक्षा से तात्पर्य और शिक्षा का महत्व | What is Education and Importance – Education UPSC Notes In Hindi
शिक्षा का शाब्दिक अर्थ होता है सीखने एवं सिखाने की क्रिया परंतु अगर इसके व्यापक अर्थ को देखें तो शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है, जिसका कोई उद्देश्य होता है और जिससे मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास तथा व्यवहार को परिष्कृत किया जाता है। Education UPSC Notes In Hindi
शिक्षा द्वारा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि कर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाया जाता है।
पढ़ो , लिखा है दीवारों पर मेहनतकश का नारा पढ़ो ,
पोस्टर क्या कहता है वह भी दोस्त तुम्हारा,
पढ़ो अगर अंधविश्वासों से पाना है छुटकारा
पढ़ो किताबे कहती है सारा संसार तुम्हारा
शिक्षा के संबंध में गांधीजी का तात्पर्य-
बालक और मनुष्य के शरीर ,मन और आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है।
इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद का कहना था कि
मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आज की आवश्यकता है क्योंकि यह बौद्धिक कौशल और ज्ञान का विकास है जो शिक्षार्थियों , पेशेवरों, निर्णय निर्माताओं और प्रशिक्षकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सक्षम बनाएगा।
- शिक्षा व्यक्तिगत आय बढ़ाती हैं। कुछ अनुसंधानों और अनुमानों के अनुसार प्रत्येक अतरिक्त 1 वर्ष की शिक्ष्रा से आय में लगभग 10% की वृद्धि करती हैं।
- शिक्षा गरीबी उन्मूलन में सहायक होती है।
- शिक्षा जीवन स्तर को उठाने हेतु एक उत्तम साधन है।
- सतत विकास को आगे बढ़ाने हेतु
- सामाजिक न्याय स्थापित करने के लिए।
- समता मूलक समाज की प्राप्ति हेतु।
- समाज मे सहअस्तित्व की भावना लाने और शांति स्थापित करने के लिए।
शिक्षा से सम्बंधित संवैधानिक प्रावधान | Constitutional Provisions on Education in India
- 86 वें संशोधन अधिनियम 2002 में अनुच्छेद 21 A के तहत शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में जोड़ा , और अनुच्छेद 51 A के तहत मौलिक कर्तव्य जोड़ा ।
- अनुच्छेद 21A राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।
- अनुच्छेद 45 – 6 वर्ष की आयु पूरी करने तक सभी बच्चों को प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा प्रदान करें
- अनुच्छेद 51 प्रत्येक माता-पिता या अभिभावक को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके बच्चे को 6 से 14 वर्ष की आयु के बीच शिक्षा के अवसर प्रदान किए जाएं।
- 1976 में संविधान में 42 वे संशोधन ने शिक्षा को एक समवर्ती विषय बना दिया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986
- इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने हेतु विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष जोर देना था।
- इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये ‘ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड’ लॉन्च किया। इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ओपन यूनिवर्सिटी प्रणाली का विस्तार किया।
- ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित ‘ग्रामीण विश्वविद्यालय मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान किया गया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 –
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु
स्कूली शिक्षा संबंधी प्रावधान
- नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 डिजाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है। क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14 एवं 14-18 वर्ष के आयु समूहों से सुमेलित है।
- पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) – 3 साल का प्री प्राइमरी स्कूल और ग्रेड 1, 2
- तीन वर्ष का प्रारंभिक चरण (Prepatratory Stage)
- तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण ग्रेड 6, 7, 8 और
- 4 वर्ष का उच्च (या माध्यमिक) चरण ग्रेड 9, 10, 11, 12
NEP 2020 के तहत ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Foundational Literacy and Numeracy) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिये आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा।
भाषायी विविधता का संरक्षण
- NEP 2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा / स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में मातृभाषा की कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिए प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।
- स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी।
शारीरिक शिक्षा
- विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें।
पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी सुधार
- इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा
- कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी की जाएगी।
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training NCERT) द्वारा स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ (National Curricular Framework for School Education) तैयार की जाएगी
- छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा 12 की परीक्षाओं में बदलाव किया जाएगा। इसमें भविष्य में समेस्टर या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है।
- छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक निर्धारक निकाय के रूप में ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगी।
- छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- Al) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग।’
शिक्षण व्यवस्था से संबंधित सुधार
- शिक्षकों की नियुक्ति में प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन तथा समय-समय पर किये गए कार्य-प्रदर्शन आकलन के आधार पर पदोन्नति ।
- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (National Professional Standards for Teachers NPST) का विकास किया जाएगा।
- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा NCERT के परामर्श के आधार पर ‘अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [National Curriculum Framework for Teacher Education-NCFTE) का विकास किया जाएगा।
- वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4 वर्षीय एकीकृत बी. एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा। .
उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान
- NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio) को 26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50 तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।
- NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंट्री एंड एक्जिट व्यवस्था को अपनाया गया है। इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक)
- विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic. Bank of Credit) दिया जाएगा, ताकि अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके।
- नई शिक्षा नीति के तहत एम. फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया।
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग
- नई शिक्षा नीति (NEP) में देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये एक एकल नियामक अर्थात् भारतीय उच्च शिक्षा परिषद (Higher Education Commition of India-HECI) की परिकल्पना की गई है जिसमें विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करने हेतु कई कार्यक्षेत्र होंगे। भारतीय उच्च शिक्षा आयोग चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक एकल निकाय (Single Umbrella Body) के रूप में कार्य करेगा।
HECI के कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु चार निकाय
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (National Higher Education Regulatroy Council-NHERC) यह शिक्षक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नियामक का कार्य करेगा।
- सामान्य शिक्षा परिषद (General Education CouncilGEC) : यह उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिये अपेक्षित सीखने के परिणामों का ढाँचा तैयार करेगा उनके मानक निर्धारण का कार्य करेगा।
- राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (National Accreditation Council NAC): यह संस्थानों के प्रत्यायन का कार्य करेगा जो मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों , सार्वजनिक स्व-प्रकटीकरण, सुशासन और परिणामों पर आधारित होगा।
- उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (Higher Education Grants Council-HGFC) : यह निकाय कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के लिये वित्तपोषण का कार्य करेगा।
- नोट- गौरतलब है कि वर्तमान में उच्च शिक्षा निकायों का विनियमन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) जैसे निकायों के माध्यम से किया जाता है।
- देश में आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के समक्ष वैश्विक मानकों के बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (Multidisciplinary Education and Reserach Universities MERU) की स्थापना की जाएगी।
विकलांग बच्चों हेतु प्रावधान
- इस नई नीति में विकलांग बच्चों के लिये काम विकलांगता प्रशिक्षण, संसाधन केंद्र, आवास, उपकरण, उपर्युक्त प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण, शिक्षकों का पूर्ण समर्थन एवं प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा तक नियमित रूप से स्कूली शिक्षा प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करना आदि प्रक्रियाओं को सक्षम बनाया जाएगा।
डिजिटल शिक्षा से संबंधित प्रावधान
- एक स्वायत्त निकाय के में “राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच (National Educational Technol Foruem) का गठन किया जाएगा जिसके द्वारा शिक्षण मूल्यांकन योजना एवं प्रशासन में अभिवृद्धि हेतु विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकेगा।
- डिजिटल शिक्षा संसाधनों को विकसित करने के लिये अलग प्रौद्योगिकी इकाई का विकास किया जाएगा जो डिजिटल बुनियादी सामग्री और क्षमता निर्माण समन्वयन का कार्य करेगी।
पारंपरिक ज्ञान संबंधी प्रावधान
- भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ, जिनमें जनजातीय एवं स्वदेशी ज्ञान शामिल होंगे, को पाठ्यक्रम में सटीक एवं वैज्ञानिक तरीके से शामिल किया जाएगा।
विशेष बिंदु
- आकांक्षी जिले (Aspirational districts) जैसे क्षेत्र जहाँ बढी संख्या में आर्थिक, सामाजिक या जातिगत बाधाओं का सामना करने वाले छात्र पाए जाते हैं, उन्हें ‘विशेष शैक्षिक क्षेत्र (Special Educational Zones) के रूप में नामित किया जाएगा।
- देश में क्षमता निर्माण हेतु केंद्र सभी लड़कियों और ट्रांसजेंडर छात्रों को समान गुणवत्ता प्रदान करने की दिशा में एक ‘जेंडर इंक्लूजन फंड (Gender Inclusion Fund) की स्थापना करेगा।
- गौरतलब है कि 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा हेतु एक राष्ट्रीय पाठ्यचर्या और शैक्षणिक ढाँचे का निर्माण एनसीआरटीई द्वारा किया जाएगा।
वित्तीय सहायता
- एससी, एसटी, ओबीसी और अन्य सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों से संबंधित मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
पूर्ववर्ती शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?
- बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता थी।
- शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी।
- भारतीय शिक्षण व्यवस्था की वैश्विक स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा के वैश्विक मानकों को अपनाने के लिये शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता थी।
नई शिक्षा नीति से संबंधित चुनौतियाँ
- . राज्यों का सहयोगः
शिक्षा एक समवर्ती विषय होने के कारण अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं इसलिये इस फैसले के वास्तविक कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों को सामने आना होगा। साथ ही शीर्ष नियंत्रण संगठन के तौर पर एक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद को लाने संबंधी विचार का राज्यों द्वारा विरोध हो सकता है।
- महँगी शिक्षाः
नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों में में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है। विभिन्न शिक्षाविदों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था के महंगी होने की आशंका है। इसके फलस्वरूप निम्न वर्ग के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- शिक्षा का संस्कृतिकरणः
दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि त्रिभाषा सूत्र से सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है।
- फंडिंग संबंधी जाँच का अपर्याप्त होना – कुछ राज्यों में अभी भी शुल्क संबंधी विनियमन मौजूद है, लेकिन ये नियामक प्रक्रियाएँ असीमित दान के रूप में मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ है।
- वित्तपोषण – वित्तपोषण का सुनिश्चित होना इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में जीडीपी के प्रस्तावित 6% खर्च करने की इच्छाशक्ति कितनी सशक्त है।
- मानव संसाधन का अभावः वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा हेतु की केन्धन व्याहारिक समस्याएँ भी है।
गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इस नीति द्वारा देश में स्कूल एवं उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा की गई है। इसके उद्देश्यों के तहत वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% GER के साथ-साथ पूर्व-विद्यालय से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य रखा गया है।
स्कूली शिक्षा से सम्बंधित तथ्य , समस्याएं और समाधान तथा प्रयास –
- भारतीय स्कूली शिक्षा प्रणाली के सामने आज सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य सीखने के परिणामों में सुधार करना है।
- सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) और बच्चों का मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम जैसी पहलों के माध्यम से, भारतीय स्कूल प्रणाली ने इनपुट को मापने और वितरित करने पर ध्यान केंद्रित किया है, और इसमें, यह काफी हद तक सफल रहा है। 2015-16 में ग्रेड -V के लिए सकल नामांकन अनुपात (GER) 99.2% था और ग्रेड VI, VIII के लिए 92.85% था। राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिक विद्यालयों में छात्र-शिक्षक अनुपात 24:1 था और माध्यमिक विद्यालयों के लिए यह 27:1 था।
- प्रथम की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) के आंकड़ों के अनुसार, ग्रेड III में कम से कम ग्रेड स्तर का पाठ पढ़ने वाले बच्चों का अनुपात 2008 में 50.6 से घटकर 2014 में 40.3 हो गया, जो 2016 में मामूली रूप से बढ़कर 42:5 हो गया। यहाँ स्पष्ट है कि छात्र शिक्षक अनुपात सही होने पर और बच्चो को अधिक से अधिक स्कूल लाने में तो सफलता मिली है परन्तु शिक्षा प्राप्ति में सफलता नहीं मिली है।
- ये एकमात्र परिणाम नहीं हैं, जो सुझाव देते हैं कि इनपुट पर ध्यान देने से शिक्षा में सुधार करने में मदद नहीं मिलती है। आज तक उपलब्ध सबसे कठोर और विश्वसनीय साक्ष्य से पता चलता है कि – अधिक या बेहतर बुनियादी ढाँचा, कम छात्र-शिक्षक अनुपात, उच्च शिक्षक वेतन और अधिक शिक्षक प्रशिक्षण- अपने आप में छात्र सीखने के परिणामों में सुधार करने में प्रभावी नहीं रहे हैं।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम की सीमाएं –
- शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम इनपुट पर जोर देता है स्कूलों के निर्माण, शिक्षकों को काम पर रखने, खेल के मैदान और पुस्तकालय रखने जैसी चीजों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है , सीखने के परिणामों पर सीमित ध्यान दिया गया है।
- सीखने के परिणाम में अधिनियम की शुरुआत के बाद से लगातार गिरावट आई है।
- जागरूकता सृजन पर अधिक ध्यान केंद्रित न करना।
- वंचित समूह के लिए अपर्याप्त प्रोत्साहन
- सही से क्रियान्वयन न किया जाना।
क्या किया जाना चाहिए –
- परिणामों की ओर प्रणाली को उन्मुख करें मतलब कि अब परिणामों के आधार पर नीतियां बनानी की आवश्यकता है। स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक (एसईक्यूआई) के माध्यम से राज्य स्तर के सुधार को ट्रैक और समर्थन करें। एक स्वतंत्र अत्याधुनिक नमूना आधारित परिणाम माप प्रणाली का परिचय दे।
- प्रभावी शिक्षण के लिए शिक्षकों और छात्रों को उपकरण प्रदान करे।
- मौजूदा शासन तंत्र में सुधार करें और नई नीति या योजना पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता।
- शिक्षा के अधिकार को अब सीखने का अधिकार बनने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत नियम 23 (2) का हालिया संशोधन एक अत्यंत महत्वपूर्ण सकारात्मक कदम है। संशोधन सभी राज्य सरकारों के लिए कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों के लिए सीखने के अपेक्षित स्तरों को संहिताबद्ध करना अनिवार्य बनाता है। इसके लिए राज्यों को “सभी प्रारंभिक कक्षाओं के लिए कक्षा-वारों विषय-वार सीखने के परिणाम तैयार करने और “ सीखने के निर्धारित परिणामों को प्राप्त करने के लिए निरंतर और व्यापक मूल्यांकन के अभ्यास के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की आवश्यकता है।
- मूलभूत शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता।
- प्रौद्योगिकी आधारित एक अनुकूल परीक्षाओं की प्रणाली निर्धारित करने की आवश्यकता है। यह प्रणाली मांग पर परीक्षा प्रणाली पर आधारित होनी चाहिए जो छात्रों को सापेक्ष अंक के आधार पर नहीं बल्कि पूर्ण दक्षता आधार पर परीक्षण करती हो। और छात्रों के तैयार होने पर पुनः परीक्षा देने की अनुमति देती हो।
- निजी क्षेत्र की भूमिका की भी समीक्षा की जा सकती है। जहाँ पर निजी क्षेत्र स्कूल को गोद लेता है और सार्वजानिक क्षेत्र द्वारा प्रति बच्चे के आधार पर वित्तपोषित किया जाता है।
उच्चतर शिक्षा से सम्बंधित चुनौतियां
- विकसित और अन्य विकासशील देशों की तुलना में कम छात्रों का नामांकन। सकल नामांकित अनुपात USA – 88% चीन 54% ब्राजील 51% भारत में 2020 -2021 में केवल 27.3 % .
कम सकल नामांकित अनुपात के कारण –
- उच्चतर शिक्षा में नामांकन हेतु शैक्षिक रूप से योग्य जनसंख्या की कमी
- उच्च माध्यमिक स्तर पर कम नामांकन और उच्च ड्रॉप आउट दर के लिए लैंगिक विभेद
- शिक्षा की भाषा और सामाजिक आर्थिक विवशताएँ सहित कई कारक
2. सामाजिक असमानता- समाज अनेक प्रकार की असमानताएं भी उच्चतर शिक्षा की लिए एक बड़ी समस्या उत्पन्न्न करती है। निम्न प्रकार की असमानताएं नजर आती है –
- समृद्ध और निम्न के मध्य
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के मध्य
- उच्चतर शिक्षा तक पहुंच में असमानता काफी भिन्न
- एससी एसटी माइनॉरिटी जैसे हाशिए पर रहने वाले वर्गों का अल्प प्रतिनिधित्व है
3. संसाधनों की कमी – यूजीसी के बजट का 65% भाग केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा उपयोग
4 . निम्न रोजगार क्षमता- भारत कौशल रिपोर्ट 2021 के अनुसार सभी विषयों की रोजगार क्षमता 45% है।
5. योग्य शिक्षकों की कमी- विश्वविद्यालय तथा कॉलेज में प्रोफेसर की जवाबदेही एवं प्रदर्शन सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र विद्यमान नहीं है। अनेक बार ये नजर आया है कि प्रोफेसर अपनी जिम्मेदारी को निभाने में तत्पर नहीं होते है।
6 . अनुसंधान एवं विकास पर जीडीपी का 0.65% ही व्यय होता है। जीडीपी का अत्यंत ही कम भाग का प्रयोग अनुसंधान एवं विकास पर खर्च होता है।
7 . संस्थाओं की गुणवत्ता
- स्नातकों के लिए कौशल अंतराल और बेरोजगारी दर- उच्चतर शिक्षा प्रणाली में दो समस्याएं- कई महाविद्यालयों में गुणवत्ता की गंभीर कमी है।
- यूजीसी फर्जी सूची जारी कर सकता है परंतु कार्रवाई करने की शक्ति प्राप्त नहीं है
- QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2022 में 200 में से भारत के तीन विश्वविद्यालय ही स्थान बना पाए थे
- उच्चतर शिक्षा संस्थान में 14% के पास ही राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद ( NAAC National Assesment And Accreditation Council ) से मान्यता प्राप्त
8. अति केन्द्रीयकरण , नौकरशाही की भूमिका में वृद्धि तथा जवाबदेही , पारदर्शिता में कमी आदि अनेक समस्याएं मौजूद है।
पहल – किये गए प्रयास –
प्राथमिक शिक्षा –
- शिक्षा का अधिकार
- मध्यमाह भोजन
- पढ़े भारत बढे भारत
- निपुण भारत मिशन – बुनियादी साक्षरता , 3 से 9 आयु वर्ष तक के बच्चों की सिखने की जरूरतों को पूरा करना।
- 2026 तक गड़े 3 क अंत तक प्रत्येक बच्चे के लिए मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता में सार्वभौमिक दक्षता के लक्ष्य।
माध्यमिक शिक्षा –
- राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान
- माध्यमिक शिक्षा के लिए लड़कियों को प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना
- अटल इनोवेशन मिशन – स्कूल , विशवविद्यालय , अनुसन्धान संस्धानों , MSME , उद्योग स्तरों पर नवाचार और उद्यमिता का एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना और बढ़ावा देना।
- व्यावसायिक शिक्षा की योजना – यह योजना सामान्य शैक्षिणिक शिक्षा को व्यावसायिक शिक्षा एकीकृत करती हैं।
उच्चतर शिक्षा हेतु सरकार की पहल
छात्र नामांकन में सुधार हेतु-
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के द्वारा 2035 तक सकल नामांकन अनुपात को 50% तक बढ़ाना का लक्ष्य रखा गया हैं।
- स्वयं पोर्टल ( SWAYAM PORTAL ) लोगों तक पहुंच, उत्तम गुणवत्ता शिक्षा प्रदान करना
- मुफ्त एवं दूरस्थ शिक्षा के लिए यूजीसी का नया विनियमन
वित्त पोषण आवश्यकताओं का समाधान कारण हेतु प्रावधान –
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान ( RUSA ) 2013- राज्य के संस्थानों को उनके शासन एवं प्रदर्शन के संबंध में वित्तपोषण प्रदान करना।
- उच्चतर शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी ( HEFA ) 2018 – शिक्षा मंत्रालय व केनरा बैंक द्वारा संयुक्त प्रयास। बाजार से धन, दान और, निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व निधि प्राप्त कर शीर्ष संस्थानों की अवसंरचना में सुधार हेतु प्रयोग करना।
बेहतर विनियमन-
- भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग ( HECI ) को यूजीसी और AICTE के स्थान पर उच्चतर शिक्षा के एक व्यापक विन्यामक के रूप में कार्य करने हेतु प्रस्तावित किया गया है
अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु –
- RISE योजना- शिक्षा में बुनियादी ढांचे और प्रणालियों को पुनर्जीवित करना , HEFA – द्वारा वितपोषित
- तकनीक अनुसंधान की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए – PMRF – प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्यता योजना , प्राइम मिनिस्टर रिसर्च फिलोस
- IMR RINT- इंपैक्टिंग रिसर्च इन्नोवेशन एंड टेक्नोलॉजी
- SPARC – स्कीम फॉर प्रमोशन आफ एकेडमिक एंड रिसर्च कोलैबोरेशन – भारतीय संस्थानों एवं विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों के मध्य अकादमिक और अनुसंधान सहयोग को सुविधाजनकबनाकर बनाकर।
गुणवत्ता में सुधार हेतु
- NIRF – नेशनल इंस्टीट्यूशन रैंकिंग फ्रेमवर्क 2015 – संस्थाओं को रैंक, एक दूसरे के विरुद्ध प्रतिस्पर्धा हेतु प्रोत्साहित
- उच्चतर शिक्षा के लिए UGC से वित्तपोषण के लिए आवेदन हेतु NAAC मूल्यांकन आवश्यक है।
उड़ान – वंचित छात्रों , SC / ST , अल्पसंख्यक के लिए स्कूल के बाद की व्यावसायिक शिक्षा , विशेष रूप विज्ञान और गणित में स्थानांतरित करने सक्षम बनाना।
सक्षम – तकनिकी शिक्षा दिव्यांग छात्रों को छत्रवृत्ति।
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