भारत का संवैधानिक विकास – Regulating Act Of 1773 In Hindi
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट ( Regulating Act Of 1773 In Hindi ) का महत्व –
- 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट ( Regulating Act Of 1773 In Hindi ) की महत्ता इसमें भी हैं कि ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था जिसके द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियंत्रित व नियमित करने का प्रयास किया गया था।
- इसी अधिनियम के माध्यम से भारत में ब्रिटिश द्वारा केंद्रीय प्रशासन की नीव रखी गयी थी।
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट ( Regulating Act Of 1773 In Hindi ) के मुख्य प्रावधान –
- बंगाल में एक. प्रशासक मण्डल का गठन किया गया था। जिसमें गवर्नर जनरल और 4 अन्य सदस्य थे। यहाँ पर निर्णय लेने की प्रक्रिया बहुमत पर आधारित थी। वॉरेन हेस्टिंग्स बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया। फ्रांसिस, क्लेवरिंग, मानसन और बारवेल काउंसिल के सदस्य नियुक्त हुए। उनका कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया।इनकी नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया – नियुक्तियां कंपनी द्वारा की जाती थी। और इनको हटाने की प्रक्रिया अलग थी। कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स की सिफारिश पर केवल ब्रिटिश सम्राट द्वारा ही इन्हे हटाया जा सकता था।ब्रिटिश संसद के 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर को ‘बंगाल का गवर्नर जनरल’ पद नाम दिया गया। उसकी सहायता के लिए एक चार-सदस्यीय कार्यकारी परिषद का गठन किया गया।
- पहले सभी प्रेसीडेंसियो के गवर्नर जनरल एक दूसरे से अलग थे परन्तु इस अधिनियम के अनुसार मद्रास एवं बम्बई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन आ गए।
- गवर्नर जनरल को बंगाल में फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी के सैनिक एवं असैनिक शासन का अधिकार दिया गया
- 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट ( Regulating Act Of 1773 In Hindi ) के तहत कलकत्ता में 1774 ई. में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे। सर एलिजाह इम्पी को प्रथम मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
- कंपनी के कर्मचारियों पर निजी व्यापार करने तथा भारतीयों से उपहार लेने पर प्रतिबंध लगाया गया।
- 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट के द्वारा ही कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार या किसी भी प्रकार कि रिश्वत लेने पर रोक लगा दी गयी।
- कंपनी को राजस्व, सैनिक आदि मामलो की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देनी होती थी मतलब कि 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट के द्वारा ब्रिटिश सरकार का कंपनी पर नियंत्रण बढ़ गया, जो कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के माध्यम से किया जाता था।
- संचालक मण्डल ( Court of directors ) का कार्यकाल 4 वर्ष किया गया था। संचालक मण्डल के सदस्यों के चयन कि पद्धति में प्रति वर्ष उनमे से एक चौथाई सदस्यों के स्थान पर नये सदस्यों के निर्वाचन की प्रक्रिया को अपनाया गया था।
- 500 पोंड के अंशधारियों के स्थान पर अब 1000 पोंड के अंशधारी ही संचालक मण्डल को चुनने का अधिकार रखते थे।
- कानून बनाने का अधिकार गवर्नर जनरल वो उसकी परिषद को दिया गया।
- इस कानून में 1781 में एक संशोधन किया गया था।
Read Also –
- 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
- पिट्स इंडिया एक्ट 1784 |
- 1786 अधिनियम व 1793 का चार्टर एक्ट
- चार्टर अधिनियम, 1813
शिवेंद्र सिंह चौहान
शिवेंद्र सिंह चौहान -
शिक्षा - बी. टेक. मैकेनिकल इंजीनियरिंग / समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर ( Post Graduation ) किया हैं।
कार्यानुभव - 9 साल कॉर्पोरेट सेक्टर में - क्वालिटी इंजीनियर , डिज़ाइन इंजीनियर , ऑपरेशन मैनेजर के पदों पर कार्य करने का अनुभव प्राप्त है।
ब्लॉगिंग के क्षेत्र में भी 4 वर्ष का अनुभव प्राप्त है।