भारतीय न्याय संहिता 2023  | Indian Judicial Code 2023 in Hindi | Bharatiya Nyaya Sanhita 2023  | BNS 2023

भारतीय न्याय संहिता 2023 | Indian Judicial Code 2023 in Hindi | Bharatiya Nyaya Sanhita 2023

भारतीय न्याय संहिता में 358 धाराएं हैं, जबकि आई० पी० सी० में 511 धाराएं थी। 19 धाराओं को हटा दिया गया है।

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागारिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू होने के साथ देश में त्वरित इन्साफ मिलने और तंत्र को भारतीय न्याय की राह सुनिश्चित होगी। इन कानूनों ने पहली बार आपराधिक न्याय प्रणाली में ऐसे सुधार किए हैं जो समाज में व्यापक बदलाव लाने वाले साबित हो सकते हैं।

न्याय अब तय समय में मिलेगा। घर बैठे एफआईआर से लेकर मुकदमों की अपने फोन पर जानकारी हासिल करने तक टेक्नोलॉजी का व्यापक इस्तेमाल किया जाएगा। प्रौद्योगिकी ने जीवन के अन्य क्षेत्रों में जो बड़े बदलाव किए हैं वह अब इस क्षेत्र में देखने को मिलेगी। कानूनों के विभिन्न पहलुओं के बारे में इस लेख के माध्यम से जानते है।

भारतीय न्याय संहिता ( Bharatiya Nyaya Sanhita 2023  | BNS 2023 ) के अंतर्गत त्वरित इंसाफ को प्राथमिकता दी गयी है। जिसमें निम्नलिखित कानूनों को शामिल किया गया हैं   :-

 

(1) महिलाओं और बच्चों की बढ़ेगी सुरक्षा :-

महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उनके प्रति अपराधों के खिलाफ विशेष ध्यान दिया गया है।

इसमें यौन अपराधों से निपटने के लिए महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध नाम से नया अध्याय जोड़ा गया है।

नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म को पॉक्सो के साथ जोड़ा गया है। ऐसे अपराधों में उम्रकैद से मृत्युदंड तक का प्रावधान        है।

नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म को नए अपराध की श्रेणी में रखा गया है।

सामूहिक दुष्कर्म के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवान कारावास का प्रावधान।

धोखे से यौन संबंध बनाने या शादी करने के सच्चे इरादे के बिना विवाह करने का वादा करने वालों पर लक्षित दंड का प्रावधान है।

 

(2). संगठित अपराध : पहली बार व्याख्या :-

पहली बार संगठित अपराध की व्याख्या की गई है।

सिंडिकेट बनाकर की गई कानून विरुद्ध गतिविधियों को दंडनीय बनाया गया है।

संगठित अपराध से मौत होने पर मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान। 10 लाख रुपये या उससे अधिक का जुर्माना। ऐसे अपराधों में मदद करने वालों के लिए सजा का प्रावधान।

सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक और अलगाववादी गतिविधियों को भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों से जोड़ा गया है।

छोटी संगठित आपराधिक गतिविधियों में सात साल तक की कैद का प्रावधान है।

 

(3). आर्थिक अपराध :-

करेंसी नोट, बैंक नोट और सरकारी स्टांप के हेरफेर के साथ स्कीम चलाना या किसी बैंक/वित्तीय संस्था में गड़बड़ी आर्थिक अपराध है।

 

(4). भीड़ हिंसा : आजीवन कारावास या मृत्युदंड :-

नस्ल, जाति और समुदाय को आधार बनाकर की गई हत्या से संबंधित अपराध का प्रावधान। इसके लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड।

स्नैचिंग जैसे अपराधों के लिए नया प्रावधान। गंभीर चोट के कारण निष्क्रिय स्थिति में जाने या स्थायी दिव्यांगता पर और कठोर दंड का प्रावधान।

 

(5). आतंकवाद की पहली बार व्याख्या :-

पहली बार आतंकवाद की व्याख्या की गई है। इसके तहत जो कोई भी भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को संकट में डालने की मंशा से देश या विदेश में लोगों या लोगों के किसी वर्ग में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने के मंसूबे से बम, डायनामाइट, विस्फोटक पदार्थों, विषैली गैसों, आणविक या रेडियोधर्मी पदार्थों का इस्तेमाल कर ऐसा कार्य करता है, जिससे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होती है, संपत्ति को नुकसान होता है या करेंसी के निर्माण या उसकी तस्करी या परिचालन हो तो इन्हें आतंकवादी गतिविधियां माना जाएगा।

सार्वजनिक सुविधाओं या निजी संपत्ति को नष्ट करना अपराध है। • इसमें ऐसे कृत्यों को भी शामिल किया है, जिनसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की क्षति या विनाश के कारण व्यापक हानि होती है।

आतंकवादी गतिविधियों के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान है। इसमें पैरोल नहीं मिलेगा।

 

(6). देशद्रोह ( राजद्रोह कानून की लेगा जगह ) :-

ऐसा कोई भी कृत्य, जिससे देश की सुरक्षा और संप्रभुता पर आंच आती हो, देश में आर्थिक संकट की आशंका बनती हो, अब देशद्रोह के दायरे में आएंगे। नए कानून में राजद्रोह को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।

अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करना भी धारा-152 के तहत अपराध होगा।

सरकार की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन देश की आलोचना अपराध होगा।

देशद्रोह की परिभाषा में आशय या प्रायोजन की बात है, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सेफगार्ड मिला है। पुराने कानून यानी आईपीसी में आशय या प्रयोजन की बात नहीं थी।

घृणा और अवमानना जैसे शब्दों को हटाकर सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक व अलगाववादी गतिविधियों जैसे शब्द जोड़े गए हैं।

 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम : डिजिटल रिकॉर्ड को कानूनी वैधता

 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम के नए कानून में 170 धाराएं हैं , पुराने में 167 थीं। 24 धाराओं में बदलाव किया गया है। 02 नई धाराएं और 6 उप-धाराएं जोड़ी गई हैं। 6 धाराएं हटाई गई हैं।

नए कानून में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल, कंप्यूटर में उपलब्ध दस्तावेज, स्मार्टफोन या लैपटॉप के संदेश और वेबसाइट को दस्तावेज माना गया है।

इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड की कानूनी स्वीकार्यता और वैधता स्थापित की गई है। इलेक्ट्रॉनिक बयान भी साक्ष्य के रूप में मान्य होंगे।

इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में मानने के लिए और अधिक मानक जोड़ गए हैं। इसमें इसको उचित कस्टडी, स्टोरेज, ट्रांसमिशन और ब्रॉडकास्ट पर जोर दिया गया है।

 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता : तय अवधि में न्याय

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, नए कानून में  531 धाराएं हैं जबकि सीआरपीसी में 484 धाराएं थीं। 177 प्रावधानों में बदलाव किया गया है। 9 नई धाराएं और 39 उप धाराएं जोड़ी गई हैं। 44 नए प्रावधान व स्पष्टीकरण जोड़े गए हैं। 35 धाराओं में समयबद्धता तय की गई है। 35 जगहों पर ऑडियो-वीडियो का प्रावधान जोड़ा गया है। 14 धाराएं हटाई गई हैं।

आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत करने, गिरफ्तारी, जांच, आरोप तय करने, मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही, संज्ञान, प्ली बारगेनिंग, सहायक लोक अभियोजक की नियुक्ति, ट्रायल, जमानत, फैसला व सजा, दया याचिका के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई है। इसका मकसद तेज रफ्तार से न्याय देना है।

व्हाट्सएप जैसे अन्य इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन माध्यमों से शिकायत करने पर तीन दिन के भीतर एफआईआर को रिकॉर्ड पर लिया जाएगा।

मजिस्ट्रेट की ओर से आरोप की पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय करना होगा।

किसी भी आपराधिक न्यायालय में मुकदमा खत्म होने के बाद फैसले की घोषणा अधिकतम 45 दिन में करनी होगी।

सत्र न्यायालय को बहस पूरी होने के 30 दिनों के भीतर बरी करने या दोषसिद्धि पर अपना फैसला सुनाना होगा। यह अवधि 45 दिनों तक बढ़ाई जा सकती है।

20 से अधिक प्रावधानों के जरिये पुलिस की जवाबदेही बढ़ाई गई है। पहली बार प्रारंभिक जांच का प्रावधान।

तलाशी और जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी अनिवार्य।

गिरफ्तार व्यक्तियों के बारे में जानकारी देना अनिवार्य।

तीन वर्ष से कम सजा वाले और 60 से अधिक उम्र के लोगों की गिरफ्तारी के लिए मजिस्ट्रेट से अनुमति जरूरी।

  गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे में कोर्ट में पेश करना होगा।

 

भारतीय न्याय संहिता ( Bharatiya Nyaya Sanhita 2023  | BNS 2023 ) के अंतर्गत मिलेगा कानूनों के जरिये ऐसे मिलेगा त्वरित न्याय :-

० ऑनलाइन घटनाओं की रिपोर्ट करना :

कोई व्यक्ति संचार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से घटनाओं की रिपोर्ट कर सकता है। इसके लिए पुलिस स्टेशन जाने की आवश्यकता नहीं है। इससे रिपोर्ट दर्ज कराना आसान और त्वरित होगी।

० किसी भी थाने में दर्ज करा सकेंगे एफआईआर:  

जीरो एफआईआर शुरू होने से कोई भी व्यक्ति किसी भी थाने में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। चाहे उसका क्षेत्राधिकार कुछ भी हो। इससे कानूनी कार्यवाहियां शुरू करने में होने वाली देरी खत्म होगी। अपराध की तुरंत रिपोर्ट सुनिश्चित होगी।

० एफआईआर की निशुल्क प्रति :

पीड़ितों को एफआईआर की निशुल्क प्रति मिलेगी। इससे कानूनी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित होगी।

० गिरफ्तारी होने पर सूचना देने का अधिकार :

गिरफ्तारी की स्थिति में व्यक्ति को उसकी इच्छा के व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार है। इससे गिरफ्तार व्यक्ति को तत्काल सहायता और सहयोग सुनिश्चित होगा।

० गिरफ्तारी की जानकारी प्रदर्शित करना :

गिरफ्तारी का विवरण अब पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा। इससे गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार को आसानी से जानकारी मिलेगी।

० फॉरेंसिक साक्ष्य संग्रह और वीडियोग्राफी :

फॉरेंसिक विशेषज्ञों का गंभीर अपराधों के लिए अपराध स्थलों का दौरा करना और साक्ष्य जुटाना अनिवार्य हो गया है। साक्ष्यों से छेड़छाड़ रोकने के लिए साक्ष्य संग्रह प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होगी।

० त्वरित जांच :

नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गई है, ताकि सूचना दर्ज होने के दो महीने के भीतर जांच पूरी हो सके।

० पीड़ितों को मामले की प्रगति का अपडेट देना :

पीड़ितों को 90 दिनों के भीतर मामले की प्रगति के बारे में अपडेट प्राप्त करने का अधिकार है। इस प्रावधान से पारदर्शिता बढ़ेगी और विश्वास बढ़ेगा।

० पीड़ितों के लिए निशुल्क उपचार :

महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध के पीडितों को सभी अस्पतालों में निशुल्क उपचार की गारंटी देते हैं।

० इलेक्ट्रॉनिक समन :

अब इलेक्ट्रॉनिक रूप से समन को तामील की जा सकती है, जिससे कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी आएगी। कागजी कार्रवाई कम होगी।

० महिला मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज होगा बयान :

महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में पीड़िता के बयान, जहां तक संभव हो, महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जाने चाहिए और अगर महिला मजिस्ट्रेट अनुपस्थित हो तो महिला की उपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जाने चाहिए, ताकि संवेदनशीलता और निष्पक्षता मुनिश्चित हो और पीड़ितों के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जा सके।

० पुलिस रिपोर्ट और दस्तावेज उपलब्ध कराना :

आरोपी और पीड़ित दोनों को 14 दिनों में एफआईआर, पुलिस रिपोर्ट चार्जशीट, बयान, स्वीकारोक्ति और अन्य दस्तावेजों की प्रतिया प्राप्त करने का अधिकार है।

० सीमित स्थगन :

सुनवाई में देरी से बचने के लिए न्यायालय अधिकतम दो स्थगन प्रदान कर सकते हैं, जिससे समय पर न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

० गवाह सुरक्षा योजना :

सभी राज्य सरकारों के लिए गवाहों की सुरक्षा और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए गवाह सुरक्षा योजना को अनिवार्य किया गया है।

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