-हम किसके घर मे घुस रहे हैं ?? कहीं हम सब घुसपैठिए और हत्यारे तो नहीं ??
सभी जीवों की पारिस्थितिकी तंत्र में अपनी समान महत्ता और अपना एक निश्चित कार्य क्षेत्र या कहे कि आवास हैं। प्रकृति एक जटिल प्रक्रिया से संतुलित होने वाला तंत्र हैं। जिसमें अगर हम अपने लालच के लिए कोई भी परिवर्तन करते हैं तो उसका प्रभाव किसी न किसी रूप में चाहे कम समय मे या कुछ लंबे समय बाद अवश्य दिखाई पड़ जाता हैं।
सामान्यतः अनेक खबरें सुनाई आती रहती हैं कि कभी किसी शहर में बाघ घुस आया या कभी कोई अन्य जानवर गाँव या शहर में अंदर तक आ पहुँचते हैं। और हम कहते है कि जंगली जानवर मानव आबादी वाले क्षेत्र में आ गए हैं ।
क्या कभी हमने सोचा है कि हम उनके घर मे घुसे हैं या वो हमारे घर मे आए हैं ??
बात छोटी लग सकती हैं परंतु इतनी छोटी है नहीं।
हमने तेजी से अपनी जनसंख्या में वृद्धि तो की ही है साथ ही उपभोक्तावादी संस्कृति में भी अत्यंत वृद्धि की हैं। आधुनिकता के नाम पर हमने अपनी जरूरतों को इतना बढ़ाया है कि इसकी पूर्ति की कीमत प्रकृति का अंधाधुन्द दोहन करके किया जा रहा हैं । जिसमें हम जंगल को नष्ट करने में लगे हैं। जनसंख्या इतनी हो गयी कि उनके रहने के लिए गांव , शहरों का विस्तार दिन प्रतिदिन होता ही जा रहा हैं।
पहले पहाड़ो पर शांति और कम आवागमन हुआ करता था । परंतु अब वहाँ भी हमने अपनी गतिविधियों को बढ़ा दिया हैं। अब मुद्दे की बात करे तो जो जंगल जानवरों के आवास होते है। हमने उन्हें भी वर्षों से अपने अनुसार परिवर्तित करना जारी रखा। जब हम पहाड़ो पर या जंगलों में जाते है और वहाँ कोई बंदर बैठा हो; तो ऐसा प्रतीत होता हैं कि वो हमें कह रहा हो कि तुम यहाँ भी मेरे घर खुस आए हो । पहले ही मेरे इतने घर तुमने नष्ट कर दिए अब जो बचे हैं वहाँ भी आराम से नहीं रहने दोगे।
EFFECTS OF ENVIRONMENTAL POLLUTION IN HINDI
एक बार समाचारों में आया था कि एक उद्यान में एक प्रजाति के जानवरों की संख्या बहुत तेजी से कम हो रही थी। जब इसकी जांच की गई तो पाया गया कि वो जानवर अत्यंत शर्मिला होता हैं और इंसानों की उपस्थिति में वो अपने संबंध स्थापित नहीं करता है, जिससे उसकी संख्या में बड़ी गिरावट आई थी। अब आप समझ सकते हैं कि जब हमारे घर मे कोई अनजान व्यक्ति आ जाता है तो हम कुछ ही पल में परेशान हो जाते हैं। तो जब हम महीनों ,हफ़्तों उनके घरों में पिकनिक मनाने जाते हैं तो उन्हें भी परेशानी होती ही होगी। और हम में से अधिक लोग वहाँ प्लास्टिक आदि गंदगी वही छोड़ आते है ।जिससे उन्हें अवश्य ही नुकसान पहुँचता हैं। उनके भी छोटे बच्चे या बड़े जानवर भी बहुत बार उस प्लास्टिक के सेवन के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
हमने उनके जंगल रूपी घर मे तो दख़ल दिया ही है साथ ही जल रूपी घर मे भी कोई कमी नही छोड़ी हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि समुंदर के किनारे घूमने गए लोग वहाँ कितना कचरा छोड़ आते है या शहरों से प्लास्टिक समुद्र तक जा रही हैं। जिससे अनेक जल में रहने वाली मछलियों या अन्य जीव की मृत्यु हो रही हैं। हमें सोचना होगा कि हम उनके घरों में घुसे है या वो हमारे घर मे घुस आते हैं।
हमने अपनी गतिविधियों से पृथ्वी के तापमान में अत्यंत वृद्धि की है जिसका परिणाम जंगल की आग के रूप में भी देखने को मिलता हैं । अभी ऑस्ट्रेलिया में जंगल मे लगी आग के कारण लाखों- करोड़ों जानवरो की आग में जलकर मृत्यु हो गयी या कहेंगे कि हमने उनकी निर्मम हत्या करदी है। हम सभी दिनोंदिन हत्यारे बनते जा रहे हैं और हम खुद को उतना ही आधुनिक कहते हैं। ये आधुनिकता कही से भी नही कही जा सकती हैं। हम घुसपैठियों और हत्यारे से कम कुछ भी नही हैं।
अब भी समय है जब हम अपनी ऐसी अनैतिक गतिविधियों पर लगाम लगाए जो प्रकृति की नियमों का हनन दिन प्रतिदिन कर रही हैं। अब प्राकृतिक आपदा प्राकृतिक कम बल्कि मानवजनित ज्यादा हो गयी हैं। हम खुद किसी न किसी रूप में आपदाओं को बढ़ावा दे रहे हैं।
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