Glacial Landforms UPSC in Hindi: Erosional And Depositional For UPSC in Hindi

हिमनद

पृथ्वी पर परत के रूप में हिम प्रवाह या पर्वतीय ढालों से घाटियों में रैखिक प्रवाह के रूप में बहते हिम संहति को हिमनद कहते हैं।

महाद्वीपीय हिमनद या गिरिपद हिमनद- 

महाद्वीपीय हिमनद या गिरिपद हिमनद वे हिमनद हैं जो बृहत् समतल क्षेत्र पर हिम परत के रूप में फैले हों

पर्वतीय या घाटी हिमनद हिमनद

पर्वतीय या घाटी हिमनद हिमनद हैं जो पर्वतीय ढालों में बहते हैं प्रवाहित जल के विपरीत हिमनद प्रवाह बहुत धीमा होता है। हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं। हिमन्द् मुख्यतः गुरुत्वबल के कारण गतिमान होते हैं।

हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है। हिमनद द्वारा कर्षित चट्टानी पदार्थ (प्रायः बड़े गोलाश्म व शैलखंड) इसके तल में ही इसके साथ घसीटे जाते हैं या घाटी के किनारों पर अपघर्षण व घर्षण द्वारा अत्यधिक अपरदन करते हैं। हिमनद अपक्षय रहित चट्टानों का भी प्रभावशाली अपरदन करते हैं, जिससे ऊँचे पर्वत छोटी पहाड़ियों व मैदानों में परिवर्तित हो जाते हैं।

हिमनद के लगातार संचलित होने से हिमनद मलवा हटता होता है विभाजक नीचे हो जाता है और कालांतर में ढाल इतने निम्न हो जाते हैं कि हिमनद की संचलन शक्ति समाप्त हो जाती है तथा निम्न पहाड़ियों व अन्य निक्षपित स्थलरूपों वाला एक हिमानी धीत (Outwash ) plain) रह जाता है। हिमनद के. अपरदन व निक्षेपण से निर्मित स्थलरूपों को दर्शाता जिसका वर्णन भी अगले अनुच्छेदों में किया गया है।

अपरदित स्थलरूप –

  1. सर्क
  2. सर्क झील या टार्न झील
  3. हॉर्न या गिरिशृंग और  सिरेटेड कटक
  4. अरेत (Arlets))) ( तीक्ष्ण कटक)
  5. हिमनद घाटी/गर्त
  6. फियोर्ड

सर्क

  • अधिकतर सर्क हिमनद घाटियों के शीर्ष पर पाए जाते हैं।
  • एकत्रित हिम पर्वतीय क्षेत्रों से नीचे आती हुई सर्क को काटती है।
  • सर्क गहरे, लंबे व चौड़े गर्त हैं जिनकी दीवार तीव्र ढाल वाली सीधी या अवतल होती हैं।
  • हिमानीकृत पर्वतीय भागों में हिमनद द्वारा उत्पन्न स्थलरंध्रों में सर्क सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

सर्क झील या टार्न झील

हिमनद के पिघलने पर जल से भरी झील भी प्रायः इन गर्तों में देखने को मिलती है। इन झीलों को सर्क झील या टार्न झील कहते हैं। आपस में मिले हुए दो या दो से अधिक सर्क सीढ़ीनुमा क्रम दिखाई देते हैं।

हॉर्न या गिरिशृंग और  सिरेटेड कटक

सर्क के शीर्ष पर अपरदन होने से हॉर्न निर्मित होते हैं। यदि तीन या अधिक विकीर्णित हिमनद निरंतर शीर्ष पर तब-तक अपरदन जारी रखें जब तक उनके तल आपस में मिल जाएँ तो एक तीव्र किनारों वाली नुकीली चोटी का निर्माण होता है जिन्हें हॉर्न कहते हैं।

अरेत (Arlets))) ( तीक्ष्ण कटक)

लगातार अपदरन से सर्क के दोनों तरफ की दीवारें तंग हो जाती हैं और इसका आकार कंघी या आरी के समान कटकों के रूप में हो जाता है, जिन्हें अरेत (Arlets) ( तीक्ष्ण कटक) कहते हैं। इनका ऊपरी भाग नुकीला तथा बाहरी आकार टेढ़ा-मेढ़ा होता है। इन कटकों का चढ़ना प्रायः असंभव होता है।

आल्प्स पर्वत पर सबसे ऊँची चोटी मैटरहॉर्न तथा हिमालय पर्वत की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट, वास्तव में, हॉर्न है जो सर्क के शीर्ष अपदरन से निर्मित है।

हिमनद घाटी/गर्त

हिमानीकृत घाटियाँ गर्त की भाँति होती हैं जो आकार में अंग्रेजी के अक्षर U जैसी होती हैं; जिनके तल चौड़े व किनारे चिकने तथा ढाल तीव्र होते है। घाटी में मलबा बिखरा होता है अथवा हिमोढ़ मलबा दलदली रूप में दिखाई देता है। चट्टानी धरातल पर झील भी उभरी होती है अथवा ये झीलें घाटी में उपस्थित हिमोढ़ मलबे से बनती हैं। मुख्य घाटी के एक तरफ या दोनों तरफ ऊँचाई पर लटकती घाटी (Hanging valley) भी होती हैं।

फियोर्ड

लटकती घाटियों के तल, जो मुख्य घाटी में खुलते हैं, इनके विभाजक क्षेत्रों के कट जाने से ये त्रिकोण रूप में नज़र आती हैं। बहुत गहरी हिमनद गर्तें जिनमें समुद्री जल भर जाता है तथा जो समुद्री तटरेखा पर होती हैं, उन्हें फियोर्ड कहते हैं।

निक्षेपित स्थलरूप

  1. हिमानी धौत (Outwash)
  2. हिमोढ़
  3. एस्कर (Eskers)
  4. हिमानी धौत मैदान (Outwash plains)
  5. डुमलिन (Drumlins)

पिघलते हुए हिमनद के द्वारा मिश्रित रूप में भारी व महीन पदार्थों का निक्षेप-हिमोढ या हिमनद गोलाश्म के रूप में जाना जाता है। इन निक्षेप में अधिकतर चट्टानी टुकड़े नुकीले या कम नुकीले आकार के होते हैं।

हिमानी धौत (Outwash)

हिमनदों के तले, किनारों या छोर पर बर्फ पिघलने से सरिताएँ बनती हैं। कुछ मात्रा में शैल मलबा इस पिघले जल से बनी सरिता में प्रवाहित होकर निक्षेपित होता है। ऐसे हिमनदी जलोढ़ निक्षेप हिमानी धौत (Outwash) कहलाते हैं। हिमोढ़ निक्षेप के विपरीत हिमानी धौत (Outwash deposits) प्रायः स्तरीकृत व वर्गीकृत होते हैं। हिमनद अपक्षेप में चट्टानी टुकड़े गोल किनारों वाले होते हैं।

हिमोढ़

हिमोढ़, हिमनद टिल (Till) या गोलाश्मी मृत्तिका के जमाव की लंबी कटकें हैं।

अंतस्थ हिमोढ़ (Terminal moraines)

हिमनद के अंतिम भाग में मलबे के निक्षेप से बनी लंबी कटके हैं।

पाश्विक हिमोढ़ (Lateral moraincs)

हिमनद घाटी की दीवार के समानांतर निर्मित होते हैं। पाश्विक हिमोढ़ अंतस्थ हिमोढ़ से मिलकर घोड़े की नाल या अर्धचंद्राकार कटक का निर्माण करते हैं । हिमनद घाटी के दोनों ओर अत्यधिक मात्रा में पाश्विक हिमोढ पाए जाते हैं। इस हिमोढ़ की उत्पत्ति पूर्णतया आंशिक रूप से हिमानी-जल द्वारा होती है; जो इस जलोढ़ को हिमनद के किनारों पर धकेलती है।

तलीय. (या तलस्थ (Ground) हिमोढ़

कुछ घाटी हिमनद तेजी से पिघलने पर घाटी तल पर हिमनद टिल को एक परत के रूप में अव्यवस्थित रूप से छोड़ देते हैं। ऐसे अव्यवस्थित व भिन्न मोटाई के निक्षेप तलीय. (या तलस्थ (Ground) हिमोढ़ कहलाते हैं। घाटी के मध्य में पाश्विक हिमोढ के साथ-साथ हिमोढ मिलते हैं जिन्हें मध्यस्थ (Medial) हिमोढ़ कहते हैं। ये पाश्विक हिमोढ़ की अपेक्षा कम स्पष्ट होते हैं। कभी-कभी मध्यस्थ हिमोढ़ व तलस्थ के अंतर को पहचानना कठिन होता है।

एस्कर (Eskers)

ग्रीष्म ऋतु में हिमनद के पिघलने से जल हिमतल के ऊपर से प्रवाहित होता है अथवा इसके किनारों से रिसता है या बर्फ के छिद्रों से नीचे प्रवाहित होता है। यह जल हिमनद के नीचे एकत्रित होकर बर्फ के नीचे नदी धारा में प्रवाहित होता है। ऐसी नदियाँ नदी घाटी के ऊपर बर्फ के किनारों वाले तल में प्रवाहित होती हैं। यह जलधारा अपने साथ बड़े गोलाश्म, चट्टानी टुकड़े और छोटा चट्टानी मलबा मलबा बहाकर लाती है जो हिमनद के नीचे इस बर्फ की घाटी में जमा हो जाते हैं। ये बर्फ पिघलने के बाद एक वक्राकार कटक के रूप में मिलते हैं, जिन्हें एस्कर कहते हैं।

हिमानी धौत मैदान (Outwash plains)

हिमानी गिरिपद के मैदानों में अथवा महाद्वीपीय हिमनदों से दूर हिमानी – जलोढ़ निक्षेपों से (जिसमें बजरी, रेत, चीका मिट्टी व मृत्तिका के विस्तृत समतल जलोढ़-पंख भी शामिल हैं), हिमानी धौत मैदान निर्मित होते हैं।

डुमलिन (Drumlins)

ड्रमलिन हिमनद मृत्तिका के अंडाकार समतल कटकनुमा स्थलरूप हैं जिसमें रेत व बजरी के ढेर होते हैं। ड्रमलिन के लंबे भाग हिमनद के प्रवाह की दिशा के समानांतर होते हैं। ये एक किलोमीटर लंबे व 30 मीटर तक ऊँचे होते हैं। ड्रमलिन का हिमनद सम्मुख भाग(स्टॉस) (Stoss) कहलाता है, जो पृच्छ (Tail) भागों की अपेक्षा तीखा तीव्र ढाल लिए होता है। ड्रमलिन का निर्माण हिमनद दरारों में भारी चट्टानी मलबे के भरने व उसके बर्फ के नीचे रहने से होता है। इसका अग्र भाग या स्टॉस भाग प्रवाहित हिमखंड के कारण तीव्र हो जाता है। ड्रमलिन हिमनद प्रवाह दिशा को बताते हैं।

Source – NCERT CLASS 11

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