ग्रीन हाउस गैस और उसके प्रभाव पर निबंध | Green House Effect For UPSC in Hindi | Green House Effect For UPSC In Hindi

Green House Effect For UPSC in Hindi

 

इस लेख में ग्रीन हाउस गैस ( Green House Gas ) के विषय में उठने वाले सवालो के विषय में जानकारी दी गयी हैं। जैसे कि ग्रीन हाउस गैस किसे कहते है ( What is Green House Gas in Hindi ) / ग्रीन हाउस गैस क्या होती है( Green house gas kya hoti hai ) / ग्रीन हाउस  कौनसी हैं ( examples of Green House Gas )  / ग्रीन हाउस गैस के होने वाले दुष्प्रभाव ( disadvantages of Green House gas )  / ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव क्या क्या  ( Impacts of Green House Gas )

ग्रीनहाउस गैस क्या है ? (What is Green House Gas in Hindi) : 

 

ग्रीनहाउस गैस, वायुमंडल में मौजूद गैसों का एक ऐसा समूह है जो सूर्य से आने वाली विकिरण को पृथ्वी के वायुमंडल में रोक कर पृथ्वी की सतह को गर्म रखने का काम करती है| इन ग्रीनहाउस गैसों की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है| परन्तु एक निश्चित मात्रा तक ही ये गैस हमारे लिए लाभदायक है, उसके बाद  ये ग्रीन हाउस गैस हमारे वायुमंडल के लिए हानिकारक हो जाती है|

ये  गैस ही ग्रीनहाउस प्रभाव का मूल कारण होती है। वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ना ही ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाता है, जिसके परिणाम स्वरुप ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या देखने को मिलती है|

इन गैसों की सूर्य से आने वाली विकिरणों को वायुमंडल में रोकने की क्षमता ग्रीनहाउस प्रभाव का कारण बनती है। वायुमंडल मे जितनी अधिक ग्रीनहाउस गैस होगी, पृथ्वी पर उतनी ही गर्मी होगी। अतः इस प्रभाव को उत्पन्न करने वाली गैसों के समूह को ग्रीनहाउस गैस कहा जाता है।

Green House Gas

ग्रीनहाउस गैस पृथ्वी पर जीवन बनाये रखने में सहायक ( Importance Of Green House gases )  – 

 

पृथ्वी पर जीवन इन्ही ग्रीन हाउस गैसों के कारण सम्भव है| सूर्य से आने वाली विकिरण हाई एनर्जी और लघु तरंगदैर्ध्य की होती है जो पृथ्वी से परावर्तित होकर लंबी तरंगदैर्ध्य की हो जाती है| इन लंबी तरंगदैर्ध्य की विकिरणो का कुछ भाग ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशोषित कर  लिया जाता है ,और वायुमंडल में फैला दिया जाता है| विकिरणो में मौजूद एनर्जी के कारण पृथ्वी के वायुमंडल का तापमान एक सीमा तक बढ़ जाता है|  यदि सूर्य से आने वाली इन विकिरणों को ग्रीनहाउस गैसों द्वारा अवशोषित न किया जाये और पूरा तरह से परावर्तित कर दिया जाये तो पृथ्वी का तापमान -18C (0 F) होगा, जिससे पृथ्वी पर जीवन की कोई अस्तित्व नहीं होगा | आज के समय में पृथ्वी का औसतन तापमान 15C (59F) है |

परंतु वायुमंडल में इन ग्रीन हाउस गैसों का एक निश्चित मात्रा से अधिक होना हमारे लिए हानिकारक है इससे ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या उत्पन्न होती है|

हमारे वायुमंडल में मौजूद ग्रीनहाउस गैस 

  1. कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)
  2. मीथेन (CH4)
  3. नाइट्रस ऑक्साइड (N2O)
  4. फ्लोरिनेटेड गैस
  5. जल वाष्प

 

  1. कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)

कार्बन डाइऑक्साइड जीवाश्म ईंधन (जैसे कोयला, प्राकृतिक गैस, और तेल), पेड़ और लकड़ी के उत्पादों को जलाने, तथा कुछ रासायनिक प्रतिक्रियाओं  के परिणामस्वरूप वायुमंडल में प्रवेश करती है। जैविक कार्बन चक्र के हिस्से के रूप में पौधों द्वारा अवशोषित होने पर कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल  से हटा दिया जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड  का लगभग एक चौथाई भर महासागरीय जल द्वारा अवशोषित के लिया जाता है| कार्बन डाइऑक्साइड  जल की अम्लीयता को बढाती है जो पर्यावरण और उस में मौजूद जीवन के लिए हानिकारक है|

 

  1. मीथेन (CH4):

मीथेन विभिन्न स्रोतों से उत्सर्जित  होता है जैसे -कोयले, प्राकृतिक गैस और तेल के उत्पादन , ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बनिक यौगिक विघटित होना इत्यादि|

 

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लगभग पिछले 100 सालो में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में मीथेन का हिस्सा सिर्फ 3% है, फिर भी तापमान वृद्धि में 23% की  जिम्मेदार यही गैस है. दूसरे शब्दों में कहे तो तापमान वृद्धि में यह गैस कार्बन डाइऑक्साइ की तुलना में कहीं ज्यादा ताकतवर है| मेथेन पर हुए शोध में पाया गया है की 1 टन मीथेन में 28 टन कार्बन डाइऑक्साइ के बराबर तापमान बढ़ाने की ताकत है. पिछले दो दशक में मेथेन उत्सर्जन 10 फीसदी बढ़ गया है|

 

  1. नाइट्रस ऑक्साइड (N2O):

नाइट्रस ऑक्साइड, जिसे ‘‘लाफिंगगैस’’ के रूप में जाना जाता है, यह भी एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिसकी कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 300 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता  है। नाइट्रस ऑक्साइड का वैश्विक उत्सर्जन मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप बढ़ रहा है नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन औद्योगिक और कृषि गतिविधियों , जीवाश्म ईंधन और ठोस अपशिष्ट के दहन के दौरान  होता है।

 

  1. फ्लोरिनेटेड गैस:

हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, सल्फर हेक्साफ्लोराइड, , पर्फ्यूरोकार्बन और नाइट्रोजन ट्राइफ्लोराइड सिंथेटिक, ये सभी बहुत अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें हैं जिनका उत्सर्जन विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओ के दौरान होता हैं।

ये गैस आम तौर पर कम मात्रा में उत्सर्जित कि जाती है, लेकिन  ये शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसे होती हैं। जिसकी कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 23000 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता  है।

 

  1. जल वाष्प:

जल वाष्प की वायुमंडलीय एकाग्रता अत्यधिक परिवर्तनीय है जो काफी हद तक तापमान पर निर्भर करती है।

जल वाष्प जलवायु प्रणाली का एक  सक्रिय घटक है जो बारिश ,बर्फ में घुलनशील, वायुमंडल में लौटने के लिए वाष्पीकरण की स्थिति में परिवर्तनों की प्रतिक्रिया तेजी प्रदान करता है।

 

 

ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव ( Green House Effect For UPSC in Hindi )

 

  1. ग्लोबल वॉर्मिंग (Global warming):

ग्लोबल वार्मिंग ग्रीनहाउस गैसों का एक मुख्य और हानिकारक प्रभाव है जिसके कारण हमारी पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है जिससे जलवायु में लगातार परिवर्तन देखने को मिल रहा है| ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेसियर पिघल रहे है, जिससे समुन्द्र का जल स्तर बढ़ रहा है|

हालांकि ग्रीनहाउस गैस का स्तर, औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से ही बढ़ा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में इनमें तेजी से वृद्धि हो रही है ।1970 के बाद से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 75% की वृद्धि देखने को मिली है। जिससे पिछले 70 वर्षों में पृथ्वी की सतह का तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस  बढ़ा तक गया  है।

ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव अब उस स्तर  तक बढ़ गया है जहां पृथ्वी का वायुमंडल बहुत अधिक गर्म हो गया है। और यह तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है|

ग्लोबल वार्मिंग पर्यावरण को कई तरीकों से नुकसान पहुंचा रही है जैसे :- जमीन बंजर बनाना,बर्फ पिघलने में वृद्धि , समुद्र जल तल में वृद्धि इत्यादि ।

 

  1. ओजोन परत को क्षति:

ओजोन परत हमारी पृथ्वी क लिए एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है,  जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबेंगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकती है| परन्तु इन ग्रीनहाउस गैसों की वजह से यह परत अब धीरे धीरे क्षय हो रही है| अर्थात हमारा कवच टूट रहा है| जो हमारे ग्रह पर मौजूद जीवन क लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं है| इन्ही पराबेंगनी किरणों के कारण  बहुत से रोग जैसे कैंसर त्वचा रोग इत्यादि फ़ैल रहे है

वायुमंडल में मौजूद क्लोरो फ्लोरो कार्बन, नाइट्रस ऑक्साइड ओजोन परत क्षय का मुख्य कारण है जो की सॉल्वैंट्स, स्प्रे एरोसोल, रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर द्वारा वायुमंडल में छोड़े जाते हैं

 

  1. धुआं और ओजोन प्रदूषण:

जमीनी स्तर पर, ओजोन धुँए का एक प्रमुख घटक है जो एक वायु प्रदूषक है| जो मनुष्य और पौधों दोनों के लिए खतरनाक है। दुनिया भर में कार्डियोफुलमोनरी से होने वाली मौतों के लिए  जिम्मेदार ओजोन को ही माना गया हैं।

पिछली शताब्दी से, ओजोन कंसंट्रेशन मुख्य रूप से मानव उत्सर्जित मीथेन और नाइट्रोजन ऑक्साइड़ के कारण 2 गुना अधिक हो गई है

हाल ही में हुए अध्ययनों से अनुमान लगाया गया है  कि सोयाबीन, मक्का और गेहूं जैसी प्रमुख  फसलों की वैश्विक पैदावार में वर्तमान में 2-15% तक गिरावट देखने को मिली  है।

 

  1. महासागर अम्लीकरण:

ग्रीन हाउस गैसों के कारण महासागरीय जल का लगातार अम्लीकरण हो रहा है जो इन महासागरों में उपस्थित जीवन के लिए बहुत हानिकारक है| चुकी पृथ्वी पर मौजूद ऑक्सीजन का 70%-80% इन्ही महासागरो में उपस्थित समुंद्रिय पौधो से आता है| यह अम्लीय जल इन पौधों के लिए हानिकारक है| केवल समुंद्रिय जीवन ही नही यह अम्लीय जल पृथ्वी पर मौजूद जीवन के लिए नही बहुत ही हानिकारक है|

महासागरीय जल के अम्लीकरण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड मुख्य रूप से उत्तरदायी है| कार्बन डाइऑक्साइड ने दुनिया के महासागरीय जल को 25% तक अधिक एसिडिक बना दिया है।

महासागर कार्बन डाइऑक्साइड के लिए एक सिंक की तरह कार्य करता है और यह मानव द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग एक चौथाई भाग अवशोषित करता है| यह कार्बन डाइऑक्साइड समुद्री जल के साथ प्रतिक्रिया करके कार्बनिक एसिड बनाते हैं, इसलिए जब वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता है, महासागरों का अम्लीकरण भी बढ़ता है।

 

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