WOMEN’S EMPOWERMENT and WOMEN’S EDUCATION IN HINDI | महिला सशक्तिकरण एवं महिला शिक्षा
WOMEN’S EDUCATION IN HINDI
आज का हमारा लेख है महिला सशक्तिकरण एवं शिक्षा पर जो वर्तमान भारत की अत्यंत आवश्यक रीढ़ है। महिला सशक्तिकरण एवं महिला शिक्षा : बदलाव भी है जरूरी के माध्यम से हमारा लक्ष्य है हमारे देश में व्याप्त कुरीतियों और महिलाओं के प्रति अप्रत्यक्ष व्यव्हार को बदलना।
WOMEN’S EMPOWERMENT IN HINDI
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INTERNATIONAL WOMEN’S DAY IN HINDI
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।
” जहाँ नारी को पूजा जाता है, वहीं देवता निवास करते है। “
हमारी भारतीय संस्कृति में महिला को देवी का रूप कहा जाता रहा है। महिला एक बेटी, एक माँ, एक पत्नी के रूप में इस विश्व का सृजन करती आई हैं। इस तथ्य को नकार नहीं सकते कि किसी समाज को जागृत करने हेतु महिलाओं का जागृत होना अत्यंत आवश्यक है।
नारी सरस्वती का रूप है, नारी लक्ष्मी का स्वरुप है।। बढ़ जाए जब अत्याचारी, नारी दुर्गा एवं काली का रूप है।।
यदि हम इतिहास के कुछ पृष्ठों को पलटकर देखे तो प्राचीन समय में महिलाओं को अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। किन्तु समय के साथ-साथ परिस्थितियां बिलकुल विपरीत हो चुकी है। महिलाएं समाज के द्वारा निर्मित दहेज प्रथा, बाल विवाह, भ्रूण हत्या आदि कुरीतियों की भेंट चढ़ गयी है। महिलाओं को हर जगह सम्मान देना और इन कुरीतियों का अंत कर उन्हें बराबर का अधिकार देना हमारा कर्तव्य है।
किसी भी राष्ट्र के निर्माण में शिक्षा का बहुत अधिक महत्व होता है। जिस देश के लोग शिक्षित नहीं होते है, वहां पर आर्थिक और सामाजिक विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है। हमारे भारत राष्ट्र में भी शिक्षा एक बहुत बड़ा सोचनीय मुद्दा है, खासकर महिला शिक्षा जो अभी भी हमारे देश में एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है।
महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है। वैसे तो सरकार द्वारा महिला शिक्षा एवं सशक्तिकरण हेतु बहुत सी योजनाएं एवं प्रयास किये जा रहे है परन्तु उन प्रयासों को सफल बनाने हेतु हमको भी महिलाओं के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाना पड़ेगा। वर्तमान में मुश्किल से मुश्किल क्षेत्र में भी महिलाएं पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर आगे बढ़ रही है या कहे की बहुत से क्षेत्रो में उनसे कहीं आगे बढ़ चुकी है।
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महिला शिक्षा का महत्व | IMPORTANCE OF WOMEN’S EDUCATION IN HINDI
वर्तमान समय में महिला शिक्षा का बहुत अधिक महत्व है। जिस प्रकार जीवन जीने हेतु किसी व्यक्ति को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार किसी देश को अगर विकसित होना है तो सबसे पहले वहाँ की महिलाओं का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है।
अगर महिलाएं शिक्षित होंगी तो वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगी, जिससे वो समाज में आगे बढ़ सकेंगी। महिलाओं के शिक्षित होने से उनके साथ कोई भी किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं कर सकता। महिला अगर शिक्षित होगी तो समाज में व्याप्त लोगों की रूढ़ीवादी विचारधारा समाप्त होगी, साथ ही लोगों की सोच परिवर्तित होगी। सामाजिक स्तर में सुधार के साथ महिलाएं निर्भीक होकर अपना जीवन-यापन कर सकती है।
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* पारिवारिक दृष्टि से महिला शिक्षा का महत्व :
पारिवारिक दृष्टि से अगर हम देखे तो महिला शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहते है किसी भी मनुष्य की सर्वप्रथम गुरु उसकी माँ ही होती है, बचपन से ही माँ अपने बच्चे को सही गलत की सीख प्रदान करती है। अगर महिला शिक्षित है, तो वह अपने बच्चे को हमेशा शिक्षित करने की कोशिश करेंगी उसके चरित्र विकास में मदद करेगी। उसे हर विपत्ति से बचने के उपाय बताएगी। उसे समाज और राष्ट्र में योगदान करने हेतु प्रेरित करेगी।
* आर्थिक दृष्टि से महिला शिक्षा का महत्व :
अगर महिला शिक्षित होगी तो वह आर्थिक दृष्टि से भी परिवार को आगे बढ़ा सकती है। महिला किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के समान मेहनत कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर परिवार की मदद कर सकती है।
* सामाजिक दृष्टि से महिला शिक्षा महत्व :
समाज में महिला शिक्षा का अत्यधिक महत्व है, अगर महिला शिक्षित है तो समाज में उनकी भागीदारी हर जगह बढ़ जाती है। महिला अगर शिक्षित होगी तो समाज में उसका एक सकारात्मक पहलु सामने आएगा और वह समाज के हर निर्णय में भागीदार बन सकती है। एक अच्छे समाज के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर समाज को आगे बढ़ाने का काम कर सकती है।
आधुनिक भारत में महिला शिक्षा की नींव रखने वाली महिलाएं | WOMEN’S EDUCATION IN HINDI
महिला शिक्षा की दिशा में काम करने वाली कुछ विभूतियों के बारे में हम चर्चा करते है, जिन्होंने समाज में महिला शिक्षा के प्रति लोगो के नज़रिये को उस समय बदला जब महिला शिक्षा की बात करना भी पाप होता था। इन्होने समाज की चिंता किये बिना महिला शिक्षा के लिए लड़ाई लड़ी और इनकी वजह से महिला शिक्षा की दिशा में एक नयी क्रांति का उद्भव हुआ।
(1). रास सुंदरी देवी -:
रास सुंदरी देवी जी का जन्म 1810 ई० में बंगाल के पोटजिया नामक गांव में हुआ था। इनका विवाह मात्र 12 वर्ष की उम्र में हो गया था, ये उस समय की बात है जब लड़कियों का पढ़ना-लिखना पति के लिए अशुभ माना जाता था, और कहा जाता था यदि सभ्यकुलीन महिलाएं पढ़ती है, तो वे जल्दी विधवा हो जाती है ऐसे में रास सुंदरी जी की पढ़ने की इच्छा दबी रह गयी। वैष्ण्व संत चैतन्य महाप्रभु के भजन उनको बहुत प्रिय थे। एक दिन उन्हें सपने आया जिसमे वे चैतन्य महाप्रभु जी की जीवनी पढ़ रही है और अगले ही दिन से उनमे अक्षरों को सिखने की इच्छा और प्रबल हो गयी। उनका बड़ा बेटा ताड़ के पत्तों पर अक्षर अभ्यास किया करता था , ऐसे में रास सुंदरी जी ने ताड़ पर लिखे अक्षरों को छिपा दिया। काम से जो भी समय मिलता था तो वे चुपके से महाप्रभु चैतन्य जी की जीवनी की किताब को लेकर ताड़ पर लिखे अक्षरों के माध्यम से मिलाने लगी। अपनी इच्छा शक्ति के बल पर उन्होंने लिखना एवं पढ़ना सीखा। रास सुंदरी जी ने आगे चलकर बंगाली भाषा में आत्मकथा ” अमार जिबोन “ लिखी, जो किसी भी भारतीय महिला द्वारा लिखी प्रथम आत्मकथा थी।
(2). सावित्रीबाई फुले -:
सावित्रीबाई फुले जी का जन्म 3 जनवरी 1831 को सतारा महाराष्ट्र में हुआ था। इनका विवाह भी अल्पआयु में 9 वर्ष की आयु में हो गया था। महाराष्ट्र में महिला शिक्षा को लेकर बहुत ही नकारात्मक माहौल था। परन्तु सावित्रीबाई एवं इनके पति ज्योतिराव ने समाजसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना दिया। 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई ने विभिन्न जातियों की 9 छात्राओं के साथ मिलकर एक विद्यालय की स्थापना की। और एक साल के अंदर-अंदर इन्होने 5 नए विद्यालयों की स्थापना की। परन्तु यह काम सरल नहीं था क्योकि बहुत से लोगों की नज़रों में सावित्रीबाई महिला उद्धारक न होकर महिलाओं को गलत दिशा में भटका रही थी। और ऐसे में जब भी वो विद्यालय को जाती थी तो कही दफा विरोधी लोग उनको पत्थर मारते थे, परन्तु सावित्रीबाई का हौसला कभी कम नहीं हुआ। और उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर लड़कियों के लिए और 18 स्कूल खोले। इस प्रकार की सामाजिक चेतना आज के लोगो के लिए भी एक मिसाल है, सावित्रीबाई फुले आज भी महिला शिक्षा की बात करने वालो के लिए एक आदर्श है।
(3). पंडित रमाबाई सरस्वती -:
23 अप्रैल 1858 में मराठी ब्राह्मण परिवार में जन्मी पंडित रमाबाई भी अपने आप में महिला शिक्षा, मुक्ति व सुुधार आंदोलन की बात करने वालो के लिए किसी आदर्श से कम नहीं है। वे स्वयं कभी स्कूल नहीं जा सकी परन्तु उनके पिता ने उनको संस्कृत शास्त्रों एवं साहित्य की शिक्षा प्रदान की। संस्कृत भाषा और साहित्य के ज्ञान के चलते उनको पंडिता कहा जाने लगा। उन्होंने 1898 में पुणे के पास केड़गांव एक मिशन स्थापित किया, जहाँ विधवा महिलाओं को पढ़ने-लिखने और स्वतंत्र होने की शिक्षा दी जाती थी। महिलाओं को लकड़ी से चीज़ें बनाना, छापाखाना चलाना व अन्य जरुरी व्यवसाय के कार्यो में भी प्रशिक्षण दिया जाता था। रमाबाई महिलाओं के लिए स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता, सम्मान का एक नाम बन गयी एवं महाराष्ट्र में उनका यह मिशन आज भी सक्रीय है।
वर्तमान में भी महिलाओं को उतना प्रोत्साहन नहीं दिया जाता जिससे उनको वो सम्मान नहीं मिल पता जिसकी वो हकदार है ।हमें हमारे समाज में महिलाओं के प्रति व्याप्त कुरीतियों को समाप्त कर महिला सशक्तिकरण एवं महिला शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलानी होगी।
अगर समाज में महिलाओं के प्रति इस जागरूकता का प्रचार अच्छे से हो गया तो लोगों की मानसिकता में सुधार अवश्य आएगा और महिलाएं अपना जीवन शोषण मुक्त और सशक्त होकर जी सकेंगी।
कोई भी देश सफलता के शिखर पर तब तक नहीं पहुँच सकता जब तक महिलाएं पुरुषो के कंधे से कन्धा मिलाकर आगे न बढ़े। अतः महिला शिक्षा एवं सशक्तिकरण हेतु हमे महिलाओं के प्रति अपने नज़रिये को बदलना होगा और उन्हें प्रोत्साहित कर राष्ट्र निर्माण में अपना सहयोग देना होगा, यह हमारा कर्तव्य है।
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