बागनाथ मंदिर बागेश्वर | BAGNATH TEMPLE BAGESHWAR HISTORY IN HINDI
BAGNATH TEMPLE
उत्तराखंड जिसे देवों की भूमि देवभूमि कहा जाता है, जिसके कण-कण में देवता निवास करते है। यहाँ की पावन भूमि और प्रकृति प्रेम यहाँ की विशेषता है। देवों के देव देवादिदेव महादेव की अलौकिक छवि उत्तराखंड के हर जिले में आशीर्वाद के रूप में विद्यमान है। आज का हमारा लेख उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में स्थित ऐसे ही एक पावन धाम भगवान शिव के पवित्र धाम बाबा बाघनाथ धाम/ मंदिर के बारे में है। इस लेख के माध्यम से प्रसिद्ध बाघनाथ मंदिर जिसे व्याघ्रेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, के बारे में बताया गया है। BAGNATH TEMPLE
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देवभूमि उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित भव्य एवं पौराणिक मंदिर है, ” बागनाथ “ जो कि भगवान शिव को समर्पित है। BAGNATH TEMPLE बागनाथ मंदिर बागेश्वर जिले का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। बागनाथ मंदिर समूह के पास ही सरयू और गोमती नदी का संगम होता है।
शैलराज हिमालय की गोद में गोमती सरयू नदी के संगम पर स्थित बागेश्वर का बागनाथ मंदिर धर्म के साथ पुरातात्विक दृस्टि से भी महत्वपूर्ण है। बागेश्वर नगर को मार्केंडेय ऋषि की तपोभूमि के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव व्याघ्र (बाघ) के रूप में यहां निवास करने से इसे व्याघ्रेश्वर नाम से जाना गया। जो बाद में बागेश्वर के नाम से जाना गया। वर्षों पूर्व से ही भगवान शिव के व्याघ्र (बाघ) रूप का प्रतीक, एक देवालय यहां पर स्थापित था, जहां पर बाद में भव्य मंदिर बना, जो ” बागनाथ ” के नाम से जाना गया। BAGNATH TEMPLE
बागनाथ मंदिर का इतिहास | BAGESHWAR TEMPLE HISTORY IN HINDI | BAGNATH TEMPLE HISTORY IN HINDI
नागर शैली से निर्मित बागनाथ मंदिर समूह को चंद्र वंशी राजा “लक्ष्मी चंद” ने सन 1602 में बनाया था, बाद में इसकी चारदीवारी में आकाश लिंग युक्त लघु देवकुलियाएं बनाई गई। मंदिर के नजदीक बाणेश्वर मंदिर वास्तु कला की दृष्टि से बागनाथ मंदिर के समकालीन लगता है। मंदिर के समीप ही भैरवनाथ का मंदिर बना है। बाबा काल भैरव मंदिर में द्वारपाल रूप में निवास करते हैं।
बागनाथ मंदिर में सातवीं से सोलहवीं सदी तक की अनेक महत्वपूर्ण प्रतिमाएं हैं। इनमें उमा-महेश्वर, पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, एक मुख एवं चतुमुर्खी शिव लिंग, त्रिमुखी शिव, गणेश, विष्णु, सूर्य तथा सप्त मातृका और दशावतार पट आदि की प्रतिमांए हैं। जो इस बात की प्रमाणिकता सिद्ध करती हैं, कि सातवीं सदी से कत्यूर काल में इस स्थान पर अत्यंत भव्य मंदिर रहा होगा।
शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार इस नगर को शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छा के अनुसार बसाया था। चंडीश द्वारा बसाए गया नगर शिव को भा गया और उन्होंने नगर को उत्तर की काशी का नाम दिया। पुराण के अनुसार अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को ला रहे थे। यहां ब्रह्मकपाली के समीप ऋषि मार्कण्डेय तपस्या में लीन थे।
वशिष्ठ जी को उनकी तपस्या को भंग होने का खतरा सताने लगा, देखते देखते वहां जल भराव होने लगा, सरयू आगे नहीं बढ़ सकी। उन्होंने शिवजी की आराधना की। शिवजी ने व्याघ्र (बाघ) का रूप धारण कर माता पार्वती को गाय बना दिया और ब्रह्मकपाली के समीप गाय पर झपटने का प्रयास किया।
गाय के रंभाने (भयावह आवाज़ करने) से मार्कण्डेय मुनि की आंखें खुल गई। व्याघ्र से गाय को मुक्त करने के लिए जैसे ही मार्कण्डेय मुनि दौड़े तो व्याघ्र ने शिव और गाय ने पार्वती का रूप धरकर मार्कण्डेय को दर्शन देकर इच्छित वर दिया और मुनि वशिष्ठ को आशीर्वाद दिया। इसके बाद सरयू आगे बढ़ सकी। बागनाथ मंदिर में मुख्य रूप से बेलपत्र से पूजा होती है। कुमकुम, चंदन, और बताशे चढ़ाने की भी परंपरा है। खीर और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
बागनाथ मंदिर 29.8370 डिग्री उत्तर और 79 .7725 पूर्व में स्थित है। यह सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित है। समुद्र तल से ऊंचाई 1004 मीटर है।
बागनाथ मंदिर उत्तरायणी मेला | UTTARAYANI MELA BAGESHWAR | BAGNATH TEMPLE
UTTARAYANI MELA IN BAGESHWAR
भगवान शिव के धाम बाघनाथ मंदिर में मकर संक्रांति तथा शिवरात्रि पर भव्य मेला लगता है। मकर संक्रांति पर भव्य उत्तरायणी मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमे बहुत से पर्यटक यहाँ आते है। साथ ही उत्तरायणी मेले में सामूहिक यज्ञोपवीत (जनेऊ) संस्कार का भी आयोजन सरयू नदी के तट पर किया जाता है जो अत्यंत फलदायी एवं शुभ होता है।
उत्तरायणी मेले का महत्व | IMPORTANCE OF UTTRAYANI MELA IN HINDI
सरयू और गोमती नदी के संगम पर स्थित बागनाथ की नगरी में हर साल मकर संक्रांति की पूर्व संध्या से उत्तरायणी मेले का शुभारंभ होता है।
भारतीय इतिहास के अनुसार सरयू और गोमती नदी के संगम पर 14 जनवरी 1921 को भारत माता के सपूतों ने कुली बेगार जैसे अंग्रेजी हुकूमत के काले कानूनों के रजिस्टरों को पवित्र सरयू की अविरल धारा में बहा दिए थे। इस निर्णय से ब्रिटिश सरकार हिल गई थी। सरयू बगड़ (सरयू और गोमती नदी के संगम) में लिए गए इस निर्णय से कुर्मांचल में आजादी की ज्वाला तेज हो गई थी।
28 जून 1929 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बागेश्वर की यात्रा की। ऐतिहासिक नुमाइशखेत मैदान में सभा कर आंदोलन की सफलता पर लोगों के प्रति आभार जताया था।
उत्तरायणी मेले का व्यापारिक महत्व भी कम नहीं है। यहां उत्तराखंड, यूपी, दिल्ली और हरियाणा से विभिन्न उत्पादों को लेकर व्यापारी हर साल आते हैं। मेला सांस्कृतिक दृष्टि से भी काफी महत्व रखता है। लोग इस त्योहार को घुघतिया त्यार (त्यौहार) भी कहते हैं।
कैसे पहुंचे बागेश्वर बागनाथ मंदिर !
बाघनाथ धाम मंदिर उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में स्थित है। बागेश्वर जिला अन्य शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। बस, टैक्सियां एवं अन्य यातायात के स्थानीय साधन उपलब्ध है।
निकटतम रेलवे स्टेशन – काठगोदाम (175 किमी )
निकटतम हवाई अड्डा – पंतनगर (200 किमी )
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