डॉ० भीमराव आंबेडकर | Dr. BHIMRAO AMBEDKAR
BHIMRAO AMBEDKAR
आधुनिक भारत के इतिहास को जिन लोगों ने सबसे अधिक प्रभावित किया उनमें एक नाम डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर का भी है। बाबासाहेब के नाम से मशहूर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने देश में दबे कुचले वर्गों को बराबरी दिलाने, देश में समता मूलक समाज की स्थापना करने और कानूनी तौर पर लोगों को सक्षम बनाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे। अंबेडकर ने दलितों को अहसास दिलाया कि जिस जमीन पर वह रहते हैं उसमें उनका भी हक है। जिस आसमान के नीचे वह सोते हैं, उसमें उनकी भी हिस्सेदारी है। यही अंबेडकर का सबसे बड़ा कारनामा है।
आज के इस लेख के माध्यम से डॉ० भीमराव आंबेडकर – जीवनी, BIOGRAPHY OF Dr. BHIMRAO AMBEDKAR IN HINDI, BHIMRAO AMBEDKAR KI JEEWANI, BHIMRAO AMBEDKAR KA YOGDAN, CONTRIBUTION OF BHIMRAO AMBEDKAR आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।
डॉ० भीमराव आंबेडकर – जीवनी | BIOGRAPHY OF Dr. BHIMRAO AMBEDKAR
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश में जन्मे थे। वह इंदौर जिले के एक छोटे से कस्बे महू में रहने वाले रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की चौदहवीं और सबसे छोटी संतान थे। वे महार जाति के एक अत्यन्त गरीब परिवार में जन्मे थे। महार जाति महाराष्ट्र में अछूत समझी जाती है। जन्म के समय उनका नाम भीम सकपाल था। जिस समय भीमराव अम्बेडकर का जन्म हुआ था, उस समय निम्न जाति के लोगों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें अपने विद्यार्थी जीवन जीवन के प्रारम्भिक काल में निम्न जाति में उत्पन्न होने के कारण अनेक बार अपमान सहना पड़ा जिसने उनके भविष्य की रूपरेखा तैयार कर दी तथा उन्होंने अपना जीवन ‘दलित वर्ग के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। बचपन बेहद परेशानियों में गुजरा, सिर पर गरीबी और एक अछूत जाति का बोझ सर पर उठाकर अंबेडकर स्कूल पहुंचे। अपने भाइयों और बहनों में केवल अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और उन्होंने बड़े स्कूल में दाखिला पाया। अंबेडकर मुंबई के गवर्नमेंट हाई स्कूल अल्फेनस्टोन ग्रोव के पहले दलित छात्र थे।
बाबासाहेब ने 1907 में मैट्रिक के परीक्षा पास की। जिसके बाद वह बम्बई विश्वविद्यालय पहुंचे और भारत के किसी भी कॉलेज में दाखिला पाने वाले वह पहले व्यक्ति थे, जिस पर अछूत होने का तमगा लगा हुआ था। इस दौरान उनकी जिंदगी में दुत्कार, जातीय अपमान और जिंदा रहने की जद्दोजहद के सिवा कुछ नहीं था।
पढ़ाई में तेज होने के बावजूद उन्हें स्कूल में कभी दूसरे बच्चों के बराबर नहीं समझा गया। दूसरा अछूत बच्चों की तरह क्लास में अलग बैठाया जाता था। स्कूल में पानी पीना तो दूर पानी का बर्तन छूने तक की इजाजत नहीं थी। ना कोई टीचर उन पर ध्यान देता और ना ही कोई उनकी मदद करता।
उनकी प्रतिभा को देखते हुए बड़ौदा के शासक सयाजीराव गायकवाड़ ने अमेरिका में पढ़ने के लिए उन्हें ₹25 महीना का वजीफा दिया। 1912 में उन्होंने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में डिग्री प्राप्त की। 1916 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इसके बाद 1923 में डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्री से नवाजे गए। इस समय तक अंबेडकर काफी मशहूर हो गए थे। 1926 में उन्हें मुंबई विधान परिषद के लिए मनोनीत किया गया। अंबेडकर सिर्फ राजनीति तक सीमित होकर नहीं रहना चाहते थे। अंबेडकर समाज में बराबरी लाने के संघर्ष में शामिल हो गए। 1927 में डॉक्टर अंबेडकर ने छुआछूत के खिलाफ व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिए खुलवाने और अछूतों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किए। इस दौरान उन्होंने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के बीच जाति व्यवस्था के उन्मूलन को लेकर उदासीनता की कड़ी निंदा की।
8 अगस्त 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन में हिस्सा लिया। यहां अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक सोच दुनिया के सामने रखी और कहां कि शोषित वर्ग की सुरक्षा सरकार और कांग्रेस से आजादी पाने में है। उन्होंने कहा :
हमें अपना रास्ता खुद बनाना होगा। राजनीतिक शक्ति शोषितों की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती। उनका उद्धार समाज में उनका उचित स्थान पाने में निहित है।
24 सितंबर 1932 को उन्होंने गांधी जी के साथ पूना समझौता किया। इसके तहत विधान मंडलों में दलितों के लिए सुरक्षित स्थान बढ़ा दिए गए।
देश आजाद हुआ तो अंबेडकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में देश के पहले कानून मंत्री बने। 29 अगस्त 1947 को उन्हें स्वतंत्र भारत का नया संविधान लिखने के लिए संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। अंबेडकर आजीवन सांप्रदायिक राजनीति के घोर आलोचक बने रहे। 1956 में उन्होंने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया। 1951 में उन्होंने संसद में हिंदू कोड बिल पेश किया। इस बिल का विरोध होने पर उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। 6 दिसंबर 1956 को उन्होंने इस दुनिया में आखिरी सांस ली।
उनके निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा :
डॉक्टर अंबेडकर को भारतीय हिंदू समाज के तमाम अत्याचारी स्वरूपों के खिलाफ एक विद्रोह के प्रतीक के रूप में याद किया जाएगा।
अंबेडकर ज्ञान का सागर थे। उन्होंने राजनीति, अर्थशास्त्र, मानव विज्ञान, धर्म, समाजशास्त्र और कानून पर कई किताबें लिखी। उन्होंने दलित समाज से कहा : शिक्षित रहो, संगठित रहो, संघर्ष करो।
1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
2012 में हुए एक टीवी सर्वे में उन्हें महानतम भारतीय चुना गया। अंबेडकर अब हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके आदर्श और शिक्षाएं देश की आने वाली पीढ़ियों को लाभान्वित करते रहेंगे।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भारत में सामाजिक एकता, समरसता और धर्मनिरपेक्षता के बड़े पैरोकार माने जाते है। जातीय व्यवस्था की बुराइयां झेलकर बढ़े हुए अंबेडकर आजीवन लोगों को इन सामाजिक बुराइयों से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करते रहे। डॉक्टर अंबेडकर ने हिंदू धर्म में ब्राह्मणवाद का विरोध किया। साथ ही दूसरे धर्मों की कट्टरता को देश के लिए खतरा बताया। वह देश में दलित और दूसरे अल्पसंख्यक समूहों की परेशानियों में समानता है देखते थे और अक्सर साझा संघर्ष की बात भी कहते थे।
भारत में जातीय व्यवस्था की बुराइयों पर डॉक्टर अंबेडकर का मानना था कि बेकसूरों पर बेरहमी और अत्याचारों को रोकना ही दलितों की मूल समस्या है। डॉक्टर अंबेडकर ने जातीय व्यवस्था के विरोध में हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया।
उन्होंने कहा :
यह परिवर्तन मैं किसी भौतिक लाभ के लिए नहीं ले नहीं कर रहा हूं। मैं अगर अछूत भी बना रहूं, तो भी ऐसी कोई उपलब्धि नहीं है जो मैं प्राप्त नहीं कर सकता। मैं केवल अपने आध्यात्मिक नजरिए के कारण धर्म परिवर्तन कर रहा हूं।
सामाजिक बराबरी की पैरवी करते हुए बाबासाहेब ने कहा :
मूल रूप से पशु और मनुष्य में यही विशेष अंतर है कि पशु अपने विकास की बात नहीं सोच सकता, मनुष्य सोच सकता है और अपना विकास कर सकता है।
अंबेडकर सामाजिक बराबरी के साथ-साथ राष्ट्रीयता, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों की पैरवी करते रहे। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अंध राष्ट्रवाद, बहुसंख्यकवाद और धार्मिक कट्टरता का विरोध भी किया। अंबेडकर ने कहा कि धर्म नहीं बल्कि मानवीयता और सामाजिक बराबरी राष्ट्र की बुनियाद है।
मानव के अस्तित्व पर भी बाबासाहेब ने खुलकर अपने विचार रखें। उनका मानना था कि पैसा और यश कमाना ही मनुष्य के अस्तित्व का अंतिम उद्देश्य नहीं होना चाहिए। वह कहते थे जैसे हम अपने सोच के दायरे को बढ़ाते है वैसे ही अपने सपने को प्राप्त करने की दिशा में भी आगे बढ़ते हैं। उनका मानना था कि हर व्यक्ति का जन्म किसी ना किसी खास उद्देश्य से हुआ है। जो हम सबको एक दूसरे से विशेष बनाता है। इसलिए हर व्यक्ति को अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ कोशिश करनी चाहिए। बाबा साहब का कहना था कि जीवन लंबा नहीं महान होना चाहिए। जिस तरह विचार नहीं मर सकते उसी तरह आत्मा भी नश्वर है। उन्होंने कहा कि कोई भी इंसान अमर नहीं है, लेकिन हम अपने पीछे अपने चिंतन, विचार और दर्शन छोड़ सकते है ताकि हमारे विचार आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहें।
1947 में जब देश आजाद हुआ, तो सबसे बड़ी चिंता यह थी कि देश किस तरह आगे बढ़ेगा। इस बात पर तो सहमति थी कि देश का ढांचा लोकतांत्रिक होगा, लेकिन यह लोकतंत्र कैसा होगा यह तय करना बहुत मुश्किल था।
जब भारत अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था पूरा देश जश्न में डूबा हुआ था। लेकिन नीति निर्माताओं के लिए यह बेहद भागदौड़ वाले दिन थे। संविधान तैयार करना आसान काम नहीं था, लिहाजा इसकी जिम्मेदारी एक ऐसे व्यक्ति को दी गई जो कानून विद, अर्थशास्त्री के साथ-साथ कद्दावर नेता और समाज सुधारक थे, और वह व्यक्ति थे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर।
29 अगस्त 1947 को उन्हें संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। 2 साल की अथक मेहनत के पश्चात आखिरकार संविधान तैयार हुआ और 29 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने इसे मंजूरी दी। अंबेडकर ने इस दौरान आधुनिक लोकतंत्र के मूल्यों को भारतीय लोकतंत्र में लागू करने की कोशिश की।
उन्होंने पश्चिमी लोकतांत्रिक मॉडल पर ज्यादा भरोसा जताया। समानता और विविधता उनके राजनीतिक नजरिए का मूल है। अंबेडकर ने जनता के देश की सारी जनता को नागरिक के बतौर बराबर अधिकार देने की पैरोकारी की और देश में पहली बार लोगों के भीतर यह अहसास जगा दिया कि वह राज्य के नजर में एक दूसरे के बराबर है। अंबेडकर ने भारत को जो नक्शा पेश किया वह आधुनिक लोकतंत्र की बुनियाद पर खड़ा भारत था।
कानून मंत्री के तौर पर भी उन्होंने समानता की पैरोकारी की और समानता के प्रति उनका नजरिया सिर्फ जातियों को लेकर नहीं था और ना ही धर्म को लेकर। बल्कि वह लैंगिक समानता के भी बड़े पैरोकार थे। हिंदू कोड बिल के जरिए उन्होंने महिलाओं को संपत्ति में अधिकार देने और तलाक का अधिकार देने की वकालत की। और आखिरकार कई मुद्दों पर असहमति होते देख उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।
अंबेडकर का योगदान | Contribution of Dr. BHIMRAO AMBEDKAR
भीमराव अंबेडकर की शख्सियत इतनी विशाल थी कि उनके कई बड़े कामों की चर्चा नहीं हो पाती। भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। उनकी किताब ” द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी “ पर उन दिनों खूब चर्चा हुई और आखिरकार 1935 में रिजर्व बैंक की स्थापना हुई। BHIMRAO AMBEDKAR
यही नहीं अंबेडकर बड़े बाँधो की तकनीक के भी जानकार थे और आजाद भारत में उन्होंने दामोदर, हीराकुंड और सोन नदियों पर बने बांध परियोजना पर अहम भूमिका निभाई। अंबेडकर ने मजदूरों के काम करने की अवधि को कम करने के लिए पूरा जोर लगाया। साथ में भारतीय मजदूर सम्मेलन के दौरान अंबेडकर की कोशिश के बाद ही मजदूरों के काम की अवधि 14 घंटों से कम होकर 8 घंटे हुई।
यही नहीं वह रोजगार और आधुनिक राष्ट्र के बीच गहरा संबंध देखते थे और लगातार मजदूर अधिकार से लेकर बेरोजगारी पर सवाल उठाते रहते थे। संविधान को जब अंगीकृत किया गया तो अंबेडकर ने आने वाले दिनों को लेकर कुछ चिंताएं भी जाहिर करी थी।
भीमराव अंबेडकर लोकतंत्र की मजबूती के लिए दो चीजों को बेहद जरूरी मानते थे; पूंजीवाद और जातिवाद का खात्मा। उन्होंने बाद के दिनों में पूंजीवाद पर भी चोट की। जानकार मानते हैं कि अंबेडकर के सपनों का भारत और अंबेडकर को जिस तरह आजकल पेश किया जा रहा है वह कई मायनों में आधा अधूरा है।
उन्होंने हाशिए पर छूट गए लोगों के लिए सत्ता में भागीदारी और नीति निर्माण में अनुपातिक जगह की वकालत की। अंबेडकर आखिरी समय तक किसी भी प्रकार की इंसानी भेदभाव के खिलाफ लड़ते रहे और राजनीतिक समानता के अलावा सामाजिक समानता को हासिल करने के लिए वह लड़ते रहे।
अछूतों के सुधार पर बल
डॉ. अम्बेडकर का विचार था कि अछूतों का स्वयं का दृष्टिकोण भी अछूतों की वर्तमान स्थिति के लिए उत्तरदायी था। अत: उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अछूतों को अपनी बुरी आदतों को छोड़ देना चाहिए
और हीनता की भावना का त्याग करके आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न करनी चाहिए तथा आत्मसम्मान का जीवन व्यतीत करना चाहिए।
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अछूतो में स्वतन्त्रता, समानता और स्वाभिमान से जीवन व्यतीत करने की इच्छा होनी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि अछूतों को संगठित होना चाहिए तथा शिक्षा प्राप्त करके अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए। उन्होंने अछूतों को सरकारी नौकरी में जाने तथा खेती करने का भी सुझाव दिया।
वस्तुतः उन्होंने अछूतों तथा दलितों के उत्थान के लिए शिक्षा तथा स्त्रियों की दयनीय स्थिति के सुधार पर अधिक बल दिया। महद की सभा में उन्होंने स्त्रियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि “कभी मत सोचो कि तुम अछूत हो। साफ-सुथरे रहो और जिस तरह के कपड़े सवर्ण स्त्रियाँ पहनती हैं, तुम भी पहनो। यह देखो कि वे साफ हैं। यदि तुम्हारे पति और लड़के शराब पीते हैं, तो खाना मत दो तथा अपने बच्चों को स्कूल भेजो।”
दलितों के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व
डॉ. अम्बेडकर दलितों तथा अछूतों के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व के समर्थक थे। उनका विचार था कि मुसलमानों की भाँति अछूतों को भी पृथक् प्रतिनिधित्व दिया जाए। उन्होंने प्रथम तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में अछूतों के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व पर ही सबसे अधिक बल दिया। उन्होंने कहा था कि
” अब हमारा विश्वास न गाँधी पर है और न कांग्रेस पर, यदि हमारा विश्वास किसी बात पर है, तो वह है अपना उद्धार करने पर। “
डॉ. अम्बेडकर का मत था कि सभी सार्वजनिक स्थान मन्दिर, कुएँ और तालाब आदि सभी मनुष्यों के लिए सुलभ होने चाहिए और अछूतों को इससे वंचित करना न्यायोचित नहीं है। वर्ष 1930 में उन्होंने गुजरात में
कालाराम मन्दिर में प्रवेश के लिए एक प्रदर्शन का नेतृत्व किया। उन्होंने महार वतन कानून का विरोध किया, जो महाराष्ट्र के महारों के लिए बंधुआ मजदूरी और दासता की व्यवस्था करता था। उन्होंने ‘समता सैनिक दल’ की भी स्थापना की। BHIMRAO AMBEDKAR
अछूतों के उद्धार के लिए कानूनी उपाय ‘मनुस्मृति’ तथा अन्य स्मृतियाँ उस समय कानून थीं। उनका मत था कि कानून द्वारा उनमें परिवर्तन करके सामाजिक समानता स्थापित की जानी चाहिए। अतः उन्होंने कानून द्वारा मनुस्मृति को नया रूप दिया तथा ऊँच-नीच के भेदभावपूर्ण कानूनों को रद्द कर दिया। संविधान के
अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक समानता की भी व्यवस्था की गई है और अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता को कानून की दृष्टि में अपराध घोषित करने की व्यवस्था की गई है। भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित
जातियों तथा जनजातियों को आरक्षण दिया गया है।
डॉ. अम्बेडकर और धर्म परिवर्तन
डॉ. अम्बेडकर चाहते थे कि अछूत सम्मानपूर्ण ढंग से जीवन बिताएँ। हिन्दू धर्म में असमानता तथा ऊँच-नीच की भावना व्याप्त थी अत: सम्मानपूर्ण और समानता के लिए उन्होंने अछूतों के लिए धर्म परिवर्तन का निश्चय किया। बौद्ध धर्म में उन्होंने समानता का सन्देश पाया। अत: उन्होंने अपने वर्ग के लिए बौद्ध
धर्म स्वीकार करने का संकल्प किया। वर्ष 1956 में उन्होंने 6 लाख व्यक्तियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। इस धर्म परिवर्तन का उद्देश्य अछूत वर्ग को अपनी अलग पहचान बनाकर सम्पूर्ण स्थिति प्रदान करना था। डॉ. वी पी वर्मा के अनुसार, ” उन्होंने बौद्ध धर्म में मार्क्सवाद का नैतिक तथा सहिष्णु
विकल्प खोजा और उनके अनुयायियों ने उन्हें गर्व के साथ ‘बीसवीं सदी का बोधिसत्व’ कहा। ”
श्रमिकों के हितों का समर्थन उन्होंने श्रमिकों के हितों को भी महत्त्वपूर्ण समझा और उन्हें मिल मालिकों के
शोषण से बचाने का प्रयास किया। उन्होंने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्रमिकों का एक स्वतन्त्र दल बनाया। डॉ. अम्बेडकर के उपरोक्त विचारों से स्पष्ट होता है कि वे अछूत तथा दलितों के लिए समर्पित सामाजिक और राजनीतिक विचारक थे। उनका उद्देश्य अछूतों, दलितों तथा श्रमिकों का उत्थान करना था तथा वे सामाजिक भेद-भाव मिटाकर समानता स्थापित करना चाहते थे। संविधान में धर्मनिरपेक्ष राज्य तथा अस्पृश्यता अपराध अधिनियम उन्हीं की देन है। वे प्रबल देशभक्त तथा राष्ट्र की एकता के प्रबल समर्थक थे। वे प्रारम्भ से ही राजनीतिक स्वतन्त्रता के भी समर्थक रहे हैं, परन्तु उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य अछूतों के लिए सम्मानपूर्ण जीवन की परिस्थितियाँ उत्पन्न करना था तथा समाज को समानता के आधार पर भेद-भाव तथा शोषण से बचाना था। वस्तुत: वे राजनीतिक स्वतन्त्रता की अपेक्षा पहले सामाजिक सुधार चाहते थे। इसलिए कहा जाता है कि ” डॉ. अम्बेडकर एक समाज सुधारक थे, न कि एक राजनीतिज्ञ। ”
डॉ. वी पी वर्मा के अनुसार, ” इसमें सन्देह नहीं कि वे देशभक्त थे और राष्ट्रीय एकीकरण के विरोधी नहीं थे। कोई भी उनके इस विचार का विरोध नहीं कर सकता था कि अछूतों के लिए हिन्दुत्व द्वारा उन पर लादी गई घोर अपमानजनक स्थितियों का विरोध और उनसे मुक्ति ब्रिटिश शासन से देश की राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने की तुलना में अधिक आवश्यक कार्य था। उनके विचारों और कार्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि वे अछूतों तथा दलितों के मसीहा थे। BHIMRAO AMBEDKAR
डॉ. अम्बेडकर की प्रमुख कृतियाँ | Books of Dr. BHIMRAO AMBEDKAR
द प्रोब्लेम ऑफ द रूपी : इट्स ओरिजीन एण्ड इट्स सॉल्यूशन, 1923
एनहिलेशन ऑफ द कास्ट, 1936
फेडरेशन वर्सेस फ्रीडम, 1939
थॉट्स ऑन पाकिस्तान, 1940
मि. गाँधी एण्ड इमैनिसिपेशन ऑफ अनटचेबल्स, 1945
व्हाट कांग्रेस एण्ड गाँधी हैव डन टू द अनटचेबल्स, 1945
स्टेट एण्ड माइनोरिटीज, 1947
द अनटचेबल्स : हू आर दे?,1948
रानाडे, गाँधी और जिन्ना, 1948
बुद्धा और कार्ल मार्क्स, 1956
द बुद्धा एण्ड हिज धर्मा, 1957
द बुद्धा एण्ड द फ्यूचर ऑफ रिलीजन, 1980
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