वीर सावरकर : जीवन परिचय । विनायक दामोदर सावरकर जी । BIOGRAPHY OF VEER SAVARKAR IN HINDI । VINAYAK DAMODAR SAVARKAR
BIOGRAPHY OF VEER SAVARKAR IN HINDI
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कई ऐसे महान व्यक्तित्व हुए, जिन्होंने अपने विचारों और देशभक्ति से स्वतंत्रता की एक नई अलख जगाई। ऐसे ही एक महान विभूति थे : ” विनायक दामोदर सावरकर जी (वीर सावरकर) “, जिन्होंने अपने विचार, साहित्य और लेखन से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति की एक नई बिगुल फूंक दी।
सावरकर के क्रांतिकारी विचारों से डरकर अंग्रेजी हुकूमत ने ना केवल उन पर बेइंतहा जुल्म ढाए बल्कि उन्हें कालापानी की सजा सुनाई, लेकिन इन सबसे बिना डरे सावरकर देश की आजादी के लिए भारतवासियों को एक करने में जुटे रहे। अपनी लेखनी और विचारों से उन्होंने देश को एक धागे में पिरोने का काम किया।
विनायक दामोदर सावरकर जी (वीर सावरकर) एक क्रांतिकारी, चिंतक, लेखक, कवि, वक्ता, स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर का खोजपूर्ण इतिहास लिख कर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।
आधुनिक भारत के राजनीतिक व्यक्तित्व में जो नाम लगातार चर्चा में रहता है, विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर) उनमें से एक हैं। स्वतंत्रता आंदोलन, धर्म सुधार, सामाजिक विषमता और दर्शन के क्षेत्र में उन्होंने जो काम किया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद के अलावा मानववाद और सर्वभौमिकता, व्यवहारिकता और यथार्थवाद जैसे बिंदु शामिल है।
वीर सावरकर : जीवन परिचय । BIOGRAPHY OF VEER SAVARKAR IN HINDI
BIOGRAPHY OF VEER SAVARKAR IN HINDI
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 ई० को महाराष्ट्र के नासिक जिले में हुआ था। इनके पिता दामोदर पंत थे। सावरकर महज़ 9 साल के थे, जब महामारी की वजह से उनकी माता राधाबाई का निधन हो गया। उसके सात साल बाद उनके पिता दामोदर सावरकर भी स्वर्ग सिधार गए। उनके बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन पोषण का जिम्मा संभाला। सन 1901 ई० में उन्होंने नासिक के शिवाजी हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। 1901 में उनकी शादी है यमुनाबाई के साथ हुई। इस दौरान तमाम परेशानियों के बावजूद उन्होंने आगे पढ़ाई जारी रखी। पुणे के मशहूर फरडयुसन कॉलेज से स्नातक करने के बाद वह वकालत की पढ़ाई करने लंदन चले गए। पढ़ाई के दौरान ही उनका झुकाव राजनैतिक गतिविधियों की तरफ हुआ।
1904 में सावरकर ने ” अभिनव भारत “ नाम से एक संगठन बनाया। 19०५ में बंगाल विभाजन के विरोध में हुए आंदोलन का हिस्सा रहे। इस दौरान कई पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख भी छपे। रूसी क्रांति का उनके जीवन पर गहरा असर हुआ।
लंदन में उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इंडिया हाउस की देखरेख करते थे। 1907 में इंडिया हाउस में आयोजित 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयंती के कार्यक्रम में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।
1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा ने विलियम हट कर्जन वाइली को गोली मार दी, इसके बाद सावरकर ने लंदन टाइम्स में एक लेख लिखा था। 13 मई 1910 को उन्हें गिरफ्तार किया गया। 8 जुलाई 1990 को सावरकर ब्रिटिश गिरफ्त से भाग निकले। 24 दिसंबर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। 7 अप्रैल 1911 को उन्हें काला पानी की सजा पर पोर्ट ब्लेयर की सेल्युलर जेल भेज दिया गया। सावरकर 4 जुलाई 1911 से 21 मई 1921 तक पोर्ट ब्लेयर जेल में रहे। इसके बाद अंग्रेज शासकों ने उनकी याचिका पर विचार करते हुए उन्हें रिहा कर दिया।
1959 में पुणे विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। नवंबर 1963 में उनकी धर्मपत्नी की मृत्यु हो गई। सितंबर 1965 में सावरकर को बीमारी ने घेर लिया। इसके बाद उन्होंने मृत्युपर्यंत उपवास रखने का फैसला लिया। सावरकर ने 26 फरवरी 1966 को सुबह 10:00 बजे अपना शरीर त्याग दिया।
BIOGRAPHY OF VEER SAVARKAR IN HINDI
विनायक दामोदर सावरकर ने राष्ट्रवादी राजनीतिक विचारधारा विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सावरकर ना केवल स्वाधीनता संग्राम के सेनानी थे, बल्कि महान क्रांतिकारी चिंतक, लेखक, कवि, वक्ता, और दूरदर्शी राजनेता भी थे। भारत के स्वाभिमान स्वतंत्र आंदोलन में विनायक दामोदर सावरकर ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और भारतीय राष्ट्रवाद की अपनी नई परिभाषा भी साबित की। भारतीय स्वतंत्र आंदोलन में भूमिका निभाने वाले विनायक दामोदर सावरकर ना केवल क्रांतिकारी थे, बल्कि प्रखर राष्ट्रवाद के समर्थक भी थे। भारतीय राष्ट्रवाद को देखने का सावरकर का अपना नजरिया था। विनायक दामोदर सावरकर के मुताबिक सिर्फ जाति, संबंध या पहचान ही राष्ट्रवाद को परिभाषित करने के लिए काफी नहीं है।
सावरकर का मानना था कि किसी भी राष्ट्र या राष्ट्रवाद की पहचान के मुख्य रूप से तीन आधार होते हैं : जिनमें पहला भौगोलिक एकता, दूसरा जातीय गुण और तीसरा साझी संस्कृति।
सावरकर के अनुसार साझी संस्कृति, ऐसी हो जिसमें भाषा के जरिए सबको जोड़ कर रखा जाए। इसके लिए सावरकर ने संस्कृत और हिंदी को अपनाने की बात कही, हालांकि उनकी साझी संस्कृति के एक भाषा अपनाने की बात से कई लोग असहमत भी थे।
बचपन से ही राष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थक विनायक दामोदर सावरकर ने 1904 में ” अभिनव भारत “ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। जिसका मकसद अंग्रेजों से भारत को आजाद कराना था। जब देश आजाद हो गया तो, 1952 में उन्होंने अभिनव भारत बंद कर दिया।
राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित सावरकर ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी का नारा दिया और पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जला दी। अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा के चलते सावरकर जहां द्विराष्ट्र सिद्धांत के समर्थक थे, वही देश के विभाजन के विरोधी भी थे। सावरकर मानते थे कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग सांस्कृतिक कौम है जिनकी अपनी अलग-अलग जरूरत है, लेकिन बतौर देश दोनों भारत के अभिन्न अंग है इसलिए देश का विभाजन नहीं होना चाहिए।
सावरकर ने राष्ट्रवाद को अधिक मजबूत बनाने के लिए वेदों को पढ़ने और उनका अनुसरण करने पर जोर दिया। उनका मानना था कि राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय पुनरुत्थान की जरूरत है। अपने राष्ट्रवाद की अवधारणा में सावरकर मानते थे कि हिंदुत्व कोई शब्द नहीं है बल्कि एक इतिहास है, और राष्ट्रवाद को किसी एक धर्म से जोड़ना गलत है।
उनका मानना था कि केवल सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से ही हिंदुत्व को देखना ना केवल हिंदुत्व के साथ गलत होगा बल्कि राष्ट्रवाद के साथ भी धोखा है। सावरकर मानते थे कि राष्ट्रवाद के विकास और खुद को जागरूक करने के लिए संघर्ष करना होता है और यह संघर्ष किसी राष्ट्र के आक्रमणकारी से नहीं बल्कि खुद से करना होता है।
राष्ट्रवाद की अपनी विचारधारा ज्यादा व्यापक बनाने के लिए सावरकर ने हिंदुओं में शुद्धि आंदोलन चलाया। जिसका मकसद हिंदुत्व का प्रचार प्रसार करना था और राष्ट्रवाद की विचारधारा को बढ़ाना था। सावरकर ने अपनी राष्ट्रवाद की विचारधारा को बढ़ाने के लिए अनेक सामाजिक सुधार कार्यक्रम भी चलाएं। उनके सामाजिक उत्थान कार्यक्रम ना केवल हिंदुओं के लिए बल्कि राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ाने और उसका प्रचार करने पर आधारित थे।
हिंदू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने में सावरकर लगातार लगे रहे, चाहे वह वैचारिक स्तर पर हो, भाषण के तौर पर या लेखन के तौर पर।
राष्ट्रवाद की भावना से भरी विनायक दामोदर सावरकर की पुस्तकें छपने और प्रकाशित होने से पहले ही ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली जाती थी। सावरकर की राष्ट्रवादी कविता सिर्फ पुस्तकों का हिस्सा बन कर ही नहीं रही बल्कि जेल की दीवारों पर भी लिखी गई। जब सावरकर सेल्यूलर जेल में बंद थे, तब उन्होंने अपनी कविताएं कोयले से जेल की दीवारों पर लिखी जो आज भी वहां मौजूद है।
धर्म को लेकर सावरकर के विचार घोर हिंदूवादी नजर आते हैं। लेकिन कई जगह सावरकर खुद हिंदू मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों के खिलाफ खड़े हुए दिखते हैं, हालांकि उनके लेख और विचारों को उस दौर की परिस्थितियों के नजरिए से देखा जाना भी जरूरी है। वह हिंदू राष्ट्रवाद के कट्टर समर्थक हैं, लेकिन अगले ही पल वे जाति व्यवस्था के विरोधी दिखते हैं। उन्हें गौ पूजा को सिरे से नकार दिया और इसे अंधविश्वास करार दिया। लेकिन उन्होंने हिंदुत्व शब्द भी रचा, जो धर्म एवं रीति से ज्यादा राजनीतिक परिभाषा दर्शाता है। वह सामाजिक और राजनीतिक साम्यवाद के समर्थक दिखते हैं, लेकिन हिंदू महासभा की स्थापना कर अपने इरादे जाहिर करते हैं। यही हिंदू सभा मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार भी चला लेती है, अर्थात हालात और जरूरत के हिसाब से सावरकर के विचार बदलते हैं।
1923 में सावरकर ने हिंदुत्व नाम से एक ग्रंथ लिखा, जिससे धर्म को लेकर उनके विचार साफ लोगों तक पहुंचे। रत्नागिरी जेल में लिखी गई इस किताब में उन्होंने केवल हिंदू पहचान और हिन्दुओ पर जोर दिया हालांकि इसके बाद के संस्करण में काफी बदलाव किए गए। उन्होंने इस किताब में माना कि हिंदू पौराणिक नहीं बल्कि यूनानी, ईरानी और अरबों के साथ अस्तित्व में आया लेकिन साथ ही लिखा कि यह शब्द तमाम व्याख्याओ से परे है। इतना ही नहीं कई जगहों पर तो हिंदुत्व को धर्म से अलग रखने की कोशिश भी करते हैं और इसे राजनीतिक दर्शन की तरह देखते हैं।
विज्ञान निष्ठा निबंध में विनायक दामोदर सावरकर के विचार मान्यताओं से बहुत हद तक अलग दिखते हैं। जहां सावरकर धार्मिक से ज्यादा तार्किक नजर आते हैं। सावरकर लिखते हैं ;
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गाय को मानना सामान्य बात है। गाय से लोगों को दूध और कई चीजें मिलती हैं, जो हमारी जरूरत की होती हैं। कई परिवारों के लिए गाय परिवार का हिस्सा हो जाती है। तो यह हमारे लिए उपयोगी होती है यह हमारी कृतज्ञता होती है की गाय को ईश्वरीय बना दिया जाता है।
अगर आप गाय का अधिकतम उपयोग करना चाहते हैं तो इसको भगवान बनाना छोड़ना होगा। ईश्वर सबसे ऊपर है। फिर इंसान आता है और इसके नीचे जानवर। गाय भी एक जानवर है, जिसके पास मूर्ख मनुष्य से भी कम बुद्धि है। अगर हम गाय को ईश्वर माने तो यह इंसान का मान होगा अपमान होगा।
विनायक दामोदर सावरकर हिंदू धर्म में प्रचलित जातिभेद और छुआछूत के घोर विरोधी थे। मुंबई में सावरकर का बनवाया पतित पावन मंदिर इसका उदाहरण है। इसके अतिरिक्त सावरकर अपने लेख और भाषाओं में कई बार धर्म की कई रूढ़ियों और बेड़ियों का विरोध भी करते है।
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1857 का स्वातंत्र्य समर । The INDIAN WAR of Independence 1857
1857 को लेकर इतिहासकारों में कई मत रहे हैं। अंग्रेज इतिहासकारों में इसे सिपाही विद्रोह करार दिया, कुछ इसे किसान विद्रोह मानते थे। लेकिन विनायक दामोदर सावरकर पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने इसे प्रमाणित दस्तावेजों से साबित किया कि यह भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम था।
विनायक दामोदर सावरकर ने 1909 में द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस (The INDIAN WAR of Independence 1857) लिखी। इस किताब में उन्होंने पहली बार लिखा कि यह जन विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का पहला संग्राम था। हिंदी में यह पुस्तक 1857 का स्वातंत्र्य समर के नाम से छपी। हालांकि यह प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दी गई। लेकिन यह किताब आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रही। 1947 में जाकर यह सार्वजनिक हो पाई।
38 सालों के दौरान गोपनीय तरीके से इसके कई संस्करण छपे और इसे कई भाषाओं में लोगों तक पहुंचाया गया। क्रांतिकारियों ने ही इसे छिपाकर लंदन से भारत पहुंचाया। एक दौर में क्रांतिकारी इसे गीता जैसा दर्जा देने लगे। यह पुस्तक सावरकर ने महज 25 साल की उम्र में लंदन में पुस्तकालयों में अध्ययन और अनुसंधान करके लिखी। लेकिन इसके छपने से पहले ही उस पर भारत और इंग्लैंड में प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके लिए सावरकर ने व्यापक अध्ययन कर पूरी पृष्ठभूमि को समझा। तमाम जरूरी दस्तावेजों को भी जुटाया और साबित किया कि यह कोई सिपाही बगावत नहीं है बल्कि भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम था। जिसमें सभी समुदायों की भागीदारी थी। भारतीय संदर्भ में इससे पहला ठोस और प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसके पहले 1857 के बारे में अंग्रेजों का यही प्रचार था कि यह महज सिपाही विद्रोह था, उसे गदर कहकर प्रचारित किया गया।
सावरकर की यह पुस्तक मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी गई। सावरकर ने पहले ही भांप लिया था कि, इसके छपते ही अंग्रेज इसे जब्त कर लेंगे तभी इसकी हस्तलिखित तीन प्रतियां तैयार कर, एक प्रति उन्होंने भारत में छापने को अपने भाई बाबा राव सावरकर को भेज दी। दूसरी प्रति फ्रांस में भीकाजी कामा के पास और तीसरी प्रति अपने मित्र डॉक्टर कोटिन्हो के पास भेज दी थी। इसका अंग्रेजी अनुवाद लाला हरदयाल और भीकाजी कामा के प्रयासों से छपा। इसे बाद में क्रांतिकारियों के बीच व्यापक रूप से बांटा गया। यह ग्रंथ बेहद लोकप्रिय हुआ और इसके अनगिनत संस्करण गोपनीय तरीके से छपे।
सावरकर की यह किताब तमाम क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी। इसी किताब की प्रेरणा से गदर पार्टी का जन्म हुआ। शहीद भगत सिंह जी को भी इस किताब ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने राजाराम शास्त्री की मदद से इसे छपवाया। राजा शिव पुरुषोत्तमदास से लेकर रासबिहारी बोस को भी इस पुस्तक ने बहुत प्रभावित किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के प्रयास से इसका तमिल संस्करण भी छपा। विदेशों में इसके कई गुप्त संस्करण छपे। इस किताब ने काफी हलचल पैदा की। आजादी के पहले और बाद में अंग्रेज अफसरों और इतिहासकारों ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर बहुत सी किताबें लिखी। लेकिन वीर सावरकर की किताब इनमें सबसे अलग है और इसमें वास्तविक तस्वीर पेश करने का प्रयास किया। अंग्रेजों ने इस जन्मक्रांति के नायकों का ही नहीं बल्कि उनसे सहानुभूति रखने वालों का दमन अत्यंत नृशंसता के साथ किया। उनके इश्तहार, अखबार, पत्राचार तथा अन्य दस्तावेज बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिए गए। भले ही 1857 और आजादी के बीच करीब 90 साल का फासला रहा लेकिन इसके बाद के आंदोलनों को एक नई ताकत दी।
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