कपास की खेती ;- महत्व , समस्याएं व संभावनाएं । Cotton Farming ;- Importance , Problems in Hindi | Cropping Pattern in India Upsc In Hindi

भारत एक कृषि प्रधान देश है भारत की एक बहुत बड़ी जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती हैं।  भारत में भौगोलिक और पर्यावरणीय विविधताओं के कारण अलग-अलग क्षेत्रों में अलग तरह की फसलों का उत्पादन किया जाता है ।  जिससे भारत में फसल चक्र में भी विविधता देखने को मिलती है।

कपास की खेती भी भारत में एक बड़े पैमाने में की जाती हैं।  जो औद्योगिक क्षेत्र के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाती है।

कपास ( Cotton Farming ) के लिए उपयुक्त आवश्यकताएँ – 

मृदा – कपास एक खरीफ़ की फसल है।  कपास की खेती दक्कन के पठार की काली कपासी मृदा में अच्छी तरह से उपजाई जाती है।  यह काली कपास मृदा में अच्छे से वृद्धि करती है।

तापमान  – कपास की खेती के लिए 20 से 28 डिग्री सेल्सियस वार्षिक तापमान की आवश्यकता होती है। वर्षा की मात्रा – 55 से 110 सेंटीमीटर की वर्षा कपास की खेती के लिए आदर्श होती है।                                 समय – कपास की खेती के लिए न्यूनतम 180 पाला रहित दिनों की आवश्यकता होती है।

कपास उत्पादन में भारत की स्तिथि – 

भारत विश्व का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है भारत में विश्व का 38% कपास क्षेत्र उपलब्ध हैं।

भारत के लिए कपास की खेती और सम्बंधित उद्योगों का महत्व –

6 करोड लोग कपास की खेती की मूल्य श्रंखला से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दूर से संबंधित हैं।  लगभग 4 से 5 करोड लोग कपास के व्यापार और कपास से संबंधित  प्रसंस्करण उद्योग में कार्यरत हैं। कृषि के बाद कपास वस्त्र उद्योग ऐसा दूसरा बड़ा उद्योग है; जिसमें सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है। यह क्षेत्र देश की जीडीपी में 4% योगदान देता है।

भारत में कपास की 4 किस्मे या प्रजाति की खेती की जाती हैं

१. देसी कपास
२. एशियाई कपास
३. मिस्र की कपास
4.अमेरिकी अपलैंड कपास

वर्तमान में भारत में जो कपास की खेती की जाती है उसमें से 80% कपास बीटी( BT COTTON ) कपास है।  बीटी कपास अमेरिकी अपलैंड कपास प्रजाति की संकर किस्म हैं।

भारत में कपास उत्पादक क्षेत्र (Cotton Farming)

भारत में मुख्यतः कपास की खेती 10 राज्य में की जाती है जिनका विवरण निम्न प्रकार है

1. पंजाब हरियाणा राजस्थान
कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 16.8% हिस्सा

2. गुजरात महाराष्ट्र मध्य प्रदेश
कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 54.6% हिस्सा

3. तेलंगाना आंध्र प्रदेश कर्नाटक तमिलनाडु
कपास के कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 26.9% हिस्सा

कपास की कृषि  से संबंधित कुछ मुख्य समस्याएं

१. निम्न उत्पादकता

भारत विश्व के कपास उत्पादन में प्रथम स्थान रखता हैं  परंतु आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि भारत में कपास की कृषि से संबंधित उत्पादकता अन्य देशों की तुलना में अत्यंत निम्न हैं।
अमेरिका – 955 किलोग्राम / हेक्टेयर
चीन – 1764 किलोग्राम / हेक्टेयर
भारत – 454.43 किलोग्राम / हेक्टेयर
अतः सरकार को के लिए कपास की उत्पादकता बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती है इसके लिए सरकार को तकनीकी का प्रयोग करना चाहिए तथा तकनीकी प्रक्रिया में ज्यादा निवेश करने की आवश्यकता है

२. लागत अधिक –

भारत में कपास की खेती में लगने वाली लागत अपेक्षाकृत अधिक हैं।  जिस कारण यह विश्व के बाजार में अच्छे से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाती है।  कृत्रिम लागत जैसे कि कीटनाशकों के प्रयोग आदि से स्थिति और अधिक प्रतिकूल हो जाती है।

३. सिंचाई व्यवस्था की समस्या

सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण कपास उत्पादक क्षेत्र का एक बहुत बड़ा हिस्सा मानसून गतिविधियों पर निर्भर करता है। जिससे कपास उत्पादक क्षेत्र मानसून की अनियमितता के कारण प्रभावित होता है। भारत का लगभग 62% कपास उत्पादक क्षेत्र वर्षा आधारित है बाकी 38% उत्पादन सिंचित भूमि पर किया जाता है।

४. तकनीक का भाव

कपास उत्पादन के बाद बिनाई  की प्रक्रिया में आधुनिक तकनीक का अत्यंत अभाव है। जैसे कि छोटे स्तर की कम लागत की मशीनों की उपलब्धता नहीं है। वही मजदूरी की दर में वृद्धि , श्रमिकों की कमी के कारण जहां एक और कृषि कार्यों में विलंब तो होता ही है। वहीं दूसरी ओर कृषि प्रक्रिया की लागत में भी वृद्धि होती है। तकनीकी प्रयोग से बिनाई न हो पाने के कारण कपास के संदूषित होने की संभावना अधिक होती है।

५. बाजार मूल्य की स्तिथि

बाजार में कपास के मूल्य में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। तथा भारत की अपेक्षा पश्चिमी देशों में कपास उत्पादक किसानों को भरी सब्सिडी दी जाती है। जिस कारण उनकी कपास की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम हो जाती है। उससे भी भारतीय कपास को प्रतिस्पर्धा करने में समस्या उत्पन्न होती है। जिससे कपास का उत्पादन करने वाले किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

६. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव –

कपास की खेती पर जलवायु से संबंधित समस्याओं के कारण भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कपास मुख्य रूप से गर्म और शुष्क जलवायु में जाने वाली खेती है।
भारत में कपास की खेती का एक बड़ा भाग  वर्षा पर निर्भर होने के कारण भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कपास की अंतिम उपज प्राप्त करने में 150 से 80 दिन लगते हैं। इस दौरान कपास को रोगो और कीटो से सम्बंधित अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वही गर्म जलवायु में उत्पादन होने के कारण कीट और रोगों के लिए अपेक्षाकृत अधिक अनुकूल हो जाती है। क्योंकि गर्म जलवायु कीट और रोगों के लिए अपेक्षाकृत अधिक अनुकूल होती है।

इसके अलावा भी कपास से संबंधित अनेक समस्याएं उत्पन्न होती है जैसे की मृदा  की उत्पादकता में गिरावट। वही अत्यधिक कीटनाशकों का उपयोग , बीटी कपास में भी   कीटों में प्रतिरोधक क्षमता का विकास होने के कारण भी समस्या उत्पन्न होती है। वहीं भारत में उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग करने के कारण मृदा निम्नीकरण , सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी आदि।

 

उपलब्ध आंकड़ों से यह इंगित होता है की कपास की खेती भारत के लिए किस स्तर तक अहमियत रखती है। अति आवश्यक है कि कपास की खेती ( Cotton Farming) के समक्ष मौजूद समस्याओं या चुनौतियों को कम करके सरकार को कपास की खेती पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

सरकार को कृषि से सम्बंधित तकनीक पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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