दहेज़ प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप और उत्पीड़न की व्यवस्था | Dahej Pratha Par Nibandh | Dowry System in Hindi | दहेज़ प्रथा ( Dahej Pratha )
दहेज़ प्रथा ( Dahej Pratha )
आज से लगभग ५ साल पहले गुरुग्राम में एक पीजी में रहने के दौरान वहाँ झाड़ू पोछा करने वाली एक महिला से बातचीत करने पर कुछ ऐसा जानने को मिला था। जो समाज की कुछ प्रथाओं के शोषित चेहरे को अच्छे से उजागर करता हैं । उस लड़की ने बताया कि मात्र 12 साल की आयु में उसका विवाह इसलिए कर दिया गया था कि उसके घर वालों को डर था। अगर बाद में इसकी शादी करेंगे तो एक मोटा दहेज़ देना पड़ेगा और दहेज देने में उसके घर वाले सक्षम नहीं थे। इसलिए केवल 12 साल की आयु में उसका विवाह कर दिया गया था। दहेज़ प्रथा ( Dahej Pratha )
सुनने और पढ़ने में यह बात एक छोटी बात लग सकती है परंतु यदि इस समस्या पर गहराई से चिंतन किया जाए तो हम देख सकते हैं कि हमारे संविधान में हमें अनेक मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। जिसमें एक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 21 में प्रदान किया गया है परंतु यहां यह प्रश्न उठता है कि क्या समाज ने अपनी एक कुप्रथा दहेज के कारण उस लड़की से मात्र 12 साल की आयु में जो उम्र कुछ नया सीखने की , समाज को समझने की , ज्ञान प्राप्ति की होती है। उस पर एक ऐसा बोझ डाल दिया गया जिसको वह ताउम्र झेलती रहेगी। जिंदगी जियेगी परन्तु आधी अधूरी ज़िंदगी।
यहां सीधे तौर पर उस लड़की की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन किया गया था। हो सकता है कि वह लड़की पढ़ने में कुशाग्र होती और कुछ ऐसी शिक्षा ग्रहण कर जाती है। जिससे वह जीवन में कुछ बड़ा कर खुद को सक्षम करें खुद को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना पाती। परंतु अब उस लड़की की पूरी उम्र ऐसे ही छोटे-मोटे काम करते हुए दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा करते ही निकल जाएगी। इसका प्रभाव उसकी आने वाली अगली पीढ़ी पर उसके बच्चों पर भी पड़ेगा।
कहने को तो दहेज़ प्रथा ( Dahej Pratha ) के उन्मूलन के लिए एक कानून दहेज निषेध अधिनियम 1961 मौजूद हैं परंतु प्रश्न यह उठता है कि यह अधिनियम कहां तक लड़कियों की और उसके घर वालों की इन दहेज लोभियो से रक्षा कर पाया है। परंतु यह भी सत्य है कि दहेज प्रथा एक सामाजिक रूढ़िवादिता से संबंधित एक व्यवहार है। जिसको मात्र किसी कानून के द्वारा नहीं रोका जा सकता है। इसके लिए समाज को मिलकर कार्य करना पड़ेगा।
महिलाओं पर होने वाले अत्याचारो में एक मुख्य कारण सामाजिक बुराई दहेज़ प्रथा ( Dahej Pratha ) हैं। महिला समाज के संवेदनशील वर्गो में उपस्थित हैं। जो अपराध के प्रति अनेक कारणों से सुभेद समझी जाती हैं। दहेज प्रथा के कारण भी दिन प्रतिदिन पूरे भारत में केस होते हैं। जिनमे महिला के प्रति हिंसा से लेकर हत्या तक शामिल हैं। ऐसे में इस कुप्रथा से संबंधित बारीकी से जानना अति आवश्यक हैं। इस लेख में दहेज प्रथा से संबंधित अनेक सवालो का जवाब देने का प्रयास किया गया है जैसे कि
दहेज प्रथा क्या हैं /
दहेज प्रथा के दुष्प्रभाव
दहेज प्रथा को रोकने के उपाय
दहेज़ प्रथा ( Dahej Pratha ) क्या हैं ( Dahej pratha kya hai) / Dowry system in hindi
दहेज़ प्रथा ( Dahej Pratha ) में लड़कियों के घर वालो द्वारा लड़के के घर वालो को या कहे कि लड़की के ससुराल वालों को नकद या वस्तु के तौर पर कुछ भुगतान किया जाता हैं। भारतीय शादियों की ये एक प्रदूषित व्यवस्था है ।
दहेज़ प्रथा ( Dahej Pratha ) के कुप्रभाव या दुष्प्रभाव :
लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा-
समाज मे ये आमतौर पर देखने को मिलता है कि लड़के और लड़की में भेदभाव अनेक स्तरों पर मौजूद हैं। अगर इस भेदभाव की जड़ों को खोदने का काम करेंगे तो आप पाएंगे कि इस भेदभाव के पीछे एक बहुत बड़ा कारण दहेज प्रथा का भी है क्योंकि जब किसी परिवार में लड़की का जन्म होता है; तो अधिकतर परिवारों में उन्हें यह चिंता सताने लगती है कि जब लड़की का विवाह होगा तो उसके लिए काफी दहेज की भी मांग हो सकती हैं। इसलिए बड़ी मात्रा में परिवार लड़की के जन्म होने से ही एक समाज द्वारा आरोपित तनाव से जूझ में लगते हैं। यह तनाव समाज द्वारा आरोपित इसलिए है क्योंकि इस दबाव के पीछे कहीं ना कहीं सामाजिक कुरीतियों का ही हाथ होता है।
जिस कारण परिवार दहेज को दिमाग में रख कर चलता है और वह कहीं ना कहीं लड़की की शिक्षा दीक्षा से भी इस दहेज को जोड़कर देखता है। तथा उसके दिमाग में यह है बात बैठी होती है कि लड़की को ज्यादा पढ़ा लिखा कर क्या करना। क्योंकि समाज में एक प्रदूषित प्रथा जिसका नाम दहेज है मौजूद है उसमें शादी के समय भी ज्यादा खर्चा करना ही पड़ता है । जिसका भुगतान लड़की को अनेक स्तरों पर करना पड़ता है जैसे कि उसकी पढ़ाई पर ज्यादा खर्च ना करके उसको सामान्य स्तर तक ही पढ़ाया जाता है। जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि हमारे देश की आधी आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा अशिक्षित रह जाता है। जिससे वह आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर पाता है और भविष्य में अनेक प्रकार के अपराधों के लिए सहज ही उपलब्ध करा दिया जाता है।
महिला का भविष्य अंधकार में चला जाता हूं-
दहेज जैसी कुप्रथा के कारण जब लड़की को एक अच्छे स्तर की शिक्षा दीक्षा प्रदान नहीं की जाती है तो उसका दुष्प्रभाव भविष्य में एक बड़े स्तर पर देखने को मिलता है क्योंकि जब लड़की को सही शिक्षा दीक्षा प्रदान नहीं की जाती है। तो वह भविष्य में आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में भी सक्षम नहीं हो पाती है। जिसके कारण शादी के बाद लड़की को अनेक तरह के अपराधों से जुड़ना पड़ता है। जिसमें घरेलू हिंसा एक सबसे बड़ा उदाहरण है । अनेक रिपोर्टों के अनुसार यह इंगित किया गया है कि कोरोना वायरस में पूरे विश्व में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी हुई है। जहां विकसित देश भी सबसे आगे हैं ।
जहां महिलाओं को अनेक तरह के कष्ट झेलने पड़ते हैं। जिसके पीछे सबसे बड़ा मुख्य कारण यह होता है कि महिला आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होती है। वह दिन प्रतिदिन के खर्चों के लिए भी अपने पति या ससुराल वालों पर निर्भर करती है। जिस वजह से उसके साथ अनेक तरह के अत्याचार किए जाते हैं। अतः आज के समय में यह आवश्यक है कि दहेज प्रथा का उन्मूलन करके लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान दिया जाए और उनको इस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाए। जिससे वह भविष्य में आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें और अपने प्रति होने वाले अनेक तरह के अपराधों से खुद को बचा सके।
जिससे जब लड़कियां अच्छी शिक्षा प्राप्त कर आर्थिक रूप से स्वतंत्र होगी। तो इससे देश को आगे बढ़ाने में भी सहायता प्राप्त होगी। देश की जीडीपी में महिलाओं का बहुत कम योगदान है। यदि देश की आधी आबादी अच्छी से शिक्षा ग्रहण करेगी तो इससे यह जीडीपी में भी अपना अच्छे से योगदान दे पाएगी। जिससे कहीं ना कहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर पर देश को आगे बढ़ाने की सहायता प्राप्त होगी ।
जब एक लड़का पढ़ता है तो एक मनुष्य ही पढ़ता है , जब एक लड़की पढ़ती है तो पूरा परिवार और कई पीढ़ी का भी कल्याण सुनिश्चित होता हैं।
महिलाओ के विरुद्ध अपराध-
दिन प्रतिदिन अनेक ऐसी खबरें समाचार पत्रों में आती रहती है कि ससुराल वालों ने शादी के बाद भी दहेज की मांग करनी जारी रखी। जिस वजह से या तो लड़कियां आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती हैं या फिर ससुराल वालों द्वारा ही उनको मार दिया जाता है।
महिला का वस्तुकरण-
कुछ परिवारों के लिए शादी पैसा प्राप्त करने का एक माध्यम मात्र बन गया है। जो महिलाओं को एक मनुष्य के तौर पर नहीं बल्कि एक वस्तु के तौर पर निर्धारित कर रहा है । जो हमारे समाज के लिए एक बहुत ही घातक सिद्ध हो सकता है। अतः यह आवश्यक है कि दुनिया की आधी आबादी को वस्तु नहीं समझा जाएं बल्कि उसका हक प्रदान किया जाए।
कैसे मिले दहेज़ प्रथा से आजादी :
सामाजिक हस्तक्षेप आवश्यक-
दहेज प्रथा समाज से गहराई से जुड़ी हुई एक कुप्रथा है। अतः इसके लिए केवल कोई कानून बना देने से इतनी जल्दी सहायता प्राप्त होने वाली नहीं है। इसके लिए समाज के तथाकथित ठेकेदारों को और समाज के शिक्षित वर्ग को बिना किसी डर और लालच के, सामने आकर समाज में व्याप्त कुरीतियों और कुप्रथाओ का विरोध करना पड़ेगा। तभी इस कुप्रथा से आजादी मिलने की उम्मीद की जा सकती है।
सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देना होगा-
आज के सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं। और इसके लिए केवल एक ही माध्यम पर निर्भर होना पर्याप्त नहीं होगा। इसके लिए अनेक तरह के माध्यमों की सहायता ली जा सकती है। जैसे कि नुक्कड़ नाटक, समाचार पत्रों, ब्लॉक, यूट्यूब, वीडियोस, सोशल मीडिया साइट आदि के माध्यम से जागरूकता फैलाने का कार्य किया जा सकता है।
लड़कियों को शिक्षा और स्वतंत्रता देनी आवश्यक-
आज के समय में लड़कियों को शिक्षा और स्वतंत्रता देनी अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए माता पिता को अपनी लड़कियों को एक अच्छे स्तर की शिक्षा देने अत्यंत आवश्यक है। जिससे लड़की भविष्य में आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें और वह दहेज मांगने वाले को अपनी अधिकारों के आधार पर ठुकरा सके।
कानून का सख्ती से पालन करना होगा-
दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए बनाए गए कानूनों का सख्ती से पालन कराना होगा। बिना किसी भेदभाव के दहेज मांगने वालों और दहेज लेने वाले के खिलाफ कानून के प्रावधानों के अनुसार दाण्डिक कार्रवाई करनी होगी। तभी समाज में इस कुप्रथा के प्रति डर हो सकता है।
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