मोबाइल फोन, डिजिटल उपकरणों को हम चला रहे है या हमको वह चला रहे है ? Are we running mobile phones, digital devices or are they running us ? डिजिटल उपवास | Digital Fast | Effects of Technology in Hindi
Effects of Technology in Hindi
हम अपने मोबाइल फोन के मालिक है या हमारा मोबाइल फ़ोन हमारी जिंदगी का मालिक बन चुका है। मोबाइल फोन, डिजिटल उपकरणों को हम चला रहे है या हमको वह चला रहे है ? अगर हम ध्यान से सोचेंगे तो हम सभी में से बहुत सारे लोगों को एहसास होगा कि हमारा मोबाइल फोन अब हमारी जिंदगी का मालिक बन चुका है। क्योंकि अब हमारे मन का पूरा नियंत्रण हमारे मोबाइल फोन के पास है। हमारा मूड कैसा होगा, हमारे मोबाइल फोन पर आने वाले नोटिफिकेशन तय करते हैं।
हमारा मूड पल-पल कैसे बदलेगा ?, हमारी दिनचर्या क्या होगी ?, हम अपना समय कहां बिताएंगे ? अर्थात मोबाइल फोन ही हमको कंट्रोल कर रहा है, हम मोबाइल फोन को कंट्रोल नहीं कर रहे है। हमारा मन छोटे आकार में सिमटकर 5 से 7 इंच के मोबाइल फोन में सिमट कर रह गया है। मोबाइल फोन हमारी परछाई बन चुकी है। इसलिए हमारा मोबाइल अब हमारा मिनी माइंड बन गया है क्योकि वह पूरी तरह से हमे नियंत्रित कर रहा है।
अगर हमारा मोबाइल फोन कोई ले लेता है तो हम समझ सकते है कि मोबाइल फोन से कोई अनजान व्यक्ति भी हमारी पूरी शख्सियत को पहचान लेगा। आज के इस लेख के माध्यम से हम बात करेंगे की कैसे हमारी जिंदगी में इस तकनीक के हम गुलाम हो गए है। Effects of Technology in Hindi । पर्युषण महापर्व की मुहीम डिजिटल उपवास | Digital Fast । Digital Upwas । Side Effects Of Mobile Phone on Child In Hindi | Side effects of Mobile phone in hindi |
डिजिटल उपवास | Digital Fast | Effects of Technology in Hindi
जैन धर्म के कुछ लोगों ने मोबाइल फोन की स्क्रीन में कैद मन को आजाद कराने के लिए एक नई शुरुआत की है। जैन धर्म का पर्युषण पर्व जो कि 11 सितंबर तक चलने वाला है, इस दौरान जैन धर्म को मानने वाले लोग तप और त्याग को अपनाते हैं और अपने जीवन का विश्लेषण करते हैं। पर्यूषण पर्व के बारे में जानने के लिए हमारे लेख पर्युषण पर्व अथवा दसलक्षण पर्व के बारे में पढ़े।
दसलक्षण पर्व :- DASHLAKSHAN PARVA 2021 / PARYUSHAN PARVA IN HINDI
गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित इस महापर्व के दौरान इस बार एक नई थीम का आयोजन किया गया है। इस बार मोबाइल फोन के त्याग का भी संकल्प लिया गया है। और इसे ई-उपवास (Digital Fast) का नाम दिया गया है। उपवास जिसके तहत सिर्फ मोबाइल फोन ही नहीं वहां लोग इंटरनेट, लैपटॉप, टेलीविजन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से भी दूर रहेंगे।
इसके साथ ही जैन धर्म ने युवाओं को एक नया डिजिटल चैलेंज दिया गया है, जिसके तहत युवाओं को अगले 50 दिनों तक दिन के 12 घंटे मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रहना होगा और जो भी युवा सुबह 9:00 बजे से रात 9:00 बजे तक इस डिजिटल उपवास का पालन करेगा उसे 12 पॉइंट्स मिलेंगे। और हर एक पॉइंट एक रुपए के बराबर होगा। इस चैलेंज के 50 दिन पूरे होने पर जो युवा जितने प्वाइंट हासिल करेगा, उसके नाम से उतना ही रुपया दान कर दिया जाएगा।
इस चैलेंज को जो टैगलाइन दी गई है वह है :
A Mobile Phone is a good servant but a dangerous master.
अर्थात हमारा मोबाइल फोन जब तक हमारा सेवक है, तब तक तो अच्छा है लेकिन अगर यह हमारा मालिक बन गया तो यह बहुत खतरनाक होगा। इसलिए आज हम सब लोगों को अपने आप से पूछना चाहिए कि हम मोबाइल फोन के मालिक हैं या क्या हमारा मोबाइल फोन हमारी जिंदगी का मालिक है?
इस डिजिटल उपवास की जरूरत देश के उन सब लोगों को है, जिनका ज्यादातर समय मोबाइल फोन या दूसरे गैजेट्स पर बीत रहा है। भारत में 75 करोड़ लोगों के पास इस समय स्मार्टफोन है। भारत के लोग पूरे दिन में औसतन लगभग 6 से ७ घंटे किसी ना किसी मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स या टीवी स्क्रीन को देखते हुए बिताते हैं।
मोबाइल फोन पर ऑनलाइन वीडियो देखने के मामले में भारत पूरी दुनिया में प्रथम स्थान पर है। भारत के लोग हर रोज औसतन 5 से ६ घंटे ऑनलाइन वीडियोस देखते हैं। 2020 में पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में सबसे ज्यादा लोगों ने इस आदत की वजह से अपने आंखों की रोशनी खो दी थी इसलिए आज भारत के लोगों को डिजिटल उपवास की सख्त आवश्यकता है।
उपवास दो शब्दों को मिलकर बनाएं वह है उप और वास। उप का अर्थ होता है समीप और वास का अर्थ होता है बैठना। उपवास का शाब्दिक अर्थ होता है समीप बैठना। उपवास सिर्फ भूखे रहने का नहीं बल्कि अपने समीप बैठ कर खुद पर चिंतन और विश्लेषण करने का भी माध्यम है। और डिजिटल उपवास के बगैर आप खुद को कभी ठीक से समझ भी नहीं सकते।
स्थिति यह है कि लोग उपवास के नाम पर खाना-पीना तो छोड़ सकते हैं, परंतु लोगों से मोबाइल फोन छोड़ने के लिए कह दिया जाए तो उन्हें सदमा का लग जाता है। भारत के लोगों के लिए अब आटा नहीं बल्कि डाटा ज्यादा महत्वपूर्ण है। 66% भारतीयों का कहना है कि वह अपने मोबाइल फोन के बिना अब एक दिन भी नहीं रह सकते हैं इसलिए भारत के लोगों को डिजिटल उपवास और डिजिटल डिटॉक्स की सख्त जरूरत है। उपवास रखकर हम अपने शरीर की गंदगी को बाहर निकालते हैं, लेकिन डिजिटल उपवास को रखकर हम अपने मन की सफाई कर सकते हैं या कहे की अपने मन से विषैले तत्वों को बाहर निकाल सकते है।
जैन धर्म का डिजिटल उपवास किस प्रकार महत्वपूर्ण है ? Effects of Technology in Hindi
हम भले ही कहे कि कोरोना संक्रमण काल में हो रही ऑनलाइन एजुकेशन या वर्क फ्रॉम होम की वजह से मोबाइल फोन या डिजिटल उपकरणों पर वक्त ज्यादा बीत रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि उससे पहले ही युवा पीढ़ी धीरे-धीरे मोबाइल फोन या फिर लैपटॉप की गुलामी का शिकार हो गई थी।
सोशल मीडिया पर दिन भर उंगलियां घुमाते रहना या फिर वीडियो प्लेटफार्म पर वेब सीरीज देखना युवाओं की पहली पसंद यही सब था। कोरोना संक्रमण के दौर में यह और अधिक बढ़ गया। जरूरत से शुरू हुआ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग बुरी आदतों में बदल गया है।
इस बुरी आदत को छुड़ाने के लिए अहमदाबाद में जैन समुदाय के महापर्व पर्युषण महापर्व में युवाओं को 50 दिन का एक अनोखा उपवास रखवाया गया है। इसे डिजिटल उपवास (डिजिटल फास्टिंग) नाम दिया गया है। इसमें युवाओं को इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स से दूरी बनानी है। वह मोबाइल फोन, टीवी, लैपटॉप या टैबलेट से पूरे 50 दिन तक एक घंटे से लेकर 24 घंटे तक दूर रहने की कोशिश करेंगे। इस अनोखे प्रयोग की अच्छी बात यह है कि अभी तक दो हजार से ज्यादा युवाओं ने स्वेच्छा से इसे अपनाया है। इस ई-उपवास का मकसद युवाओं को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का आदि बनने के नुकसान बताना तो है ही साथ ही परिवार और समाज के महत्त्व और अहमियत को समझाना भी है।
मोबाइल फोन और लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल शारीरिक और मानसिक सेहत पर काफी बुरा असर डाल सकता है। इसलिए इस नई पहल से युवाओं को काफी फायदा होने की उम्मीद है, क्योंकि दुनिया भर में अब डिजिटल डिटॉक्स को अपनाया जा रहा है।
डिजिटल डिटॉक्स अपनाने के फायदे :
- डिजिटल डिटॉक्स अपनाने से नींद ना आने की समस्या का खात्मा होता है।
- तनाव और डिप्रेशन के अवसाद से छुटकारा मिलता है।
- सामाजिक रुप से हम ज्यादा एक्टिव रहते हैं।
- परिवार के साथ अच्छा समय बिताते हैं।
- काम में फोकस अर्थात एकाग्रता बढ़ती है।
दिन भर मोबाइल फोन या फिर किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में व्यस्त रहने वाले युवाओं के परिवारों के लोग भी इस पहल से अत्यधिक खुश हैं। और वह मानते हैं कि मोबाइल फोन और लैपटॉप जैसी चीजें अब जरूरत ना रहकर एक बुरी आदत का स्वरूप ले चुकी है। बिना किसी खास जरूरत के भी इनका इस्तेमाल होने लगा है, और इस वजह से युवा अपने परिवार से भी दूर होते जा रहे हैं। अगर आजकल हम कहीं बाहर बाजार में जाते हैं, शॉपिंग मॉल्स में जाते हैं या किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए जाते हैं तो हम देखते हैं कि एक ही टेबल पर एक परिवार पूरा का पूरा बैठा हुआ है और सब अपने-अपने मोबाइल फोन पर व्यस्त हैं। कोई किसी से बात नहीं कर रहा है। सब अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन पर देख रहे हैं। एक साथ बाहर तो आए हैं लेकिन बात बिल्कुल नहीं कर रहे हैं। एक साथ एक टेबल पर बैठकर खाना तो खा रहे हैं, लेकिन एक-दूसरे से बात करने की फुर्सत नहीं है क्योंकि सभी के सभी अपने मोबाइल फोन पर व्यस्त हैं। हम कहीं बाजार चले जाये या बस स्टैंड पर चले हर जगह हमको लोग तो दिखेंगे लेकिन सब के सब अपने मोबाइल फोन पर व्यस्त ही मिलेंगे। कहने का अर्थ है कि मोबाइल फोन या डिजिटल उपकरणों का ज्यादा प्रयोग हमारी जिंदगी पर हावी हो रहा है। और हम कह सकते है कि हमारा मोबाइल फ़ोन हमारी जिंदगी का मालिक बन चुका है। मोबाइल फोन, डिजिटल उपकरणों को हम नहीं चला रहे है बल्कि हमको वह चला रहे है।
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