मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार | Government of India Act 1919 In Hindi
पृष्ठभूमि –
इस समय सचिव एडविन सेमुअल मांटेग्यू (Edwin Samuel Montagu) और वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड थे। मांटेग्यू के साथ उच्चस्तरीय दल ने अगस्त घोषणा के पश्चात स्तिथि का अध्ययन करने के लिए दौरा किया। जिसके आधार पर वर्ष 1918 में मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी थी। यही रिपोर्ट टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों या भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi ) का आधार बनी।
ने वर्ष 1918 में संवैधानिक सुधारों की अपनी योजना तैयार की, जिसे मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड (या मोंट-फोर्ड) सुधार के रूप में जाना जाता है
भारत परिषद अधिनियम 1909 या मार्ले मिंटो सुधार से कांग्रेस के नरमदल के सदस्य संतुष्ट नहीं थे। वही दूसरे विश्वयुद्ध में भारतीयों द्वारा दिया गया सहयोग , कांग्रेस लीग समझौता , भारतीयों द्वारा उग्रता से स्वशासन की मांग आदि ऐसे विषय थे जिन्होंने मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों या भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi ) को लागू करने में भूमिका निभाई।
प्रांतीय सरकार –
- भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi ) अधिनियम द्वारा प्रांतीय स्तर पर कार्यपालिका हेतु द्वैध शासन प्रणाली को अपनाया गया था।
- निम्न प्रांतों में द्वैध शासन (Diarchy) प्रणाली को लागू किया गया था –
संयुक्त प्रांत, बॉम्बे, बिहार, मद्रास , असम, बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रांत, और पंजाब प्रांत शामिल थे।
कार्यपालिका –
- प्रांतीय विषयों का विभाजन निम्न दो भागों में –
(क) आरक्षित विषय – कानून व्यवस्था , भू-राजस्व , वित्त, सिंचाई, खनिज संसाधन इत्यादि। इनका शासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद की सलाह से करता था।
(ख) हस्तांतरित विषय – स्थानीय प्रशासन, कृषि शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग,तथा आबकारी इत्यादि। इनका प्रशासन गवर्नर भारतीय मंत्रियों की सलाह से करता था।
2. इस व्यवस्था में मंत्रियो को व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया था, व्यवस्थापिका द्वारा उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करने पर मंत्रियो को त्यागपत्र देना पड़ता था। वही दूसरी ओर गवर्नर की कार्यकारी परिषद के सदस्य व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं।
3. आवश्यकता पड़ने पर भारत सचिव तथा गवर्नर-जनरल ‘आरक्षित विषयों’ में हस्तक्षेप कर सकते थे परन्तु हस्तांतरित विषयों में उन्हें उन्हें ऐसी कोई शक्ति प्राप्त नहीं थी।
4. यदि प्रांतो में संवैधानिक तंत्र विफल होता है तो ऐसे में गवर्नर को यह शक्ति प्राप्त थी कि वह राज्य के प्रशासन एवं हस्तांतरित विषयों का दायित्व अपने ऊपर ले सकता था।
व्यवस्थापिका
- प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं की सदस्य संख्या में बहुत वृद्धि कर दी गयी। इन सदस्यों में 70 प्रतिशत सदस्य निर्वाचित होते थे।
- आंग्ल-भारतीयों , सिखों , भारतीय ईसाईयों, और यूरोपियों के लिए भी सांप्रदायिक आधार पर पृथक् निर्वाचन के सिद्धांत का विस्तार किया गया ।
- मताधिकार में वृद्धि कर दी गयी
- महिलाओं को भी मतदान का अधिकार प्रदान दिया गया।
- प्रांतीय परिषदों को अब विधान परिषदों की संज्ञा दी गई।
- सदस्यों को बोलने का अधिकार तथा स्वतंत्रता थी।
केंद्रीय सरकारः
भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi ) द्वारा यहाँ पर अभी भी कोई उत्तरदायी शासन व्यवस्था लागू नहीं की गयी।
कार्यपालिका
- सभी विषयों को दो भागों में बांटा गया-(क) केंद्रीय एवं (ख) प्रांतीय।
- गवर्नर-जनरल को इस अधिनियम द्वारा मुख्य कार्यपालिका प्राधिकारी बनाया गया ।
- वायसराय की कार्यकारी परिषद में आठ सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान किया गया। जिसमें तीन भारतीय सदस्यों को नियुक्त किया गया । भारतीय सदस्यों को विधि, शिक्षा, श्रम, स्वास्थ्य तथा उद्योग विभाग सौंप दिए गए।
- प्रांतों से सम्बंधित आरक्षित विषयों में गवर्नर-जनरल को पूर्ण अधिकार प्राप्त था।
- गवर्नर-जनरल को अनुदानों पर कटौती का अधिकार दिया गया था ।
- वह केंद्रीय व्यवस्थापिका द्वारा अस्वीकार किये गये प्रस्तावों को पारित कर सकता था।
- गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार भी प्राप्त था ।
व्यवस्थापिका
भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi ) ने केंद्रीय व्यवस्थापिका को द्विसदनीय संस्था बना दिया गया-
- (क) केंद्रीय विधान सभा या निम्न सदन तथा
- (ख) राज्य परिषद या उच्च सदन ।
उच्च सदन या राज्य परिषद की सदस्य संख्या – उच्च सदन में 60 सदस्य थे। इसका कार्यकाल 5 वर्ष का था और इस सदन में केवल पुरुष सदस्य को ही शामिल किया गया था।
- 26 मनोनीत
- 34 निर्वाचित ( जिनमें 20 सामान्य, 10 मुसलमान, 3 यूरोपीय और 1 सिख थे। )
केंद्रीय विधान सभा या निम्न सदन की सदस्य संख्या – यहाँ 145 सदस्यों की व्यवस्था थी। इसका कार्यकाल 3 वर्ष था। परंतु गवर्नर-जनरल की इच्छा पर बढ़ाया भी जा सकता था।
- 41 मनोनीत किये जाने ( 26 आधिकारिक और 15 गैर-सरकारी सदस्य )
- 104 निर्वाचित ( 52 सामान्य, 30 मुसलमान, 2 सिख तथा 20 विशेष सदस्य थे। )
भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi ) के अन्य प्रावधान –
- केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को अपनी सूचियों के विषयों पर विधान बनाने का अधिकार प्रदान किया गया। राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण कम किया गया।
- सरकार का ढांचा अभी भी केंद्रीय और एकात्मक ही बना रहा।
- इसने प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में विभक्त किया- हस्तांतरित और आरक्षित ।
- हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था और इस कार्य में वह उन मंत्रियों की सहायता लेता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी थे।
- आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी नहीं थी। इसी शासन व्यवस्था को दोहरी शासन व्यवस्था कहते है।
- पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था इसी अधिनियम द्वारा लागू की गयी थी।
- वायसराय की कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों में से कमांडर-इन-चीफ़ को छोड़कर, तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था।
- आंग्ल-भारतीयों , सिखों , भारतीय ईसाईयों, और यूरोपियों के लिए भी सांप्रदायिक आधार पर पृथक् निर्वाचन के सिद्धांत का विस्तार किया गया ।
- सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया जिसका आधार संपत्ति, कर या शिक्षा था।
- भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सृजन लंदन में किया गया। भारत सचिव द्वारा ऐसे कुछ कार्यों जो भारत सचिव के द्वारा किए जा रहे थे उन्हें उच्चायुक्त को स्थानांतरित कर दिया गया।
- सिविल सेवकों की भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग का गठन किया गया । केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन साल 1926 में किया गया।
- भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi ) में यह भी प्रावधान किया गया कि 10 वर्षों के बाद सरकार के कामकाज का अध्ययन करने के लिए एक वैधानिक आयोग का गठन किया जाएगा। इसके परिणामस्वरूप 1927 में साइमन कमीशन का गठन हुआ।
भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi ) अधिनियम का महत्त्व
- मतदान के अधिकार का विस्तार किया गया। इससे मतदाताओं में मतदान के प्रति व्यावहारिक समझ विकसित करने में सहायता प्राप्त हुई।
- उत्तरदायी शासन प्रणाली को लागू किया गया , चाहे वो आंशिक तौर पर ही सही।
- भारत मंत्री के वेतन और भत्ते जो भारतीय राजस्व से दिया जाता था अब ब्रिटिश राजस्व से दिया जाने का प्रावधान किया गया।
- देश में द्विसदनीय व्यवस्था इसी अधिनियम द्वारा लागू की गयी थी।
- प्रांतीय स्वशासन की शुरुआत की।
भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi ) अधिनियम की कमियांँ –
- केंद्र में किसी उत्तरदायी सरकार का गठन नहीं किया गया था।
- मतदान का अधिकार दिया गया परन्तु सीमित आधार पर ही प्रदान किया गया था।
- सांप्रदायिक आधार पर पृथक् निर्वाचन के सिद्धांत का विस्तार किये जाने से साम्प्रदायिकता में विस्तार हुआ था ।
- केंद्र में विषयों का विभाजन संतोषजनक नहीं था।
- केंद्रीय विधायिका को पर्याप्त शक्ति नहीं दी गई थी तथा वित्त पर उसका कोई नियंत्रण नहीं था।
भारत सरकार अधिनियम 1919 ( Government of India Act 1919 In Hindi )
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