Government of India Act 1935 In Hindi | Government of India Act  1935 UPSC In HINDI 

पृष्ठभूमि – 

भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi ) पारित होने के पीछे प्रमुख उत्तरदायी कारण – 

  • भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi ) से  पहले मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड (या मोंट-फोर्ड) सुधार या भारत सरकार अधिनियम 1919 आया था, जो कांग्रेस को असंतोषजनक लगा। जिसकी प्रतिक्रिया में ही 1921 में असहयोग आंदोलन होता है।
  • वही लगातार भारतीय नेताओ द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों की माँग बढ़ रही थी।
  • स्वराज्य दल की भूमिकाः- स्वराज्य दल ने मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड (या मोंट-फोर्ड)  सुधारों के विरोध में सक्रिय भूमिका निभायी।  1923 के चुनावों में इन्हे प्रचंड सफलता प्राप्त होती है , इन्होने विधानमंडलों में प्रवेश कर सरकार के विरुद्ध एक सशक्त आवाज बुलंद की।
  • भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi )  को पारित करने के पीछे साइमन कमीशन और साइमन रिपोर्ट की भी मुख्य भूमिका थी।
  • गोलमेज सम्मेलनों की भूमिका – गोलमेज़ सम्मेलन की सिफ़ारिशें।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन

ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi )  को अगस्त 1935 में पारित किया।

भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi ) के मुख्य प्रावधान

एक अखिल भारतीय संघ की व्यवस्था की गयी।  प्रस्तावित संघ में सभी ब्रिटिश भारतीय प्रांतों, मुख्य आयुक्त के प्रांतों तथा सभी भारतीय प्रांतों का सम्मिलित होना अनिवार्य था किंतु देशी रियासतों का सम्मिलित होना वैकल्पिक था। रियासतों को संघ में शामिल होने के लिए कुछ शर्ते भी प्रस्तावित थी। जिनका उल्लेख एक पत्र (instrument of Accession) में किया जाना था। परन्तु कुछ कारणों से यह संभव नहीं हो सका। जिससे यह संघ कभी अस्तित्व में नहीं आया तथा 1946 तक केंद्र सरकार, भारत सरकार अधिनियम 1919 के प्रावधानों के अनुसार ही चलती रही।

संघीय व्यवस्था  

कार्यपालिका 

  • भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi ) में प्रावधान के  अनुसार केंद्र में समस्त शक्तियों  का केंद्र बिंदु गवर्नर-जनरल ही था।
  • प्रशासन के विषयों को दो भागों में बांटा गया था – सुरक्षित एवं हस्तांतरित ।
  • सुरक्षित विषय -विदेशी मामले, रक्षा, जनजातीय क्षेत्र तथा धार्मिक मामले थे।
  • सुरक्षित विषयों के प्रशासन का दायित्व गवर्नर-जनरल पर ही था। ऐसा गवर्नर-जनरल को कार्यकारी पार्षदों की सलाह पर करना होता था । कार्यकारी पार्षद, केंद्रीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं थे।
  • हस्तांतरित विषय – सुरक्षित विषयों में शामिल विषयों से अलग जो अन्य विषय थे वो हस्तांतरित विषयों में शामिल थे। जिन मंत्रियो का निर्वाचन व्यवस्थापिका द्वारा किया गया था उन्ही मंत्रियो की सहायता से गवर्नर – जनरल को हस्तांतरित विषयों का प्रसाशन करना होता  था।

व्यवस्थापिका – 

  • संघीय विधान मंडल द्विसदनीय होना था।
  • राज्य परिषद (उच्च सदन) तथा संघीय सभा (निम्न सदन) थी।

राज्य परिषद

  • एक स्थायी सदन था, जिसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक 3 वर्ष के पश्चात चुने जाने  होते थे।
  • अधिकतम सदस्य संख्या 260 होनी थी। जिसमें से 156 प्रांतों के चुने हुये प्रतिनिधि और अधिकतम 104 रियासतों के प्रतिनिधि होने थे। जिन्हें सम्बद्ध राजाओं को मनोनीत करना था।

संघीय सभा –

  • कार्यकाल पांच वर्ष होना था।
  •  सदस्यों में से 250 प्रांतों के और अधिकाधिक 125 सदस्य रियासतों के होने थे। रियासतों के सदस्य सम्बद्ध राजाओं द्वारा मनोनीत किये जाने थे, जबकि ब्रिटिश प्रांतों के सदस्य प्रांतीय विधान परिषदों द्वारा चुने जाने थे।

विचित्र व्यवस्था – 

आमतौर पर महत्वपूर्ण सदन या निम्न सदन का निर्वाचन सीधे होता है। परन्तु यहाँ प्रचलन के विपरीत उच्च सदन के सदस्यों का चुनाव सीधे मतदाताओं द्वारा किया जाना था तथा निम्न सदन के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से किया जाना था।

  • समस्त विषयों का बंटवारा तीन सूचियों में किया गया- केंद्रीय सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची।
  • संघीय सभा के सदस्य मंत्रियों के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ला सकते थे। किंतु राज्य परिषद में अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया  जा सकता था।
  • धर्म-आधारित एवं जाति-आधारित निर्वाचन व्यवस्था आगे भी जारी रखी गयी।
  • संघीय बजट का 80 प्रतिशत भाग पर  विधानमंडल मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता था।

गवर्नर जनरल के अधिकार – 

  • किसी विधेयक के सम्बन्ध में वीटो का प्रयोग कर सकता था।
  • संयुक्त अधिवेशन बुलाने की शक्ति प्राप्त थी।
  • अनुदान मांगो में कटौती कर सकता था।
  • विधान परिषद द्वारा अस्वीकार किये गए विधेयक का अनुमोदन कर सकता था।

प्रांतीय व्यवस्था –

  • भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi )  द्वारा प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान की गयी थी ।
  • प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।
  •  राज्यों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की गयी ।  राज्य विधान परिषदों के लिए गवर्नर को उत्तरदायी मंत्रियों की सलाह पर कार्य करना होता था।
  • प्रत्यक्ष और सीधे तौर पर महामहिम ताज (crown) के अधीन आ गये।
  • प्रावधान किया गया कि प्रांतीय सरकारें अपने स्वयं की साख पर धन उधार लेने की व्यवस्था कर सकती थी। साथ ही प्रांतों को स्वतंत्र आर्थिक शक्तियां एवं संसाधन प्रदान किये जाने के प्रावधान भी किये गए।
  •  प्रांत में गवर्नर ताज के मनोनीत प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था , सभी कार्यों का संचालन एवं नियंत्रण महामहिम ताज की ओर से गवर्नर ही करता था।
  • यदि गवर्नर को लगता है कि प्रांत का प्रशासन संवैधानिक उपबंधों के आधार पर नहीं चलाया जा रहा है तो शासन का सम्पूर्ण भार वह अपने हाथों में ले सकता था।
  • अन्य वर्गों को पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया अधिनियम के मतदाता मंडलों का निर्धारण साम्प्रदायिक निर्णय तथा पूना समझौते के अनुसार किया गया।
  • विभिन्न प्रांतों में प्रांतीय विधान मंडलों का आकार तथा रचना  भिन्न-भिन्न थी। अधिकांश प्रांतों में यह एक सदनीय तथा कुछ प्रांतों में यह द्विसदनीय थी।
  •  उच्च सदन  को विधान परिषद तथा निम्न सदन को विधान सभा कहा गया। इसने 11 राज्यों में से छह में द्विसदनीय व्यवस्था प्रारंभ की थी। बिहार, संयुक्त प्रांत, बंगाल, बंबई, मद्रास, और असम में द्विसदनीय विधान परिषद् और विधानसभा बन गईं।
  • सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया गया जिसमे दलित जातियों, महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था की  गयी।
  • सभी प्रांतीय विषयों का संचालन मंत्रियों द्वारा किया जाता था। ये सभी मंत्री एक प्रमुख (मुख्यमंत्री) के अधीन कार्य करते थे।
  • बजट का 40 प्रतिशत भाग अभी भी मताधिकार के दायरे से बाहर ही आता था।
  • गवर्नर को कुछ अन्य अधिकार प्राप्त थे जैसे कि – विधेयक को लौटने का अधिकार ,सरकारी कानूनों पर रोक लगा सकता था , अध्यादेश जारी कर सकता था।

भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi )  के अन्य प्रावधान – 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक के तौर पर एक केंद्रीय बैंक की स्थापना की गयी।
  • संघीय न्यायालय की स्थापना।
  • बर्मा और अदन को भारत के शासन से अलग करने का प्रावधान किया गया।
  • ओड़िसा और सिंध दो नए प्रान्त बनाये गए।
  • उत्तर पश्चिम सीमांत प्रान्त को गवर्नर के अधीन रखा गया।

भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi )  का मूल्यांकन 

  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 में जो संघ प्रस्तावित था उसके सम्बन्ध में देशी रियासतों के शामिल होने या न होने का विकल्प रियासतों पर ही छोड़ दिया गया।  जिस कारण वो कभी अस्तित्व में ही नहीं आ पाया। सत्य यही है कि इस विषय में सरकार द्वारा गंभीर प्रयासों की कमी नज़र आती है। इसलिए कह सकते है कि संघीय व्यवस्था दोष पूर्ण थी।
  • केंद्र पर द्वैध शासन थोपा गया था।

इसके बाद भी कह सकते है कि भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi ) ने    भारत के संवैधानिक विकास को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके प्रावधानों का प्रभाव स्वतंत्रता बाद संविधान निर्माण में देखा जा सकता है।

 

भारत सरकार अधिनियम 1935 ( Government of India Act 1935 In Hindi )

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