हिन्दू (राजपूत ) राजाओं का गढ़ चंद्रवार कैसे बना फिरोजाबाद ? History of Firozabad In Hindi | Firozabad ka Itihas

 

History of Firozabad

 

जनप्रिय राजपूत शासक चंद्रसेन चौहान ( Chandrasen Chauhan History in Hindi )  की थी राजधानी  / History Of Firozabad In Hindi 

 

 

History of Firozabad

चंद्रवार की कहानी में अनेक क़िस्से मौजूद हैं। चंद्रवार के इतिहास में राजाओं की विजय और पराजय की कथा हैं। चंद्रवार की रणभूमि में टकराती तलवारों की खनकदार आवाज़ हैं। चंद्रवार की भूमि में राजपूत राजाओं के बलिदानी खून की ख़ुशबू हैं। चंद्रवार की रणभूमि में आग उगलती तोपों की गर्मी हैं। चंद्रवार में बहादुर हिन्दू राजपूत राजाओं की बहादुरी की निशानियां हैं। जिन्हें हमने चंद्रवार से बने फिरोजाबाद के साथ भुला दिया।

परंतु ” HKT भारत “ भारतीय कला और संस्कृति को लोगों के सामने लाने का पूर्ण प्रयास कर रहा हैं। History of Firozabad / Chandravar में हम आज उठते हुए अनेक सवालो को जानेंगे।

History of Firozabad / Chandrawar  में हम प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक भारतीय इतिहास तक सभी तथ्यों को जानने का प्रयास करेंगे।

इसमें हम जानेंगे कि कैसे  राजपूत राजा चंद्रपाल चौहान द्वारा अपने पिता राजा चंद्रसेन चौहान की याद में बनाया गया किला (Raja Chandrasen Fort History in Hindi)  चंद्रवार गेट या चंद्रवार किला शासन की उदासीनता के कारण खंडहर बन चुका हैं। कैसे प्रसिद्ध चंद्रवार गेट ( Chandravar Gate History in Hindi ) जो राजपूत राजाओं के शासन की निशानी हैं, बदहाल स्तिथि में पहुँच चुका हैं। कैसे हिन्दू राजाओं ने बहादूरी से आक्रांताओं का सामना किया। यहाँ फ़िरोज़ाबाद के पुराने नाम के विषय में जानेंगे ( Firozabad old name ) तथा फ़िरोज़ाबाद का नाम बदलने (Firozabad name change issue ) से सम्बंधित तथ्यों को भी जानेंगे।

प्राचीन काल से ही कांच के सामान व चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध फ़िरोज़ाबाद एक समय में चौहान राजपूतों का गढ़ हुआ करता था। आज इस लेख के माध्यम से हम फिरोजाबाद के प्राचीन इतिहास को जानेंगे व जानेंगे कि राजपूत चौहानों का गढ़ चंद्रवार कैसे बना फ़िरोज़ाबाद।

भारतभूमि पर प्राचीन काल से ही अनेक वीर योद्धा राजाओं ने शासन किया हैं। और अनेक विशाल अजय किलो, मंदिरों, भवनों का निर्माण कराया था। परंतु अपनी कुछ गलतियों के कारण ही भारत भूमि को कुछ बाहरी आक्रांताओ का शोषण झेलना पड़ा था। जिसके कारण यहाँ अनेक मंदिरों, हिन्दू राजाओं के किलों, महलों को नष्ट करने का काम किया गया। ऐसा ही अत्याचार झेला हिन्दू राजपूत राजाओं की नगरी चंद्रवार ने।

चंद्रवार का इतिहास ( History Of Firozabad / Chandrawar  in Hindi / Firozabad ka itihas )

 

फिरोजाबाद का पुराना नाम चंद्रवार था।

चंद्रवार के राजा चन्द्रसेन चौहान , हिंदू धर्म के परम अनुयायी थे। फिरोजाबाद की भगवान चन्दाप्रभु की सफेद मणि की प्रतिमा विश्व की सबसे बड़ी सफ़ेद मणि की प्रतिमा है, जो कि राजा चन्द्रसेन चौहान के समय में प्राप्त हुयी थी। चंदाप्रभु भगवान की प्रतिमा के कारण और राजा चन्द्रसेन के नाम के कारण उस समय क्षेत्र का नाम  चंद्रवार का नाम पड़ा।

चंद्रवार गेट फिरोजाबाद जिले के अंतर्गत आता है। फिरोजाबाद जिले को चंद्रवार नाम से जाना जाता था। चंद्रवार के प्राचीन इतिहास को लेकर अनेक इतिहासकारो के अलग अलग मत है।  एक मत के अनुसार  कवी धनपाल द्वारा रचित ग्रन्थ बाहुबली चरित (सन् 1397 )के अनुसार चंदवार नगर को श्री कृष्ण के पिता वासुदेव काल की नागरी बताया है । संभावना यही है कि ये नगर अति प्राचीन काल से स्थित था।  इस क्षेत्र में भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव का शासन रहा है।

दसवीं सदी में चंद्रसेन नामक चौहान राजपूत राजा ने उसे अपनी राजधानी बना कर पुनः आकर्षक एवं महत्व प्रदान किया। चंद्रसेन चौहान ही चंदवार के चौहान शासन के संस्थापक थे ।

जयचंद की मृत्यु के बाद एक जनश्रुति के अनुसार चंदवार के शक्तिशाली चौहानों ने लगभग 12 वर्षों तक आक्रांताओं से युद्ध जारी रखा।

चौहान वंश के राजा चन्द्रसेन का महल आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस महल के नजदीक ही राजा चंद्रसेन चौहान के पुत्र चंद्रपाल चौहान का किला भी है। इस किले को राजा चंद्रपाल ने अपने पिता की याद में बनवाया था। इस किले को चंद्रवार के किले के नाम से जाना जाता है। यह किला शहर से करीब सात किलोमीटर दूर यमुना किनारे स्थित है। कहा गया है कि अपने समय में चंद्रपाल चौहान भारत के प्रमुख शक्तिशाली सामंतों में से एक था । इटावा जिले में आज भी स्थित आसी (असाई खेड़ा ) नामक स्थान के अपने किले से चंद्रपाल ने महमूद गजनवी के विरुद्ध भयानक युद्ध किया था किन्तु अंततः चंद्रपाल की ही पराजय हुई । यह तथ्य आगरा गजेटियर से प्रमाणित होता है ।

HISTORY OF FIROZABAD2

इससे सिद्ध होता है कि इस समय चंदवार के चौहानों का राज्य विस्तृत था ।

बताया गया है कि सन् 1080 ई0 में चंद्रपाल चौहान  के पौत्र जयपाल चौहान  ने गजनी के ही एक अन्य आक्रांता के विरुद्ध आगरा में स्थित अपने किले से जबरदस्त प्रतिरोध किया था (आगरा गजेटियर 1965 पृ 33 )। चंद्रवार में चौहानों का राज्य 15 वीं सताब्दी तक रहा है । इस बात के तो निश्चित प्रमाण है कि 13 वीं शताब्दी तक एक ही चौहान कुल परम्परागत रूप में चंदवार पर राज्य करता रहा । यह चौहान वंश 13वीं शताब्दी से पूर्व के राजा चंद्रसेन ,चंद्रपाल ,जयपाल आदि का ही वंश था , इसका कोई पुष्ट प्रमाण प्राप्त नहीं है ।

राजपूत राजा जयचंद ने मुहम्मद गौरी के आक्रमण का प्रतिरोध चंदवार में ही किया था।  जिससे ऐसा आभास होता है कि चंदवार का चौहान राज्य संभवतः कन्नौज राज्य का सीमान्त था।

इसमे संदेह नही कि इस क्षेत्र में इटावा ,मैनपुरी ,भोगांव ,पटियाली आदि के चौहान राज वंशों में चन्दवार के चौहान श्रेष्ठ माने जाते थे । 14वीं शताब्दी के अंत और 15 वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में इटावा के चौहानों ने निश्चय ही चन्दवार से अधिक शक्ति संग्रह कर ली थी और इटावा का राजा सुमेर सिंह चौहान अपनी वीरता और नीतिज्ञता के कारण इस क्षेत्र का वीर नायक बन गया था । किन्तु अपनी प्राचीनता के कारण उस समय भी ज्येष्ठ पद चन्दवार को ही प्राप्त था ।

राजा चंद्रसेन चौहान के महल से लेकर राजा चंद्रपाल के किले तक के इस पूरे इलाके को चंद्रवार का नगर के नाम से जाना जाता है। कहने को ये पूरा नगर राजपूतों का था लेकिन आज इसमें प्राचीन जैन मूर्तियां और कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। यह स्थान अब जैनियों की आस्था का केंद्र है, राजा चन्द्रसेन कला प्रेमी होने के साथ ही जनप्रिय भी थे। उनके समय में पीड़ितों को हमेशा न्याय मिलता था और किसी तरह की कमी नहीं रहती थी। यही कारण है कि राज्य में राजा चंद्रसेन को बेहद सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। लेकिन फिरोजाबाद में मुगल शासकों का आवागमन शुरू होने के बाद राजा चन्द्रसेन का अस्तित्व धीरे—धीरे कम होने लगा। मुगल शासक मुहम्मद गौरी ने राजा पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर दिया और राजा के महल पर अपना अधिकार जमा लिया। इस दौरान मुहम्मद गौरी ने तोपें चलाकर राजा के साम्राज्य को नष्ट कर दिया था।

राजा चंद्रसेन चौहान के अस्तित्व को जीवित रखने के लिए उनके पुत्र चंद्रपाल चौहान ने बाद में यमुना किनारे किला बनवाया। इस किले को चंद्रवाड़ का किला कहा जाता था। सन 1052 ई० में इस पूरे नगर को चंद्रवार नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि कुछ वर्षों बाद राजपूतों के ये वंशज जैन धर्म से प्रभावित हो गए और उन्होंने इस धर्म को अपना लिया था।

यह पूरा नगर आज फिरोजाबाद की धरोहर है। यहां आज भी प्राचीन सिक्कों के साथ ही अन्य कई प्राचीन अवशेष भी मिलते हैं। लेकिन पुरातत्व विभाग एवं पर्यटन विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं देता। य​ही कारण है कि आज चंद्रवाड़ नगर खंडहर में तब्दील हो चुका है।

चंद्रवार के इतिहास में चंद्रवार के तीन राजाओं का उल्लेख मुख्य रूप से है:

1. चंद्रसेन

2. चंद्रसेन का पुत्र चंद्रपाल

3. चंद्रपाल का पौत्र जयपाल

बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वह तीन बार चंद्रवार आया था। जैन धर्म में एक प्राचीन काव्य ग्रंथ है बाहुबली चरित इस ग्रंथ की रचना सन 1397 में धनपाल द्वितीय नामक कवि ने चंद्रवार नगर में ही की थी। कवि धनपाल गुजरात प्रदेश में स्थित पंढरपुर वर्तमान पालनपुर के निवासी थे और अपने गुरु की आज्ञा अनुसार भगवान नेमिनाथ के जन्म स्थान सॉरी पर तीर्थ की यात्रा करने हेतु भ्रमण कर रहे थे। मार्ग में उन्होंने चंद्रवार नामक नगर देखा जो की धन परिपूर्ण और उत्तम जिनालयों से विभूषित था।

ग्रंथ में चंद्रवार के तत्कालीन राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रामचंद्र का भी उल्लेख है तथा धनपाल ने श्री कृष्ण के पिता वासुदेव काल की नगरी बताया है। उससे इतना तो सिद्ध होता है कि आज से लगभग 6000 वर्ष पूर्व भी चंद्रवार को एक प्राचीन नगर माना जाता था।

जैन धर्मावलंबियों की मान्यता है कि भगवान नेमिनाथ के पिता समुद्रविजय भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव के बड़े भाई थे। हिंदी विश्वकोश भाग 7 में लिखा है कि चंद्रपाल इटावा अंचल के एक राजा का नाम था। कहा जाता है कि राजा चंद्र पांडे राज्य प्राप्ति के बाद चंद्रवार में सन 1053 में एक प्रतिष्ठा कराई थी।  उनके द्वारा प्रतिष्ठापित स्फटिक मणि (सफ़ेद पत्थर) की एक मूर्ति जो एक फोटो अवगाहना लिए हुए है, 8वे तीर्थकर चंद्रप्रभु की थी और जिसे यमुना की धारा से निकालकर फिरोजाबाद में लाया गया था अब फिरोजाबाद के मंदिर में विद्यमान है। History of Firozabad

12 वीं शताब्दी में श्रीधर नामक कवि ने भविष्य अंत चरित्र नामक काव्य ग्रंथ की रचना चंद्रवार नगर में स्थित मातृवंशीय नारायण के पुत्र सुपरसाहू की प्रेरणा से सन 1173 के आसपास की थी। 1197-98 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चंद्रवार और कन्नौज पर अधिकार कर लिया था।

आज भी फिरोजाबाद के चंद्रवार नगर जो यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है, पर राजा चन्द्रसेन चौहान  के खंडहर हुए पुराने किले के अवशेष और प्राचीन जैन मंदिर मौजूद है। यहाँ पसीने वाले हनुमान जी का मंदिर और एक पुराना शिव मंदिर भी है। वर्तमान नाम अकबर के समय में मनसबदार फिरोज़शाह द्वारा सन 1566 में दिया गया।

कहा जाता है कि राजा टोडरमल गया से तीर्थ यात्रा करके इस शहर के माध्यम से लौट रहे थे ,तब उन्हें लुटेरो ने लूट लिया। उनके अनुरोध पर, अकबर ने मनसबदार फिरोजशाह को यहाँ भेजा। फिरोज शाह का मकबरा और कतरा पठनं के खंडहर इस तथ्य का सबूत है और इतिहासकारों का मानना है कि फिरोजशाह ने भारी संख्या में हिंदू का जबरन धर्म परिवर्तित करवाया।

ईस्ट इंडिया कंपनी से सम्बंधित एक व्यापारी पीटर ने 9 अगस्त 1632 में यहाँ का दौरा किया और शहर को अच्छी हालत में पाया। यह आगरा और मथुरा की विवरणिका में लिखा है कि फ़िरोज़ाबाद को एक परगना के रूप में उन्नत किया गया था। शाहजहां के शासन में नबाब सादुल्ला को फ़िरोज़ाबाद जागीर के रूप में प्रदान किया गया।

बाजीराव पेशवा ने मोहम्मद शाह के शासन में 1737 में फ़िरोज़ाबाद और एतमादपुर लूटा। महावन के जाटों ने फौजदार हाकिम काजिम पर हमला किया और उसे 9 मई 1739 में मार दिया। जाटों ने फ़िरोज़ाबाद पर 30 साल शासन किया।

मिर्जा नबाब खान यहाँ 1782 तक रुके थे। 18 वीं सदी के अंत में फ़िरोज़ाबाद पर मराठाओं के सहयोग के साथ हिम्मत बहादुर गुसाईं द्वारा शासन किया गया। फ्रेंच, आर्मी चीफ डी. वायन ने नवंबर 1794 में एक आयुध फैक्टरी की स्थापना की। श्री थॉमस ट्रविंग ने भी अपनी पुस्तक ‘ Travels in India ‘ में इस तथ्य का उल्लेख किया है।

मराठाओं ने सूबेदार लकवाददस को यहां नियुक्त किया, जिसने पुरानी तहसील के पास एक किले का निर्माण कराया जो वर्तमान में गाढ़ी के पास स्थित है। जनरल लेक और जनरल वेल्लजल्ल्य ने 1802 में फ़िरोज़ाबाद पर आक्रमण किया। ब्रिटिश शासन की शुरुआत में फ़िरोज़ाबाद इटावा जिले में था। लेकिन कुछ समय बाद यह अलीगढ़ जिले में संलग्न किया गया। जब 1832 में सादाबाद को नया ज़िला बनाया गया तो फ़िरोज़ाबाद को इस में सम्मिलित कर दिया गया। पर बाद में 1833 में फ़िरोज़ाबाद को आगरा में सम्मिलित कर दिया गया। 1847 में लाख का व्यापर यहाँ बहुत फल-फूल रहा था।

1857 के स्वतंत्रा संग्राम में चंद्रवार के जमींदारो ने स्थानीय मलहो के साथ सक्रिय भाग लिया। राजस्व ग्राम हिरनगांव निवासी क्रांतिकारी पंडित तेजसिंह तिवारी द्वारा 1857 क्रांति की लौ को स्थानीय लोगों के दिलों में जलाते रहे। प्रसिद्ध उर्दू कवि मुनीर शिकोहाबादी को ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने काला पानी की सजा सुनाई थी। इस शहर के लोगो ने ‘ खिलाफत आंदोलन ‘, ‘ भारत छोड़ो आंदोलन ‘ और ‘ नमक सत्याग्रह ‘ में भाग लिया और राष्ट्रीय आंदोलनों के दौरान जेल गये। 1929 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी , 1935 में सीमांत गांधी, १९३७ में पंडित जवाहरलाल नेहरू और १९४० में सुभाषचन्द्र बोस ने फ़िरोज़ाबाद के दौरे किये।
फ़िरोज़ाबाद जनपद 5 फरबरी 1989 में स्थापित हुआ।

 

फिरोजाबाद की जनता एक लंबे समय से फिरोजाबाद के स्थान पर जनपद एवं नगर का नाम चंद्रवार नगर करने की मांग निरंतर कर रही है। जनता की इस मांग के औचित्य निर्धारण के क्रम में राजस्व परिषद की सहमति अपेक्षित है। एवं फिरोजाबाद का नाम चंद्रवार नगर के रूप में वापस मिलना न्यायसंगत प्रतीत होता है। जनपद फिरोजाबाद एवं नगर फिरोजाबाद का नाम चंद्रवार नगर किए जाने से जहां एक और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार को बल मिलेगा तथा धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। वहीं दूसरी ओर इसकी वैदिक एवं पौराणिक पहचान भी रह सकेगी। उक्त के दृष्टिगत जनपद फिरोजाबाद का नाम परिवर्तित कर जनपद चंद्रवार नगर किया जाना अपेक्षित है। यहाँ पर मुहम्मद गोरी और जयचंद का युद्ध हुआ था।

चंद्रवार फिरोजाबाद नगर से 5 किलोमीटर दूर यमुना तट पर बसा हुआ है। वर्तमान में चंद्रवार किसी समय एक महत्वपूर्ण और सुसंपन्न नगर था। जिसके विषय में कतिपय जैन विद्वानों की यह मान्यता थी कि ये क्षेत्र भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव द्वारा शासित रहा है। कहा जाता है कि चंद्र वार नगर की स्थापना चंद्रसेन ने की थी। 1392 ई0 अथवा 1397 ई0 में धनपाल द्वारा रचित ग्रन्थ बाहुबली चरित में चंद्रवार के संभरी राय, सारंग नरेंद्र, अभय चंद्र और रामचंद्र राजाओ का विवरण मिलता है। History of Firozabad

 

 

 

चंद्रवार गेट या चंद्रवार किला बना खंडहर, पुरातन विभाग और पर्यटन विभाग का कोई ध्यान नहीं ( Chandravar Gate / Chandravar Fort )

 

यहाँ आज भी प्राचीन सिक्कों के साथ-साथ अनेक प्राचीन अवशेष भी मिलते हैं। फिर भी पुरातन विभाग एवं पर्यटन विभाग उदासीन बना हुआ हैं। उसका इस ओर कोई ध्यान नहीं हैं। यही वजह हैं कि चंद्रवार नगर आज खंडहर बनता जा रहा हैं।

हिंदुओं के शासन की प्रसिद्ध निशानी उत्तर प्रदेश के शासन की उदासीनता के कारण आज खंडहर में बदलता जा रहा हैं। इसके लिए केवल शासन या सरकार को दोष देना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि जितना दोष इसमें शासन का है। उतना ही दोष हमारे समाज और हमारा भी है क्योंकि हम भी अपने महापुरुषों की निशानियां और उनके इतिहास के प्रति संवेदनशील नहीं रहे हैं ।

आज हम भौतिकवादी युग में केवल भौतिक संसाधनों के पीछे भागने में अपना समय नष्ट करते हैं।  या किसी अन्य दूसरे देश को महत्व देकर वहां पर घूमना पसंद करते हैं। परंतु हमें यह याद रखना होगा कि इस भारत भूमि में अनेक राजाओं ने अपना लहू देकर इस देश, धर्म और समाज की रक्षा की है।

अतः हमारा फर्ज बनता है कि हम उनके इतिहास को पढ़े, उनके ऐतिहासिक निशानी को संरक्षित करके उन्हें एक सच्चे वंशज के तौर पर श्रद्धांजलि दें।  हमारे योद्धा केवल किसी जाति विशेष के न होकर सम्पूर्ण देश के गौरव हैं।

ये देख कर बहुत कष्ट होता है कि जिन वीर राजाओं ने जान से बढ़कर अपनी मातृ भूमि को माना । जो वीर राजा अपने धर्म और भूमि की रक्षा के लिए हँसते-हँसते अपनी जान भी न्योछावर कर देते थे। जो इस देश की रक्षा के लिए हथेली पर जान लेकर चलते थे, आज हम उनके इतिहास की निशानी को भी संरक्षित करने में असफल हो रहे हैं।

राजपूत राजाओं ने अनेक हिन्दू मंदिरों का निर्माण कराया और जैन धर्म को भी संरक्षण प्रदान किया :

 

कुछ साल पहले चंद्रवार गेट या चंद्रावर किले से अनेक जैन मूर्तियां मिलने के कारण फिरोजाबाद या चंद्रवार सुर्खियों में रहा था। जिसके कारण अनेक इतिहासकारों ने अपने अलग-अलग मत व्यक्त किए थे । राजा चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल ने अपने पिता की याद में इस किले का निर्माण कराया था। वहाँ जैन मूर्तियों के मिलने का कारण यह है कि भारतीय राजा प्राचीन काल से ही सभी धर्मों का सम्मान करते आएं है तथा सभी धर्मों के अनुयायियों को अपने राज्य में शरण देते थे। जैसे की राजा अशोक बौद्ध धर्म से प्रभावित थे। ऐसे ही राजपूत राजा चंद्रसेन के पुत्र राजा चंद्रपाल जैन अनुयायियों को अपने यहां शरण देते थे। राजा चंद्रपाल को जैन धर्म से प्रभावित बताया जाता हैं। जिस कारण आज चंदवार गेट या चंदवार के किले में जैन मूर्तियां बड़ी मात्रा में मिली हैं।

हमें मालूम ही होगा कि बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बौद्ध खुद एक क्षत्रिय थे। वही जैन धर्म के सबसे प्रसिद्ध तीर्थंकर महावीर जैन भी एक क्षत्रिय थे।

चंद्रवार में राजपूत राजाओं ने जैनधर्म को तो संरक्षण दिया ही साथ ही अनेक हिन्दू मंदिरों का भी निर्माण कराया था। पिछले कुछ दशक में चंद्रवार में अनेक शिव मंदिरों को ढूँढा गया हैं।

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