लक्ष्यों के निर्धारण की कसौटी / IMPORTANCE OF GOAL IN LIFE IN HINDI
लक्ष्यों के निर्धारण की कसौटी / लक्ष्य बड़ा या छोटा ?
मानव एक सामाजिक प्राणी हैं ; जिस प्रकार प्रकृति ने सभी प्राणियों हेतु कुछ न कुछ कर्तव्य निर्धारित किए हैं। उसी प्रकार इंसान के लिए कर्तव्य का निर्धारण तो किया ही है साथ ही इंसान बोधरूपी शक्ति का वरदान भी दिया हैं। जो इसे अन्य प्राणियों से भिन्न बनाता हैं; जिससे इंसान में कर्तव्यबोध के साथ लक्ष्यबोध का भी विकास होता हैं।
इंसान एक सामाजिक प्राणी हैं तथा उसपर सामाजिक , आर्थिक , पर्यावरणीय , राजनीतिक , भूगोलीय आदि सभी परिस्तिथियों का प्रभाव पड़ता हैं। उसके कार्य भी इन्ही प्रभावों से कही न कही संचालित होते हैं। हमने बचपन से ही समाज मे अनेक लोगो से कभी न कभी ये अवश्य सुना होगा कि व्यक्ति को जीवन मे बड़े सपने देखने चाहिए अर्थात बड़े लक्ष्य रखने चाहिए परंतु प्रश्न ये उठता है की उन बड़े लक्ष्य के निर्धारण का पैमाना आखिर क्या होता हैं ??
अगर किसी सफाई कर्मचारी और सुरक्षा कर्मचारी की बात करे तो सफाई कर्मचारी हमारे गाँव , नगर को साफ़ करने का काम करता हैं । वही एक सुरक्षा कर्मचारी गांव , नगर की सुरक्षा करने का काम करता है । जहाँ अगर एक सुरक्षा कर्मचारी अगर कुछ लापरवाही बरते तो चोरी या अन्य आसामाजिक घटना होने का खतरा बढ़ जाता हैं ; जिससे आम जन को व्यापक हानि हो सकती हैं । वही अगर एक सफाई कर्मचारी भी लापरवाही बरते तो गाँव , नगर में संक्रामक बीमारियां फैल सकती है ; इससे भी आम जन को व्यापक हानि हो सकती हैं।
जब दोनों की लापरवाही और कर्तव्यपालन का परिणाम लगभग समान ही है तो क्यो एक को दूसरे से बेहतर समझा जाये ??
एक पर्यावरणविद अपना सम्पूर्ण जीवन पर्यावरण के संरक्षण में व्यतीत कर देता हैं ; वो अपने जीवन में हज़ारो – लाखो पेड़ पौधों का रोपण करता हैं। जिससे आने वाली पीढ़ियों को जीवन जीने लायक माहौल मिल सके । एक बगीचे का रक्षक भी अपनी चैन की नींद त्याग कर बगीचे की रक्षा करता है। वही एक व्यापारी बड़ी बड़ी कंपनी लगा कर पर्यवरण प्रदूषण करता है और पेड़ो के दोहन की गति में भी वृद्धि करता हैं। दूसरी ओर व्यापारी रोजगार का सृजन भी करता हैं और नई नई तकनीक द्वारा समाज, देश को मजबूत भी करता हैं।
तो दोनो में से किसके लक्ष्य को उत्तम माना जाए ??
उपरोक्त चर्चाओं से ये तो सिद्ध होता है कि लक्ष्य का बड़ा या छोटा होना उसके उदेश्य पर निर्भर करता हैं ।
भारतीय समाज में कुछ कारीगरों को जो सम्मान मिलना चाहिए था शायद वो आज तक नहीं मिल पाया हैं । परन्तु अगर समाज मे उनकी रिक्तता हो जाये तो समाज में एक अव्यवस्था का माहौल बन जायेगा। अगर नाइ अपना काम करना छोड़े दे , अगर सड़क बनाने वाले मजदूर अपना काम छोड़ दे , अगर एक बढ़ाई अपना काम छोड़ दे तो आप समझ सकते है कि समाज में क्या परिवर्तन आ जाएगा।
विदेशों में इन सभी कार्यो को एक प्रोफेशन के तौर पर लिया जाता है और सरकार भी इनके लिए कोर्स उपलब्ध कराती हैं।
अनेक कारकों की विविधताओ के कारण लक्ष्यों में भी विविधता होना स्वभाविक ही हैं परंतु भारतीय समाज में मानसिक विकृति के कारण कुछ वर्ग को उत्तम समझा जाता हैं तो कुछ को हीन भावना से देखा जाता हैं। जो कही से भी एक शिक्षित , सभ्य समाज के लक्षण नहीं हो सकते हैं।
दूरदर्शी व्यक्ति बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ने से पहले अपने बड़े लक्ष्य को सरल , सहज बनाने हेतु छोटे लक्ष्यों पर कार्य करना पसंद करते हैं। दूरदर्शी और अनुभवी व्यक्ति अपने बड़े लक्ष्य को छोटे छोटे लक्ष्यों में विभाजित करके उन छोटे लक्ष्यों के लिए योजनाओं का निर्धारण करते हैं । इसलिए कही से भी किसी व्यक्ति के लक्ष्य चयन को छोटे या बड़े पैमाने से बिल्कुल भी नही देखना चाहिए ; क्या पता वो लक्ष्य का एक चरण मात्र हो।
अतः जब भी किसी व्यक्ति को कुछ कार्य करते देखो तो उसके विषय मे अपने मन मे कुछ भी छवि बनाने से पहले एक बार शांतचित से ये चिंतन अवश्य कर लेना चाहिए कि जो कार्य वो कर रहा है ; अगर वो न करे तो उसका हमारा समाज मे क्या प्रभाव होगा । ये भी विचार अवश्य करना कि कही ये लक्ष्य की ओर बढ़ने का एक चरण मात्र तो नही हैं।
कुछ भी हो सकता हैं !!