भाषा का नष्ट होना, एक संस्कृति के नष्ट होने के समान | Importance Of language
भाषा अपने आप में इतनी शक्तिशाली होती है कि भाषा के आधार पर अनेक देशों का निर्माण हुआ है। सबसे बड़ा उदाहरण हमारा पडोसी देश बांग्लादेश ही है। जहां भाषा से धर्म भी हार गया था। पश्चिन पाकिस्तान मतलब कि आज का पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान मतलब कि आज का बांग्लादेश दोनों जगह एक ही धर्म इस्लाम धर्म मौजूद था और है। परन्तु जब पाकिस्तान ने उर्दू को पाकिस्तान की राजकीय भाषा बनाना चाहा तो पूर्वी पाकिस्तान मतलब कि आज के बांग्लादेश ने , जहाँ बांग्ला भाषा बोली जाती थी , पाकिस्तान के इस निर्णय का विरोध किया। मतलब कि बांग्लादेश के बनने के अनेक महत्वपूर्ण कारणों में से भाषा भी एक थी।
अब आप ही समझ गए होंगे कि भाषा खुद में ही कितनी शक्ति रखती है , परन्तु हमने अपनी भाषाओं का क्या हाल किया ? ये पता चलता है 2013 में सामने आए एक सर्वे से।
ये सर्वे किया गया था भाषा रिसर्च एंड पब्लिकेशन सेण्टर वड़ोदरा द्वारा , इसके अनुसार 1961 में भारत में 1100 भाषाएँ थी परन्तु अब उनमे से लगभग 220 नष्टं हो चुकी है या समाप्त हो चुकी है।
सर्वे के अनुसार लुप्त हुई अधिकांश भाषाएँ देश में फैले खानाबदोश समुदायों की थी।
1971 की जनगणना में केवल 108 भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया था , क्योकि केंद्र सरकार ने केवल उन भाषाओं को ही सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया था जिनके बोलने वालो की संख्या 10000 से अधिक थी।
भाषा के विलुप्त होने के कारण –
- भाषा के विलुप्त होने के अनेक कारण होते है परन्तु सबसे बड़ा कारण है ; भाषा संरक्षण पर किसी ठोस नीति का न होना।
- इस विषय पर लम्बे समय तक सरकार और प्रशासन द्वारा उदासीनता बनाये रखना।
- और एक बड़ा कारण है हमारे द्वारा अपनी संस्कृति और सकारत्मक परम्पराओं का सम्मान न किया जाना।
भाषा , संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है –
हमें ध्यान रखना होगा कि कोई भी भाषा अपने में उस विशेष स्थान की संस्कृति और परम्पराएं समाहित किये हुए होती है, जिस स्थान विशेष में वह बोली जाती है । किसी भी भाषा का निर्माण एक लम्बे काल में एक विशेष प्रक्रिया में होता है।
भाषा के आधार पर राज्य का गठन –
अगर अपने देश की बात करें तो आजादी के कुछ वर्षो बाद ही यहाँ भाषा के आधार पर राज्य बनाने की मांग भी तेज हो रही थी। जिसपर विचार करने के लिए सरकार ने कुछ आयोगों का गठन भी किया था। सभी आयोग ने एक भाषा एक राज्य के गठन को अस्वीकार कर दिया।
परन्तु उसके बाद भी 1953 में भारत सरकार को भाषा के आधार पर पहले राज्य का गठन करना पड़ा। मद्रास से तेलगु भाषा के क्षेत्रो को अलग कर आंध्र प्रदेश का गठन किया गया। ऐसा करने को लेकर भारत सरकार को मजबूर होना पड़ा था।
आंध्र प्रदेश के गठन के लिए एक लम्बा विरोध आंदोलन किया गए था। जिसके दौरान 56 दिनों की भूख हड़ताल के दौरान एक कॉंग्रेसी कार्यकर्ता पोट्टी श्रीरामुलु का निधन हो गया था।
इस प्रकार हम देख सकते है कि भाषा कितना महत्व रखती है। उसके बाद भी अपने देश की धरोहर भाषाओं को इस प्रकार समाप्त होते देखना बड़े ही आश्चर्य की बात है।
अन्य भाषाओं का सम्मान हो , परन्तु अपनी धरोहर का संरक्षण भी आवश्यक –
वही हमारी आज की पीढ़ी एक गलत तरह से प्रोत्साहित होकर अन्य सभ्यताओं और संस्कृतियों को अपने से बेहतर मानकर अपनी भाषा और संस्कृतियों को नजरअंदाज कर रही है। इसके दुष्परिणाम शायद आज उन्हें समझ न आये परन्तु एक लम्बे समय के बाद इनके बड़े ही व्यापक और खतरनाक दुष्परिणाम हो सकते है।
कहा भी गया है कि निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल‘
हम नहीं कहते की अन्य भाषाओं का सम्मान न करो परन्तु अपनी भाषा का अपमान भी न करों।