अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस। मातृभाषा दिवस। INTERNATIONAL MOTHER LANGUAGE DAY IN HINDI । MOTHER LANGUAGE DAY IN HINDI
INTERNATIONAL MOTHER LANGUAGE DAY IN HINDI
हम सभी भारतवासियों को अपनी मातृभाषा पर गर्व है, पर दुर्भाग्यवश कई बार आप बोलते कुछ और है और लिखते कुछ और है जिसके कारण इन भाषाओं और बोलियों को सही महत्व नहीं मिल पाता है। जिसके कारण यह प्रचलन में नहीं रह पाती है। हमारे लिए जरूरी है, इन भाषाओं का जिंदा रहना।
इन भाषाओं को सहेजने का मूल कर्तव्य हमारा है। इन भाषाओं के तार हमारी भावनाओं, एहसास और हमारे जीवन से अटूट बंधन रखते हैं। कोई भी भाषा सामाजिक स्तर पर परंपरा, इतिहास और सांस्कृतिक तौर पर जोड़ती है।
भाषाएं संस्कृति की वाहिका है। भाषा ही हमको संस्कृति और व्यवहार सिखाती है। हम भारतीय बेहद खुशनसीब है, क्योंकि भारत में भाषाओं की इतनी विविधता है जो सीधे हमें अपनी मिट्टी और विरासत से भावनात्मक रूप से जोड़े रखती है या बाँधे रखती है। विश्व में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिकता को संरक्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (INTERNATIONAL MOTHER LANGUAGE DAY IN HINDI) मनाया जाता है।
प्रत्येक वर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (INTERNATIONAL MOTHER LANGUAGE DAY IN HINDI) मनाया जाता है।
जन्म लेने के बाद मनुष्य जो प्रथम भाषा सीखता है, उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक और भाषाई पहचान होती है। मातृभाषा अर्थात जिस भाषा में मां सपने देखती है या विचार करती है, वही भाषा उस बच्चे की मातृभाषा होती है। भारत में सैकड़ों तरह की मातृभाषाएं बोली जाती है, जो हमारे देश की विविधता में एकता और अनूठी संस्कृति को दर्शाती है।
मातृभाषा दिवस। मातृभाषा और उसका महत्व। INTERNATIONAL MOTHER LANGUAGE DAY & IT’S IMPORTANCE।INTERNATIONAL MOTHER LANGUAGE DAY IN HINDI
जन्म से हम जिस भाषा का प्रयोग करते हैं, वही हमारी मातृभाषा है। सभी संस्कार एवं व्यवहार हम इसी के अनुरूप पाते हैं। इसी भाषा से हम अपनी संस्कृति के साथ जुड़कर उसकी धरोहर को आगे बढ़ाते हैं। तभी तो महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने मातृभाषा का महत्व कुछ इस प्रकार से बताया है :-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
मातृभाषा का मकसद दुनिया में भाषाई, सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिकता को बढ़ावा देना है। इस लिहाज से भारत की भूमिका और भी अधिक मायने रखती है क्योंकि बहुभाषी राष्ट्र होने के नाते मातृभाषाओं के प्रति भारत का उत्तरदायित्व कहीं अधिक मायने रखता है।
भारत के संविधान ने 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता दी है, लेकिन बहुभाषावाद भारत में जीवन का मार्ग है क्योंकि देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग अपने जन्म के बाद मातृभाषा के अलावा एक से अधिक भाषाएं बोलते हैं और अपने जीवन काल के दौरान अन्य भाषाओं को भी सीखते रहते हैं।
औपनिवेशिक शासन के दौरान पहली बार जॉर्ज ग्रियर्सन के द्वारा 1894 से 1928 के दौरान भाषाई सर्वेक्षण कराया गया, जिसमें 179 भाषाओं और 544 बोलियों की पहचान की गई थी। प्रशिक्षित भाषाविदों, कर्मियों की कमी की वजह से इस सर्वेक्षण में कई खामियां भी थी।
1991 में भारत के जनगणना में अलग व्याकरण की संरचना के साथ 1576 सूचीबद्ध मातृभाषा और 1796 भाषिक विविधता को अन्य मातृभाषाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
2011 के जनगणना के आधार पर देश में 121 भाषाएं और 1369 मातृभाषाएं हैं। इनमें 270 ऐसी मातृभाषाएं है जिन्हें बोलने वालों की संख्या 10000 से ज्यादा है। 2011 की जनगणना के अनुसार हिंदी को मातृभाषा के रूप में बताने वाले लोगों की संख्या में 2001 की जनगणना के मुकाबले 2011 में बढ़ोतरी हुई है।
2001 में 41.03 फ़ीसदी लोगों ने हिंदी भाषा को मातृभाषा बताया था जबकि 2011 में इनकी संख्या बढ़कर 43.63 फ़ीसदी हो गई। बांग्ला भाषा दूसरे नंबर पर बरकरार रही जबकि तेलगु को पीछे छोड़कर मराठी भाषा तीसरे नंबर पर बोली जाने वाली भाषा बनी। उर्दू 2001 में छठे नंबर पर बोली जाने वाली भाषा थी, लेकिन 2011 के आंकड़े के मुताबिक सातवें स्थान पर पहुंच गई।
मातृभाषा बोलने के मामले में गुजराती छठे स्थान पर है। 4.74 फ़ीसदी लोग मातृभाषा के रूप में गुजराती बोलते हैं। 22 सूचीबद्ध भाषाओं में संस्कृत कम सबसे कम बोली जाने वाली भाषा है। केवल 24,821 लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा बताया है।
वैसे देखा जाए तो बोलने वालों की संख्या के लिहाज से संस्कृत ओडो, मणिपुरी, कोंकणी और डोगरी भाषा से भी नीचे है। 2011 के जनगणना के अनुसार गैर सूचीबद्ध भाषाओं में अंग्रेजी को करीब 2.6 लाख लोगो ने अपनी मातृभाषा बताया। अंग्रेजी को पहली भाषा बताने वाले लोगों में सबसे ज्यादा 1.06 लाख लोग महाराष्ट्र से, उसके बाद तमिलनाडु से थे, और तीसरे नंबर पर था कर्नाटक।
गैर सूचीबद्ध भाषाओं में राजस्थान में बोली जाने वाली भीली-भिलौड़ी भाषा १.०४ करोड़ की संख्या के साथ पहले स्थान पर है इसके बाद 29 लाख लोगों की संख्या के साथ गोंडी दूसरे नंबर पर है। इसे बोलने वालों की संख्या 29 लाख है।
आज दुनिया भर में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के मुताबिक विश्व में 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में छह भारतीय भाषाएं हैं, जिनमें हिंदी तीसरे स्थान पर है। वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के मुताबिक दुनिया भर में 61.5 करोड़ लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। हिंदी के बाद बंगाली भाषा का इस्तेमाल आता है, जो 26.5 करोड़ लोगों के साथ सातवें स्थान पर है। 17 करोड़ लोगों के साथ 11वें नंबर पर उर्दू का नंबर आता है। 9.5 करोड़ लोगों के साथ 15वें स्थान पर मराठी और 9.3 करोड़ लोगों के साथ 16वें स्थान पर तेलुगू और 8.1 करोड लोगों के साथ 19वें स्थान पर तमिल भाषा है। भारत दुनिया के उन अनूठे देशों में से है, जहां भाषाओं में विविधता की विरासत है। इनमें बोली, भाषा और मातृभाषा सभी शामिल है और यह सब मिलकर भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ ही खूबसूरत सामाजिक संरचना को दर्शाती है।
एक भाषा अपने साथ-साथ सांस्कृतिक और बौद्धिक संपदा समेटे हुए होती है। भाषा के विकास से समाज का बहुमुखी विकास होता है। भाषा का एक रणनीतिक महत्व है क्योंकि पहचान, संचार, सामाजिक एकीकरण, शिक्षा और विकास के लिए भाषा ही एक माध्यम है जो आसानी से लोगों को जोड़ती है। भाषाओं के लुप्त होने से परंपराएं, स्मृति, सोच और अभिव्यक्ति के मूलभूत या अनूठे तरीके और मूल्यवान संसाधन भी खो जाते हैं। लेकिन वैश्वीकरण में आई तेजी की वजह से कई भाषाएं खतरे में है या पूरी तरह से गायब हो गई है। दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से कम से कम 43 फ़ीसदी लुप्त होने के कगार पर है। दुनिया की 40 फ़ीसदी आबादी के पास ऐसी भाषा में शिक्षा नहीं है, जिसे वह बोलते अथवा समझते हैं। मातृभाषा को शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक डोमेन में बेहद कम जगह दी गई है और डिजिटल दुनिया में तो 100 से भी कम भाषाओं का उपयोग किया जाता है।
वैश्विक स्तर पर मातृभाषा के संरक्षण के लिए यूनेस्को भी कई तरह से काम कर रहा है। यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा मनाए जाने की घोषणा की थी। दरअसल इसके पीछे एक ऐतिहासिक घटना है जो मातृभाषा के प्रति लोगों के समर्पण की एक मिसाल बनी।
21 फरवरी 1952 को ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की भाषाई नीति का कड़ा विरोध जताते हुए अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक विरोध प्रदर्शन किया। पाकिस्तान की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी लेकिन लगातार विरोध के बाद सरकार द्वारा बांग्ला भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा देना पड़ा। भाषाई आंदोलन में शहीद हुए युवाओं की स्मृति में और भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए फरवरी 2000 से हर साल अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया जाता है।
यूनेस्को मातृभाषा के संवर्धन एवं संरक्षण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताते रही है। 2019 में यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्रे अजोले ने कहा कि हर मातृभाषा को सार्वजनिक जीवन में सभी क्षेत्रों में जाना, पहचाना और दिया जाना चाहिए। मातृ भाषाओं को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा, आधिकारिक भाषा का दर्जा या निर्देश के भाषा के रूप में दर्जा नहीं है। मौजूदा स्थिति मातृभाषा के मूल्य को कम कर सकती है, और लंबे समय तक इस्तेमाल नहीं होने से अपने वास्तविक रूप को खो सकती है।
भारत में मातृभाषा की स्थिति । INTERNATIONAL MOTHER LANGUAGE DAY IN HINDI
मातृभाषा को संरक्षण नहीं मिलने की वजह से भारत में लगभग 50 मातृभाषा पिछले पांच दशकों में विलुप्त हो गई है। संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। इनमें से तीन भाषाओं संस्कृत, तमिल और कन्नड़ को भारत सरकार ने विशेष दर्जा और श्रेष्ठ प्राचीन भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की है।
इन श्रेष्ठ भारतीय भाषाओं का लिखित और मौखिक इतिहास 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना है। इन अधिसूचित और प्राचीन भाषाओं के अलावा भारत के संविधान में अल्पसंख्यक भाषाओं के संरक्षण के लिए मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया है। जिसके तहत भारत के किसी भी क्षेत्र और किसी भी भाग में रहने वाले नागरिक, नागरिकों के किसी भी वर्ग की विशिष्ट भाषा ली पिया अपनी स्वयं की संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार दिया गया है। भारत की मातृभाषा उसकी विविध संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। हर राज्य की मातृभाषा लोगों को अपनी मिट्टी और अपनी विरासत से भावनात्मक रूप से जोड़ती है। अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्ति सच्ची और आसान होती है, इसलिए सरकार भी अलग-अलग तरीको भाषाओं के संरक्षण के लिए व्यापक स्तर पर काम करती है।
दुनिया में सबसे लोकप्रिय भाषाओं में भारत की मातृभाषा भी शामिल है। भारत समेत दुनिया की कई भाषाएं आज लुप्त होने की कगार पर हैं। आज जरूरत है हमें अपनी-अपनी मातृ भाषाओं को अपनाने की और आने वाली पीढ़ी को सिखाने की ताकि भाषा के जरिए हमारी संस्कृति हमेशा फलते-फूलते रहे।
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