विविधता में एकता का प्रतीक : मकर संक्रांति महापर्व। MAKAR SANKRANTI FESTIVAL IN HINDI। SANKRANTI IN HINDI। WHAT IS SANKRANTI IN HINDI?
MAKAR SANKRANTI FESTIVAL IN HINDI
भारतीय परंपरा एवं विविधता का साक्षात उदाहरण है : ” भारतीय संस्कृति एवं त्यौहार “।
हमारे देश में विभिन्न त्यौहार है जो हमारी संस्कृति का परिचय एवं बोध कराते आये है। आज संक्रांति (मकर संक्रांति) का पर्व है जो हमारी भारत देश की विविधता में एकता का प्रतीक कहा जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्यौहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है। इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से ही सभी शुभ कार्यों का भी आयोजन होता है। देश के अलग-अलग राज्यों में संक्रांति अलग-अलग नामों से मनायी जाती है। मकर संक्रांति के पर्व को उत्तरायण का पर्व भी कहते है। देश के विभिन्न स्थानों पर भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है।
भारतवर्ष में संक्रांति के नाम। Makar Sankranti Makar Sankranti Festival in Hindi names in India। MAKAR SANKRANTI FESTIVAL IN HINDI
- मकर संक्रान्ति : छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू।
- पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु।
- उत्तरायणी : गुजरात, उत्तराखण्ड।
- माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश।
- बिहु : असम।
- खिचडी़ संक्रांति : उत्तर प्रदेश और बिहार।
- पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल।
- मकर संक्रमण : कर्नाटक।
- लोहड़ी : पंजाब
अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं, लेकिन दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान है। विशेष रूप से घी के साथ खिचड़ी खाने का महत्व है। इसके अलावा तिल और गुड़ का भी मकर संक्राति पर बेहद महत्व है। उत्तराखंड में इस दिन घुघुते बनाये जाते है, जिस कारण इस पर्व को घुघुत्या पर्व भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने पर सभी कष्टों का निवारण हो जाता है, इसीलिए इस दिन दान, तप, जप का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है।
मकर संक्रांति का महत्व | IMPORTANCE OF MAKAR SANKRANTI FESTIVAL IN HINDI
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते है, उस समय भगवान् शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते है। पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने के लिए, मतभेदों के बावजूद, मकर संक्रांति को महत्व दिया गया।
ऐसा माना जाता है कि इस विशेष दिन पर जब कोई पिता अपने पुत्र से मिलने जाते है, तो उनके संघर्ष हल हो जाते हैं और सकारात्मकता खुशी और समृधि के साथ साझा हो जाती है।
इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है, जो भीष्म पितामह के जीवन से जुडी़ हुई है, जिन्हें यह वरदान मिला था, कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी। जब वे बाणों की सज्जा पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने इस दिन अपनी आँखें बंद की और इस तरह उन्हें इस विशेष दिन पर मोक्ष की प्राप्ति हुई।
कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने पर सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। इसीलिए इस दिन दान, तप, जप का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि, इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।MAKAR SANKRANTI FESTIVAL IN HINDI
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग, हरिद्वार एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है।
भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मकर संक्रांति देवताओं के दिन का शुभारंभ है। इस दिन सभी देवता भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का पूजन-अर्चन करके अपने दिन की शुरुआत करते हैं। अलग-अलग जगहों के अक्षांश और देशांतर के अनुसार सूर्योदय के परिणामस्वरूप सूर्य के राशि परिवर्तन में समयांतर हो जाता है।
इस पर्व पर गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी आदि सभी पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देने से पापों का नाश तो होता है, पितृ भी तृप्त होकर अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं। इस दिन किए जाने वाले दान को महादान की श्रेणी में रखा गया है। वैसे तो सभी संक्रांतियों के समय जप-तप और दान-पुण्य का विशेष महत्व है, किंतु मकर संक्रांति के समय इसका फल अधिक प्रभावशाली होता है। मेष संक्रांति देवताओं का अभिजीत मुहूर्त होती है और मकर संक्रांति देवताओं के दिन का शुभारंभ है।
इस दिन सभी देवता भगवान श्रीविष्णु और मां श्रीमहालक्ष्मी जी का पूजन-अर्चन करके अपने दिन की शुरुआत करते हैं। श्रीविष्णु के शरीर से उत्पन्न तिल के द्वारा बनी वस्तुएं और श्रीलक्ष्मी के द्वारा उत्पन्न इक्षुरस, अर्थात गन्ने के रस से बनी वस्तुएं, जिनमें गुड़-तिल का मिश्रण हो, उन्हें दान किया जाता है। ऊनी कंबल, जरुतमंदों को वस्त्र, विद्यार्थियों को पुस्तकें, पंडितों को पंचांग आदि का दान भी किया जाता है। अन्य खाद्य पदार्थ, जैसे- फल, सब्जी, चावल, दाल, आटा और नमक आदि जो भी यथाशक्ति संभव हो, उसे दान करके संक्राति का पूर्ण फल प्राप्त किया जा सकता है।
पुराणों के अनुसार, ऐसा करने वाले को विष्णु और लक्ष्मी, दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और माघ माह के संयोग से बनने वाला यह पर्व सभी देवों के लिए दिन का
शुभारंभ होता है। इस दिन से तीनों लोकों में प्रतिष्ठान तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के पावन संगम तट पर 60 हजार तीर्थ, नदियां, सभी देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, नाग और किन्नर
आदि एकत्रित होकर स्नान, जप-तप और दान-पुण्य करके अपना जीवन धन्य करते हैं। तभी इस पर्व को तीर्थों और देवताओं कामहाकुंभ पर्व कहा जाता है।
मत्स्य पुराण के अनुसार, यहां की एक माह की तपस्या परलोक में एक कल्प (आठ अरब चौसठ करोड़
वर्ष) तक निवास का अवसर देती है, इसीलिए दूर-दूर से साधक यहां कल्पवास करने भी आते हैं।
मरणोपरांत जीव की गति बताने वाले महान ग्रंथ कर्मविपाक संहिता में सूर्य महिमा का वर्णन करते हुए भगवान शिव मां पार्वती से कहते हैं कि ‘ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शक्ति, देवता और योगी, ऋषि-मुनि आदि तीनों लोकों के साक्षी भगवान सूर्य का ही ध्यान करते हैं। जो मनुष्य प्रातः काल स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देता
है, उसे किसी भी प्रकार का ग्रह दोष नहीं लगता, क्योंकि इनकी सहस्रों किरणों में से प्रमुख सात किरणें सुषूणा, हरिकेश, विश्वकर्मा, सूर्य, रश्मि, विष्णु और सर्व बंधु, जिनका रंग बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल है, हमारे शरीर को नई उर्जाऔर आत्मबल प्रदान करते हुए हमारे पापों का शमन कर देती हैं।
प्रातःकालीन लाल सूर्य का दर्शन करते हुए :-
‘ॐ सूर्य देव महाभार त्र्यलोक्य तिमिरापः मम् पूर्वकृतं पापं क्षम्यतां परमेश्वरः’
मंत्र का जाप करते हुए सूर्य नमस्कार करने से जीव को पूर्वजन्म में किए हुए पापों से मुक्ति मिलती है।
आप सभी को इस पावन पर्व विविधता में एकता के प्रतीक संक्रांति की अनंत शुमकामनाएं।
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