1909 में भारत परिषद अधिनियम / मार्ले-मिन्टो सुधार-1909 [ Morley Minto Reforms 1909 | The Indian Council Act of 1909 ]

इस समय मार्ले भारत सचिव एवं लार्ड मिन्टो वायसराय थे इसलिए भारत परिषद अधिनियम 1909 को मार्ले-मिन्टो सुधारों [ Morley Minto Reforms 1909 ] के नाम से भी जाना जाता है। इन्ही दोनों के नाम के कारण भारत परिषद अधिनियम 1909 को मार्ले-मिन्टो सुधारों के नाम की संज्ञा दी गयी।

पृष्ठभूमि –  

  • भारतीय परिषद अधिनियम 1892 के प्रावधानों ने कांग्रेस के यथार्थवादी लक्ष्यों को पूर्ण नहीं किया।                    
  • लॉर्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया जिसके कारण बंगाल  में एक महत्वपूर्ण विद्रोह हुआ और कांग्रेस में उग्रवादियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था।  सरकार को इसको नियंत्रण में रखने के लिए नरम दाल को संतुष्ट करने के लिए कदम उठाना जरुरी लगा। अतिवादियों के प्रभाव को कम करने तथा क्रांतिकारी राष्ट्रवाद को रोकने के लिये भी सुधार किया जाना आवश्यक हो गया था।
  • अक्टूबर 1906 में वायसराय  लार्ड मिन्टो से मिलने आगा खां के नेतृत्व में एक मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल जाता है। यह मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल मुसलमानों के लिये पृथक निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था किये जाने की मांग करता है। प्रतिनिधिमंडल के अनुसार मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए । प्रतिनिधिमंडल ने तर्क दिया कि उनकी साम्राज्य की सेवा के लिये उन्हें पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए ।
  • 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की गयी थी। मुस्लिम लीग ने मुसलमानों को साम्राज्य के प्रति निष्ठा प्रकट करने की शिक्षा दी तथा मुस्लिम बुद्धिजीवियों को कांग्रेस से पृथक रखने का प्रयास किया।

 मार्ले-मिन्टो सुधारों [ Morley Minto Reforms 1909 ]  के मुख्य प्रावधान –

  •  केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि कर दी गयी। केंद्रीय परिषद में सरकारी बहुमत को बनाए रखा लेकिन प्रांतीय परिषदों में गैर-सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी।
  • गैर -सरकारी सदस्यों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या अभी भी कम थी। निर्वाचित सदस्यों की संख्या की तुलना में नामांकित एवं बिना चुने सदस्यों की संख्या अधिक थी।
  • केंद्रीय परिषद में इनकी संख्या 16 से 60 हो गई। प्रांतीय विधानपरिषदों में इनकी संख्या एक समान नहीं थी।
  •  निर्वाचित सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते थे।
  • स्थानीय निकायों से निर्वाचन परिषद का गठन होता था। ये प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों का निर्वाचन करती थीं। प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्य केंद्रीय व्यवस्थापिका के सदस्यों का निर्वाचन करते थे।
  • मार्ले-मिन्टो सुधारों [ Morley Minto Reforms 1909 ] ने पृथक् निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया। इसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। मुस्लिम मतदाताओं के लिये आय की योग्यता को भी हिन्दुओं की तुलना में कम रखा गया, मुस्लिमों को विशेष रियायत दी गयी।
  • मार्ले-मिन्टो सुधारों [ Morley Minto Reforms 1909 ]  दोनों स्तरों पर विधान परिषदों के चर्चा कार्यों का दायरा बढ़ाया। उदाहरण के तौर पर अनुपूरक प्रश्न पूछना, बजट पर संकल्प रखना , प्रस्तावों पर बहस करने, उनके विषयों में संशोधन प्रस्ताव रखने , उनको कुछ विषयों पर मतदान करने , साधारण प्रश्नों पर बहस करने तथा सार्वजनिक हित के प्रस्तावों को प्रस्तुत करने का अधिकार दिया गया।
  • वस्थापिकाओं को इतने अधिकार देने के पश्चात भी गवर्नर जनरल तथा गवर्नरों को व्यवस्थापिकाओं में प्रस्तावों को ठुकराने का अधिकार था।
  • गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त करने की व्यवस्था की गयी। पहले भारतीय सदस्य के रूप में सित्येंद्र सिन्हा को नियुक्त किया गया। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया था।
  • मार्ले-मिन्टो सुधारों [ Morley Minto Reforms 1909 ]   प्रेसिडेंसी’ कॉरपोरेशन, चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान भी किया।

मार्ले-मिन्टो सुधारों [ Morley Minto Reforms 1909 ] मूल्यांकन – 

नकारात्मक पक्ष –  

  • मार्ले ने स्पष्ट तौर पर स्वशासन की मांग को ठुकरा दिया। माले ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत स्वशासन के योग्य नहीं है।
  • 1909 के सुधारों का मुख्य उद्देश्य उदारवादियों को दिग्भ्रमित कर कांग्रेस में फूट डालना था।
  • साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को अपना कर राष्ट्रीय एकता को नष्ट करना था। इनका मुख्य उद्देश्य फुट डालो राज करो की नीति को अपनाना था।
  • सरकार इन सुधारों द्वारा नरमपंथियों एवं मुसलमानों की लालच देकर राष्ट्रवाद के उफान को रोकना चाहता थी।
  • मुस्लिम पृथक निर्वाचन प्रणाली को लागू किया गया वास्तव में इस व्यवस्था से मुसलमानों का छोटा वर्ग ही लाभान्वित हो सका।
  • मार्ले-मिन्टो सुधारों [ Morley Minto Reforms 1909 ] ने संसदीय प्रणाली तो दे दी गयी परंतु उत्तरदायित्व नहीं दिया गया।
  • अधिनियम के अंतर्गत अस्पष्ट चुनाव पद्धति अपनायी गयी।

सकारात्मक पक्ष  –

  • भारतीय नेताओं ने विधान मण्डलों को सरकार की कटु आलोचना करने का मंच बना लिया।
  • केवल गोपाल कृष्ण गोखले जैसे कुछ भारतीय नेता ही इस अवसर का सही से फायदा उठा सके । उन्होंने सभी के लिये प्राथमिक शिक्षा, सरकार की दमनकारी नीतियों की आलोचना तथा दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मजदूरों पर हो रहे अत्याचार जैसे मुद्दों को उठाकर इस मंच का सही अर्थों में उपयोग किया।
  • इस अधिनियम द्वारा चुनाव प्रणाली के सिद्धांत को भारत में पहली बार मान्यता मिली।
  • गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में पहली बार भारतीयों को प्रतिनिधित्व दिया गया।

मार्ले-मिन्टो सुधारों [ Morley Minto Reforms 1909 ]

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