सांस्कृतिक धरोहर – नौला | NAULA UTTARAKHAND IN HINDI
NAULA UTTARAKHAND
सांस्कृतिक धरोहर – नौला ( NAULA UTTARAKHAND) क्या है ?
हमारी सांस्कृतिक धरोहर “नौला”- नौला से अभिप्राय मानव निर्मित जलकुण्ड से है जिसे कुमाऊनी भाषा में “नौव” भी कहा जाता है। भारतीय परम्परा में जलस्रोतों का निर्माण पुण्य का कार्य है। इसी पुण्य और जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर शासक वर्ग, धनी वर्ग एवं जनसामान्य ने नौलों का निर्माण किया। ये नौले जनसामान्य की आवश्यकता पूर्ति के साथ- साथ कला का भी श्रेष्ठ उदहारण हैं एवं उत्तराखंड की कला के श्रेष्ठ प्रतिनिधि हैं। महाभारत में भगवान विष्णु स्वयं कहते हैं कि जल में निवास करने के कारण मेरा नाम नारायण ( नार- जल, आयन- घर) है। अतः भगवान विष्णु की जल से सम्बद्धता के कारण नौलों में भगवान विष्णु की शेषशायी प्रतिमाएं नौलों में स्थापित की गयी।
कुमाऊँ क्षेत्र के प्रमुख कलात्मक नौलों में “स्युनाराकोट नौला”, “एकहथिया नौला” एवं “बालेश्वर नौला” प्रमुख हैं। स्युनाराकोट नौले को पंत्युरा नौला के नाम से भी जाना जाता है जो कि पातलीबगड़- विजयपुरपाटिया ( कोसी, अल्मोड़ा के निकट) मोटर मार्ग में स्युनाराकोट गांव में अवस्थित है। स्युनाराकोट गांव प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली है।
सांस्कृतिक धरोहर – नौला ( NAULA UTTARAKHAND) किसने कराया निर्माण –
मान्यता के अनुसार इसका निर्माण गंगोलीहाट क्षेत्र से आये बृहष्पति पंत द्वारा करवाया गया। एकहथिया नौला चम्पावत के निकट प्राचीन चम्पावत- अल्मोड़ा पैदल मार्ग में स्थित है। इस नौले के विषय में किवदंती है कि इसे निर्मित करने वाला राजमिस्त्री पुनः ऐसी कलाकृति निर्मित न कर सके इस कारण से राजा द्वारा उसके एक हाथ को कटवा दिया गया। एक अन्य धारणा है कि इसे एक हाथ वाले राजमिस्त्री द्वारा निर्मित किया गया। इन्हीं किवदंतियों के कारण इसे एकहथिया नौला नाम से जाना जाता है।
बालेश्वर नौला चम्पावत में बालेश्वर मन्दिर के समीप स्थित है एवं तत्कालीन चंद शासकों द्वारा राजधानी चम्पावत में इसका निर्माण किया गया। कला की दृष्टि से उपरोक्त तीनों नौले कुमाऊँ के नौला स्थापत्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं एवं देवालयों के समान ही इनका निर्माण किया गया है। स्युनाराकोट एवं बालेश्वर नौले में चतुर्दिश स्तंभों पर आधारित मण्डप निर्मित किया गया है जबकि एकहथिया नौले के अग्रभाग में मण्डप निर्मित है। तीनों नौलों की बाह्य एवं भीतरी दीवारें मूर्तियों से अलंकृत हैं। ये मूर्तियां विष्णु के विभिन्न अवतारों, सूर्य, सरस्वती, ब्रह्मा, संगीतवादक, जनसामान्य के जीवन आदि से सम्बंधित हैं।
नौलों में प्रवेशद्वार द्वारशाखाओं (अलंकृत पट्टियां) से सज्जित हैं। स्युनाराकोट नौले के अलंकृत प्रवेश के शीर्ष में नवग्रहों का अंकन भी मिलता है। स्युनाराकोट नौले की एक दीवार में नौले की वास्तु योजना भी अंकित है। प्राचीन कुमाऊँ में नौले विभिन्न उद्देश्य (धार्मिक कार्यों के प्रयोग हेतु, जनसामान्य के प्रयोग हेतु एवं यात्रियों के प्रयोग हेतु ) की पूर्ति हेतु निर्मित किए गए। बालेश्वर नौला बालेश्वर मन्दिर के धार्मिक क्रियाकलापों हेतु, स्युनाराकोट नौला दैनिक प्रयोग हेतु एवं एकहथिया नौला यात्रियों हेतु निर्मित किया गया था। वर्तमान में बालेश्वर नौला ही भारतीय पुरातत्त्व संस्थान द्वारा संरक्षित है एवं काफी हद तक सुरक्षित है। एकहथिया नौले का जीर्णोद्धार राज्य पुरातत्व इकाई द्वारा करवाया गया है जबकि स्युनाराकोट नौला अपने संरक्षण की बाट जोहता हुआ नित्य क्षतिग्रस्त होता जा रहा है। अगर हम समय रहते इनके संरक्षण हेतु जागरूक न हुए तो हमारी ये गौरवशाली विरासत सदैव के लिए लुप्त हो जायेगी।
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