Osho (Rajneesh) Biography in Hindi | ओशो (रजनीश) जीवन परिचय
Osho (Rajneesh) Biography in Hindi
ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश में हुआ था । बचपन में उनका नाम रजनीश चंद्र मोहन जैन था। उनके पिता का नाम श्री बाबूलाल और माता का नाम सरस्वती जैन हैं
इन्होंने स्नातक 1955 में जबलपुर विश्वविद्यालय से की तथा सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की। ओशो रजनीश ने 1959 में प्रोफेसर का पद प्राप्त किया।जब इन्हें प्रोफेसर का पद प्राप्त हुआ था उस समय तक ओशो रजनीश धर्म और दर्शन शास्त्र के क्षेत्र में अच्छा ज्ञान प्राप्त करके इस क्षेत्र के ज्ञाता बन चुके थे।
संस्थाएं औऱ अनुयायी
ओशो रजनीश ने पुणे में रजनीश केंद्र की स्थापना की। वहीं अमेरिका में 1981 ईस्वी में ओरेगॉन में अपना कम्यून बनाया। ओशो रजनीश के अनुयाई बड़े-बड़े उद्योगपति फिल्म अभिनेता विदेशी धनकुबेर युवा वर्ग आदि बड़ी संख्या में है।
प्रवचन व पुस्तके
ओशो रजनीश की अनेक पुस्तकें विश्व प्रसिद्ध रही हैं तथा उन्होंने अनेक प्रवचन दिए जो यूट्यूब तथा केशीट के रूप में उपलब्ध हैं। इनकी रचनाओं में ‘संभोग से समाधि तक’ , ‘मृत्यु है द्वार अमृत का’ , ‘संभावनाओं की आहट’ , ‘प्रेम दर्शन’ , के नाम आदि प्रमुख है।
संभोग से समाधि की ओर ओशो रजनीश की सबसे चर्चित पुस्तक तो है ही साथ ही यह पुस्तक काफी विवादास्पद भी रही है। कुछ तथ्यों के अनुसार इनके प्रवचनों की लगभग 600 पुस्तकें उपलब्ध हैं।
महिलाओं के विषय में विचार –
ओशो रजनीश ने महिलाओं के विषय में अत्यधिक आधुनिक विचारों को प्रस्तुत किया है। उनका मानना है कि महिलाओं को अपने जीवन को आगे ले जाने के लिए तथा सुखद बनाने के लिए खुद प्रयास करना पड़ेगा। इनका मानना है कि महिलाओं को अपने लिए खुद मार्गों का सृजन करना पड़ेगा न कि मार्ग पुरुष द्वारा बनाए गए मार्गों का अनुसरण करना चाहिए।
इनका मानना है कि यदि स्त्री चाहे तो युद्ध नहीं होगा –
रजनीश का मानना है कि यदि स्त्री चाहे तो पूरे विश्व में कभी युद्ध ना हो । इनका कहना है कि अगर सारी दुनिया की स्त्रियां एक बार तय कर ले युद्ध नहीं होगा। दुनिया पर कोई राजनैतिक युद्ध में कभी किसी को नहीं घसीट सकता सिर्फ स्त्रियां तय कर ले युद्ध अभी नहीं होगा तो नहीं हो सकता।
क्योंकि कौन जाएगा युद्ध पर कोई बेटा जाता है कोई पति जाता है कोई भाई जाता है मुश्किल यह है कि स्त्री को कुछ पता नहीं कि यह क्या हो रहा है। वह पुरुष के पूरे जाल में सिर्फ एक खिलौना बन कर , हर जगह एक खिलौना बन जाती हैं ।
महिलाओं को क्रांति लानी होगी –
ओशो रजनीश का मानना है कि विश्व में बड़ी से बड़ी क्रांति स्त्री को ही लानी होगी। उनका मानना है कि सारी दुनिया की महिलाओं में यह बुनियादी विचार जागृत हो जाना चाहिए कि वे एक नई संस्कृति को एक नए समाज को एक नई सभ्यता को जन्म दे सकती हैं।
संन्यास के बारे में विचार –
ओशो रजनीश के विचारों के अनुसार सन्यासी वह है, जो अपने घर संसार बच्चों तथा पत्नी को संग लेकर पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए सत्संग और ध्यान का जीवन व्यतीत करें।
जीवन मे कोई रहस्य नहीं है –
ओशो रजनीश का मानना है कि जीवन में कोई रहस्य है ही नहीं। उनका कहना है कि जीवन खुला रहस्य है। इसको समझाने के लिए उदाहरण देते हैं कि जैसे अंधा आदमी पूछे कि मैं प्रकाश की रहस्य जानना चाहता हूं तो उस अंधे आदमी को प्रकाश का रहस्य जानने के लिए बस इतना ही करना है कि उसे अपनी नेत्रों का इलाज कराना होगा।
इसी प्रकार ओशो रजनीश कहते हैं कि जीवन भी बंद मुट्ठी की तरह नहीं बल्कि खुला हाथ है। व्यक्तियों ने अपने अंधेपन को छुपाने के लिए ही जीवन को एक रहस्य के तौर पर प्रस्तुत किया है।
बुरा आदमी संत बन सकता है बल्कि अच्छा आदमी नही –
ओशो रजनीश का मानना है कि एक बुरा आदमी अपने जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव को देखता है। उस बुरे आदमी में एक जिंदगी मौजूद होती है तथा इन उतार-चढ़ाव से ही उस बुरे आदमी को जिंदगी के अनेक अनुभव प्राप्त होते हैं। यदि वह व्यक्ति अनुभव का समुचित उपयोग कर ले तो वह संत बन सकता है।
उनका मानना है कि अच्छा आदमी कभी संत नहीं बन सकता। बस वह अच्छा आदमी ही रह जाता है यानी कि एक सज्जन व्यक्ति ही रह जाता है अर्थात सज्जन यानी मिडयोकर। जिसने कभी बुरे होने की या कुछ बुरे करने की हिम्मत ही नहीं की है। इसलिए वह व्यक्ति कभी संत होने की सामर्थ्य भी नहीं जुटा पाता है।
प्रेम के विषय मे विचार –
ओशो रजनीश का कहना है कि वास्तविक प्रेम किसी बुखार की तरह नहीं होता बल्कि वह तो श्वास की तरह होता है। जो निरंतर चलता ही रहता है , उनका मानना है कि वास्तविक प्रेमी अंत तक प्रेम करते हैं। अंतिम दिन में इतनी गहराई से प्रेम करते हैं। जितना उन्होंने प्रथम दिन किया होता है। उनका प्रेम कोई उत्तेजना नहीं होता उत्तेजना तो वासना होती है।
ओशो रजनीश से संबंधित विवाद –
ओशो रजनीश ने धर्म, परंपराओं पर, धार्मिक संस्थाओं पर, तथा यौन संबंधी विचारों पर हमेशा खुलकर अपने विचार रखे हैं जिस वजह से ये समाज के रूढ़िवादी वर्ग का विरोध झेलते रहे हैं।
मृत्यु
ओशो रजनीश की मृत्यु 19 जनवरी 1990 को 58 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी।
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