PEGASUS SPYWARE | पेगसस स्पाईवेयर
PEGASUS SPYWARE
कहा जाता है कि हर ताले की चाबी होती है और चोर जब शातिर हो तो वह हर ताले की चाबी बना ही लेता है। आज के इस डिजिटल दौर में जहां आपके सारे काम अपनी स्टाइलिश गैजेट्स में उंगली घुमाते ही पूरे हो जाते हैं, ऐसे मैं आपकी हर पर्सनल जानकारी किसी ना किसी रूप में इंटरनेट में मौजूद है चाहे वह चैट हो, तस्वीरें हो या बैंक की जानकारियां हो।
यह सच है कि अगर कोई एप्लीकेशन या वेबसाइट आप के डाटा को सुरक्षित करने का भरोसा दिलाती है, तो दूसरी तरफ दुनिया के हर कोने में ऐसे जासूस भी बैठे हैं जो हर वेबसाइट, एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर की सेंध-मारी या हैक करने में सक्षम है।
इसलिए आज की डिजिटल दुनिया में करोड़ों प्रकार के वायरस मौजूद है। ऐसे कई मौके आए हैं जब कई बड़ी-बड़ी आधिकारिक वेबसाइट को हैक कर लिया गया और उनका नाम बदल दिया गया। हाल ही में इजराइली स्पाइवेयर PEGASUS (पेगसस) द्वारा भारत समेत दुनिया के कई प्रतिष्ठित लोगों की जासूसी करने का मामला सामने आया।
PEGASUS (पेगसस) का अर्थ होता है जासूसी घोड़ा जो किसी अकाउंट को हैक करके उसकी पूरी जानकारी निकाल लेता है। इस लेख के माध्यम से हम बात करेंगे डिजिटल फ्रॉड की तमाम बारीकी और PEGASUS (पेगसस) के बारे में। PEGASUS SPYWARE
PEGASUS SPYWARE (पेगसस) क्या है ? WHAT IS PEGASUS SPYWARE | PEGASUS (पेगसस) In Hindi
बीते कुछ दिनों से PEGASUS (पेगसस) स्पाइवेयर काफी सुर्खियों में है। इसके खिलाफ संसद तक में विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है। PEGASUS (पेगसस) स्पाइवेयर व्हाट्सएप पर निगरानी रख रहा है।
दुनिया में लगभग डेढ़ अरब लोग व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं। भारत में लगभग 40 करोड़ लोग व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं। कुछ दिन पहले व्हाट्सएप में सेंध लगाकर इसराइली स्पाइवेयर PEGASUS (पेगसस) के जरिए भारत के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, वकीलों और कुछ राजनेताओं की जासूसी कराने का मामला सामने आया। इसके बाद व्हाट्सएप इस्तेमाल करने वाले लोगों में निजता की सुरक्षा का सवाल उठने लगा है। पूरा मामला व्हाट्सएप सॉफ्टवेयर में खराबी से जुड़ा नहीं है, यह मामला इसराइली कंपनी एनएसओ (NSO) के स्पाइवेयर PEGASUS (पेगसस) के जरिए भारत में जासूसी से जुड़ा हुआ है।
इजराइल का PEGASUS SPYWARE (पेगसस स्पाइवेयर) एक तरह का जासूसी वायरस है, जो किसी भी व्हाट्सएप यूजर के मोबाइल फोन पर बिना उसके चाहे भी प्रवेश कर सकता है और सारी जानकारी आसानी से निकाल सकता है। इसके लिए सिर्फ एक मिस्ड कॉल ही काफी है। इससे पहले वर्जन में वायरस भेजने के लिए लिंक या कोई चीज भेजनी पड़ती थी मगर अब एडवांस वर्जन में मिस कॉल ही काफी है। वायरस को इतना हाईटेक बना दिया गया है कि इसे किसी के भी मोबाइल में बहुत आसानी से प्रवेश कराया जा सकता है और सारी महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं। PEGASUS SPYWARE
भारत में एक इसराइली जासूस द्वारा इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से व्हाट्सएप के जरिए 24 अलग-अलग तबके के लोगों की जासूसी करने का मामला सामने आया। जासूसी की इन खबरों पर केंद्र सरकार ने भी गंभीरता दिखाते हुए व्हाट्सएप से जवाब मांगा और उपभोक्ताओं के निजता की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। सवाल उठता है कि स्पाइवेयर पेगसस कैसे हमारे लिए नुकसानदायक है?
स्पाइवेयर पेगसस के पहले वर्जन में हैकिंग के लिए वायरस को एक लिंक के तौर पर SMS या व्हाट्सएप के जरिए भेजा जाता था। इस लिंक पर क्लिक करते ही मोबाइल यूजर का डिवाइस हैक हो जाता था। पेगसस का लेटेस्ट वर्जन और भी खतरनाक है। अब यह सिर्फ एक व्हाट्सएप मैसेज या मिस्ड कॉल के जरिए किसी भी यूजर के फोन में प्रवेश कर सकता है।
स्पाइवेयर पेगसस के सामने आने से व्हाट्सएप के एंड टू एंड इंक्रिप्शन पर सवाल खड़े हो गए हैं एंड टू एंड इंक्रिप्शन के कारण व्हाट्सएप को काफी सुरक्षित माना जाता था। इसकी वजह है कि कोई थर्ड पार्टी इनकोडेड मैसेज को नहीं देख सकती थी। स्पाइवेयर पेगसस ने इसका तोड़ निकाल लिया मैसेज के डी-कोड होने और यूजर के फोन में आने के बाद अटैचमेंट समेत उसे पेगसस के जरिए बहुत आसानी से मॉनिटरिंग सर्वर पर अपलोड किया जा सकता है।
स्पाइवेयर पेगसस से बचने के लिए सिर्फ डिवाइस बदलना ही काफी नहीं है, क्योंकि यह लॉगिन आईडी और पासवर्ड समेत हर तरह की डिटेल खुद ही दर्ज कर लेता है। पेगसस इतना खतरनाक है कि आप चाह कर भी उसे अपने मोबाइल से अन इनस्टॉल नहीं कर सकते। यह इतना खतरनाक है कि यह फोन के फैक्ट्री रिसेट (Factory Reset) होने के बाद भी उस में मौजूद रहता है। इससे बचने का केवल एक ही तरीका है और वह है नया डिवाइस खरीदना और उसमे सभी लॉगिन डिटेल्स को बदलना ही एकमात्र तरीका है। PEGASUS SPYWARE
व्हाट्सएप का कहना है कि सितंबर में भारत सरकार को बताया गया था की 121 भारतीय उपयोगकर्ताओं को इसराइल स्पाइवेयर पेगसस ने निशाना बनाया है। वही सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा कि उसे व्हाट्सएप से जो सूचना मिली वह अपर्याप्त और अधूरी थी। व्हाट्सएप ने यह भी कहा है कि इसराइली स्पाइवेयर पेगसस के जरिए दुनिया भर में पत्रकारों एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी की गई। इनमे भारतीय पत्रकार एवं कार्यकर्ता भी शामिल है। व्हाट्सएप ने साफ किया है कि वह NSO ग्रुप के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर रही है। NSO इजरायली कंपनी है जो निगरानी करने का काम करती है। कहा गया है कि जिन लोगों के फोन हैक हुए हैं, वह 4 महाद्वीपों में फैले हैं। इनमें राज-नायक, राजनीतिक विरोधी, पत्रकार और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी शामिल है। हालांकि व्हाट्सएप ने यह खुलासा नहीं किया कि किसके कहने पर पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन हैक किये गए है। PEGASUS SPYWARE
PEGASUS SPYWARE | स्पाइवेयर क्या होता है और यह कैसे काम करता है?
जैसे-जैसे डिजिटल दुनिया में नवीनतम तकनीक के इस्तेमाल से नव क्रांति होती जा रही है वैसे-वैसे इसकी सुरक्षा को लेकर सवाल भी खड़े होते जा रहे हैं। आए दिन सोशल मीडिया से जुड़े कई यूजर्स के पर्सनल डाटा हैक होने और किसी खास मकसद के लिए उनके इस्तेमाल की बात सुनने में आती ही रहती है। यहां तक कि अलग-अलग सॉफ्टवेयर प्रोग्राम बना कर सोशल मीडिया यूजर्स की स्पाई भी कराई जाती है। सोशल मीडिया यूजर्स की जासूसी करने के लिए जो सॉफ्टवेयर प्रोग्राम बनाए जाते हैं उन्हें स्पाइवेयर के नाम से जाना जाता है।
स्पाइवेयर एक प्रकार का मैलवेयर है जो आपके कंप्यूटर, मोबाइल, टेबलेट आदि से गुप्त एवं पर्सनल जानकारियां चुरा कर उसे अपने मालिक तक पहुंचाता है। स्पाइवेयर का इस्तेमाल जीमेल अकाउंट हैक करने और बैंक अकाउंट डिटेल चोरी करने के साथ ही सोशल मीडिया से लेकर टेक्स्ट संदेश तक अलग-अलग तरह की ऑनलाइन गतिविधियों पर डाटा एकत्र करने के लिए किया जा सकता है। स्पाइवेयर अधिकतर नवीनतम डिवाइस मॉडल और ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ जुड़ा होता है। उन्हें कुछ इस तरह डिजाइन किया जाता है कि उनका पता ना लगे। कई बार कुछ कंपनियां अपने ऑफिस के कंप्यूटर मैं खुद स्पाईवेयर इंस्टॉल करते हैं ताकि वह जान पाए कि उनके कर्मचारी ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं।
स्पाइवेयर के प्रकार (Types of Spyware) :
स्पाइवेयर के प्रकार की बात करें तो यह कई प्रकार के होते हैं। इनमें एडवेयर, कुकी ट्रैकर, सिस्टम मॉनिटर और ट्रोजन स्पाइवेयर प्रमुख हैं।
एडवेयर स्पाईवेयर : एक सामान्य प्रकार का स्पाइवेयर है। जो मुख्य रूप से विज्ञापन दाताओं द्वारा उपयोग किया जाता है।
कुकी ट्रैकर स्पाइवेयर : इसके तहत किसी व्यक्ति की इंटरनेट गतिविधियों के बारे में जानकारी एकत्र की जाती है।
सिस्टम मॉनिटर स्पाइवेयर : इसका उपयोग किसी की डिवाइस की गतिविधियों पर नजर रखने और उसे डाटा रिकॉर्ड करने के के लिए किया जाता है।
ट्रोजन स्पाइवेयर : इसे अक्सर वास्तविक एप्लीकेशन दस्तावेज या सॉफ्टवेयर के रूप में चित्रित किया जाता है।
स्पाइवेयर की जासूसी से बचने के लिए कंप्यूटर और मोबाइल में एंटी स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल के साथ ही समय-समय पर इसे अपडेट करते रहना भी जरूरी है। इसके अलावा इंटरनेट पर कोई भी जानकारी सर्च करते समय केवल ऑथेंटिक वेबसाइट पर सर्च करने की ही जरूरत है।
इंटरनेट की दुनिया में एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन शब्द का बहुत उपयोग होता है। इंटरनेट एक ऐसा जाल है जहां पर कुछ भी सेव नहीं है इसलिए हम जब हम किसी भी डाटा को सुरक्षित रखना चाहते हैं तब हम उसे एन्क्रिप्ट करते हैं और पढ़ने के लिए हम उसे डिक्रिप्ट करते हैं। PEGASUS SPYWARE
Encryption and Decryption (एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन)
जब हम इंटरनेट पर कोई भी संवेदनशील और महत्वपूर्ण डाटा सेव करते हैं तो हम चाहते हैं कि वह डाटा हैक ना हो पाए या उसका कोई दुरुपयोग ना कर पाए। इसके अलावा जब हम किसी को कोई निजी संदेश और गोपनीय सूचना भेजते हैं तो हमें इस बात का डर होता है कि कोई दूसरा उसे पढ़ना ले। इसके लिए हम उस सूचना को एंक्रिप्ट करते हैं यानी उसे एक कोड भाषा में लिखते हैं ताकि किसी दूसरे के हाथ लगने पर भी वह उस डाटा को ना पढ़ सके। दरअसल एन्क्रिप्ट या एन्क्रिप्शन एक प्रक्रिया है जिसमें डेटा को एक ऐसे फॉर्म में बदल दिया जाता है, जिसे पढ़ना ही क्या समझना भी एक आम इंसान के लिए लगभग नामुमकिन हो जाता है। यहां तक कि हैकरों को भी देता या फाइल को एन्क्रिप्ट करने के बाद उसे उसे पढ़ पाना या उस तक पहुंच बनाना बहुत ही मुश्किल होता है। जैसे ही डाटा पूरी तरह एन्क्रिप्ट अर्थात सुरक्षित हो जाता है तो इस पूरी प्रक्रिया को इंक्रिप्शन कहा जाता है।
डिक्रिप्शन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक अनरिडेबल टेक्स्ट को एक गुप्त कोड को टेक्स्ट या ऐसे टेक्स्ट में कन्वर्ट कर दिया जाता है जो पढ़ने वाले की समझ में आए और कोई भी यूजर उसे आसानी से पढ़ सकता है। इसके लिए यूजर के पास पासवर्ड डिस्क्रिप्शन की (KEY) होनी चाहिए तभी वह इस टेक्सट या कोड का डिस्क्रिप्शन कर सकता है।
डिजिटल वर्ल्ड की चुनौतियां (Digital World) :
आज के दौर में हमारी डिजिटल जानकारी कितनी सुरक्षित है यह एक बहुत बड़ा सवाल है। ऑनलाइन शॉपिंग, सोशल मीडिया और मोबाइल ऐप हर कोई हमारे बारे में जानकारी एकत्र करता है जिसे गोपनीय रखने को लेकर सभी आश्वासन तो देते हैं लेकिन उसकी सुरक्षा को लेकर कोई भी 100 फ़ीसदी गारंटी नहीं दे सकता। इसलिए डिजिटल सुरक्षा के उपाय जानना भी जरूरी है।
- कंप्यूटर और इंटरनेट के जरिए की गई किसी भी तरह की आपराधिक गतिविधियां साइबर क्राइम के अंतर्गत आती हैं। इन्हें साइबर अपराध, कंप्यूटर क्राइम या इंटरनेट क्राइम के नाम से भी जाना जाता है।
- साइबर अपराधी कहीं दूर बैठकर हैकिंग के जरिए आपके सरकारी या निजी कारोबारी दस्तावेज जानकारी या फिर पैसा चुरा सकता है।
- साइबर क्राइम के दायरे में अन्य तरह के अपराध भी शामिल है इनमें ईमेल के जरिए स्पैम, किसी वस्तु विशेष के प्रचार का मेल, किसी कंपनी के गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करना, वायरस को मेल के माध्यम से फैलाना, पोर्नोग्राफी को बढ़ावा देना, इंटरनेट चैट के जरिए गलत काम को अंजाम देना, सॉफ्टवेयर प्राइवेसी, इंटरनेट के माध्यम से परेशान करना शामिल है।
जागरूकता :
- इंटरनेट बैंकिंग या किसी भी जरूरी अकाउंट का कार्य पूरा होने के बाद उसको लॉगआउट करना ना भूलें।
- पासवर्ड टाइप करने के बाद रिमेंबर पासवर्ड, या कीप लॉगिन जैसे ऑप्शन पर कभी भी क्लिक ना करें।
- कभी भी साइबर कैफे, ऑफिस या सार्वजनिक सिस्टम पर बैंकिंग लेनदेन ना करें।
- कभी भी जन्मतिथि या पने नाम जैसे साधारण पासवर्ड ना बनाये।
- पासवर्ड में लेटर, नंबर और स्पेशल करेक्टर का मिश्रण रखे।
- पासवर्ड किसी के भी साथ साझा ना करें।
- ईमेल और इंटरनेट बैंकिंग के पासवर्ड एक ना हो, ऐसा होने पर पासवर्ड चोरी की आशंका बढ़ जाती है।
- फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया साइट्स और इंटरनेट बैंकिंग के पासवर्ड अलग-अलग रखे।
- कभी भी इंटरनेट बैंकिंग का यूजर नेम और पासवर्ड ईमेल पर सेव ना करें।
- मोबाइल नंबर, आधार नंबर एवं पैन संख्या ईमेल आईडी किसी के साथ साझा ना करें।
- बैंक के नए दिशा निर्देशों का पूरी तरह से पालन करें।
- बैंक की तरफ से किसी भी अलर्ट मैसेज को नजरअंदाज ना करें, ऐसे किसी भी मैसेज मिलने पर तुरंत बैंक से संपर्क करें।
- डेबिट कार्ड का पिन नंबर नियमित अंतराल में बदलते रहे और ट्रांजैक्शन पूरा होने एवं कैंसिल होने तक एटीएम में केबिन न छोड़े।
इनके अलावा पैसों के लेन-देन से जुड़े एवं ऑनलाइन धोखाधड़ी को रोकने के लिए एक और व्यवस्था आई और वह है ब्लॉकचेन। माना जाता है कि 2008 में बिटकॉइन का आविष्कार होने के बाद क्रिप्टो करेंसी को प्रमोट करने के लिए ब्लॉकचेन तकनीक को लाई गई। ब्लॉकचेन एक डिजिटल खाता है जिसमें लेनदेन और सूचनाओं का स्थाई रिकॉर्ड होता है और जिन्हे सत्यापित भी किया जा सकता है। ब्लॉकचेन एक एक ऐसी तकनीक है जो सुरक्षित और आसानी से सुलभ नेटवर्क पर लेन-देन का एक सुरक्षित डेटाबेस तैयार करती है। ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल सूचना प्रौद्योगिकी और डाटा प्रबंधन, कागजात रखने, बैंकिंग और बीमा सुरक्षा। क्लाउड स्टोरेज ऐसे कई क्षेत्र में किया जा सकता है।
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