लुप्त होते खेल और चक्रव्यूह में फंसा अभिमन्यु | Phone Addiction In Hindi | Side Effects Of Phone addiction In Hindi
खेल जीवन का अमूल्य हिस्सा हैं। ये बच्चों में उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के मानसिक विकारों को दूर करने एवम सहभागिता को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आज के आधुनिक समय में जब इन खेलों का स्थान मोबाइल फोन ने ले लिया है। तब आज का वह बच्चा उन पारंपरिक खेलों को भुलाता जा रहा है। जो हमारे पूर्वजों से हमको मिले और जिन खेलों में हमारी संस्कृति हमारी वेश-भूषा आदि का अदभुत समावेश देखने को मिलता था। Phone Addiction In Hindi
परंतु आज के मोबाइल युग में बच्चा एक काल्पनिक दुनिया का निर्माण करता है। ऐसी दुनिया जो उसे कुछ पलों में ही एक लंबा सुख प्रदान करती है। पर उसे यह ज्ञान नहीं होता कि यह सुख स्थाई नहीं है। पर इस काल्पनिक दुनिया का हिस्सा बनने से वह यह नहीं समझ पाता कि वह एक ऐसे दलदल में फंसता जा रहा है , जहां से निकल पाना बहुत मुश्किल होगा। वह अपने मूल लक्ष्य से भी भटकता जा रहा है। आज का बच्चा अपनी उन समस्त मानसिक संवेदनाओं, मनोवृत्तियों को प्रदर्शित करने में सदा स्वयं को असमर्थ पाता हैं। क्योंकि यह काल्पनिक दुनिया उसे हकीकत से मिलने ही नहीं देती ।
बस यही आलम बच्चे के किशोरावस्था में पहुंचने तक बनी रहती हैं। यह दुनिया उसके किशोरावस्था में पहुंचने तक एक चक्रव्यूह में बदल जाती है। ऐसा चक्रव्यूह जो आज के पूंजीवादी बाजारों द्वारा बुना जाता है। जिसमें बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स,सिनेमाघर,कैफे,आदि होते हैं।
जो कई प्रकार के आकर्षक इस्तेहारों द्वारा बच्चों को आज की इस भौतिकवादी दुनिया की ओर खींचते हैं ।आज का बच्चा भी एक अभिमन्यु के समान है। जो आज के पूंजीवाद चक्रव्यूह में फंसता जा रहा है। मोबाइल फोन के द्वारा निर्मित जिस काल्पनिक दुनिया में आज की पीढ़ी जी रही है। वह उसे केवल एक बंद कमरे तक ही सीमित कर दे रही है। इसलिए जरूरी है कि बच्चों को इस बंद कमरों से बाहर निकाला जाए ।इसलिए शिक्षकों,अभिवावकों और समाज के सभी लोगों को प्रयास करना चाहिए कि बच्चों में उन पारंपरिक खेलों को जिंदा रखा जाए। जो बच्चों को इस मात्रभूमि, इस जन्मभूमि,भाषा, संस्कार,संस्कृति से जोड़ते हैं।
जो बच्चों में आपसी सद्भाव, सहभागिता को बढ़ाते हैं। जहां एक ओर भारत सरकार स्वयं देश के प्रधानमंत्री जी द्वारा भी समय समय पर खेलों को प्राथमिकता देते हुए कई राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयास किए जाते रहते हैं। परंतु वर्तमान परिस्थितियाँ ऐसी बनती जा रही हैं कि प्रातः भोर काल में ही बच्चा मोबाइल फोन आदि पर इलेक्ट्रोनिक खेलों का आनंद ले रहा।
जिस वजह से माता पिताओं को भी बच्चे के लिए चिंतित होना पढ़ रहा है। यह स्थिति यह प्रश्न भी खड़ा करती है कि इससे भारत के भविष्य पर क्या असर पड़ सकता है। अतः यह बात स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है कि आज इन बच्चों को इस पूंजीवादी चक्रव्यूह और मोबाइल फोन की इस काल्पनिक दुनिया से बाहर निकालना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए जरूरी है कि अच्छी शिक्षा अच्छे स्वास्थ का निर्माण किया जाए और जहां तक मैं समझता हूं पारंपरिक खेल इस कार्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अतः यह एक विराट प्रश्न है कि बच्चों में बाल्यावस्था से ही इस मोबाइल फोन की आदत ना डालकर बच्चों में उन पारंपरिक खेलों को कैसे समावेसित किया जाए। इसके लिए हम सभी को गंभीरता से विचार करना होगा।
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