कविता : अगर ना होते
अगर ना होते
कि खुशियों भरे जीवन में खून की होली कौन लाता,
अगर बंदूक ही ना बनी होती तो गोली कौन चलाता।
ऐ मौत जिंदगी को खरीदने का ये तेरा धंधा ना होता,
अगर रस्सी ना होती तो ये फांसी का फंदा ना होता।
कोई चंद पल में ही यूं ना अपनी सासें झटक जाता,
अगर जहर ना बना होता तो कोई यूं ना गटक पाता।
शायद यूं ना किसी का बदन अग्नि से दहल पाता,
माचिस की तीली ना होती तो यूं ना कोई जल पाता।
खुशियों भरे परिवारों को यूं ना कोई बांट जाता।
छुरी ना होती तो कोई यूं ना अपनी कलाई काट पाता।
और जीने का मजा तो बिन पानी भी खूब आता।
नदी तालाब समुंदर ना होते तो यूं ना कोई डूब जाता।
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