संगति का प्रभाव कैसे पड़ता हैं | अच्छी संगति के लाभ | संगति का अर्थ | Sangati Ka Prabhav In Hindi
प्राचीन काल से ही हमारे ग्रंथो में, महापुरुषों ने संगति के प्रभाव पर (sangati ka prabhav) विशेष तौर पर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया हैं। समाज भी संगति का प्रभाव कैसे पड़ता हैं, इस विषय पर ध्यान आकर्षण का कार्य समय समय पर करता रहता है। इस लेख में हमारे व्यक्तित्व जीवन, भविष्य पर संगति का प्रभाव कैसे पड़ता हैं (sangati ka prabhav), अच्छी संगति के लाभ, संगति का अर्थ आदि विषयों पर चर्चा की गयी है।
“जैसी संगत वैसी ही रंगत ।“
आमतौर पर आपने ये कथन अनेक लोगों के मुख से सुना होगा, इसका अर्थ है कि
आपकी संगति ही आपकी नियति का निर्धारण करती हैं । आप जैसी संगति करते हैं वैसे ही विचार आपको प्राप्त होते हैं , और उन्ही विचारो के अनुरूप आपका व्यवहार भी होता हैं और आपके व्यवहार के अनुरूप ही आपके व्यक्तित्व का विकास होता हैं । जैसा आपका व्यक्तित्व होगा वैसा ही फल आपको जीवन मे प्राप्त होगा।
इसलिए महापुरषों ने हमेशा सुसंगति पर बल दिया हैं, कुसंगति इंसान का चरित्र ह्रास करके उसे एक अंधकारमय जीवन मे ले जाती हैं ।
Sangati ka Prabhav Par kahani | संगति के प्रभाव को एक छोटी सी कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं -:
एक तितली की मित्रता एक कीचड़ में रहने वाले कीड़े से हो जाती हैं । मित्रता में कीड़े के द्वारा तितली को दावत का आमंत्रण दिया जाता हैं ; तो तितली उसके वहाँ आमंत्रण में जाती हैं और जब उसको कीचड़ में जाकर दावत करनी पड़ती है तो वह सोचती है कि ये सब संगति का फल हैं कि आज अच्छे अच्छे फूलों का रसपान करने की जगह यहाँ ये गंदगी का रसपान करना पड़ रहा हैं । ऐसे ही कुछ समय पश्चात तितली द्वारा कीड़े को भी आमंत्रण दिया जाता हैं तो कीड़ा ,तितली के यहाँ जाता हैं और तितली उसे एक गुलाब के फूल पर रसपान के लिए ले जाती है ; कीड़ा अत्यंत प्रश्न होता हैं । कीड़ा रसपान कर ही रहा होता है कि तभी एक पुजारी उस फूल को भगवान के चरणों मे समर्पित कर देता हैं । कीड़ा अत्यंत खुश होता है कि एक ऐसे मित्र की संगति मिली है कि आज प्रभु के चरणों के दर्शन संभव हुए तभी पुजारी उन फूलों को एक नदी में विसर्जित करता हैं ; जो नदी आगे जाकर पावन गंगा नदी में मिल जाती हैं । तो वो कीड़ा भी उन फूलों के सहयोग से गंगा नदी में जा मिलता है। तब तितली कीड़े से उसके बारे में पूछती हैं तो कीड़ा, तितली को जवाब देता है कि –
“जो जैसी संगति करै, सो तैसे फल खाइ”।
अर्थात जो जैसी संगति करता हैं वो वैसा ही फल खाता हैं। कीड़े को एक ऐसी सुसंगति मिली कि वह पावन गंगा में तर गया।
इसी प्रकार एक दोहा हम बचपन से ही पढ़ते आये हैं-
“कदली-सीप-भूवंग मुख, एक बूंद तिहँ भाइ “अर्थ – वर्षा की बूँद केले पर पड़ी, सीप में पड़ी और सांप के मुख में पड़ी – परिणाम अलग-अलग हुए- कपूर बना, मोती बना और विष बना ।
बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान देना आवश्यक (sangati ka prabhav) -:
आज दुर्भाग्य यह है कि अधिकतर परिजनों का ध्यान इस ओर बहुत कम है कि उनके बच्चे किस प्रकार की संगति कर रहे हैं; बल्कि उनका ध्यान इस ओर अधिक है कि किस प्रकार सात पीढ़ियों के लिए पैसा कमा कर इक्कठा किया जाए। वो ये भूल गए है कि
“पूत कपूत तो क्यो धन संचे, पूत सपूत तो क्यो धन संचे” ।
अगर बेटा कुपुत्र है तो उसके लिये धन संचय क्यो किया जाय, वो तो उसे गलत कामों ( नशा, जुवा आदि ) में उड़ा देगा और अगर पूत सपूत है तब भी धन क्यो संचय किया जाए वो तो स्वयं अपनी प्रतिभा से आप से अधिक कमा सकेगा।
बच्चों पर घर के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव स्कूल का पड़ता हैं। घर से बाहर बच्चो का एक समूह अवश्य होता हैं अगर वह समूह गलत संगति पर आधारित हैं तो ये भी निश्चित है कि उस समूह का प्रभाव बच्चे के भविष्य पर भी अवश्य होगा। बच्चा उस समूह में खुद को सर्वश्रेष्ठ बनाने या खुद को दूसरे सहयोगियों के नज़रो में उठाने के लिए ; समूह की संगति के अनुसार ही कार्य या व्यवहार करने की सोचता है या प्रयास करता हैं । जिससे समूह की संगति का प्रभाव उसके व्यवहार में शामिल हो जाता हैं । इसलिये उत्तम या सुसंगति के समूह का चयन करना अत्यंत आवश्यक होता हैं।
इतिहास में संगति के प्रभाव (sangati ka prabhav) के कुछ उदाहरण :-
आज जितना महत्वपूर्ण पैसा कमाना है उतना ही महत्वपूर्ण अपने बच्चों की संगति का ध्यान रखना भी हैं।
इतिहास में ऐसे तमाम उदाहरण है जहाँ मात्र संगति ने ही व्यक्तियों के व्यवहार में बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया हो। डाकू अंगुलिमान, महात्मा बुद्ध के संपर्क में आकर एक सभ्य नागरिक तो बना ही साथ ही साथ उसका मन कुविचार से हटकर भक्ति में रम गया।
वही चंद्रगुप्त, आचार्य चाणक्य की संगति में रहकर आचार्य का आशीर्वाद ग्रहण कर भारत का सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य बन गया।
ऐसे ही अनेक उदाहरण इतिहास से लेकर वर्तमान तक भरे पड़े हैं । अतः इंसान जितनी सजगता से अन्य काम करता है अगर उतनी ही सजगता से संगति का चयन करें तो वह जीवन के अनेक दुःख दर्द से दूर जा सकता हैं। ये कहा भी गया है कि आपका व्यक्तित्व और कुछ नही बल्कि आपके मित्रों के गुणों का निचोड़ मात्र होता हैं।
संगति का प्रभाव कैसे पड़ता हैं | SANGATI KA PRABHAV IN HINDI | sangati ka prabhav
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