स्ट्रिंग सिद्धांत क्या है ? What is String Theory

 

 

String Theory

स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) कण भौतिकी का एक सक्रीय शोध क्षेत्र है, जो क्वांटम भौतिकी और साधारण सापेक्षतावाद में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है। स्ट्रिंग सिद्धांत के अनुसार परमाणु में स्थित मूलभूत कण (जैसे इलेक्ट्रॉन, क्वार्क आदि) बिन्दु कण नहीं हैं अर्थात इनकी विमा शून्य नहीं है बल्कि एक विमीय दोलक रेखाएं हैं जिसे स्ट्रिंग कहा जाता है। सरल भाषा में स्ट्रिंग, द्रव्य और ऊर्जा के बीच की कड़ी है जो बिग- बैंग जैसी घटना का कारण रही है। यह ऊर्जा का बन्ध रूप है, और फोटोन और बोसॉन की जाति से संबंधित कण की सबसे सूक्ष्म इकाई भी है।

 

स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory in Hindi) 

 

स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) कण भौतिकी का ऐसा सैद्धांतिक ढांचा है, जो साधारण सापेक्षतावाद तथा क्वांटम भौतिकी के एकीकरण का प्रयास करता है। यह महाएकीकृत सिद्धांत (Theory of Everything) का सबसे अधिक प्रभावी सिद्धांत है जोकि सभी मूलभूत बलों और कणो की गणितीय व्याख्या कर सकता है। यह सिद्धांत अभी तक परिपूर्ण नही है और इसे प्रायोगिक रूप से नही जांचा जा सकता है। लेकिन वर्तमान मे यह अकेला सिद्धांत है जो महाएकीकृत सिद्धांत (Theory of Everything) होने का दावा करता है। परन्तु यह सिद्धांत फोटोन्स से भिन्न है क्योंकि फोटोन्स, द्रव के विनाश से निकली ऊर्जा का अंग होते है जबकि स्ट्रिंग बन्ध ऊर्जा के सिद्धांत पर आधारित है। इसलिये यह बोसॉन से अधिक मेल खाती है। यह पदार्थ के बनने का सबसे पहला चरण माना जाता है जिसे हम बिग बैंग के बनने का कारण भी मानते हैं।

विभिन्न वैज्ञानिकों के अनुसार बिग बैंग विस्फोट के बाद समय अस्तित्व में आया। ऐसा माना जाता है कि यह घटना 13.4 अरब साल पहले हुई। और बिग बैंग को ही पदार्थ क्षेत्र समय के अस्तित्व का भी कारण माना जाता है| इस पर विचार करने पर वैज्ञानिकों ने बिग बैंग से और भी छोटी कोटि स्ट्रिंग सिद्धान्त पर शोध किया और लंबी खोज से आखिर में क्वांटम भौतिकी और सापेक्ष भौतिकी को स्ट्रिंग सिद्धान्त के मानकों पर संतुलित करने में कामयाब रहे। यह प्रयोग केवल सैद्धान्तिक रूप से सही है परन्तु प्रयोग करने के लिये इसका रिंग मॉडल पर्याप्त नहीं है।

स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) के अनुसार इलेक्ट्रॉन तथा क्वार्क का आयाम शून्य नहीं है, बल्कि ये एक-विमीय स्ट्रिंगो से बने हुये हैं। इन स्ट्रिंगो के दोलन हमें आवेश, द्रव्यमान तथा स्पिन प्रदान करते हैं। स्ट्रिंग सिद्धांत के परिक्षण करते समय परिक्षण विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जिनमें एक सबसे महत्वपूर्ण है प्लांक लम्बाई की अत्यंत लघु होना, जो स्ट्रिंग लम्बाई की कोटि के समान अपेक्षित है। अन्य कठिनाई स्ट्रिंग सिद्धांत में विशाल मात्रा में शून्य हैं जो निम्न ऊर्जा पर प्रेक्षण में लगभग सभी घटनाओं को समझाने के लिये उपयुक्त हैं।

 

स्ट्रिंग सिद्धांत का परिचय (Introduction of String Theory)

 

 

सामान्यतः हम इलेक्ट्रान को एक बिन्दु मानते है, जिसकी कोई आंतरिक संरचना नही होती। यह बिंदु गति के अतिरिक्त कुछ भी क्रिया करने मे असमर्थ होता है। इसे शून्य आयामी संरचना भी माना जाता है। लेकिन यदि स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) सही है और यदि हम इलेक्ट्रान को अत्यंत शक्तिशाली सुक्ष्मदर्शी से देखे तो हम उसे एक बिंदु के जैसे नही बल्कि एक स्ट्रींग वलय रूप मे पायेंगे। यह तंतु एक आयाम की संरचना है तथा इसकी एक निश्चित लंबाई है। यह तंतु गति के अतिरिक्त अन्य क्रियायें भी कर सकता है| यह तंतु भिन्न तरीकों से दोलन कर सकता है। यदि यह तंतु वलय एक विशेष तरीके से दोलन करेगी तो हम यह नही जान पायेंगे की वह एक इलेक्ट्रान बिंदु है या एक तंतु वलय। लेकिन यदि यह किसी दूसरी तरह से दोलन करे तो उसे फोटान कहा जा सकता है, और यदि किसी तीसरी तरह से दोलन करे तो वह क्वार्क हो सकता है। अर्थात एक तंतु वलय भिन्न प्रकार से दोलन करे तो वह सभी मूलभूत कणो की व्याख्या कर सकता है। अगर यह स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) सही है, तब समस्त ब्रह्माण्ड कणो से नही तंतुओ से बना है। लेकिन एक तथ्य  यह भी है कि आज तक एक भी प्रायोगिक प्रमाण नही है, जो कह सके कि स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) ब्रह्माण्ड की सही व्याख्या करता है। इसके पीछे संभावित कारण यह है कि यह सिद्धांत अभी भी विकास की अवस्था मे है, यह अभी पूर्ण रूप से परिपक्व नही हुआ  है।

 

स्ट्रिंग सिद्धांत का इतिहास और ब्रह्मांड के निर्माण में इसकी भूमिका (History of String Theory and its role in creation of universe)

 

 

स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) भौतिकी के सभी बलों और कणों के व्यवहार को एकीकृत करने का दावा करता है, यह संयोगवश 1970 खोजा गया था जब कुछ वैज्ञानिक एक ऐसे मूलभूत क्वांटम स्ट्रींग की संकल्पना पर कार्य कर रहे थे जिसका त्रिआयामी(three dimensional) विस्तार सीमीत हो और उसकी ज्यादा छोटे घटको द्वारा व्याख्या संभव ना हो। यह अध्ययन मूलभूत बलों के एकीकरण से संबधित नही था, यह केवल भौतिकीय संदर्भो मे नयी गणितीय चुनौती मात्र था।

मनुष्य एक जिज्ञासु प्राणी है इसलिए जिस दुनिया में हम रहते हैं उसे जानने और समझने की कोशिश हम हमेशा कहते रहते हैं हमारी यही जिज्ञासा कई दिलचस्प सवालों को जन्म देती है। जैसे- यह ब्रह्मांड किस चीज से बना है? यह कैसे काम करता है? इत्यादि। अगर विज्ञान के नजरिए से देखें तो इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी मौजूद है उसे समझने के लिए हम अलग-अलग थ्योरी का इस्तेमाल करते हैं जिसमें पहला है- सापेक्षता का सिद्धांत तथा दूसरा है-क्वांटम फील्ड थ्योरी। अगर ब्रह्मांड में मौजूद बड़ी वस्तु की बात करें जैसे कि ग्रह तारे गैलेक्सी इत्यादि इनके व्यवहार तथा गुरुत्वाकर्षण से इनके संबंध को समझने के लिए हम सापेक्षता का सिद्धांत का इस्तेमाल करते हैं। जबकि परमाणु और उप परमाणु स्तर पर धातु की संरचना और ऊर्जा की परस्पर क्रिया को समझने के लिए हम क्वांटम फील्ड थ्योरी का इस्तेमाल करते हैं। यह दोनों ही थ्योरी अपने-अपने कार्यक्षेत्र में बिल्कुल सही तरीके से काम करते हैं यानी कि अगर कोई वस्तु बड़े आकार की है तो वहां सापेक्षता का सिद्धांत काम करेगा, अगर कोई वस्तु आकार में काफी ज्यादा छोटी है या उसका द्रव्यमान काफी कम है तो क्वांटम थ्योरी काम करेगा। परन्तु ब्रह्मांड के व्यवहार को समझने के लिए दो अलग अलग थ्योरी क्यों?,  क्या कोई ऐसी थ्योरी है जो ब्रह्मांड में होने वाले हर तरह की घटनाओं को समझने में सक्षम हो, चाहे वह बड़े लेवल पर हो या फिर क्वांटम लेवल पर, भौतिकी शास्त्रियों की इसी सोच ने एक नई थ्योरी को जन्म दिया जिससे हम स्ट्रिंग थ्योरी के नाम से जानते हैं। इस थ्योरी की खास बात है कि यह क्वांटम गुरुत्व तथा बहु आयाम की  बात करता है तथा इससे पहले कि ब्रह्मांड से जुड़े सवालों के जवाब भी हमें देता है जो कि आधुनिक भौतिकी के लिए अब तक के अबूझ पहेली बने हुए।

इस ब्रह्मांड में कण के आपस में क्रिया करने के तरीके और उनसे होने वाले प्रभाव का जब वैज्ञानिकों ने करीबी से अध्ययन किया तो पाया कि चाहे यह क्रिया कैसी भी हो इन्हें 4 बल के रूप में बांट सकते हैं, इन बलो को 4 मौलिक बल कहां गया है और यह इस प्रकार है :

  • गुरुत्वाकर्षण बल
  • इलेक्ट्रोमैग्नेटिक बल
  • स्ट्रांग न्यूक्लियर बल
  • विक न्यूक्लियर बल

अगर गुरुत्वाकर्षण की बात की जाए तो यह चारों मौलिक बल में सबसे कमजोर होता है पर इसका दायरा सबसे ज्यादा होता है इसके कारण हीं सारे ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हैं तथा चांद पृथ्वी का। अब अगर  इलेक्ट्रोमैग्नेटिक बल की बात करें तो इसे समझना हमारे लिए ज्यादा मुश्किल नहीं होगा क्योंकि आम जिंदगी में हर दिन हम इसका अनुभव करते हैं इलेक्ट्रिक तथा मैग्नेटिक बल। काफी अर्से तक इलेक्ट्रिक और मैग्नेटिक बल को दो अलग-अलग बल  समझा जाता था।

STRING THEORY
STRING THEORY

1864 में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने मैक्सवेल इक्वेशन के जरिए दोनों को यूनिफाइड किया। स्ट्रांग न्यूक्लियर बल चारों मौलिक बल मैं सबसे शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि यह परमाणु के नाभिक के अंदर न्यूट्रॉन और प्रोटॉन को पकड़ कर रखता है इसका अनुमान हिलियम परमाणु से लगा सकते हैं। जिसके नाभिक मैं दो पॉजिटिव चार्ज  प्रोटोन होते हैं जो  एक समान चार्ज के होने के कारण एक-दूसरे से दूर भागते हैं इसके बावजूद स्ट्रांग न्यूक्लियर बल इन्हें नाभिक में जकड़े रखा है। वीक न्यूक्लियर बल भी एक ताकतवर  बल होता है पर इसका दायरा ज्यादा बड़ा नहीं होता।

विभिन्न फोर्सेस कैसे काम करते हैं? इसके बारे में हमें भौतिकी का स्टैंडर्ड मॉडल काफी अच्छी तरीके से बताता है। भौतिकी का स्टैंडर्ड मॉडल हमें बताता है कि इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी मौजूद है वह 12 बेसिक बिल्डिंग ब्लॉक से बनता है जिसमें 6 क्वार्क होते हैं| बाकी बचे 6 बिल्डिंग ब्लॉक्स को लैपटॉन कहा जाता है। अगर मैग्नेटिक बल को समझने की कोशिश करें तो एक चुंबक एक लोहे की पिन को अपनी ओर खींचता है क्योंकि चुंबक और लोहे की फोटोन का आदान-प्रदान होता है पर गुरुत्वाकर्षण बल अकेला ऐसा बल है जिसे हम माइक्रोस्कोपिक  लेवल पर अभी तक एक्सप्लेन नहीं कर पाए। दरअसल माइक्रोस्कोपिक लेवल पर गुरुत्वाकर्षण जैसा कोई सिद्धांत  अभी तक नहीं मिला, यानी कि अगर कोई ऐसी थ्योरी हो जो क्वांटम गुरुत्वाकर्षण को प्रूफ कर दे तो हमें एक यूनिफाइड थ्योरी मिल जाएगी, जिससे हम सारे बल को एक्सप्लेन कर पाएंगे। पिछले कुछ दशकों में जितनी भी थ्योरी दिए गए हैं उनमै से स्ट्रिंग थ्योरी मात्र एक ऐसी थ्योरी  है जो क्वांटम गुरुत्वाकर्षण को समझाने का दावा करता है।

 

मान लीजिए आपके पास कोई ऑब्जेक्ट है जैसे कि कैंडल अगर हम यह जानने की कोशिश करें कि यह किस चीज से बना है तो हमें मिलेंगे परमाणु, परमाणु के भी अंदर जाए तो हम देखेंगे कि इसमें भी छोटे-छोटे इलेक्ट्रॉन होते हैं जो नाभिक का चक्कर लगाते रहते हैं इस नाभिक के अंदर न्यूट्रॉन और प्रोटॉन होते हैं। प्रोटोन के अंदर हमें मिलेंगे क्वार्क, जिससे प्रोटोन बने होते हैं। यहां जाकर मॉडर्न भौतिकी की सोच खत्म हो जाती है और हम यह मानते हैं कि क्वार्क धातु का सबसे छोटा भाग है इसलिए इसे और आगे तोड़ा नहीं जा सकता पर स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) कहती है कि क्वार्क के अंदर भी एक एनर्जी मौजूद होती है जो हमेशा कंपन करती रहती है जिसके कारण यह स्ट्रिंग जैसा दिखाई देता है जब यह स्ट्रिंग अलग-अलग पैटर्न में कंपन करते हैं तो अलग-अलग कण बनते हैं।

 

यानी कि एक पत्थर और आप में अंतर केवल इसलिए है क्योंकि यह स्ट्रिंग उस पत्थर में अलग तरीके से कंपन कर रहे हैं और आप में अलग तरह से।

अगर हमारे पास ऐसा कोई माइक्रोस्कोप हो जिससे हम इस ब्रह्मांड की सबसे छोटी वस्तु को देख सकें तो हम देखेंगे कि इस ब्रह्मांड मैं हमारे चारों तरफ केवल स्ट्रिंग की तरह दिखने वाली एनर्जी मौजूद हैं जो अलग-अलग आवृत्ति पर कंपन कर रहे हैं, इनके अलग अलग आवृत्ति पर  कंपन करने के कारण ही इस ब्रम्हांड में अलग-अलग तरह के कण बनते हैं जिसके कारण ब्रह्मांड इतना विचित्र है। संपूर्ण ब्रह्मांड और इसमें मौजूद हर वस्तु तथा बल, स्ट्रिंग जैसे दिखने वाले एनर्जी से ही बने हैं इनकी मदद से हम सब कुछ समझा सकते हैं यानी हमें एक एकीकृत थ्योरी मिल गई है। पर यह सब जितना आसान लगता है उतना है नहीं दरअसल जब हम स्ट्रिंग थ्योरी के गणितीय समीकरण को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि यह थ्योरी ऐसे ब्रह्मांड में काम नहीं करती जो त्रिविमीय हो| इसे काम करने के लिए ऐसा ब्रह्मांड चाहिए जिसमें 5 या 6 नहीं बल्कि 10 आयाम हो और एक समय का आयाम भी हो। अब तक हम यह जानते थे कि हमारे ब्रह्मांड त्रिविमीय है तथा एक  समय का आयाम है। यह थ्योरी ब्रम्हांड में काम नहीं करनी चाहिए पर स्ट्रिंग थ्योरी से हम स्टैंडर्ड मॉडल को गणितीय गणना की सहायता से हल कर पा रहे हैं इसका मतलब यह है कि यह सही भी हो सकती है| अब सवाल उठता है कि अगर यह सही है तो बाकी के 7 कहां है? अगर वह इस ब्रम्हांड में मौजूद है तो हमें दिखाई क्यों नहीं देते? स्ट्रिंग थ्योरी को मानने वाले यह कहते हैं कि आयाम दो तरह के होते हैं एक आकार में इतने बड़े होते हैं कि हम आसानी से उन्हें देख पाए, जबकि दूसरे इतने छोटे होते हैं कि हम उन्हें देख नहीं सकते।

 

क्वांटम गुरुत्व और स्ट्रिंग सिद्धांत (Quantum gravity and string theory)

 

जब स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) अपने शुरुआती दिनों में थी इसके गणितीय गणना से यह अनुमान लगाया गया था कि  एटम अंदर एक द्रव्यमान रहित कण होना चाहिए, परंतु कई प्रयोग के बाद भी प्रकृति में ऐसा कोई कारण नहीं मिला। तब वैज्ञानिकों ने स्ट्रिंग थ्योरी को गंभीरता से लेना छोड़ दिया। इसके 4 साल बाद जब श्वार्ज, स्ट्रिंग थ्योरी में मौजूद कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास कर रहे थे तो उन्होंने पाया यह द्रव्यमान रहित कण असल में गुरुत्वाकर्षण को परिभाषित कर रहे थे। इन्हीं कणों को ग्रेविटोंस का नाम दिया गया और यह माना जाता है कि ग्रेविटोंस ही क्वांटम स्तर पर गुरुत्वाकर्षण का वहन करते हैं। यदि स्ट्रिंग थ्योरी सही हुई तो क्वांटम फील्ड थ्योरी से हम सारे मूलभूत  बलो को समझने में सफल हो जाएंगे, मतलब हमें एक यूनिफाइड  थ्योरी  मिल जाएगी। अभी  भी यह केवल एक  काल्पनिक कण ही है यानी कि हमें फिजिकली कोई भी ऐसा कण अभी तक नहीं मिला है।

विभिन्न वैज्ञानिकों ने अलग-अलग स्ट्रिंग थ्योरी दी है। अभी तक कुल 6 स्ट्रिंग थ्योरी हैं जिनमें से 5 थ्योरी में 10 आयामों की बात की गई है परंतु छठी यानी बॉसनिक थ्योरी में 26 आयामों की बात की गई है। इन सभी थ्योरी के  निचोड़ को M थ्योरी कहते हैं।

STRING THEORY
STRING THEORY

स्ट्रिंग सिद्धांत (String Theory) एक अन्य कण को भी एक्सप्लेन करती है जिसे टेकयान कहते हैं जो कि प्रकाश की गति से भी तेज चलता है। अतः वैज्ञानिक स्ट्रिंग थ्योरी को प्रमाणिक नहीं मानते। यदि हमें किसी प्रकार  ग्रेविटोन मिल जाए तो इस थ्योरी की प्रमाणिकता पर मुहर लग सकती है। इस थ्योरी को मानने वाले यह कहते हैं कि यह थ्योरी बिल्कुल सही है पर यह इतनी जटिल है कि शायद हम इसे अभी तक पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं। शायद हम इसे भविष्य में और बेहतर तरीके से समझ पाएंगे अगर ऐसा हुआ तो इस ब्रह्मांड की हमारी पूरी  समझ ही बदल जाएगी। स्ट्रिंग थ्योरी हमें बिग बैंग  से पहले तथा बिग बैंग के घटित होने के कारणों को बताती है। स्ट्रिंग थ्योरी को मानने वाले मानते हैं की बिग बैंग से पहले दो विशाल आकार के मेंब्रेन मौजूद थे, जिनमें दो अलग-अलग पैरेलल यूनिवर्स मौजूद थे। क्योंकि यह दोनों में कंपन कर रहे थे एक समय ऐसा आया कि इनके  कुछ पार्ट एक दूसरे से टकराए इसी टकराव को हम बिगबैंग कहते हैं। स्ट्रिंग थ्योरी को मानने वालों का यह भी मानना है कि इन मेंब्रेन का टकराव चलता रहता है अर्थात भविष्य में भी बिगबैंक जैसी घटनाएं होना निश्चित है।

 

 

स्ट्रिंग सिद्धांत के अनुसार मूलभूत कण (fundamental particle according to string theory)

 

 

पारंपरिक रूप से स्ट्रिंग की व्याख्या एक रेखा द्वारा काल-अंतराल (Space-Time) मे किसी समय पर उसकी स्थिति से की जा सकती है, यह रेखा सरल या वक्र हो सकती है। तथा यह स्ट्रींग किसी वलय के जैसे बंद या खुली हो सकती है। जैसे किसी कण के अंदर द्रव्यमान (mass) होता है, उसी तरह से स्ट्रिंग के अंदर तनाव (Tension) होगा। जिस तरह से कोई कण विशेष सापेक्षतावाद (Special Relativity) के नियमो से बंधा होता है उसी तरह से स्ट्रिंग भी विशेष सापेक्षतावाद के नियमो से बंधी होगी। अंतत: हमे कणो की क्वांटम यांत्रिकी की तरह ही स्ट्रिंग के लिये क्वांटम यांत्रिकी के नियम बनाने होंगे। किसी स्ट्रिंग के अंदर तनाव का अर्थ है कि स्ट्रिंग सिद्धांत मे स्वाभाविक रूप से द्रव्यमान का माप, यह द्रव्यमान के आयामो के लिए आधारभूत कारक है। द्रव्यमान की उपस्थिति एक बिंदु पर ना होकर एक रेखा मे हो सकती है। इससे ऊर्जा के मापन मे एक तंतुमय प्रभाव उत्पन्न होता है जो स्ट्रिंग के दोलन के कारण होता है।

सुनने में यह व्याख्या आसान लगती है, लेकिन इस व्याख्या ने कई नये अप्रत्याशित परिणाम को जन्म दिय। किसी स्ट्रिंग को असंख्य बिंदु के समूह के रूप मे देखा जा सकता है, जो एक धागे के रूप मे बंधे रहते है। इससे अनंत ” डिग्री आफ फ़्रीडम ” का जन्म होता है।

स्ट्रिंग का गणित पारंपरिक स्तर पर सीधा और सरल है, लेकिन इसे क्वांटम स्तर पर ले जाने पर वैज्ञानिको ने पाया कि इस सिद्धांत के लिये काल-अंतराल (Space-Time) के कुल आयामो की संख्या 26 होना चाहीये । यह 26 आयामो की संख्या एक गणितीय तथ्य है, इसे किसी प्रयोग द्वारा निर्धारीत नही किया गया है।

इस सिद्धांत द्वारा 26 आयामो के अनुमान के पश्चात इस सिद्धांत का एक और भी बेतुका गुण पाया गया कि यह सिद्धांत एक ऐसे कण के अस्तित्व को प्रस्तावित करता था, जिसका द्रव्यमान काल्पनिक होना चाहिये। इस कण को टेक्यान (Tachyon) नाम दिया गया। इस कण के गुणधर्म और भी विचित्र थे, जैसे की इसकी गति प्रकाशगति से प्रारंभ होती है, अन्य कणो के विपरीत इसकी ऊर्जा मे कमी के साथ इसकी गति मे वृद्धि  होती है, जिससे इसकी गति प्रकाशगति से तेज होते जाता है।

 

 

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