स्वामी विवेकानंद जी की अल्मोड़ा यात्रा | SWAMI VIVEKANANDA ALMORA VISIT| SWAMI VIVEKANANDA IN ALMORA

 

SWAMI VIVEKANANDA IN ALMORA

अल्मोड़ा उत्तराखंड राज्य की वह नगरी है, जिससे स्वामी विवेकानंद जी का गहरा नाता रहा है। स्वामी विवेकानंद जी यहां दो बार आए और कई दिनों तक रहकर साधना की। स्वामी विवेकानंद जी की अल्मोड़ा यात्रा का शुभारम्भ पहली बार सन् 1890 की यात्रा के दौरान काकड़ीघाट में स्थित पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त करने के उपरांत हुआ था।HKTSWAMI JI ALM3

स्वामी जी की तपस्थली काकड़ीघाट | SWAMI VIVEKANANDA TAPOSTHALI KAKRIGHAT  

 

-: स्वामी विवेकानंद जी की अल्मोड़ा यात्रा :-

SWAMI VIVEKANANDA ALMORA VISIT

 

अल्मोड़ा की यात्रा में स्वामी जी कई दिनों तक खजांची मोहल्ला में स्व.बद्री शाह जी के मेहमान बनकर भी रहे। करीब 124 साल पहले स्वामी विवेकानंद जब दूसरी बार अल्मोड़ा पहुंचे तो अल्मोड़ा में उनका भव्य स्वागत हुआ था। पूरे नगर को सजाया गया था, और लोधिया नामक गाँव से एक सुसज्जित घोड़े में उन्हें नगर में लाया गया और 11 मई 1897 के दिन खजांची बाजार में उन्होंने जन समूह को संबोधित किया। इस स्थान पर तब पांच हजार लोग एकत्र हो गए थे।HKTSWAMI JI ALM2

 

-: अल्मोड़ा में स्वामी विवेकानंद जी का संबोधन :-

SPEECH OF SWAMI VIVEKANANDA IN ALMORA

 

स्वामी विवेकानंद जी ने अपने संबोधन में कहा था ” यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का प्रदेश है, भारत जननी श्री पार्वती की जन्म भूमि है। यह वह पवित्र स्थान है जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्मपिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने का इच्छुक रहता है। यह वही भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूं। मेरे मन में इस समय हिमालय में एक केंद्र स्थापित करने का विचार है और संभवत: मैं आप लोगों को भली भांति यह समझाने में समर्थ हुआ हूं कि क्यों मैंने अन्य स्थानों की तुलना में इसी स्थान को सार्वभौमिक धर्मशिक्षा के एक प्रधान केंद्र के रूप में चुना है। इन पहाड़ों के साथ हमारी जाति की श्रेष्ठतम स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका अत्यल्प ही बचा रहेगा, अतएव यहां एक केंद्र अवश्य चाहिए। यह केंद्र केवल कर्म प्रधान नहीं होगा, बल्कि यहीं निस्तब्धता, ध्यान तथा शांति की प्रधानता होगी, मुझे आशा है कि एक न एक दिन मैं इसे स्थापित कर सकूंगा।”

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-: अल्मोड़ा का रामकृष्ण कुटीर :-

RAMKRISHNA KUTIR OF ALMORA

 

1916 ई० में स्वामी विवेकानंद जी के शिष्यों स्वामी तुरियानंद और स्वामी शिवानंद ने अल्मोड़ा में ब्राइट एंड कार्नर पर एक केंद्र की स्थापना कराई, जो आज रामकृष्ण कुटीर नाम से जाना जाता है। वर्तमान में’रामकृष्ण कुटीर में एक पुस्तकालय जोकि तुरियानन्द पुस्तकालय नाम से प्रसिद्ध है ज्ञानवर्धक किताबों से सुसज्जित हैं। रामकृष्ण कुटीर में 2020 ई० में स्वामी विवेकानंद जी की मूर्ति की स्थापना भी कर दी गयी हैं।

-: स्वामी विवेकानंद जी की अल्मोड़ा यात्रा का वृतांत :-

HISTORY OF SWAMI VIVEKANANDA ALMORA VISIT

 

अल्मोड़ा के इस अभिनंदन समारोह के दौरान स्वामी विवेकानंद जी उस फकीर को पहचान गए, जिसने 1890 ई० की हिमालय यात्रा के दौरान करबला के निकट स्वामी जी के अचेत होने पर खीरा खिलाकर उनकी जान बचाई थी। स्वामी जी उस फकीर के पास गए और उसे दो रुपये भी दिए।

1897 के भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद करीब तीन माह तक देवलधार और अल्मोड़ा में निवास किया। इस अंतराल में उन्होंने स्थानीय लोगों के आग्रह पर अल्मोड़ा में तीन बार विभिन्न सभागारों में भी व्याख्यान दिया। 28 जुलाई 1897 को अल्मोड़ा के तत्कालीन इंग्लिश क्लब में हुए व्याख्यान की अध्यक्षता तत्कालीन गोरखा रेजीमेंट के प्रमुख कर्नल पुली ने की। इसमें कई अंग्रेज अफसरों के अलावा लाला बद्री शाह, चिरंजीलाल शाह, ज्वाला दत्त जोशी आदि भी उपस्थित रहे। स्वामी विवेकानंद 02 अगस्त 1897 में स्वामी विवेकानंद मैदान की तरफ लौट गए।

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-: अल्मोड़ा का ओकले हाउस :-

OKLE HOUSE OF ALMORA

 

अल्मोड़ा में एसएसजे परिसर के निकट स्थित ऐतिहासिक ओकले हाउस के परिसर में देवदार के पेड़ के नीचे 1898 ई० में स्वामी विवेकानंद ने आयरलैंड की मार्गेट एलिजाबेथ को दीक्षा दी थी और उन्हें सिस्टर निवेदिता नाम दिया।

स्वामी विवेकानंद की यादों से जुड़े इस स्थल को पर्यटन की दृष्टि से भी कोई स्थान नहीं मिला। इस भवन के पास एक बोर्ड तक नहीं लगा है, जबकि अल्मोड़ा में अक्तूबर-नवंबर में पश्चिम बंगाल से बड़ी संख्या में पर्यटक यहाँ आते हैं। ओकले हाउस में 1866 से कुछ साल तक तत्कालीन कलेक्टर जॉन वैकेट रहते थे, बाद में उन्होंने अपना निवास बदल दिया और 1969 में इस भवन को नीलाम कर दिया गया।

स्वामी विवेकानंद के शिष्य रहे स्व. लाला बद्री साह के पोते गिरीश साह बताते हैं कि उनके परदादा लाला स्व. हरि साह ठुलघरिया ने यह भवन तब साढ़े छह सौ रुपये में खरीदा। 1898 में जब स्वामी विवेकानंद अल्मोड़ा आए तो उनके साथ पहुंचे मेकलॉड, सिस्टर निवेदिता, गुडविन, स्वामी सदानंद इसी भवन में ठहरे थे। जबकि स्वामी विवेकानंद पास में स्थित थॉमसन हाउस में ठहरे थे।

स्वामी जी सुबह शाम ओकले हाउस में आकर अपने इन शिष्यों से चर्चा किया करते थे। उनके साथ मार्गेट एलिजाबेथ नोबुल भी आई थीं। एक दिन वह ओकले हाउस परिसर स्थित देवदार के पेड़ के नीचे बैठी थीं तो स्वामी विवेकानंद को देखकर उनके आंख से आंसू निकल पड़े। स्वामी विवेकानंद ने उनके सिर पर हाथ रखा और उन्हें दीक्षा दी। इसके बाद उनमें अद्भुत परिवर्तन आया और वह सदा के लिए भारत की हो गईं।

अल्मोड़ा में स्वामी विवेकानंद से जुड़े कई स्थल हैं, जिन्हें विकसित करके पर्यटन विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है। ओकले हाउस, थॉमसन हाउस, खजांची मोहल्ला, करबला, देवलधार सहित कई स्थलों से स्वामी विवेकानंद की यादें जुड़ी हैं।
इन स्थलों पर उनके स्मारक और पार्क आदि बनाकर पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है।

 

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