शिक्षक दिवस : डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जयंती | Teacher’s Day in Hindi

 

 

Teacher’s Day in Hindi

 

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा!
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः!!

अर्थात गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है और गुरु ही महेश्वर है |

गुरु की महिमा खुद ही उनके महत्व और जीवन में उनके स्थान को दर्शाती है। गुरु शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का सबसे अहम और पवित्र हिस्सा रहा है। वह गुरु ही है, जो हमें अध्यात्म से लेकर अलौकिक और पारलौकिक ज्ञान का अनुभव कराते हैं। बचपन से लेकर उम्र की आखिरी दहलीज तक गुरु ही होते हैं, जो  विद्यार्थी को एक सांचे में डालकर उसे एक संपूर्ण इंसान पर बनाते हैं। 

गुरु शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है ” गु “ और ” रु “ ” गु “ शब्द का अर्थ है अंधकार अर्थात ज्ञान और ” रू “ शब्द का अर्थ होता है प्रकाश अर्थात गुरु वह है जो अज्ञान को खत्म कर जीवन में प्रकाश फैलाता है।

भारतीय संस्कृति में गुरु की भूमिका समाज को सुधार की ओर ले जाने वाले मार्गदर्शक के रुप में होने के साथ ही क्रांति की दिशा दिखाने वाली भी रही है। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है तभी कहा गया है :

 

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय|
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय||

गुरु यानी शिक्षक माली के रूप में न केवल पौधे रुपी विद्यार्थियों को पोषित करता है, बल्कि उन्हें एक बेहतर मनुष्य के रूप में पल्लवित कर संस्कार रूपी पुष्प खिलाकर सद्गुणों की महक भी देता है। इसलिए जीवन के मूल्य को समझने के लिए शिक्षक और शिक्षा के महत्व को समझना बेहद जरूरी है।

प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति प्रख्यात शिक्षाविद और महान दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्मदिन गुरु को समर्पित शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज इस लेख के माध्यम से हम चर्चा करेंगे शिक्षक दिवस के महत्व की (Importance of Teacher’s Day in Hindi / Shikshak Diwas Ka Mahatw) और शिक्षक दिवस के इतिहास की (Sikshak Diwas ka Itihas)। इसके साथ ही जानेंगे देश में शिक्षा के विकास की यात्रा और देश में शिक्षा के सफर के बारे में (Sikshak Diwas Nibandh / Essay On Teacher’s Day in Hindi)। Teacher’s Day in Hindi 

 

 

शिक्षक दिवस का महत्व | Importance of Teacher’s Day in Hindi | Sikshak Diwas Ka Mahtw

 

तमसो मा ज्योतिर्गमय |

अंधकार से प्रकाश की ओर चलो बढ़ो | भारत की शिक्षक अपने विद्यार्थियों को सदियों से यही संस्कार दे रहे हैं | 

भारत को विश्व गुरु कहा जाता है यह सम्मान हमारे देश को उन विद्वान शिक्षकों की वजह से मिला है, जिन्होंने शिक्षा के प्रचार को ना सिर्फ देश बल्कि दुनिया भर में फैलाया हैऐसे ही महान शिक्षक थे देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी, जिनकी जयंती पर प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनको देश में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में सम्मान और प्यार मिला

वर्तमान में आंध्र प्रदेश के तिरुतणी में 5 सितंबर १८८८ को सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म हुआ था।  उस समय यह मद्रास प्रांत का हिस्सा था तिरुतणी में ही शुरुआती पढ़ाई के बाद चेन्नई के क्रिश्चियन कॉलेज से उन्होंने फिलॉसफी में एम.ए. किया भारतीय दर्शन संस्कृति और वैदिक ज्ञान में उनकी बचपन से ही दिलचस्पी थी

1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में वह दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक बने वहां से मैसूर विश्वविद्यालय और कोलकाता विश्वविद्यालय में उन्होंने बतौर प्रोफेसर कई साल बिताएं इस दौरान दुनिया भर में उनके ज्ञान का प्रचार-प्रसार हुआ 1931 में वह आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय और 1939 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति बने 1949 में वह विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष बने इस दौरान देश में शिक्षा के विकास को लेकर शानदार काम हुआ उनकी किताबों ने दुनियाभर में पहचान बनाई

इसके बाद डॉक्टर राधाकृष्णन जी की जिंदगी में जबरदस्त मोड़ आया। १९४९ में उन्हें सोवियत संघ में भारत का राजदूत (१९४९-५२) बनाकर भेजा गयाजब वह लौटे तो सारे देश ने उन्हें पहले उपराष्ट्रपति के रूप में देखा 10 साल (१९५२-६२) वह इस पद पर रहेइस दौरान संसद के दूसरे सदन के रूप में राज्यसभा का गठन हुआ 10 साल वह राज्यसभा के सभापति रहे

1962 में वह भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी शिक्षा को बेहद महत्वपूर्ण मानते थे।  एक महान शिक्षाविद के तौर पर उनका मानना था कि शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी देना ही नहीं है।  जानकारी का अपना महत्व है लेकिन बौद्धिक झुकाव और लोकतांत्रिक भावना का भी महत्व है क्योंकि इन भावनाओं के साथ ही छात्र उत्तरदायी नागरिक बनते हैं। 

डॉक्टर राधाकृष्णन जी मानते थे कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होगा तब तक शिक्षा को मिशन का रूप नहीं मिल पाएगा। 

एक बार उनके कुछ विद्यार्थी और दोस्तों ने उनका जन्मदिन मनाने की सोची इस पर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा कि मेरा जन्मदिन अलग से मनाने के बजाय अगर इसे शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाए तो मुझे गर्व महसूस होगा इसके बाद साल 1965 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के कुछ छात्रों ने उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हुए एक सभा का आयोजन किया इसी आयोजन में उन्होंने अपने भाषण में कहा कि उनकी जयंती को भारत और बांग्लादेश के अन्य महान शिक्षकों को श्रद्धांजलि देकर शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाएसाल 1967 में पहली बार डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया गया और यह सिलसिला आज भी जारी है।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के छात्र उनसे इतना प्यार करते थे कि एक बार वे राधाकृष्णन जी को फूलों से सजी गाड़ी पर बैठा कर खुद धकेल कर मैसूर यूनिवर्सिटी से रेलवे स्टेशन तक ले गएराधाकृष्णन जी को 1938 में ब्रिटिश अकादमी का फैलो चुना गया 1954 में उनके योगदान के लिए देश के सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया गया राधाकृष्णन जी को 1975 में  टेंपलटन फ्लाइट से सम्मानित किया गया राधाकृष्णन जी ने पुरस्कार में मिली पूरी राशि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को दान कर दी

राधाकृष्णन जी ने कई किताबें भी लिखी धर्म, फिलॉसफी जैसे कई विषयों पर उनकी पकड़ उल्लेखनीय थी राधाकृष्णन जी ने भारत की जनता के लिए शिक्षा के द्वार को खोलने का काम किया और आज भी राष्ट्र शिक्षक दिवस के दिन उनके संदेशों को याद करता है और शिक्षकों के योगदान को नमन करता है

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०१९ | National Education Policy 2019 | Rastriya Siksha Neeti 2019 In Hindi

 

किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है सरकार ने हाल ही में शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा जारी किया

शिक्षा विकास की कुंजी है किसी भी राष्ट्र के निर्माण में इसकी अहम भूमिका होती है देश की शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार करने के लिए जून 2017 में डॉक्टर के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गयासमिति की रिपोर्ट में लीग से हटकर नए सुधारों को लागू करके करने की बात कही गई है समिति ने 3 भाषा फार्मूले के तहत छात्रों को मातृभाषा, स्कूली भाषा के साथ-साथ तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी को अनिवार्य किये जाने का सुझाव दिया था हालांकि सरकार ने से बदलते हुए गैर हिंदी भाषी राज्यों में तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी अनिवार्य किए जाने के सुझाव को हटा दिया

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 ड्राफ्ट में पांच आधारभूत संरचना है इसमें अधिगम, न्याय संगत, गुणवत्ता, वहन करने लायक और जवाबदेही की बात कही गई है समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करने का भी प्रस्ताव दिया है (वर्तमान में यह लागू हो चुका है)। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट में प्री स्कूल से 12वीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य स्कूली शिक्षा की सिफारिश की गई है मौजूदा शिक्षा नीति के तहत यह  केवल कक्षा एक से आठवीं तक के लिए है

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट में स्कूली शिक्षा के तहत अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन के साथ पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संरचना को स्कूली शिक्षा के अभिन्न अंग के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है समिति ने 3 साल से लेकर 18 साल के बच्चों को शामिल करने के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को भी विस्तृत करने की सिफारिश की है इस ड्राफ्ट में बच्चों के ज्ञान को बढ़ाने और सामाजिक भावनात्मक विकास को उम्र के आधार पर बांटा गया है इसमें सबसे पहला मूलभूत चरण है, जो 3 साल से लेकर 8 साल के बीच का है इसके बाद का चरण है प्राथमिक चरण और इसकी उम्र 8 से 11 साल तक की है अगला चरण 11 से 14 साल का है, जिसे मध्य चरण कहा गया है और आखरी चरण है माध्यमिक व उच्च चरण जो 14 से 18 साल के बीच का है

नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में कहा गया है की प्री प्राइमरी से लेकर कम से कम पांचवी तक और वैसे आठवीं तक मातृभाषा में ही पढ़ाई होनी चाहिए प्री स्कूल और पहली क्लास में बच्चों को तीन भारतीय भाषाओं के बारे में भी पढ़ाना चाहिए जिसमें वह उन्हें बोलना सीखे और उनकी स्क्रिप्ट पहचाने और पढ़ें तीसरी क्लास तक मातृभाषा में ही लिखें और उसके बाद दो और भारतीय भाषाएं लिखना भी शुरू करें अगर कोई विदेशी भाषा पढ़ना और लिखना चाहता है तो वह इन तीन भारतीय भाषाओं के अलावा चौथी भाषा के रूप में पढ़ाई जाए समिति ने अपनी सिफारिश में विद्यालयों के परिसरों को फिर से व्यवस्थित करने की बात कही है

इसके साथ ही स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम सामग्री के भार को कम करने की भी बात कही गई है इसके अलावा एक सक्रिय शिक्षा शास्त्र को बढ़ावा देने की भी बात कही गई है जो मूल क्षमता और जीवन कौशल के विकास पर केंद्रित होगी जिसमें 21वीं सदी का कौशल विकास भी शामिल है समिति ने इस तरह के  शिक्षण संस्थानों को बंद करने और सभी शिक्षा कार्यक्रमों को बड़े विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में स्थानांतरित करके शिक्षण के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव का भी प्रस्ताव रखा है इसमें स्कूली शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए शिक्षकों को पढ़ाने के लिए 4 साल का B.Ed का कोर्स करने की सलाह दी गई है सभी प्रकार के शैक्षणिक पहलुओं और कार्यक्रमों को सक्षम बनाने के लिए साथ ही केंद्र और राज्यों के बीच चलने वाले शैक्षणिक प्रयासों के बीच तालमेल बैठाने के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के गठन का प्रस्ताव भी किया गया है जिसके अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री होंगे

इसके साथ ही उच्च शिक्षा में अनुसंधान क्षमता के निर्माण के लिए एक नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के निर्माण की योजना गठित करने की बात भी कही गई है ड्राफ्ट में कहा गया है कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों का समानता के आधार पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए इसमें उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने व वयस्कों और आजीवन सीखने वालों की भागीदारी को बढ़ाने के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में सभी प्रकार की विसंगतियों को समाप्त करने की सिफारिश की गई है इसके साथ ही भारतीय और शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के अलावा पाली, फारसी और प्राकृत के लिए 3 नए भारतीय संस्थानों और एक भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान की स्थापना की सिफारिश भी की गई है नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप में छात्रों शिक्षकों और शैक्षिक संस्थाओं में क्षमताओं के आधार पर जरूरी बदलाव पर जोर दिया गया है ताकि एक देश में एक सक्षम और मजबूत शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सके

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देश में शिक्षा का सफर | Education journey in the country | Desh Me Siksha 

 

 

एक वक्त ऐसा था कि देश में मुट्ठी भर लोग ही पढ़ने-लिखने की बुनियादी समझ रखते थे उसके बाद कई दशकों तक साक्षरता दर सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ी, लेकिन 2001 में साक्षरता अभियान के जरिए इसमें बड़ा सुधार हुआ लक्ष्य बनाया गया कि सारे बच्चों को स्कूल भेजा जाए सरकार का यह कार्यक्रम आज भी जारी है

शिक्षा में सुधार का इतिहास देश में आजादी के बाद के बाद से ही चला रहा है उस वक्त के सीमित संसाधनों में हर आदमी तक शिक्षा पहुंचाना बड़ी चुनौती थी देश की शिक्षा नीति में अमूल्य परिवर्तन लाने के लिए कई आयोगों का गठन हुआ इसके लिए आजादी के बाद 1940 में डॉ राधाकृष्णन आयोग, 1953 में माध्यमिक शिक्षा के लिए माध्यमिक शिक्षा आयोग या मुदालियर आयोग का गठन किया गया, जिसमें माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देने के उद्देश्य से साल 1961 में एनसीईआरटी की स्थापना हुई उच्च शिक्षा में सुधार के लिए 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की स्थापना की गई इसके बाद 1968 में कोठारी शिक्षा आयोग की सिफारिशों के अनुसरण में प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनाई गई, जिसमें 6 वर्ष तक के बच्चों के उचित विकास के लिए समेकित बाल विकास सेवा योजना की शुरुआत की गई 1976 में केंद्र और राज्य दोनों की जिम्मेदारी को समझते हुए शिक्षा को राज्य विषय से समवर्ती विषय में शामिल करने के लिए संविधान में 42वां संशोधन किया गया 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपनाया गया जिसे 1992 में आचार्य राममूर्ति समिति द्वारा समीक्षा के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कुछ बदलाव कर भारतीय शिक्षा व्यवस्था को सही दिशा देने की गंभीर कोशिश की गई लेकिन इसके बावजूद अनिवार्य शिक्षा की मांग चलती गई और समय-समय पर इसके लिए आंदोलन होते रहे

शिक्षा का अधिकार देश के हर बच्चों को मिले इसके लिए शिक्षा को संवैधानिक दर्जा देने की मांग कई दशकों तक की गई सरकार के द्वारा सन 2002 में संविधान में नई धारा जोड़ी गई जिसके बाद आरटीई यानी राइट टू एजुकेशन की राह खुली हालांकि संविधान में पहले भी शिक्षा का जिक्र था लेकिन यह अनिवार्य नहीं था लेकिन इसके बाद अब शिक्षा का अधिकार देश के नागरिकों को दिया गया अनुच्छेद 45 के मुताबिक बच्चों के पढ़ाई की व्यवस्था राज्य की जिम्मेदारी है, लेकिन शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं रखा गया है

1966 में कोठारी आयोग ने शिक्षा को बेहतरीन और उसका दायरा बढ़ाने की सिफारिश की थी 2002 में संविधान में अनुच्छेद 21A जोड़ा गया इस अनुच्छेद में यह कहा गया था कि एक विधेयक के जरिए इसे कानूनी शक्ल दी जाएगी लेकिन 1 अप्रैल 2010 को शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुआ इसके तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों को संवैधानिक अधिकार नहीं मिला कि वह मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा हासिल कर सके हालात में काफी सुधार हुआ है लेकिन यह योजना लक्ष्य से अभी भी काफी पीछे है

सन 2000 में बच्चों के हाथ में किताब और कलम देने की महत्वाकांक्षी योजना के तौर पर सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत हुई सर्व शिक्षा अभियान में लड़कियों और विशेष रूप से असक्षम बच्चों की शिक्षा पर जोर दिया गया कंप्यूटर एजुकेशन के जरिए बदलते जमाने के साथ बच्चों को तैयार करना भी लक्ष्य रखा गया सर्व शिक्षा अभियान से पहले 1993-949 में जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी जिसमें देशभर के 18 राज्यों के 272 जिलों में हर बच्चे को शिक्षा देने की योजना थी लेकिन बाद में इसे भी सर्व शिक्षा अभियान में मिला दिया गया हालांकि बदलते दौर में देश की शिक्षा नीति में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है मौजूदा सरकार बच्चों को स्कूल से जुड़ने के अलावा हुनर आधारित शिक्षा पर जोर दे रही है सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे में विकास के साथ छात्र-शिक्षक अनुपात को अंतरराष्ट्रीय मानकों तक लाना भी नई शिक्षा नीति की अहम प्राथमिकताएँ है वर्तमान में सर्व शिक्षा अभियान को समग्र शिक्षा में मिला दिया गया है

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