यूनिफॉर्म सिविल कोड । समान नागरिक संहिता । UNIFORM CIVIL CODE IN HINDI
UNIFORM CIVIL CODE IN HINDI
उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता अर्थात यूनिफॉर्म सिविल कोड (UNIFORM CIVIL CODE) के लिए एक कदम आगे बढ़ा दिया है। उत्तराखंड सरकार ने इसका विधेयक लाने के लिए एक कमेटी बनाई है। अगर यह कानून उत्तराखंड में लागू हो गया तो पुरे देश में ऐसा करने वाला गोवा के बाद उत्तराखंड दूसरा राज्य होगा। इस लेख में यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है? (WHAT IS UNIFORM CIVIL CODE IN HINDI) UNIFORM CIVIL CODE KYA HAI और इसके बारे में विस्तार से बताने का प्रयास करेंगे।
उत्तराखंड राज्य में चुनाव जीतने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी ने कैबिनेट मीटिंग के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड (UNIFORM CIVIL CODE) अर्थात समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए एक कमेटी बनाई है, जो इसके प्रावधान और बिल का मसौदा तैयार करेगी। देश में मात्र गोवा अकेला ऐसा राज्य है, जहां ये कानून लागू है। हमारे संविधान में इसे लागू करने की व्यवस्था तो है लेकिन ना तो देश और ना ही अन्य राज्यों में ये कानून लागू है।
समान नागरिक संहिता क्या है ? WHAT IS UNIFORM CIVIL CODE IN HINDI
समान नागरिक संहिता अर्थात यूनिफॉर्म सिविल कोड (UNIFORM CIVIL CODE) पूरे देश के नागरिकों के लिये समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एक जैसी स्थिति प्रदान करती है। इसका पालन सभी धर्मों के लिए जरूरी होता है।
समान नागरिक संहिता (UNIFORM CIVIL CODE) भारत के लिए एक कानून की अभिव्यक्ति का आह्वान करती है, जो विवाह, तलाक, विरासत, त्याग जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगी। यह कानून संविधान की संरचना 44 के तहत आता है, जो यह बताता है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
समान नागरिक संहिता (UNIFORM CIVIL CODE) की शुरुआत ब्रिटिश राज के तहत भारत में हुई थी, जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट में अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून की संहिता में एकरूपता लाने की जरूरत की बात कही थी। हालांकि इस रिपोर्ट ने तब हिंदू और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इससे बाहर रखने की सिफारिश की थी।
संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता (UNIFORM CIVIL CODE) की चर्चा की गई है। राज्य के नीति-निर्देशक तत्व से संबंधित इस अनुच्छेद में कहा गया है कि ” राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा। “
समान नागरिक संहिता में देश के प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान कानून होता है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक तथा जमीन-जायदाद के बँटवारे आदि में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होता है। अभी देश में जो स्थिति है उसमें सभी धर्मों के लिए अलग-अलग नियम हैं। संपत्ति, विवाह और तलाक के नियम हिंदुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों के लिए अलग-अलग हैं।
इस समय देश में कई धर्म के लोग विवाह, संपत्ति और गोद लेने आदि में अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं। मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का अपना-अपना पर्सनल लॉ है जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।
अनुच्छेद-37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक प्रावधानों को कोर्ट में बदला नहीं जा सकता लेकिन इसमें जो व्यवस्था की जाएगी वो सुशासन व्यवस्था की प्रवृत्ति के अनुकूल होनी चाहिए।
भारत का सबसे पहले समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने वाला राज्य गोवा है। जहां सभी के लिए कानून सामान है। सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। इस कोड के अनुसार किसी शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही सामान कानून लागू होगा।
भारत में पर्सनल लॉ की स्थिति। Status of Personal Law in India
यह सभी के धर्मो के अनुसार अलग-अलग होते है।
पर्सनल लॉ क्या होता है? What is Personal Law in Hindi :
ऐसे कानून को किसी धर्म, आस्था, समाज और संस्कृति के आधार पर एक निश्चित वर्ग या लोगों के समूह या किसी विशेष व्यक्ति पर लागू होता है।
यह कानून सभी धर्मो के अनुसार सबके अलग-अलग रीति-रिवाजों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं इन कानूनों का हर धर्म के विभिन्न रीति-रिवाजों के साथ लोगों द्वारा औपनिवेशिक काल से ही पालन किया जा रहा है।
1956 ई० में, संसद ने हिंदू पर्सनल कानूनों को प्रस्तुत किया, जो सिखों, जैन और बौद्धों के लिए लागू हैं।
हिंदू पर्सनल लॉ (Hindu Personal Law) :
हिंदू पर्सनल लॉ (Hindu Personal Law) हिन्दुओं के रीती-रिवाजो को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। और इनको वेदों और हिदू धर्म के नियमों का पालन करते हुए बनाया गया है।
हिंदू पर्सनल लॉ (Hindu Personal Law) वैधानिक कानून द्वारा मान्यता प्राप्त व्यक्तिगत कानून और रीति-रिवाजों द्वारा हिंदुओं को नियंत्रित करते हैं। ये उत्तराधिकार, विवाह, गोद लेने, सह-पालन, पारिवारिक संपत्ति के विभाजन, अपने पिता के ऋणों का भुगतान करने के लिए बेटों के दायित्वों, संरक्षकता, रख-रखाव और धार्मिक और धर्मार्थ दान से संबंधित कानूनी मुद्दों पर लागू होते हैं। हिंदू पर्सनल लॉ के ऐसे 4 भाग हैं, जिनमें विधेयक का विभाजन किया गया है :-
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
- हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956
- द हिंदू सक्सेशन एक्ट, 1956
- द हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956
मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) :
मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) कुरान के अनुदेशों का पालन करते हुए बनाया गया है। भारतीय मुसलमानों के पर्सनल लॉ 1937 के शर्तिया कानून द्वारा शासित किए गए हैं।
मुस्लिम समुदाय के अंतर्गंत व्यक्तिगत कानून और रीति-रिवाज मुसलमानों पर शासन करते हैं। यह विरासत, वसीयत, उत्तराधिकार, विवाह, दहेज, तलाक, संरक्षकता और पूर्व-ग्रहण से संबंधित सभी मामलों पर लागू होता है।
इसके अलावा यहूदी और ईसाई अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं।
क्रिश्चियन पर्सनल लॉ (Christian Personal Law) :
क्रिश्चियन धर्म पर्सनल लॉ (Christian Personal Law) क्रिश्चियन धर्म के नियमों का पालन करते हुए बनायीं गयी है।
सन 1972 ई० के दौरान अधिनियमित ईसाई विवाह अधिनियम में विवाह के मामलों से संबंधित मामलों से निपटने के निर्देश हैं। 1869 ई० के दौरान अधिनियमित भारतीय तलाक अधिनियम में तलाक से संबंधित मामले शामिल हैं।
यूनिफार्म सिविल कोड से जुड़ी चुनौतियां । CHALLENGES RELATED TO UNIFORM CIVIL CODE IN HINDI
यूनिफार्म सिविल कोड बहुत सी चुनौतियां है, जिनको हम अलग अलग पॉइंट के द्वारा समझ सकते है।
- संवैधानिक चुनौतियां :
संविधान के अनुच्छेद अलग-अलग प्रकार से इसको पूर्ण रूप लागू करने में चुनौती देते है।
- धर्म की स्वतंत्रता समानता के अधिकार का टकराव करती है।
- अनुच्छेद 25 में धर्म के मौलिक अधिकार का उल्लेख है।
- अधिकार अनुच्छेद 14 और 15 के तहत कानून के संरक्षण से पहले समानता के टकराव पैदा होते है।
- अनुच्छेद 26 (B) में कहा गया है कि प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय के अधिकार को धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मुद्दों का पूर्ण तरीके से समझकर प्रबंधन करने का अधिकार है।
- सामाजिक चुनौतियाँ :
सामाजिक चुनौतियाँ विभिन्न प्रकार से इनको चुनौतियां देती है।
- अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यको के अधिकारों का हनन होगा।
- सभी को एकरूपता लाने और अपनी-अपनी संस्कृति की रक्षा खुद को करनी होगी।
- इसका कार्यान्वयन सभी धर्मो में एकसमान रूप से करने में एक बड़ी चुनौती होगी।
- समान नागरिक संहिता को लागू करने की पूरजोर मांग उठने के बाद भी इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका है। कई मौके ऐसे आए जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी समान नागरिक संहिता लागू न करने पर नाखुशी जताई है।
- 1985 में शाह बानो केस और 1995 में सरला मुदगल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी से भी इस मुद्दे ने जोर पकड़ा था, जबकि पिछले वर्ष ही तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी इस मुद्दे को हवा मिली।
- हिंदू धर्म में विवाह को जहाँ एक संस्कार माना जाता है, वहीं इस्लाम में इसे एक अनुबंध माना जाता है। ईसाइयों और पारसियों के रीति- रिवाज भी अलग-अलग हैं।
- व्यापक सांस्कृतिक विविधता के कारण निजी मामलों में एक समान राय बनाना व्यावहारिक रूप से बेहद मुश्किल है।
- अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमानों की एक बड़ी आबादी समान नागरिक संहिता को उनकी धार्मिक आजादी का उल्लंघन मानती है।
- इसके लिये कोर्ट को निजी मामलों से जुड़े सभी पहलुओं पर विचार करना होगा। विवाह, तलाक, पुनर्विवाह आदि जैसे मसलों पर किसी मजहब की भावनाओं को ठेस पहुँचाए बिना कानून बनाना आसान नहीं होगा।
- शरिया कानून, 1937 ही नहीं बल्कि, Hindu Marriage Act, 1955, Christian Marriage Act, 1872, Parsi Marriage and Divorce Act, 1936 में भी सुधार की आवश्यकता है।
यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड के गुण । BENEFITS OF UNIFORM CIVIL CODE IN HINDI
- एक समान और सरल कानून बनेगा।
- न्याय प्रणाली में सुधार आएगा, जिससे समय पर न्याय मिलेगा।
- धार्मिक कानूनों के माध्यम से महिलाओं के अधिकार सीमित नहीं रहेंगे।
- एक धर्मनिरपेक्ष समाज का गठन होगा।
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