Union And Its Territory in Hindi
संघ एवं इसके क्षेत्र ( Union And Its Territory in Hindi ) टॉपिक में हम स्वतंत्रता के बाद किस प्रकार राज्यों का गठन किया गया ? तथा किस प्रकार की समस्याएं राज्यों के गठन में उत्पन्न हुई ? वही साथ ही संघ और इसके राज्य क्षेत्र ( Union And Its Territory in Hindi ) से सम्बंधित संविधान में क्या प्रावधान किये गए है। ये सभी हम संघ एवं इसके क्षेत्र ( Union And Its Territory in Hindi ) टॉपिक में पढ़ेंगे। संघ एवं इसके क्षेत्र ( Union And Its Territory in Hindi ) टॉपिक से अनेक परीक्षाओं में जैसे कि SSC / UPSC / UPPCS / RRB / PGT आदि में प्रश्न पूछे जाते हैं।
स्वतंत्रता के दौरान राज्यों स्तिथि ( Union And Its Territory in Hindi ) –
स्वतंत्रता के समय भारत को 2 भागों में विभाजित किया गया था। एक भारत और दूसरा पाकिस्तान।
- स्वतंत्रता के दौरान भारतीय सीमा के अंतर्गत 552 देशी रियासतें मौजूद थीं।
- 552 से 549 रियासतें भारत में शामिल हो गयी।
- शेष तीन रियासतें हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया। इन तीनों रियासतों को अलग अलग तरह से भारत में शामिल किया गया।
- हैदराबाद को पुलिस कार्रवाई के द्वारा भारत में शामिल किया गया था।
- जूनागढ़ को जनमत संग्रह के द्वारा।
- कश्मीर को विलय-पत्र के द्वारा भारतीय संघ में शामिल किया गया।
( Union And Its Territory in Hindi )
संविधान के तहत भारतीय संघ के राज्यों/क्षेत्रों को चार भागों में वर्गीकृत किया गया था।
भाग क
- इसमें वे राज्य थे, जहां ब्रिटिश भारत में गवर्नर का शासन था।
भाग ख
- इसमें राज्य विधानमंडल के साथ शाही शासन था।
भाग ग
- इसमें ब्रिटिश भारत के मुख्य आयुक्त का शासन था।
भाग घ
- इसमें अकेले अंडमान-निकोबार द्वीप को रखा गया था।
संविधान में सम्बंधित अनुच्छेद –
अनुच्छेद – 1
अनुच्छेद 1 के अनुसार –
- ‘भारत अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा।
- राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट है।
- भारत के राज्यक्षेत्र , अनुच्छेद के अनुसार भारतीय राज्यक्षेत्र को तीन श्रेणियों में बाँटा गया हैं।
- 1. राज्यों के राज्यक्षेत्र
- 2. संघ राज्य क्षेत्र
- 3. ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किया जाए। मतलब कि ऐसे क्षेत्र जिन्हें भारत सरकार द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है।
भारत के क्षेत्र और भारत का संघ में अंतर –
इन दोनों की बात करे तो भारत का संघ में केवल राज्य शामिल है, जबकि भारत के क्षेत्र में राज्य , संघ शासित प्रदेश तो शामिल हैं ही साथ ही ऐसे क्षेत्र भी शामिल है जिन्हे भारत बाद में अधिग्रहित कर सकता है।
अनुच्छेद – 2
- भारतीय संघ में नए राज्यों के प्रवेश या स्थापना की संसद की शक्ति।
- संसद विधि द्वारा , ऐसे निबंधनों और शर्तो पर , जो वह ठीक समझे , संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।
अनुच्छेद 3 –
- नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन करने की संसद की शक्ति।
- संसद्, विधि द्वारा-
(क) किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी;
(ख) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;
(ग) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी;
(घ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी;
(ङ) किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगीः
यहाँ पर संविधान में दो शर्तों का भी उल्लेख किया गया है –
1 . उपरोक्त से सम्बंधित कोई विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता है। मतलब कि ऐसा कोई विधेयक संसद में पेश करने से पहले राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक है।
2 . और दूसरा जहाँ विधेयक में अंतर्विष्ट प्रस्थापना का प्रभाव राज्यों में से किसी के क्षेत्र, सीमाओं या नाम पर पड़ता है राष्ट्रपति उस राज्यों के विधानमंडल के पास विधेयक पर मत जानने के लिए भेजता है। यह मत ऐसी अवधि के भीतर जो निर्देश में विनिर्दिष्ट की जाए या ऐमी अतिरिक्त अवधि के भीतर जो राष्ट्रपति द्वारा अनुज्ञात की जाए में , देना आवश्यक है। मतलब कि यह मत एक निश्चित अवधि में देना आवश्यक होता है।
NOTE – राष्ट्रपति सम्बंधित राज्य विधानमंडल के मत को मानने के लिए बाध्य नहीं है वह ऐसे मत को स्वीकार और अस्वीकार भी कर सकता हैं।
यहाँ पर संसद को अधिकार प्राप्त है कि वह राज्यों की अनुमति के बिना ही नए राज्यों को बनाने , राज्यों के नाम बदलने , सीमा परिवर्तन से सम्बंधित कदम उठा सकती है। इसलिए भारत को विभक्त राज्यों का अविभक्त संघ कहा जाता है। मतलब की राज्यों को सरकार कभी भी परिवर्तित कर सकती परन्तु राज्य सरकार संघ को समाप्त नहीं कर सकते है।
अनुच्छेद – 2 और अनुच्छेद – 3 में मुख्य अंतर क्या हैं –
अनुच्छेद – 2 जो राज्य भारत संघ के हिस्से नहीं है उनके प्रवेश एवं गठन से सम्बंधित है। मतलब कि
जबकि अनुच्छेद 3 नए राज्यों के निर्माण या , मौजूद राज्यों में किये जाने परिवर्तन इस अनुच्छेद के अंतर्गत आते है। मतलब कि कहा जा सकता है कि अनुच्छेद 3 भारतीय संघ के राज्यों के परिसीमन की व्यवस्था करता हैं।
अनुच्छेद 4 –
- संसद साधारण बहुमत से नए राज्यों का निर्माण कर सकती है।
- अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 से सम्बंधित परिवर्तनों को , संविधान संशोधन के अनु. 368 के तहत संशोधन नहीं माना जाएगा।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य –
- संसद, संविधान में संशोधन करके किसी भारतीय भू-भाग को किसी अन्य देश को सौंप सकती है।
- यह कार्य संविधान संसोधन के द्वारा ही किया जा सकता हैं।
राज्यों के गठन से सम्बंधित आयोग और समितियां –
स्वतंत्रता के बाद से ही अनेक भागों से यह मांग उठने लगी थी कि राज्यों का गठन भाषायी आधार पर होना चाहिए। जिसमें दक्षिण भारत से यह आवाज और सशक्त होती जा रही थी।
एस. के. धर आयोग –
जिसके फलस्वरूप जून, 1948 में भारत सरकार ने एस. के. धर की अध्यक्षता में भाषाई प्रांत आयोग की नियुक्ति की गयी थी। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट दिसंबर, 1948 में पेश की। आयोग ने राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार को अस्वीकार किया और राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार की जगह प्रशासनिक सुविधा के अनुसार किए जाने की सिफारिश की।
जेवीपी समिति –
- आयोग की सिफारिश के बाद असंतोष ओर बढ़ गया।
- जिसके परिणामस्वरुप एस. के. धर कमीशन की अनुशंसाओं का अध्ययन करने हेतु दिसंबर, 1948 में कांग्रेस द्वारा जेवीपी समिति का गठन किया गया।
- इसमें जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया शामिल थे।
- अप्रैल, 1949 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में इस समिति ने औपचारिक रूप से अस्वीकार किया कि, राज्यों के पुनर्गठन का आधार भाषा होनी चाहिए।
इन सब के बाद भाषाई आधार पर पहले राज्य का गठन क्यों –
- एस. के. धर आयोग और जेवीपी समिति की सिफारिश के बाद भी आंध्रा प्रदेश के रूप में पहले भाषाई राज्य का गठन किया गया था।
- मद्रास से तेलगु भाषी राज्य बनाने के लिए एक लम्बा आंदोलन हुआ। जिसमे भूख हड़ताल की गयी।
- पोट्टी श्रीरामुलु की 56 दिनों की भूख हड़ताल के बाद मृत्यु हो गयी।
- जिसके कारण अक्टूबर, 1953 में भारत सरकार को भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश राज्य का गठन करना पड़ा।
- आंध्र प्रदेश, भाषा के आधार पर गठित होने वाला देश का पहला राज्य है।
फजल अली आयोग –
- आंध्रा प्रदेश के गठन के बाद अन्य क्षेत्रों में भी भाषायी आधार पर राज्य निर्माण की मांग उठने लगी थी।
- जिसके कारण वर्ष 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में एक राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ।
- के.एम. पणिक्कर एवं एच.एन. कुंजरू , इस आयोग के दो अन्य सदस्य थे।
- इसने अपनी रिपोर्ट 1955 में पेश की।
- इसने व्यापक रूप से स्वीकार किया कि राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्या आधार बनाया जाना चाहिए।
- परन्तु आयोग ने एक राज्य एक भाषा के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया।
- इस आयोग का मत था कि किसी भी राजनीतिक इकाई के पुनर्निर्धारण में भारत की एकता को प्रमुखता दी जानी चाहिए।
- आयोग ने सलाह दी कि मूल संविधान के अंतर्गत चार आधार पर किये गए राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त किया जाना चाहिए।
- सरकार ने कुछ परिवर्तनों के साथ इसकी सलाह को स्वीकार कर लिया।
राज्य और उनके गठन का वर्ष / Indian States Formation Dates
राज्य | गठन वर्ष | |
---|---|---|
1 | आंध्र प्रदेश | 1 अक्टूबर, 1953 |
2 | गुजरात | 1 मई, 1960 |
3 | नगालैंड | 1 दिसंबर, 1963 |
4 | हरियाणा | 1 नवंबर, 1966 |
5 | हिमाचल प्रदेश | 25 जनवरी, 1971 |
6 | मेघालय | 21 जनवरी, 1972 |
7 | मणिपुर | 21 जनवरी, 1972 |
8 | त्रिपुरा | 21 जनवरी, 1972 |
9 | सिक्किम | 16 मई, 1975 |
10 | मिजोरम | 20 फरवरी, 1987 |
11 | अरुणाचल प्रदेश | 20 फरवरी, 1987 |
12 | गोवा | 30 मई, 1987 |
13 | छत्तीसगढ़ | 1 नवंबर, 2000 |
14 | उत्तराखंड | 9 नवंबर, 2000 |
15 | झारखंड | 15 नवंबर, 2000 |
16 | तेलंगाना | 2 जून, 2014 |
वर्तमान में राज्य और संघ राज्यक्षेत्र –
- वर्तमान में भारतीय संघ में 28 राज्य और 8 संघ राज्यक्षेत्र हैं।
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