चार धाम यात्रा | Char Dham Yatra in Hindi | Chaar Dham Kaise jaaye

 

 

Char Dham Yatra in Hindi

भारत आस्था और मान्यताओं का देश है। भक्ति और ईश्वर के प्रति अटूट आस्था इस विश्वास को पुख्ता करती है कि यहाँ कण-कण में ईश्वर का वास है। इसी आस्था और विश्वास का सर्वोच्च प्रतीक है, देव भूमि उत्तराखंड की चार धाम यात्रा।

गंगोत्री यमुनोत्री केदारनाथ और बद्रीनाथ यह सिर्फ पौराणिक या धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि पवित्रता एवं भक्ति भाव की वह ऊर्जा है जिससे भारतीय जनमानस ओतप्रोत होता है।

इस लेख के माध्यम से हम आपको चारों धामों के इतिहास एवं उनके धार्मिक महत्व और सामाजिक एवं धार्मिक दृश्टिकोण के बारे में संक्षिप्त में चर्चा करेंगे। Char Dham Yatra in Hindi। Kedarnath Dham in Hindi। Badrinath Dham in Hindi। Uttarakhand Char Dham in Hindi | Char Dham Yatra in Hindi

 

 

उत्तराखंड चार धाम | Uttarakhand Char Dham Yatra in Hindi 

 

उत्तराखंड में चार धाम की यात्रा पर लगी रोक को कुछ शर्तों के साथ न्यायलय ने हटा दिया है, जिससे चार धाम यात्रा शुरू हो चुकी है।

चार धाम यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत ही धार्मिक एवं पौराणिक महत्व है। चार धाम यात्रा को एक धार्मिक यात्रा माना गया है, जिसमें हिंदू धर्म के अनुयायी उत्तराखंड में बसे हुए चार धाम, तीर्थ स्थानों में दर्शनों के लिए जाते हैं। यह चार धाम है : गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम।

प्रत्येक वर्ष चार धाम यात्रा गर्मियों के मौसम में होती है। ठंड के मौसम में सभी धामों के कपाट बंद रहते हैं। दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु चारों धामों के दर्शन के लिए यहां आते हैं।

प्रकृति की गोद में बसा देव भूमि उत्तराखंड अपने दार्शनिक एवं पौराणिक तीर्थ स्थलों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां के दो तीर्थ स्थल बद्रीनाथ और केदारनाथ पूरे भारत समेत दुनिया भर के लोगों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है।

चार धामों में शामिल बद्रीनाथ एवं केदारनाथ को लेकर यह मान्यता है कि जो लोग यहां आते हैं उन्हें उनके पापों से मुक्ति मिल जाती है। प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम के दर्शन के लिए आते हैं। Char Dham Yatra

 

 

उत्तराखंड चार धाम यात्रा | Uttarakhand Char Dham Yatra

 

महाभारत में पांडवों ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को चार धाम कहा है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह चार जगह है ऐसी हैं, जहां लोग जाकर अपने पापों से मुक्ति पा सकते हैं। इन चार धामों में केदारनाथ भगवान शिव को और बद्रीनाथ भगवान विष्णु को समर्पित धाम है, जिनकी हिंदू धर्म में बड़ी महिमा है।

केदारनाथ धाम | Kedarnath Dham :

 

उत्तराखंड में हिमालय की गोद में बसा केदारनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग में से एक होने के साथ ही पंच केदार में से एक है। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है।

यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटमा पत्थरों के विशाल शिलाखंडो को जोड़कर बनाया गया है। यह शिलाखंड भूरे रंग के है।

केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ करीब 22000 फुट ऊंचा केदारनाथ है तो दूसरी तरफ 21600 फीट ऊंचा हर्जकुंड और तीसरी तरफ 22700 फुट ऊंचा भरतकुंड है। केदारनाथ ना सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है। इन नदियों में मंदाकिनी, मधुगंगा, शीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी शामिल है। हालांकि इनमें से कई नदियों का अस्तित्व अब नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है।

केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनकी भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मधमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई। इसलिए इन चारों स्थानों समेत केदारनाथ को पंच केदार कहा जाता है।

केदारनाथ मंदिर के किनारे हैं केदारेश्वर धाम। यहां सर्दियों में भारी बर्फ एवं बारिश के कारण काफी पानी रहता है। कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण पांडव वर्ष के जनमेजय ने कराया था। एक मान्यता के अनुसार इसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की। ऐसा भी माना जाता है हिमालय के केदार श्री पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उनकी प्रार्थना पर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान दिया।

यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है। केदारनाथ धाम की हिंदू धर्म में बड़ी महिमा है। माना जाता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है उसकी यात्रा निष्फल मानी जाती है। Char Dham Yatra

 

बद्रीनाथ धाम | Badrinath Dham :

 

उत्तराखंड  राज्य के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है बद्रीनाथ धाम। यह पंच बद्री में से एक बद्री है।

उत्तराखंड में पंच बद्री, पंच केदार और पंच प्रयाग का पौराणिक रूप से और हिंदू धर्म की दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है। प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर काफी विशाल है।

पौराणिक मान्यता के मुताबिक भगवान शिव ने बद्रीनारायण की छवि एक शालिग्राम पत्थर के ऊपर अलकनंदा नदी में खोजी थी। वह मूल रूप से तप्त कुंड हॉट स्प्रिंग्स के पास एक गुफा में बना हुआ है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में कराया था। ऐसी मान्यता है कि सोलवीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवाकर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना की। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है जिसमें गर्भ ग्रह, दर्शन मंडप और सभा मंडप शामिल है। इस मंदिर को धरती का बैकुंठ भी कहा जाता है। Char Dham Yatra

 

 

गंगोत्री एवं यमुनोत्री धाम | Gangotri & Yamunotri Dham :

 

आस्था और विश्वास के पवित्र केंद्रों में से एक यह स्थान जिसे सांस्कृतिक रुप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, वहीं इसका आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक महत्व भी रहा है।

भारत की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत में गंगोत्री और यमुनोत्री का जो स्थान है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। यह श्रद्धा एवं समर्पण की असीम अनुभूति है।

उत्तराखंड में हिमालय की गोद में विराजमान गंगोत्री, जो गंगा का उद्गम स्थान है। गंगा नदी को तीर्थों का प्राण माना जाता है। गंगोत्री धाम भारत के प्रसिद्ध चार धामों में से एक है। यह चार धाम यात्रा का दूसरा सबसे पवित्र पड़ाव है, जोकि यमुनोत्री धाम के बाद आता है। और इससे निकलने वाली गंगा, यमुना नदियाँ आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है।

जहां गंगा ज्ञान की प्रतीक मानी जाती है, तो यमुना भक्ति की।

हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर में भागीरथी के नाम से बर्फ के पहाड़ों के बीच से जन्म लेने वाली गंगा भारत की सबसे लंबी नदी है। जो चार राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल से होकर 2525 किलोमीटर की लंबी यात्रा करते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

पर्वतों, घाटियों और मैदानों में हजारों मील की दूरी तय करती हुई, गंगा नदी में आगे चलकर अलकनंदा, यमुना, सोन, गोमती, कोसी और घाघरा नदियाँ जुड़ती हैं।

गंगा नदी का बेसिन विश्व में सबसे अधिक उपजाऊ क्षेत्र के रूप में माना जाता है। और यहां सबसे अधिक धनी आबादी निवास करती है। गंगा भारत और बांग्लादेश के कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो प्रदान करती है और अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवं गेहूं है। जो भारत की कृषि का आज महत्वपूर्ण स्रोत है।

गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल एवं झीलों के कारण यहां मिर्च, सरसों, तिल, गन्ना और जूट की अच्छी फसल होती है। नदी में मछली उद्योग भी बहुत अधिक जोरों पर चलता है। यही कारण है कि गंगा नदी को उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदंड भी कहा जाता है।

यमुनोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित यमुना नदी का उद्गम स्थल है। यमुनोत्री का यह स्थान समुद्र तल से 10000 फुट की ऊंचाई पर है। यहां कई गर्म पानी के कुंड हैं, जिनका जल खौलता रहता है। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुई बर्फ की एक झील और हिमनद है जिसे चंपासर ग्लेशियर भी कहते हैं। जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊंचाई पर कलिंद पर्वत पर स्थित है। यहीं से निकलकर यमुना गंगा के समानांतर बहते हुए प्रयाग में गंगा में मिल जाती है, जिसे संगम कहते हैं।

यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है, वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्घकालीन परंपरा की प्रेरक और यहां की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है। यमुना के जल की परिशुद्धता एवं पवित्रता के कारण भक्तों के हृदय में यमुना के प्रति अपार श्रद्धा और भक्ति उमड़ पड़ती है।

मथुरा में यमुना के 24 घाट हैं, जिन्हें तीर्थ भी कहा जाता है। ब्रज में यमुना का महत्व वही है, जो शरीर में आत्मा का। यमुना के बिना ब्रज और ब्रज की संस्कृति का कोई महत्व नहीं है। यह पश्चिमी हिमालय से निकलकर उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमा के सहारे 95 मील का सफर तय कर उत्तरी सहारनपुर पहुंचती है और दिल्ली, आगरा से होते हुए प्रयाग में गंगा नदी में मिल जाती है। जो संगम के नाम से प्रसिद्ध है।

इन नदियों और उनके उद्गम स्थल के महत्व के कारण प्राचीन काल से देश में चार नदियों को चार वेदों के रूप में माना गया है। गंगा को ऋग्वेद, यमुना को यजुर्वेद, सरस्वती को अथर्ववेद और नर्मदा को सामवेद।

चार धाम युद्ध की यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो इसका भी खास ख्याल रखा जाता है।

इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण कुछ शर्तों के साथ यात्रा का पुनः शुभारम्भ हुआ है जिसमें श्रद्धालु अधिक से अधिक रजिस्ट्रेशन करवा रहे है। Char Dham Yatra

 

 

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